ज्योतिष समाधान

Sunday, 1 September 2024

# कुशा में जड़ में ब्रह्मा मध्य में विष्णु और ऊपर शिव का बास है

#कुशा_का_एक_ब्राह्मण_के_लिए_महत्व:-

ब्राह्मण को नित्य कुश धारण करने का निर्देश देते हुए कहा गया है कि-
"यथेन्द्रस्याशनिर्हस्ते यथा शूलं कपर्दिन: ।
यथा सुदर्शनं विष्णोर्विप्रहस्तकुशस्तथा ।।
वरुणस्य करे पाशो यथा दण्डो यमस्य तु ।
तथा ब्राह्मणहस्तस्थ: सकलं साधयेत् कुश:।।"
  #अर्थात्:-
जिस प्रकार देवराज इंद्र के हाथ में स्थित वज्र ,शंकर जी का त्रिशूल ,विष्णु का सुदर्शन चक्र ,वरुण देव का पाश, यमराज का दंड ,अमोघ होता है, वैसे ही ब्राम्हण के हाथ में स्थित कुश भी अमोघ एवं फलदाई होता है।

#कुश_का_अर्थ:- 
"पापाह्वय: 'कु' शब्द: स्यात् 'श' शब्द: शमनाह्वय: ।
तूर्णेन पाप शमनं येनैतत्कुश उच्यते ।।"
#अर्थात्:-
'कुश' नाम की व्युत्पत्ति में कहा गया है कि 'कु' शब्द समस्त पापों का वाचक है और 'श' शब्द सभी प्रकार के दोष पापों का नाशक है ,इसलिए शीघ्र ही पापो का नाश करने के कारण इसे "#कुश" कहा गया है। 


कुश का महत्व
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव का जानना चाहिए. ये देव कुश में प्रतिष्ठित माने गए हैं. बताया जाता है कि मंत्र, ब्राह्मण, अग्नि, तुलसी और कुश कभी भी बासी नहीं माने जाते हैं. पूजा में इनका उपयोग बार-बार किया जाता है. धर्मग्रंथों में कुश के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है.

भगवान विष्णु के रोम से बना है कुश
अथर्ववेद के अनुसार, कुश घास का उपयोग करने से क्रोध नियंत्रित करने में सहायता मिलती है.कुश का उपयोग औषधि के रूप में भी होता है. भगवान विष्णु के रोम से बने होने की वजह से इसे पवित्र माना जाता है.

कुश की उत्पत्ति कथा
मत्स्य पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया था और हिरण्याक्ष का वध किया था. फिर से पृथ्वी को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी. उस समय जब भगवान वराह ने अपने शरीर को झटका था, तब उनके शरीर के कुछ रोम धरती पर गिर गए थे. उन्हीं से कुश की उत्पत्ति हुई. इस वजह से कुश पवित्र माने जाते हैं.

कुश और अमृत कलश से जुड़ा प्रसंग
महाभारत में कुश से जुड़ा एक प्रसंग है. एक समय की बात है, जब गरुड़ देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आ रहे थे, तब उन्होंने कुछ देर लिए अमृत कलश को जमीन पर कुश पर रख दिया. इस पर अमृत कलश रखने के कारण यह पवित्र माना जाता है.

कुश से जुड़े नियम
जिस कुश घास में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और वो हरा हो, वह कुश देवताओं और पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार, कुश को इस अमावस्या पर सूर्योदय के वक्त लाना चाहिए. यदि आप सूर्योदय के समय इसे न ला पाएं तो उस दिन के अभिजित या विजय मुहूर्त में घर पर लाएं.


कुशोत्पाटनी अमावस्या के नाम से लोक में विश्रुत है क्योकि इस दिन पूरे साल देव पूजा और श्राद्ध आदि कर्मों के लिए कुश का संग्रह किया जाता है। कुशग्रहणी अमावस्या के दिन पितारों की पूजा और श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट और प्रसन्न होते हैं। इस दिन किए गए स्नान, दान आदि से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रानुसार बिना कुश के की गई पूजा का फल निष्फल मानी जाती है यथा- –

पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:।
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया॥

इसी कारण पूजा के समय पुजारी अनामिका उंगली में कुश की बनी पैंती पहनाते हैं और पंडित जी उसी पैंती से गंगा जल मिश्रित जल बैठे हुए सभी भक्त जनों पर छिड़कते हैं। इसी कारण इस दिन पूरे साल के लिए पूजा आदि हेतु कुश उखाड़ा रखा जाता है-

कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:॥

आपके समीप सहज रूप में जो भी कुश उपलब्ध हो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।


 कहा जाता है कि जिस कुश का मूल तीक्ष्ण, जिसमे 7 पत्ती हों, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो, उसका उपयोग देव और पितृ दोनों पूजा में होता है अतः कुश उखाड़ते समय इस बात का अवश्य ही ध्यान रखें।

किस मन्त्र से कुश को उखाड़ना चाहिए ?

जहां भी कुश उपलब्ध हो, वहां पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाए उसके बाद इस मन्त्र को बोलते हुए दाहिने हाथ से  


“ॐ हूं फट” तथा अधोलिखित मंत्र पढ़कर कुश को उखाड़ लेना चाहिए।
मंत्र | 

‘विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव॥

कुश के जड़ में ब्रह्मा, 

मूल भाग में नारायण 

एवं ऊपर में शिव का वास माना गया है।

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