Saturday, 20 July 2024

कन्याओं को भी बालकोंकी तरह अपने माता-पिता व जेष्ठ भ्रातादिको अभिवादन करना शास्त्रसम्मत है।

हां कन्याओंका भी बालकोंकी तरह अपने माता-पिता व जेष्ठ भ्रातादिको अभिवादन करना शास्त्रसम्मत है।

परंतु मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं पश्चिमीउत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रोंमें प्रणामादिकी स्थिति शास्त्र सम्मत न होकर उलटी है, देखिए -

1. माता- पिताका — पुत्रीको प्रणाम करना।
 
2. बड़ेभाईका — छोटी बहनको प्रणाम करना।

3. मामाका — भांजेको प्रणाम करना ।

4. सास - ससुरका — दामादको प्रणाम करना।

*जबकि शास्त्रकी सम्मति इसके बिल्कुल विपरीत है।*

*#शास्त्रसम्मत_देखिए* -

1. पुत्रीको ही माता-पिताको प्रणाम करना चाहिए।

2. छोटी बहनको ही बड़े भाईके लिए प्रणाम करना उचित है। 

3. भांजेका मामाको प्रणाम करना ही शास्त्र सम्मत है।

4. दामादके द्वारा सास-ससुर वंदनीय हैं।

*#प्रमाण*-

*3अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः*
*चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।*
                             (#मनुस्मृति- 2/121)

अपनेसे बड़ोंको प्रणाम/ अभिवादन करना चाहिए, यह जो सर्व सामान्य विधि है वह सभीके लिए है, चाहे वह बालिका /स्त्री हो या बालक/पुरुष, सभीको अपनेसे जेष्ठोंको वृद्धोंको नित्य अभिवादन करना चाहिए।

  वृद्ध/ ज्येष्ठ व्यक्तिके आने पर, यदि छोटे लोग खड़े होकरके अभिवादन नहीं करते,  तो छोटोंके प्राण ऊपर उठने लगते हैं। यदि वे उठकर प्रणाम कर लेते हैं, तो प्राण पुनः वास्तविक स्थितिमें आजाते हैं-

*ऊर्ध्वं प्राणा ह्युत्कामन्ति यूनः स्थविर आयति।*
*प्रत्युत्थानाभिवादाभ्यां पुनस्तान्प्रतिपद्यते* 
(मनुस्मृति 2/120, महाभारत उद्योग.38/1, महाभारत अनुशा. 104/ 65)

यह विधि भी सर्व सामान्य होनेसे स्त्री, कन्या और बालक, पुरुष सभीके ऊपर समान रूपसे लागू होती है।

*#विधिरत्यन्तमप्राप्तौ*

*#विशेष*-
धर्मशास्त्रोंका नियम है कि पहले सर्व सामान्य विधि कहते हैं ,और सामान्य लोगोंसे विशेष लोगोंको यदि पृथक करना हो तो सामान्य विधिका फिर निषेध वचन देते हैं , और निषेधोंमें से भी  फिर दोबारा  किसी समय विशेषमें या व्यक्ति विशेषके लिए छूट देनी हो तो, फिर प्रतिप्रसववचन (निषेधका निषेध अर्थात् विधि) वचन फिर देते हैं।

तो यहां प्रकृत प्रसंगमें कन्या(बेटी), भांजा, छोटी बहन और दामादादिके लिए अलगसे कोई निषेध वचन या प्रतिप्रसव वचन धर्मशास्त्रोंमें  उपलब्ध नहीं होते, इस दृष्टिसे इन सभीके ऊपर भी सामान्य विधि ही लागू होती है, अर्थात् इन्हें भी अपने जेष्ठोंको, वृद्धों  (माता-पिता, बड़े भाई, मामा और सासु- ससुरादि) को प्रणाम /अभिवादन करना ही  चाहिए ,यह शास्त्रोंसे सिद्ध है।

*मातरं पितरं चोभौ दृष्ट्वा पुत्रस्तु धर्मवित्।*
*प्रणम्य मातरं पश्चात् प्रणमेत् पितरं ततः।।*

 इति स्मृतिवर्णनात् पुत्रपदस्य कोषे तथा व्याकरणे कन्यापुत्रयोः युगपद् बोधनात् कन्यापि पितरौ प्रणमेत्।
 किन्तु  काश्यपादिस्मृतिषु रजस्वलास्पर्शनार्हत्वात् स्पर्शे च प्रायश्चित्तविधानात् रजस्वलायाः दैवादिकार्ये अनधिकारदर्शनात्
 रजस्वला कन्या पितरौ चरणं स्पृष्ट्वा न नमेत् उत दूरात् एव अभिवादयेत्।

*#शङ्का* -
1 कन्याओंको तो भगवतीका स्वरूप बताया गया है फिर हम उनसे कैसे प्रणाम करा सकते हैं।
*अष्टवर्षा भवेद्गौरी नववर्षा च रोहिणी।*
इत्यादि वचन भी हैं।

2 फिर हमारे क्षेत्रोंमें यह उल्टी परंपरा कैसे बन गई?

*#समाधान*-

1 *अष्टवर्षा भवेद्गौरी नववर्षा च रोहिणी।*
इत्यादि जो बचन हैं बे वचन नवरात्रादिमें कन्या पूजनके महत्वको और शीघ्रविवाह करनेके महत्वको दर्शाते हैं।

 ये अभिवादनके व्यावर्तक वचन नहीं है अर्थात् यह नियम यहां लागू नहीं होता।

2 धर्म शास्त्रोंने पुत्री, छोटी बहन ,भांजा और दामाद के पूजन और अभिवादन की छूट समय विशेष पर ही दी गई है ।
 कुछ क्षेत्रोंमें उसीका अतिदेश करके इस नियमको सार्वकालिक / हरसमयमें नित्य लागू कर दिया है, वस यहीं चूक हुई है -
*#जैसे*-

1. *#पुत्री_व_छोटीबहन*-
 कन्यापूजनके समय और कन्यादानके समय अपनी पुत्री अथवा अपनी छोटी बहनका भी पूजन, अभिवादन करनेका शास्त्र निर्देश करते हैं, सर्वदा नहीं।
परंतु इसी नियमका आतिदेश करके लोगोंने हर समय पर लागू कर दिया ।

2. *#भागिनेय(भांजा)* -
श्राद्धमें भांजेको निमंत्रित करना उत्तम बताया गया है। श्राद्धमें आए हुए सभी ब्राह्मणोंका भले ही वह भांजा ही क्यों ना हो उसका भी पूजन, अभिवादन करनेका शास्त्र विधान करते हैं, नित्य करनेका नहीं ।
यही नियम नित्य लागू कर दिया जो कि गलत है ।

क्योंकि श्राद्धमें तो लिखा हुआ है गुरु भी अपने योग्य शिष्यको निमंत्रित कर सकता है ।
निमंत्रित शिष्यको भी गुरु पादप्रक्षालन करके और अभिवादन पूजन करें यह श्राद्धकी विधि है ,यदि गुरु नित्य शिष्यको प्रणाम करने लग जाए तो कितना उल्टा हो जाएगा इस बातसे आप विचार कर सकते हैं।

3. *#जामाता_दामाद*-
द्वार पर आए हुए विष्णुस्वरूप वरका कन्याके माता- पिता अभिवादन और मधुपर्कविधिसे पूजन पूर्वक स्वागत सत्कार करें, ऐसा शास्त्र वचन है। नित्य नहीं। 
क्योंकि शास्त्रोंमें 5 माताएं बताईं गईं हैं उनमें सासको भी माता बताया गया है।

*राजपत्नी गुरुपत्नी मित्रपत्नी तथैव च।*
*पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चमाता च संस्मृताः।।*
                                    (#चाणक्यनीति)

उपर्युक्त शास्त्रीय लेखपर विद्वज्जन और विचार करें—

*#निवेदक*-
आचार्य राजेश राजौरिया वैदिक
पं.श्रीराजवंशी द्विवेदी वेदवेदाङ्ग विद्यालय वृन्दावन। 
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव!!!!!!!!!!!!

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