माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करने का निर्णय लिया. देवी सीता ने फल्गु नदी के किनारे बालू का पिंड बनाया और वटवृक्ष, केतकी फूल, नदी और गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान किया. राजा दशरथ की आत्मा इससे बहुत प्रसन्न हुई और देवी सीता को आशीर्वाद दिया था I .तथा मार्कंडेय पुराण में भी कहा गया है कि अगर किसी का पुत्र न हो तो पत्नी ही बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है इसके अलावा गरुड़ पुराण:के ग्यारहवें अध्याय में बताया गया है पुत्राभावे वधु कूर्यात ..भार्याभावे च सोदनः !
शिष्यो वा ब्राह्मणः सपिण्डो वा समाचरेत !!
ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृः पुत्रश्चः पौत्रके !
श्राध्यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खगः !! अर्थात - ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर सकता है। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध, तर्पण कर सकती है। आप सभी विद्वानों से सविनय निवेदन है की तो इसपर उचित प्रकाश डालने की कृपा करें
प्रश्न की पत्नी को श्राद्ध का अधिकार है अथवा नहीं:- हमारा उत्तर है की पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। किन्तु इसके लिए नियम है, स्मरण रहें स्वपुत्र के अतिरिक्त जो भी श्राद्ध करेंगे उन्हें स्वयं को अधिकारी घोषित करना होगा श्राद्ध मे प्रथम और एक मात्र अधिकार पुत्र का ही होता है पुत्र के अभाव मे पत्नी आदि विकल्प होते हैं।
अब विकल्प का निर्णय सुनिए :-
पुत्र, पौत्र, प्रपोत्र, नाती,पत्नी,भाई,भतीजा, पिता, माता,पुत्र वधु, बहन,भांजा,सपिंड (1से 7 पीढ़ी तक के लोग), सोदक (7से 14)
ऊपर से एक एक के अभाव मे अगला श्राद्ध करे ऐसा शास्त्र का आदेश हैं।स्मृति संग्रह और श्राद्ध कल्प मे ये वचन आया है।
और भी वचन हैं जो पत्नी को श्राद्ध का अधिकारी बनाती है -
पितु: पुत्रेन कर्तव्या:पिंडदानोदक कृया।
पुत्राभावे तु पत्नी: स्यात पत्न्याभावे तु सोदर:!!
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