श्रावण शुक्ल पक्ष पूर्णिमा गुरूवार दिनांक11-8- 2022 रक्षाबंधन पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत है,
इस दिन उदयकाल में चतुर्दशी तिथि है जोकि 10-38 बजे तक रहेगी
इसके पश्चात पूर्णिमा का प्रारंभ हो जायेगा जो कि शुक्रवार की सुबह 7-5 बजे तक रहेगी।
वस्तुतः यह त्यौहार पूर्णिमा से पूरी तरह जुड़ा हुआ है परन्तु ज्योतिषीय नियम से चतुर्दशी विद्धा पूर्णिमा रक्षाबंधन के लिये उपयुक्त शुभकारक कही गई है,
प्रमाण ग्रंथ बताते हैं
रक्षा बंधन का पवित्र पर्व भद्रारहित अपराह्ण व्यापिनी पूर्णिमा में करने का शास्त्र विधान है-"
यदि पहिले दिन व्याप्त पूर्णिमा के अपराह्नकाल में भद्रा हो तथा उदयकालिक पूर्णिमा तिथि
त्रिमुहूर्त-व्यापिनी हो,
तो उदयकालिक पूर्णिमा (दूसरे अपराह्णकाल में रक्षाबन्धन करना चाहिए। चाहे वह अपराह्ण से पूर्व ही क्यों न समाप्त हो जाएं।
*पुरुषार्थ चिन्तामणि* के अनुसार भी
*यदा द्वितीयापराह्णात् पूर्वं समाप्ता,
तदापि भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये*🚩
परन्तु यदि आगामी दिन पूर्णिमा त्रिमुहूर्त्त-व्यापिनी न हो,
तो पहिले भद्रा समाप्त होने पर प्रदोषकाल में ही रक्षाबन्धन करने का विधान कहा गया है
अथ रक्षाबन्धनमस्यामेव पूर्णिमायां भद्रारहितायां त्रिमुहूर्ताधिकोदय
व्यापिन्याम्-अपराह्णे प्रदोषे वा कार्यम् ।।
उदयत्रिमुहूर्त - न्यूनत्वे पूर्वेद्यु-भद्रारहिते प्रदोषादिकाले कार्यम्* ॥
मुहूर्त प्रकाश अनुसार
*कार्येत्वावश्यके विष्टेः मुखमात्रं परित्यजेत्*
इस वर्ष 11 अगस्त 2022 ई. को अपराह्ण व्यापिनी पूर्णिमा में भद्रादोष व्याप्त है और आगामी दिन 12 अगस्त, शुक्रवार को पूर्णिमा त्रिमुहूर्त्त व्यापिनी नहीं है।
आषाढी श्रावणी चैव
फाल्गुनी दीप मल्लिका ।
नंदा विद्धा न कर्त्तव्या
कृते अर्थ क्षयो भवेत।।
आशय स्पष्ट है कि नंदा संज्ञा तिथि पढ़वा के संयोग से मनाई जाने बाली राखी दीवाली होलिका आषाढ़ी, आर्थिक संकट देती हैं।
दूसरे यहभी अभिमत है..कि भद्रा काल में किये गए माँगलिक कार्य शुभ फल के बजाय अशुभ फल देते हैं।
इस दिन तिथि आरंभ से ही भद्रा लग जायेगी
जो कि रात्रि ८-52तक रहेगी।
यह समय बहुत ही अनुपयुक्त माना गया है।
भद्रायां द्वे न कर्त्तव्यै
श्रावणी फाल्गुनी तथा ।
श्रावणी नृपतिं हन्ति
ग्रामं दहति फाल्गुनी ।।
रक्षाबंधन और होलिका दहन
भद्रा काल में निषिद्ध है।
नृपति शव्द और ग्राम शब्द से आशय
राष्ट्र ग्राम, ग्रह मुखिया का बोध कराता है।
भद्रा एक प्रकार की कृत्या या राक्षसी है जो कार्य विनाश करती है।
किन्हीं किन्हीं विद्वानों का मानना है कि भद्रा का भ्रमण तीनों लोकों में चन्द्र राशि अनुसार होता है
इस दिन चन्द्र राशि मकर है
भद्रा पाताल में रहती है,
शीघ्रवोध और ज्योतिष सर्व संग्रह जैसे प्रारंभिक ग्रंथों में मकर राशि चंद्र में स्वर्ग में भद्रा वास कहा है।
..,, स्वर्गे भद्रा शुभं कार्ये पाताले च धनागमे।
ज्योतिषीय विद्वानों का कहना यह भी है कि भद्रा पुच्छे शुभावहा या सुखावहा।
पुच्छ काल शुभ कहा है।
वैसे तो यह तर्क असंवद्ध है फिरभी यदि मान लिया जाय तोभी यह समय लगभग शाम 6बजकर26मि.से प्रारंभ होगा,
विशेष समय गोधूलि सह प्रदोष काल का ही श्रेष्ठ शुभ फल दायक है।
*अतएव शास्त्रानुसार तो 11 अगस्त, गुरुवार को ही भद्रा के बाद प्रदोषकाल में (०८:५१ से ०९:५० तक) रक्षाबन्धन मनाना चाहिए*।अतः भाई वहिन का यह त्यौहार रक्षाकी कामना से है इस लिये शुभ कामना की इच्छा रखने बाली वहिनों से निवेदन है कि भाई को राखी शुभ समय का विचार कर ही बाँधें।
गुरुदेव
Bhubneshwar
Parnkuti guna
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