Monday, 28 March 2022

चैत्र नवरात्र महूर्त विश्लेषण पर्णकुटी गुना

गुड़ी पड़वा में ‘गुड़ी’ शब्द का अर्थ ‘विजय पताका’ और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि से है। साथ ही चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा पर्व के मौके पर प्रत्येक घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाई जाती है और लोग हर्ष उल्लास के साथ इसे मनाते हैं। कहा जाता है कि इस दिन अपने घर को सजाने और गुड़ी फहराने से घर में सुख समृद्धि आती है और बुराइयों का नाश होता है। 
इस पर्व पर सूर्य देव की विशेष आराधना भी की जाती है। लोग सूर्य उपासना करके आरोग्य और सुख- समृद्धि की कामना करते हैं।
आपको बात दें कि गुड़ी पड़वा के त्योहार पर लोग पूरन पोली बनाते हैं जो  परिवार के लोग इसे एक साथ बैठकर खाते हैं।
आपको बता दें कि गुड़ी पड़वा पर नीम की पत्तियों को खाने की परंपरा है।
ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।
महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की गई थी।
इसी कारण हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से ही होता है। (पंचांग) के ये पांच प्रमुख अंग हैं- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण (तिथि का आधा भाग)। पंचांग के माध्यम से समय के विभिन्न अंगों का अध्ययन और विश्लेषण करके यह जाना जाता है कि किस कार्य को करने के लिए कौन सा दिन सही है।नव-संवत्सरोत्सव में काल (समय) का, उसके विभिन्न अंगों- वर्ष, मास, तिथि, वार, नक्षत्र आदि के साथ पूजन करने का उद्देश्य समय की महत्ता को समझाना है। 

हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं।
ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–
गुड़ी पड़वा,
अक्षय तृतीया,
दशहरा
और दीवाली, दिवाली को आधा मुहूर्त माना जाता है 

राजा शनि

दुर्भिक्ष मरकं रोगान करोति पवनं तथा ।

शनैश्चराब्दो दोषाश्च विग्रहांश्चैव भूभुजम् ।।

शनि के वर्ष में उपद्रव, युद्ध, दंगे, मारकाट का वातावरण तैयार होता है। अनेक देशों में परस्पर तनाव व टकराव होता है। जनहानि व दुर्भिक्ष होते हैं। तूफान से जनधन हानि, कम वर्षा या वर्षा के साथ तेज हवाएं चलती हैं। पेयजल से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। राजनैतिक मतभेद सामान्य रहता है। न्याय तथा कार्यप्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन होगा। मौद्रिक नीति में परिवर्तन होगा। महंगाई बढ़ेगी। उड़द, कोयला, लकड़ी, लोहा, कपड़ा, स्टील महंगे होंगे।

मंत्री बृहस्पति

विविध दान्ययुता खलु मेदिनि प्रचुरतोयधनामुदिता भवेत ।

नृपतयो जन लालन तत्परा: सुरगुरौ खलु मंत्रिपदान्विते ।।

देवगुरु बृहस्पति के मंत्री होने से सभी प्रकार के अनाजों की अच्छी पैदावार, खूब वर्षा, शासन की लोकभाव नीतियों के कारण सर्वत्र प्रसन्नता रहती है। किंतु राजा शनि होने से उपरोक्त फलों में न्यूनता समझनी चाहिए।

 किस दिन घटस्थापना होने से किस बाहन पर आती है
 देवी जी
शशिसुर्ये गजारूढा ,शनिभोमे तुँरगमे ।
गुरू शुक्रो च दोलायाँ- बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।

1सोमवार रविवार को हाथी पर
2शनिवार मंगलवार को घोड़े पर
3गुरुवार शुक्रवार को खटोला यानी डोली पर
4 बुधवार को नोका पर

बाहन पर आने का फल
गजे च जलदा देवी , छत्र भँग तुरँगमे ।
नौकायाँ सर्व सिद्धिस्यात दोलायाँ मरणँ धुव्रम ।।

रविवार और सोमवार को आगमन( नवरात्र शुरू होने का दिन) होता है तो वाहन हाथी है 
जो जल की वृष्टि कराने वाला है ,

शनिवार और मँगल वार को आगमन होता है तो राजा और सरकार को पद से हटना पड सकता है ,

गुरूवार और शुक्रवार को आगमन हो तो दोला ( खटोला ) पर आगमन होता है जो जन हानि , 
ताँडव , रक्तपात होना बताता है ,

बुधवार को आगमन हो तो देवी नोका ( नाव ) पर आती है तब भक्तो को सभी सिद्धि देती है ।
इस दिन इंद्र योग, अमृत सिद्धि योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है. गुड़ी पड़वा पर इंद्र योग सुबह 08:31 मिनट तक है. फिर इसके बाद अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग 1 अप्रैल से सुबह 10:40 मिनट से 02 अप्रैल को सुबह 06:10 मिनट तक है.

Saturday, 12 March 2022

होली के टोटके पर्णकुटी गुना 9893946810

1))】गोमती चक्र, कौड़ियाँ और बताशे जलती होली में स्वयं पर से उतार कर डालने से भी जीवन की हर बाधा स्वाहा हो जाती है।

2))होली की रात 12 बजे किसी पीपल वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाने और सात परिक्रमा करने से सारी बाधाएं दूर होती हैं।

3))होलिका दहन की रात तगर, काकझा, केसर को “क्लीं कामदेय फट् स्वाहा” मंत्र से अभिमंत्रित कर होली के दिन इसे अबीर या गुलाल में मिलाकर किसी के सिर पर डालने से वह शीश में हो जाता है।

4))जल्द शादी के लिए होली के दिन सुबह एक पान के पत्ते पर साबूत सुपारी और हल्दी की गांठ के साथ शिवलिंग पर चढ़ाएं और बिना पलटे घर आ जाएं। अगले दिन भी यही प्रयोग करें।

5))होलिका दहन के बाद जलती अग्नि में नारियल झाड़ने से नौकरी की बाधाएं दूर होती हैं।

6))डर और कर्ज से निजात पाने के लिए नरसिंह स्तोत्र का पाठ करना लाभदायक होता है।

7))होलिका दहन की राख को एक डिब्बी में लेकर अपने घर के ईशान कोण पर रख दें।

8))होलिका की राख काले कपड़े में बांधकर अपने घर के मुख्य द्वार पर लटका दें।
9))52 सिक्के, 5 गोमती चक्र, और 5 हल्दी की गांठ ले। इन्हें एक लाल कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। फिर उस पोटली को होलिका के पास ले जाये और उस पोटली को अग्नि की आंच दिखाएं (सेंक दे ) और घर आकर उस पोटली को अपने घर के पूजा स्थान पर रख दे। फिर हाथ पैर धोकर आसन लगाकर श्री सूक्त का पाठ करें। 

10))होलिका दहन की राख को एक डिब्बी में लेकर अपने घर के ईशान कोण पर रख दें।
11))होलिका की राख काले कपड़े में बांधकर अपने घर के मुख्य द्वार पर लटका दें।

12))होलिका दहन की राख अपने घर में लाकर चारों कोनों में रख दे। फिर 24 घंटे के बाद उनको उठाकर घर से बाहर फेंक दें।
13))5 गोमती चक्र, 5 गांठ वाली हल्दी ले। इन्हे लाल कपड़े में बांधकर एक पोटली बना ले। फिर इस पोटली को श्री कृष्ण मंदिर में ले जाकर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में रखे।
 भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करें और फिर उस पोटली को अपने साथ लेकर आए जहां होलिका दहन हो रहा हो। होलिका की 7 बार परिक्रमा करें और मन में शीध्र विवाह की प्रार्थना करते हुए पोटली को होलिका की अग्नि को समर्पित कर दे। इस पूरे प्रयोग को गुप्त रखें।

14))काली हल्दी होली के दिन गुगल के धूप के साथ जलाएं। साथ ही इसे घिस कर तिलक भी लगाएं। ऐसा करने से आपका मान-सम्मान भी बढ़ेगा और लोगों के बीच आपका आकर्षण भी कामय रहेगा।
15))होलिका दहन से पहले जब उसकी पूजा होती है उस समय आप काली हल्दी पर घी और सिंदूर लगा दें और गुगल का धूप दिखा कर उसे चांदी की प्लेट में रखे। इसके बाद एक घी का दीपक जलाएं और मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद लाल कपड़े में चांदी के सिक्के बांध कर उसे तिजोरी में रख दें। ये आपके धन को कभी कम नहीं होने देगा।


16))अगर आपके शत्रु बहुत हैं तो आप काली हल्दी पर सिंदूर और घी का लेप लगा कर होली दहन के समय काले कपड़े में चार कौड़ी और आठ काली गुंजा के साथ बांध लें और इसे गुगल की धूप दिखाएं । इसके बाद इसे घर के मुख्य द्वार की चौखट पर टांग दें लेकिन ऐसे टांगे की ये बाहर से किसी को नजर न आए। ये शत्रु निवारणा का सबसे बड़ा टोटका है।

17))गाय के गोबर में जौ, अरसी, कुश मिलाकर छोटा उपला बना लें। इसे घर के मुख्य दरवाजे पर लटका दें। ऐसा करने से नजर दोष, बुरी शक्तियों, टोने-टोटके से घर और घर में रहने वाले लोग सुरक्षित रहते हैं।

18))होलिका दहन के बाद अगली सुबह यानी धुलैंडी के दिन होलिकाग्नि की राख को माथे पर लगाएं। इसे लगाने का सही तरीका है बायीं ओर से दायीं ओर तीन रेखा खींचें।
इसे त्रिपुण्ड कहते हैं। इसे लगाने से 27 देवता प्रसन्न होते हैं। शस्त्रों में बताया गया है कि पहली रेखा के स्वामी महादेव हैं, दूसरी रेखा के महेश्वर और तीसरी रेखा के शिव।

19))होलिका दहन की रात घर के सभी सदस्यों को सरसों का उबटन बनाकर पूरे शरीर पर मालिश करना चाहिए। इससे जो भी मैल निकले उसे होलिकाग्नि में डाल दें। ऐसा करने से जादू, टोने का असर समाप्त होता है और शरीर स्वस्थ रहता है।होली की राख को घर के चारों ओर और दरवाजे पर छिड़कें। ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियों  का प्रवेश नही होता है

20))अगर क‍िसी बच्चे के परीक्षा में उम्मीद के अनुसार नंबर नहीं आ रहे हो या फिर उसका मन पढ़ाई में न लगता हो। तो उस विद्यार्थी को होलिका दहन स्थल पर नारियल, पान तथा सुपारी भेंट करना चाहिए। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से पढ़ने में मन लगने लगता है। साथ ही मनमुताब‍िक पर‍िणाम भी म‍िलने लगते हैं। 

21))इसके अलावा होली की रात सरसों के तेल का चौमुखी दीपक घर के मुख्य द्वार पर लगाएं और उसकी पूजा करें। इसके बाद भगवान से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से हर प्रकार की बाधा का निवारण होता है।

22))अगर बार-बार क‍िसी परीक्षा में असफल हो रहे हों तो होली की रात को हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके बाद लगातार 40 दिनों तक रोज एकबार हनुमान चालीसा का पाठ करें। मान्‍यता है ऐसा करने से हनुमानजी की कृपा होती है। साथ ही उनकी कृपा से सफलता म‍िलने लगती है। इसके अलावा होलिका दहन के सामने ओम ऐं सरस्वत्यै नमः का जप करें और इसके बाद रोजाना न‍ियम‍ित रूप से इस मंत्र का 3 बार जप करें। कहते हैं क‍ि धीरे-धीरे ये मंत्र अपना फल देने लगता है।

23))अगर लंबे समय से नौकरी नहीं मिल रही है, तो होली की रात बारह बजे से पहले एक दाग रहित बड़ा नींबू लेकर चौराहे पर जाएं और उसकी चार फांक कर चारों कोनों में फेंक दें। ध्यान रहें कि लौटते समय गलती से भी पीछे मुड़कर न देखें जल्द ही नौकरी मिलेगी।

24))अगर आप बिजनेसमैन हैं, तो बिजनेस में लाभ के लिए होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपड़े में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रख दें। इससे आपका बिजनेस तरक्की के रास्ते पर अग्रसर होगा।

25))अगर आप बिजनेसमैन हैं, तो बिजनेस में लाभ के लिए होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपड़े में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रख दें। इससे आपका बिजनेस तरक्की के रास्ते पर अग्रसर होगा।

26))होली के दिन एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपड़े में लपेट कर दुकान में स्थापित करें। साथ ही स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र भी रखें। अगर आप यह उपाय आस्थापूर्वक करते  हैं, तो लाभ में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होगी।

27))शाम के समय हनुमान जी को केवड़े का इत्र एवं गुलाब की माला अर्पित करें। 

28))होलिका की अग्नि से दुकान या प्रतिष्ठान के आग्नेय कोण में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।

होली के दिन एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपड़े में लपेट कर दुकान में स्थापित करें। साथ ही स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र भी रखें। अगर आप यह उपाय  करते हैं, तो लाभ में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होगी।

शाम के समय हनुमान जी को केवड़े का इत्र एवं गुलाब की माला अर्पित करें। होलिका की राख को घर के चारों ओर और दरवाजे पर छिड़कने से घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश नहीं होता है। होलिका की अग्नि से दुकान या प्रतिष्ठान के आग्नेय कोण में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।



Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti
9893946810

Thursday, 10 March 2022

होलिका दहन मुहूर्त्त का सूक्ष्म शास्त्रीय विचार पर्णकुटी गुना

 होलिका दहन मुहूर्त्त का सूक्ष्म शास्त्रीय विचार

 शास्त्र का सूक्ष्म विचार दुर्लभ से दुर्लभ होता जा रहा है। उसमें भी शास्त्रवचनों से ऊपर स्वसुविधा की वृत्ति ने व्रत-नियम के प्रति अनास्था उत्पन्न कर दी है।  होलिका दहन फाल्गुन शुक्लपक्ष की भद्रारहित प्रदोषव्यापिनी पूर्णिमा को ग्राह्य है। धर्मशास्त्र के सूक्ष्म विचार से ज्ञात होता है कि इस वर्ष 17 /18 मार्च 2022 में रात्रि 01:12 के पश्चात् ही शुद्धतम होलिका दहन मान्य होगा।


प्रतिपद्भूत भद्रासु या sर्चिताहोलिका दिवा, 
संवत्सरं तद्राष्ट्रं पुरं दहति सा द्रुतम्।
प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या पूर्णिमा फाल्गुनी सदा 
तस्यां भद्रा मुखं त्यक्त्वा पूज्या होला निशा मुखे।।

तदनुसार पढ़वाँ, चौदस, 
दोनों दिन होली जलाना
 वर्ष पर्यंत राष्ट्र और जनता को दग्ध करता है।

मन्वादि क्रम से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा प्रदोषकाल व्यापिनी लें, इस काल मेंभद्रा है तो भद्रा पुच्छ काल या मुख छोड़ कर दहन करें रात्रि की भद्रा का  पूर्वार्द्ध ग्राह्य है। 

अगले दिन पूर्णिमा प्रदोषकाल रहित हो तो प्रवर पक्ष प्रथम पूर्णिमा प्रदोषकाल सर्वमान्य है। 

तिथि मान प्रारंभ से साढ़े उन्नीस से साढ़े वाईस घटी तक भद्रा पुच्छ होगा।

।परिशोधित समयानुसार भद्रा पुच्छ काल मध्यम मान से दस बज कर वारह मिनट तक रहेगा

 अक्षांश भेद उदयास्त मान से समयांतर संभव है। 
अर्द्ध रात्रि से अधिक भद्रा काल है तो या भद्रा मुख साढ़े वाईस से साढ़े सत्ताईस घटी तक का समय मुखका है इस काल में होलिका दहन पूर्णतया निषिद्ध है।

अतः निर्णय सागर पंचाङ्ग, का निर्धारितप्रदोषकाल समय वा भद्रा पुच्छ समर्थित समय यथा साध्य यथामति यथेष्ट शास्त्र मत से सर्वथा ग्रहण करने योग्य है। 


दिनार्धात् परतो या स्यात् फाल्गुनी पूर्णिमा यदि। 
रात्रौ भद्रावसाने तु होलिकां तत्र पूजयेत्॥ –

भविष्योत्तर

अर्थात् यदि पहले दिन प्रदोष के समय भद्रा हो और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा समाप्त हो जाए तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा करके सूर्योदय होने से पहले रात्रि में होलिकादाह करना चाहिए। 

 भविष्योत्तरपुराण के उपरोक्त प्रमाण से स्पष्ट लिखा है कि - 

"यदा तु प्रदोषे पूर्वदिने भद्रा भवति परदिने चास्तात्पूर्वमेव पंचदशी समाप्यते तदा सूर्योदयात्पूर्वं भद्रान्तं प्रतीक्ष्य होलिका दीपनीया।"

 प्राचीन परंपरा यही रही है, देर रात्रि भद्रा उतरने पर 2, 3, 5 बजे होलिकादहन सभी ने देखा है, परन्तु आज मनुष्यों की सुविधा का विचार कर शास्त्र के स्पष्ट तथ्यों व परम्परा को त्यागा जा रहा है व प्रमाणाभास के आधार पर सायं भद्रा के समय ही होलिकादहन करने का मिथ्या निर्णय दिया जा रहा है।

भद्रा में होलिकादहन कथमपि शास्त्रसम्मत नहीं है
 क्योंकि―
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा। 
श्रावणी नृपति हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी॥

― निर्णयसिन्धु 

श्रावणी कर्म और फाल्गुनी पूर्णिमा पर होलिकादन भद्रा होने पर नहीं करना चाहिए। भद्रा में श्रावणी करने से राजा की हानि तथा होलिकादहन से ग्राम दहन का भय उत्पन्न होता है।

नन्दायां नरकं घोरं भद्रायां देशनाशनम्। 
दुर्भिक्षं च चतुर्दश्यां करोत्येव हुताशनः॥ 

–विद्याविनोद

प्रतिपदा में होलिकादाह से नरक, भद्रा में होलिकादाह से देशनाश, और चतुर्दशी में करने से दुर्भिक्ष होता है।

प्रतिपद्भूतभद्रासु यार्चिता होलिका दिवा। 
संवत्सरं तु तद्राष्ट्रं पुरं दहति साद्भुतम्॥ 

– चन्द्रप्रकाश

प्रतिपदा, चतुर्दशी, भद्रा और दिन, इनमें होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। कुयोगवश यदि जला दी जाए तो वहाँ के राज्य, नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पातों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं। 

भद्रायां दीपिता होली राष्ट्रभंगं करोति वै। 
― पुराणसमुच्चय
भद्रा में होली दाह से राष्ट्रभंग होता है।

अतः उपर्युक्त प्रचुर प्रमाणों से सिद्ध है कि पूर्णिमाव्यापिनी रात्रिपर्यन्त कभी भी भद्रारहित काल मिलने पर भद्रा में होलिका दाह पूर्णतः शास्त्रविरुद्ध एवं अनिष्टकारी है। 

भद्रा पुच्छकाल में होलिका दहन केवल तब ही होता है जब यदि पहले दिन भद्रारहित प्रदोष न मिले, रात्रिभर भद्रा रहे (सूर्योदय होने से पहले न उतरे) और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले ही पूर्णिमा समाप्त हो जाए, तो ऐसे अवसर में सूर्योदय पूर्व भद्रा के पुच्छकाल में होलिकादीपन कर देना चाहिए। 

पर चूँकि भद्राकाल सूर्योदय पर्यन्त व्याप्त नहीं है 

और 
17/18 की रात्रिशेष 01:12 पर ही समाप्त हो रहा है अतः रात्रि 01:12 से पहले होलिका दहन शास्त्र एवं परम्परा के विरुद्ध होगा। 

 शास्त्र  प्रमाणों की सर्वसम्मति से भद्रा समाप्ति के पश्चात् हो होलिकादहन को शुभ माना है। 

अतः 17 /18 मार्च  2022 को देर रात्रि 01:12 पश्चात् शास्त्रवचन एवं परम्परासिद्ध उत्तम मुहूर्त्त में होलिकादीपन कर उत्तम शुभफल की प्राप्ति करें। 
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810

Monday, 7 March 2022

शिव ओंकारा

*"ॐ जय शिव ओंकारा"*
यह वह प्रसिद्ध आरती है जो देश भर में शिव-भक्त नियमित गाते हैं..

लेकिन, बहुत कम लोग का ही ध्यान इस तथ्य पर जाता है कि... इस आरती के पदों में ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनो की स्तुति है..

*एकानन* (एकमुखी, विष्णु),  *चतुरानन* (चतुर्मुखी, ब्रम्हा) और *पंचानन* (पंचमुखी, शिव) *राजे..*

*हंसासन* (ब्रम्हा) *गरुड़ासन* (विष्णु ) *वृषवाहन* (शिव) *साजे..*

*दो भुज* (विष्णु), *चार चतुर्भुज* (ब्रम्हा), *दसभुज* (शिव) *अति सोहे..*

*अक्षमाला* (रुद्राक्ष माला, ब्रम्हाजी ), *वनमाला* (विष्णु ) *रुण्डमाला* (शिव) *धारी..*

*चंदन* (ब्रम्हा ), *मृगमद* (कस्तूरी विष्णु ), *चंदा* (शिव) *भाले शुभकारी* (मस्तक पर शोभा पाते हैं)..

*श्वेताम्बर* (सफेदवस्त्र, ब्रम्हा) *पीताम्बर* (पीले वस्त्र, विष्णु) *बाघाम्बर* (बाघ चर्म ,शिव) *अंगे..*

*ब्रम्हादिक* (ब्राह्मण, ब्रह्मा) *सनकादिक* (सनक आदि, विष्णु ) *प्रेतादिक* (शिव ) *संगे* (साथ रहते हैं)..

*कर के मध्य कमंडल* (ब्रम्हा), *चक्र* (विष्णु), *त्रिशूल* (शिव) *धर्ता..*

*जगकर्ता* (ब्रम्हा) *जगहर्ता* (शिव ) *जग पालनकर्ता* (विष्णु)..

*ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका* (अविवेकी लोग इन तीनो को अलग अलग जानते हैं।)
*प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका*

(सृष्टि के निर्माण के मूल ऊँकार नाद में ये तीनो एक रूप रहते है... आगे सृष्टि-निर्माण, सृष्टि-पालन और संहार हेतु त्रिदेव का रूप लेते है
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti
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