होलिका दहन मुहूर्त्त का सूक्ष्म शास्त्रीय विचार
शास्त्र का सूक्ष्म विचार दुर्लभ से दुर्लभ होता जा रहा है। उसमें भी शास्त्रवचनों से ऊपर स्वसुविधा की वृत्ति ने व्रत-नियम के प्रति अनास्था उत्पन्न कर दी है। होलिका दहन फाल्गुन शुक्लपक्ष की भद्रारहित प्रदोषव्यापिनी पूर्णिमा को ग्राह्य है। धर्मशास्त्र के सूक्ष्म विचार से ज्ञात होता है कि इस वर्ष 17 /18 मार्च 2022 में रात्रि 01:12 के पश्चात् ही शुद्धतम होलिका दहन मान्य होगा।
प्रतिपद्भूत भद्रासु या sर्चिताहोलिका दिवा,
संवत्सरं तद्राष्ट्रं पुरं दहति सा द्रुतम्।
प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या पूर्णिमा फाल्गुनी सदा
तस्यां भद्रा मुखं त्यक्त्वा पूज्या होला निशा मुखे।।
तदनुसार पढ़वाँ, चौदस,
दोनों दिन होली जलाना
वर्ष पर्यंत राष्ट्र और जनता को दग्ध करता है।
मन्वादि क्रम से फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा प्रदोषकाल व्यापिनी लें, इस काल मेंभद्रा है तो भद्रा पुच्छ काल या मुख छोड़ कर दहन करें रात्रि की भद्रा का पूर्वार्द्ध ग्राह्य है।
अगले दिन पूर्णिमा प्रदोषकाल रहित हो तो प्रवर पक्ष प्रथम पूर्णिमा प्रदोषकाल सर्वमान्य है।
तिथि मान प्रारंभ से साढ़े उन्नीस से साढ़े वाईस घटी तक भद्रा पुच्छ होगा।
।परिशोधित समयानुसार भद्रा पुच्छ काल मध्यम मान से दस बज कर वारह मिनट तक रहेगा
अक्षांश भेद उदयास्त मान से समयांतर संभव है।
अर्द्ध रात्रि से अधिक भद्रा काल है तो या भद्रा मुख साढ़े वाईस से साढ़े सत्ताईस घटी तक का समय मुखका है इस काल में होलिका दहन पूर्णतया निषिद्ध है।
अतः निर्णय सागर पंचाङ्ग, का निर्धारितप्रदोषकाल समय वा भद्रा पुच्छ समर्थित समय यथा साध्य यथामति यथेष्ट शास्त्र मत से सर्वथा ग्रहण करने योग्य है।
दिनार्धात् परतो या स्यात् फाल्गुनी पूर्णिमा यदि।
रात्रौ भद्रावसाने तु होलिकां तत्र पूजयेत्॥ –
भविष्योत्तर
अर्थात् यदि पहले दिन प्रदोष के समय भद्रा हो और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले पूर्णिमा समाप्त हो जाए तो भद्रा के समाप्त होने की प्रतीक्षा करके सूर्योदय होने से पहले रात्रि में होलिकादाह करना चाहिए।
भविष्योत्तरपुराण के उपरोक्त प्रमाण से स्पष्ट लिखा है कि -
"यदा तु प्रदोषे पूर्वदिने भद्रा भवति परदिने चास्तात्पूर्वमेव पंचदशी समाप्यते तदा सूर्योदयात्पूर्वं भद्रान्तं प्रतीक्ष्य होलिका दीपनीया।"
प्राचीन परंपरा यही रही है, देर रात्रि भद्रा उतरने पर 2, 3, 5 बजे होलिकादहन सभी ने देखा है, परन्तु आज मनुष्यों की सुविधा का विचार कर शास्त्र के स्पष्ट तथ्यों व परम्परा को त्यागा जा रहा है व प्रमाणाभास के आधार पर सायं भद्रा के समय ही होलिकादहन करने का मिथ्या निर्णय दिया जा रहा है।
भद्रा में होलिकादहन कथमपि शास्त्रसम्मत नहीं है
क्योंकि―
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
श्रावणी नृपति हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी॥
― निर्णयसिन्धु
श्रावणी कर्म और फाल्गुनी पूर्णिमा पर होलिकादन भद्रा होने पर नहीं करना चाहिए। भद्रा में श्रावणी करने से राजा की हानि तथा होलिकादहन से ग्राम दहन का भय उत्पन्न होता है।
नन्दायां नरकं घोरं भद्रायां देशनाशनम्।
दुर्भिक्षं च चतुर्दश्यां करोत्येव हुताशनः॥
–विद्याविनोद
प्रतिपदा में होलिकादाह से नरक, भद्रा में होलिकादाह से देशनाश, और चतुर्दशी में करने से दुर्भिक्ष होता है।
प्रतिपद्भूतभद्रासु यार्चिता होलिका दिवा।
संवत्सरं तु तद्राष्ट्रं पुरं दहति साद्भुतम्॥
– चन्द्रप्रकाश
प्रतिपदा, चतुर्दशी, भद्रा और दिन, इनमें होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। कुयोगवश यदि जला दी जाए तो वहाँ के राज्य, नगर और मनुष्य अद्भुत उत्पातों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं।
भद्रायां दीपिता होली राष्ट्रभंगं करोति वै।
― पुराणसमुच्चय
भद्रा में होली दाह से राष्ट्रभंग होता है।
अतः उपर्युक्त प्रचुर प्रमाणों से सिद्ध है कि पूर्णिमाव्यापिनी रात्रिपर्यन्त कभी भी भद्रारहित काल मिलने पर भद्रा में होलिका दाह पूर्णतः शास्त्रविरुद्ध एवं अनिष्टकारी है।
भद्रा पुच्छकाल में होलिका दहन केवल तब ही होता है जब यदि पहले दिन भद्रारहित प्रदोष न मिले, रात्रिभर भद्रा रहे (सूर्योदय होने से पहले न उतरे) और दूसरे दिन सूर्यास्त से पहले ही पूर्णिमा समाप्त हो जाए, तो ऐसे अवसर में सूर्योदय पूर्व भद्रा के पुच्छकाल में होलिकादीपन कर देना चाहिए।
पर चूँकि भद्राकाल सूर्योदय पर्यन्त व्याप्त नहीं है
और
17/18 की रात्रिशेष 01:12 पर ही समाप्त हो रहा है अतः रात्रि 01:12 से पहले होलिका दहन शास्त्र एवं परम्परा के विरुद्ध होगा।
शास्त्र प्रमाणों की सर्वसम्मति से भद्रा समाप्ति के पश्चात् हो होलिकादहन को शुभ माना है।
अतः 17 /18 मार्च 2022 को देर रात्रि 01:12 पश्चात् शास्त्रवचन एवं परम्परासिद्ध उत्तम मुहूर्त्त में होलिकादीपन कर उत्तम शुभफल की प्राप्ति करें।
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810
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