Tuesday, 13 March 2018

इस बार यानि चैत्र नवरात्रि 2018 को घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 18 मार्च सुबह 6 बजकर 31 मिनट से नव संबतत्सर  का नाम विरोध कृत नाम होगा इस संबतत्सर के राजा सूर्य होंगे ओर  मंत्री  जी शनि देव होंगे ।

गुरुदेव भुबनेश्वर जी पर्णकुटी द्वारा बताया गया कि
इस बार यानि चैत्र नवरात्रि 2018 को घट स्थापना का शुभ मुहूर्त

18 मार्च सुबह 6 बजकर 31 मिनट से नव संबतत्सर  का नाम विरोध कृत नाम होगा इस संबतत्सर के राजा सूर्य होंगे ओर  मंत्री  जी शनि देव होंगे ।

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प्रतिपदा तिथि आरम्भ :17 मार्च को  शाम 6:बजकर 41 मिनिट पर होगी ।

प्रतिपदा तिथि समाप्त :18 मार्च को  शाम 6:बजकर 31 मिनिट पर समाप्त होगी ।

घटस्थापना मुहूर्त :लग्न
मिथुन
कन्या
धनु
मीन
एबम सूर्योदय से 10 घड़ी  तक या अभिजीत मुहूर्त में करे
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दुर्गा जी के आगमन और प्रस्थान का विचार नवरात्र मे - आगमन - नवरात्र कलशस्थापन का प्रथम दिन , से जाने
किस दिन घटस्थापना होने से किस बाहन पर आती है देवी जी

शशिसुर्ये गजारूढा ,शनिभोमे तुँरगमे ।

गुरू शुक्रो च दोलायाँ- बुधे नौका प्रकीर्तिता ।।

1सोमवार रविवार को हाथी पर

2शनिवार मंगलवार को घोड़े पर

3गुरुवार शुक्रवार को खटोला यानी डोली पर

4 बुधवार को नोका पर

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            बाहन पर आने का फल

गजे च जलदा देवी , छत्र भँग तुरँगमे ।
नौकायाँ सर्व सिद्धिस्यात दोलायाँ मरणँ धुव्रम ।।

रविवार और सोमवार को आगमन( नवरात्र शुरू होने का दिन) होता है तो वाहन हाथी है जो जल की वृष्टि कराने वाला है ,

शनिवार और मँगल वार को आगमन होता है तो राजा और सरकार को पद से हटना पड सकता है ,

गुरूवार और शुक्रवार को आगमन हो तो दोला ( खटोला ) पर आगमन होता है जो जन हानि , ताँडव , रक्तपात होना बताता है ,

बुधवार को आगमन हो तो देवी नोका ( नाव ) पर आती है तब भक्तो को सभी सिद्धि देती है ।

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1 :विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं।

2 : यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं,

3: ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है।

4: हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है

४: और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है।

5 :प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है।

6; ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।

7: सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया।

8: इसी दिन महाराज युधिष्टिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया।

9: यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है।

10 : हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।

11: चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा, वर्ष प्रतिपदा, उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है।
'गुड़ी' का अर्थ होता है - 'विजय पताका' ‘युग’ और ‘आदि’ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि"।

गुड़ी पड़वा को संस्कृत में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के नाम से जानते हैं,

यह चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है।

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गुड़ी पड़वा यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हिन्दू नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है।

शब्द पादावा पड़वा या पाडोव संस्कृत शब्द पद्द्ववा/पाद्ड्वो से बना है जिसका अर्थ है

चंद्रमा के उज्ज्वल चरण का पहला दिन।
इसे संस्कृत में प्रतिपदा कहा जाता है।

चंद्रमा के उज्ज्वल चरण का जो पहला दिन होता है उसे पाद्य कहते हैं।

सामान्य तौर पर इस दिन हिन्दू परिवारों में गुड़ी का पूजन किया जाता है और इस दिन लोग घर के द्वार पर गुड़ी लगाते हैं और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार सजाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि यह बंदनवार घर में सुख, समृद्धि और खुशियां लाता है।

इस पर्व के मनाने के पीछे कई लोगों की अलग- अलग राय है और इस त्यौहार का विशेष महत्व भी है।

मुख्यत: ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है।

महान गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की गई थी।
इसी कारण हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से ही होता है।

हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं।
ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–
गुड़ी पड़वा,
अक्षय तृतीया,
दशहरा
और दीवाली, दिवाली को आधा मुहूर्त माना जाता है।

कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलवाई थी।
बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए।

एक और कहानी के अनुसार शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूंक दिए और इस सेना की मदद से शक्तशाली शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ।
शालिवाहन ने मिट्टी की सेना में प्राणों का संचार किया, यह एक लाक्षणिक कथन है।
उसके समय में लोग बिलकुल चैतन्यहीन, पौरुषहीन और पराक्रमहीन बन गए थे।

इसलिए वे शत्रु को जीत नहीं सकते थे।

गुरुदेव bhubneshwar
Kasturwa nagar parnkuti guna
9893946810

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