*(रहस्यमयी “चूडामणि” का अदभुत रहस्य )*
आज रामायण में वर्णित चूडामणि की प्रस्तुत है । इस कथा में आप जानेंगे की-
१–कहाँ से आई चूडा मणि ?
२–किसने दी सीता जी को चूडामणि ?
३–क्यों दी लंका में हनुमानजी को सीता जी ने चूडामणि
*मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा ।जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा ॥*
*चूडामनि उतारि तब दयऊ ।हरष समेत पवनसुत लयऊ ॥*
( चूडामणि कहाँ से आई? )
सागर मंथन से चौदह रत्न निकले, उसी समय सागर से दो देवियों का जन्म हुआ –
१– रत्नाकर नन्दिनी
२– महालक्ष्मी
*' रत्नाकर नन्दिनी ने अपना तन मन श्री हरि ( विष्णु जी ) को देखते ही समर्पित कर दिया ! जब उनसे मिलने के लिए आगे बढीं तो सागर ने अपनी पुत्री को विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य रत्न जटित चूडा मणि प्रदान की ( जो सुर पूजित मणि से बनी ) थी ।'*
_____________;;_;_______________;;;_;;;;;;;;;;____
इतने में महालक्ष्मीजी का प्रादुर्भाव हो गया और लक्ष्मीजी ने विष्णु जी को देखा और मनही मन वरण कर लिया यह देखकर रत्नाकर नन्दिनी मन ही मन अकुलाकर रह गईं सब के मन की बात जानने वाले *" श्रीहरि रत्नाकर नन्दिनी के पास पहुँचे और धीरे से बोले - ' मैं तुम्हारा भाव जानता हूँ, पृथ्वी को भार- निवृत करने के लिए जब – जब मैं अवतार ग्रहण करूँगा, तब-तब तुम मेरी संहारिणी शक्ति के रूपमे धरती पे अवतार लोगी, सम्पूर्ण रूप से तुम्हे कलियुग मे श्रीकल्कि रूप में अंगीकार करूँगा । अभी सतयुग है तुम त्रेता, द्वापरमें, त्रिकूट शिखरपर, ' वैष्णवी ' नाम से अपने अर्चकों की मनोकामना की पूर्ति करती हुई तपस्या करो । तपस्या के लिए बिदा होते हुए रत्नाकर नन्दिनी ने अपने केश पास से चूडामणि निकाल कर निशानी के तौर पर श्री विष्णु जी को दे दी '* वहीं पर साथ में इन्द्रदेव खडे थे, इन्द्र चूडामणि पाने के लिए लालायित हो गये, विष्णु जी ने वो चूडा मणि इन्द्रदेव को दे दी, इन्द्रदेव ने उसे *' इन्द्राणी के जूडे में स्थापित कर दिया'* ।
शम्बरासुर नाम का एक असुर हुआ जिसने स्वर्ग पर चढाई कर दी इन्द्र और सारे देवता युद्ध में उससे हार के छुप गये कुछ दिन बाद इन्द्रदेव अयोध्या राजा दशरथ के पास पहुँचे सहायता पाने के लिए इन्द्र की ओर से राजा दशरथ कैकेई के साथ शम्बरासुर से युद्ध करने के लिए स्वर्ग आये और युद्ध में शम्बरासुर दशरथ के हाथों मारा गया ।
युद्ध जीतने की खुशी में इन्द्र देव तथा इन्द्राणी ने दशरथ तथा कैकेई का भव्य स्वागत किया और उपहार भेंट किये । इन्द्र देव ने दशरथ जी को ” स्वर्ग गंगा मन्दाकिनी के दिव्य हंसों के चार पंख प्रदान किये ।*' इन्द्राणी ने कैकेई को वही " दिव्य चूडामणि " भेंट की और वरदान दिया जिस नारी के केशपास में ये चूडामणि रहेगी उसका सौभाग्य अक्षत–अक्षय तथा अखन्ड रहेगा, और जिस राज्य में वो नारी रहे गी उस राज्य को कोई भी शत्रु पराजित नही कर पायेगा । उपहार प्राप्त कर राजा दशरथ और कैकेई अयोध्या वापस आ गये ।" रानी सुमित्रा के अदभुत प्रेम को देख कर कैकेई ने वह चूडामणि सुमित्रा को भेंट कर दी "। इस चूडामणि की समानता विश्वभर के किसी भी आभूषण से नही हो सकती । '*
जब श्री राम जी का व्याह माता सीता के साथ सम्पन्न हुआ । सीता जी को व्याह कर श्री राम जी अयोध्या धाम आये सारे रीति- रिवाज सम्पन्न हुए । तीनों माताओं ने मुह दिखाई की प्रथा निभाई । सर्व प्रथम *'रानी सुमित्रा ने मुँहदिखाई में "सीताजी को वही चूडामणि प्रदान कर दी । कैकेई ने सीता जी को मुँह दिखाई में कनक भवन प्रदान किया । अंत में कौशिल्या जी ने सीता जी को मुँह दिखाई में प्रभु श्री राम जी का हाथ सीता जी के हाथ में सौंप दिया । संसार में इससे बडी मुँह दिखाई और क्या होगी । जनकजीने सीताजी का हाथ राम को सौंपा और कौशिल्याजीने राम का हाथ सीता जी को सौंप दिया ।'*
राम की महिमा राम ही जाने हम जैसे तुक्ष दीन हीन अग्यानी व्यक्ति कौशिल्या की सीताराम के प्रति ममता का बखान नही कर सकते ।
सीताहरण के पश्चात माता का पता लगाने के लिए जब हनुमान जी लंका पहुँचते हैं हनुमान जी की भेंट अशोक वाटिका में सीता जी से होती है। हनुमान जी ने प्रभु की दी हुई मुद्रिका सीतामाता को देते हैं और कहते हैं –
*मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा ।जैसे रघुनायक मोहि दीन्हा॥*
*चूडामणि उतारि तब दयऊ ।हरष समेत पवन सुत लयऊ॥*
सीता जी ने वही चूडा मणि उतार कर हनुमान जी को दे दी, यह सोंच कर *'यदि मेरे साथ ये चूडामणि रहेगी तो रावण का बिनाश होना सम्भव नही है ।'* हनुमान जी लंका से वापस आकर वो चूडामणि भगवान श्रीरामजी को दे कर माताजी के वियोग का हाल बताया ।
॥ जय जय श्रीसीताराम जी ॥
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
No comments:
Post a Comment