पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ
दिनांक 4 / oct 2017 की रात्रि = 01:47 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त
रात्रि = 12:09 बजे तक 5 /6 oct 2017 तक
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है.
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहने के पीछे भी एक कथा है।
ऐसी मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी रात में आसमान में घुमते हुआ यह पूछती है
की ‘कौ जाग्रति’।
असल में देवी लक्ष्मी उन लोगों को ढूँढती है जो रात में जाग रहे होते है।
संस्कृत में ‘कौ जाग्रति’ का मतलब होता है की ‘कौन जाग रहा है’।
जो लोग शरद पूर्णिमा के दिन रात में जाग रहे होते हैं उन्हें देवी लक्ष्मी धन प्रदान करती है।
जो कोई भी शरद पूर्णिमा का व्रत रखना चाहता है उसे उस दिन ठोस आहार नहीं लेना चाहिए।
व्रत खोलने के समय व्यक्ति को पहले ठन्डे दूध और चावल के टुकड़ों का मिश्रण पीना चाहिए।
इस दिन ठन्डे दूध को पीने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है।
शरद ऋतू में दिन बहुत गरम और रातें ठंडी होती है।
ऐसे मौसम में शरीर में पित्ता या एसिडिटी बड जाती है।
चावल के टुकड़ों को ठन्डे दूध के साथ खाने से एसिडिटी की समस्या नहीं होती।
आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा में बहुत सारी रोगप्रतिरोधक गुण होते है।
ऐसा इसलिए क्यूंकि चन्द्रमा शरद पूर्णिमा के दिन धरती के सबसे नज़दीक होता है।
इसीलिए शरद प्रुनिमा के रात को पोहा चावल खीर या अन्य कोई भी मिठाई को चन्द्रमा की रौशनी में रख दिया जाता है और फिर उसे सुबह या बाद में खाया जाता है।
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे।
धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए १०० दीपक जलाए।
इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें।
जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें।
तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।
इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।
कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं;
हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।
हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है।
तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
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