Monday, 28 August 2017

“ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी” और हमने इसे कर दिया है “ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी” राम चरित मानस में चौपाई आती है :- ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी

“ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी” और हमने इसे कर दिया है “ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी” राम चरित मानस में चौपाई आती है :- ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी
1. ढोल (वाद्य यंत्र)– ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमें नयी ऊर्जा मिलती है. इससे जीवन स्फूर्तिमय, उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है.
2. गंवार (गांव के रहने वाले लोग )– गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँव के लोग अत्यधिक परिश्रमी होते है जो अपने परिश्रम से धरती माता की कोख अन्न इत्यादि पैदा कर संसार में सबकी भूख मिटाते हैं आदि-अनादि काल से ही अनेकों देवी-देवता और संत महर्षि गण गाँव में ही उत्पन्न होते रहे हैं। सरलता में ही ईश्वर का वास होता है।
3. शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)– सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दूसरों के जीवन का भी उद्धार होता है और जो इस सेवा व कर्म भाव से लोक का कल्याण करे वही ईश्वर का प्रिय पात्र होता है। कर्म ही पूजा है।
4. पशु (जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो) – प्राचीन काल और आज भी हम अपने दैनिक जीवन में भी पशुओं से उपकृत होते रहे हैं। पहले तो वाहन और कृषि कार्य में भी पशुओं का उपयोग किया जाता था। आज भी हम दूध, दही। घी विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्न इत्यादि के लिए हम पशुओं पर ही निर्भर हैं। पशुओ के बिना हमारे जीवन का कोई औचित्य ही नहीं. वर्षों पहले जिसके पास जितना पशु होता था उसे उतना ही समृद्ध माना जाता था। सनातन में पशुओं को प्रतीक मानकर पूजा जाता है।
5. नारी ( जगत -जननी, आदि-शक्ति, मातृ-शक्ति )– नारी के बिना इस चराचर जगत की कल्पना ही मिथ्या है नारी का हमारे जीवन में माँ, बहन बेटी इत्यादि के रूप में बहुत बड़ा योगदान है। नारी के ममत्व से ही हम हम अपने जीवन को भली-भाँती सुगमता से व्यतीत कर पाते हैं। विशेष परिस्थिति में नारी पुरुष जैसा कठिन कार्य भी करने से पीछे नहीं हटती है. जब जब हमारे ऊपर घोर विपत्तियाँ आती है तो नारी दुर्गा, काली, लक्ष्मीबाई बनकर हमारा कल्याण करती है। इसलिए सनातन संस्कृति में नारी को पुरुषों से अधिक महत्त्व प्राप्त है।

सकल तारणा के अधिकारी से यह तात्पर्य है-

1. सकल= सबका
2. तारणा= उद्धार करना
3. अधिकारी = अधिकार रखना उपरोक्त सभी से हमारे जीवन का उद्धार होता है इसलिए इसे उद्धार करने का अधिकारी कहा गया है.
अब यदि कोई व्यक्ति या समुदाय विधर्मियों या पाखंडियों के कहने पर अपने ही सनातन को माध्यम बनाकर।
उसे गलत बताकर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है तो ऐसे विकृत मानसिकता वालों को भगवान् सद्बुद्धि दे, तथा सनातन पर चलने की प्ररेणा दे।
ज्ञात रहे सनातन सबके लिए कल्याणकारी था कल्याणकारी है और सदा कल्याणकारी ही रहेगा। सनातन सरल है इसे सरलता से समझे कुतर्क पर न चले। अपने पूर्वजों पर सदेह करना महापाप है।
इसलिए जो भी रामचरितमानस सुन्दरकाण्ड के चौपाई का अर्थ गलत समझाए तो उसे इसका अर्थ जरूर समझाए

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