पूजनीय प्रभो हमारे, भाव उज्जवल कीजिये |
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिये || १ ||
वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें |
हर्ष में हो मग्न सारे, शोक-सागर से तरें || २ ||
अश्व्मेधादिक रचायें, यज्ञ पर-उपकार को |
धर्मं- मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को || ३||
नित्य श्रद्धा-भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहें |
रोग-पीड़ित विश्व के, संताप सब हरतें रहें || ४ ||
भावना मिट जाये मन से, पाप अत्याचार की |
कामनाएं पूर्ण होवें, यज्ञ से नर-नारि की || ५ ||
लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए |
वायु जल सर्वत्र हों, शुभ गंध को धारण किये || ६ ||
स्वार्थ-भाव मिटे हमारा, प्रेम-पथ विस्तार हो |
'इदं न मम' का सार्थक, प्रत्येक में वयवहार हो || ७ ||
प्रेमरस में मग्न होकर, वंदना हम कर रहे | '
नाथ' करुणारूप ! करुणा, आपकी सब पर रहे || ८ |
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