Wednesday, 26 April 2017

ब्राह्मणों पर वीर रस की कविताये

युगों-युगों से इस पावन धरा का, लौहा जग में माना जाता हैं।
इंसानी जिस्म बना फौलाद, ये त्याग दधिची से जाना जाता हैं।।

अवनी से अम्बर तक बस, यहीं आभा फैली हैं।
बन मार्गदर्शक किया निर्माण, यहीं गौतम की शैली हैं।।

जब बात समर की आ जाए, तो सहसा नाम उभर आता हैं।
हर ब्राह्मण की।साँसों पर, बस परशुराम बस जाता हैं।।

कवि कोविद की कलम सृजन का, जो ज्ञान जगत मैं फैला हैं।
मत भूलो इसी ज्ञान को, सिद्ध ब्राह्मणों ने तोला हैं।।

मलयज देह शीतल मन पर, इन्द्रियों का पहरा हैं। ब्रह्ममूर्ति मन शान्त चित्त कान्तियुक्त यह चेहरा हैं।।

बलिदानों की वेदी पर, जब गीत कोई बन जाता हैं।
माँ भारती के क कष्ट हरण को, ब्राह्मण तत्पर हो जाता हैं।।

शस्त्र उठाए शास्त्र उठाए, काल को पीछे धकेला हैं।
सिद्ध वरदानों से इतिहास रचाकर पूजित ब्राह्मण अकेला हैं।।

यत्र तत्र सर्वत्र मंगलम्, प्रियं वाक्यं निर्मल मन।
जय ब्रह्म जय शशि स्वरूपं जयतु जय महामुनि चव्यन।।

पूजित रहे शोभित रहे, यश की किरण फैलें चहँऔर।
हे देव ब्राह्मण नमन शत् शत् वंदना की ना टूटे डोर।

धर्म युद्ध को सदैव तत्पर,कर्तव्य हेतु सदैव अग्रसर;
परशुराम का हूँ मैं वंशज और उच्च कुल मैं रावण हूँ
मैं ब्राह्मण हूँ,

सनातनो का मैं हूँ वाहक ,वेद-पुरानो का मैं पालक ;
दत्तात्रेय सा मैं हूँ श्रेष्ठ ,दुस्तो का हूँ मैं संहारक
नहीं प्रशंसा का मैं चाहक,द्रव्यों का ना मैं ग्राहक
समस्त जीवो में प्रभु राम का अति-प्रिय हूँ ;
मैं ब्राह्मण हूँ,

अविरल है अपनी ज्ञान की गंग,ब्रह्मा का मैं विशेष अंग;
सतयुग से अब तक अभंग,कपट से अपने कर हैं तंग;
जीवो के हम है आद ,शाश्त्रो के हम शंखनाद
गुण में श्रेष्ठ निर्विवाद ,औ जन हित का मैं तोरण हूँ
मैं ब्राह्मण हूँ,

कर्मकांड का मैं परिचायक,मुक्तिमार्ग का मैं हू नायक;
दिव्य भूमि का मैं अधिनायक,भक्ति भाव का मैं गायक;
काँधे पर उपवीत रखे हूँ ,चोटी को निज शीश धरे हूँ ;
सद्मार्ग पर ले जाने वाला जीवन का मैं आचरण हूँ!!
मैं ब्राह्मण हूँ,....

ब्राह्मण के हर पग पग से कम्पित होती है यह धरा

ब्राह्मण के हर पग पग से कम्पित होती हे यह धारा.

नभ मंडल पुष्प वृष्टि से गाता हे उसकी ही महिमा,

परशुराम के वंशज हे हम क्षत्रिय हमारी ताकत हे,

वैश्यों के ही सामर्थ्य से वैभव ब्राह्मण का बालक हे,

विश्व गुरु हम विश्व पुरुष हे विष्णु को भी ज़ुकाते हे,

निर्णय कर ले एक बार जो रूद्र को भी कंपाते हे,

शिव रूद्र का सामर्थ्य हे हम में नहीं किसी से डरते हे

ऋषि मुनि यह पुनीत धरा में देखो ज्ञान का सिंचन करते हे,

आर्य हे हम यह धारा के विश्व में सब से श्रेष्ठ हे.

"कृण्वन्तो विश्वं आर्यम" गर्जनाद हम करते हे.

सनातन वैदिक धर्म हे हमारा मनु ऋषि की संताने हे,

आँख उठाकर देखना भी मत तांडव मृत्यु का कर देंगे.

माँ संस्कृति की आँख में आंसू अब नहीं सहे जायेंगे

राम और कृष्ण को लेकर विजय डंका बजायेंगे.

नत नत मस्तक हे माँ भारती तव गुण गान हम गाते हे

अखंड आर्यावर्त हमारी कल्पना साकारित कर दिखलायेंगे.

श्री राम चंद्र-हनुमान की आज शपथ हम खाते हे.

समूचे विश्व में "हर हर महादेव" यही नाद गुन्जायेंगे.

वेदांत केसरी जब तक गरजा नहीं हे गरजे तब तक सियाले हे.

वेद-उपनिषद के गर्जनाद से मौन सारे धर्म हे.

यहाँ देखो गायत्री मंत्र आज भी उर्जा जगाता हे

रामायण-महाभारत आदि मानव गौरव जगाता हे.

मनु स्मृति हे संविधान विश्व का महिमा उसकी जगाएंगे.

"जय श्री राम" का गर्जनाद हर घर में हम फेलायेंगे,

अयोध्या हे हमारी भूमि जहा श्री राम चंद्र जी नाचे थे

बाबर हों या बाबरी चाहे हुकूमत राम की दिखायेंगे.

बौद्धादी धर्म का पाखण्ड जब आचार्य शंकर तोडते हे

कुमारिल भट्ट मंडन मिश्र जागृत हों माँ भारती के अश्रु पोछते हे.

चाणक्य की वह गरिमा देखो राष्ट्र प्रेम जगाती हे.

भगत सिंह की प्रतिमा आज भी युवा को दिशा दे जाती हे.

क्यों हों मौन हे आर्य वंशजो जागो माँ संस्कृति पुकारती हे

विवेकानंद के बालको दिखलादो श्रेष्ठ विश्व में हम ही हे.

हिंदू-भगवा व्याप्त करेंगे आर्यावर्त में संकल्प हमारा हे

रहीम भी अब राम बनेंगे हर हर महादेव उद्गार करेन्गे.

यही संकल्प हर हिंदू का हों यही निर्देश माँ भारती का हे.

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