Sunday, 5 February 2017

काल सर्प दोष कितने प्रकार का होता है और किस उम्र में ज्यादा असरकारक होता है

कालसर्प योग के प्रकार

:- ज्योतिष में 12 राशियाँ हैं।इनके आधार पर 12 लग्न होते हैं और इनके विविध योगों के आधार पर कुल 288 प्रकार के कालसर्प योग निर्मित हो सकते है।

प्रमुख रूप से भाव के आधार पर कालसर्पयोग 12प्रकार के होते है। जिनके नाम एंव प्रभाव निम्नानुसार हैं

- 1 अनन्त कालसर्पयोग :-

लग्न से सप्तम भाव तक बनने वाले इस योग को अनन्त कालसर्प योग कहा जाता हैं। इस योग के कारण जातक को मानिसक अशान्ति, जीवन की अस्थिरता कपटबुद्वि प्रतिष्ठाहानि वैवाहिक जीवन का दुःखमय होना इत्यादि प्रभाव देखने को मिलते है। ऐसा व्यक्ति निरन्तर मानिसक रूप से अशान्त रहता हैं।

2 कुलिक कालसर्पयोग :-

द्वितीय स्थान से अष्ठम स्थान तक पड़ने वाले इस योग के कारण जातक का स्वास्थ्य प्रभावित होता है।जीवन में आर्थिक पक्ष को लेकर अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। जातक कर्कश वाणी से युक्त होता है ।जिसके कारण iलह की स्थिति तो निर्मित होती है। साथ वह परिवारिक विरोध एंव अपयश का भागी भी बनता है।योग की तीव्रता के कारण विवाह में विलम्ब के साथ विच्छेदतक भी हो सकता है।

3 वासुकि कालसर्पयोग :-

यह योग तृतीय से नवम तक बनता है।पारिवारिक विरोध] भाई बहनों से मनमुटाव मित्रो से धोखा] भाग्य की प्रतिकुलता]व्यवसाय या नौकरी में रूकावटें आदि बातें देखने को मिलती हैं। जातक धन अवश्य कमाता है] किंतु कोई-न-कोई उनके साथ जुड़ी ही रहती है।उसे यश] पद प्रतिष्ठा पाने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है।

4 शंखपाल कालसर्पयोग :-

यह योग चतुर्थ से दशम भाव में निर्मित होता है।इसके प्रभाव से व्यवसाय] नौकरी] विद्याध्ययन इत्यादि पक्षों में रूकावटें आती हैं।घाटें का सामना करना पड़ता है।वाहन एंव भत्यों तथा कर्मचारियों को लेकर कोई-न-कोई समस्या हमेशा आती है।आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो जाती है कि दिवालिया होने तक की परिस्थितियाँ आ सकती है।

5 पद्म कालसर्पयोग :-

पंचम से एकादश भाव में राहु- केतु होने से यह योग होता है। इसके कारण संतान सुख में कमी या संतान सुख में कमी या संतान का दूर रहना अथवा विच्छेद तथा गुप्त रोगों से जुझना पड़ता है।असाध्य रोग हो सकते हैं] जिनकी चिकित्सा में अत्यधिक धन का अपव्यय होता है। दुर्घटना एंव हाथों में तकलीफ हो सकती है।मित्रों एंव पत्नी से विश्वासघात मिलता है।यदि सट्टा] लाटरी] जुआ की लत हो तो इसमें सर्वस्व स्वाहा होने में देर नहीं लगती। शिक्षा प्राप्ति में अनेक अवरोध आते है। जातक की शिक्षा भी अपूर्ण रह सकती है। जिस व्यक्ति पर सर्वाधिक विश्वास करेंगे] उसी से धोखा मिलता है। सुख में प्रयत्न करने पर भी इच्छित फल की प्राप्ति नहीं हो पाती। संघर्ष पूर्ण जीवन बीतता है।

6 महापद्म कालसर्पयोगः-

छूट से बाहर भाव के इस योग में पत्नी-बिछोह] चरित्र की गिरावट] शत्रुओं से निरन्तर पराभव आदि बातें होती है। यात्राओं की अधिकता रहती है। आत्मबल की गिरावट देखने को मिल जाती है। प्रयत्न करने पर भी बीमारी से छुटकारा नहीं मिलता। गुप्त शत्रु निरन्तर षड्यन्त्र करते ही रहते हैं।

7 तक्षक कालसर्पयोगः-

सप्तम से लग्न तक यह योग होता है। इसमें सर्वाधिक प्रभाव वैवाहिक जीवन एवं संपत्ति के स्थायित्व पर पड़ता है। जातक को शत्रुओं से हमेशा हानि मिलती है और असाध्य रोगों से जूझना पड़ता हैं। पदोन्नति में निरन्तर अवरोध आते हैं। मानसिक परेशानी का कोई न कोई करण उपस्थित होता रहता है।

8 कर्कोटक कालसर्पयोगः-

अष्टम भाव से द्वितीय भाव तक कर्कोटक कालसर्पयोग होता है। जातक रोग और दुर्घटना से कष्ट उठाता है] ऊपरी बाधाँए भी आती है। अर्थहानि] व्यापार में नुकसान] नौकरी में परेशानी] अधिकारियों से मनमुटाव] पदावनति ] मित्रों से हानि एवं साझेदारी में धोखा मिलता है। रोगों की अधिकता] शल्यक्रिया] जहर का प्रकोप] एवं अकालमृत्यु आदि योग बनते हैं।

9 शंखनाद/शंखचूड़ कालसर्पयोगः-

यह योग नवम से तृतीय भाव तक निर्मित होता है। यह योग भाग्य को दूषित करता हैं। व्यापार में हानि पारिवारिक तथा अधिकारियों से मनमुटाव कराता हैं। फलतः शासन से कार्यो मे अवरोध होते है। जातक के सुख में कमी देखने को मिलती है।

10 पातक कालसर्पयोगः-

दशम से चतुर्थ भाव तक यह योग होता है। दशम भाव से व्यवसाय की जानकारी मिलती है। संतानपक्ष को बीमारी भी होती है। दशम एवं चतुर्थ से माता-पिता का अध्ययन किया जाता है] अतः माता-पिता] दादा-दादी का वियोग राहु की महादशा/अन्तर्दशा मे सम्भाव्य है।

11 विषाक्त/विषधर कालसर्पयोगः- राहु-केतु के एकादश-पंचम में स्थिति होने पर इस योग से नेत्रपीड़ा] ह्नदयरोग] बन्धुविरोध] अनिद्रारोग आदि स्थितिया बनती है। जातक को जन्मस्थान से दूर रहने को बाध्य होना पड़ता है। किसी लम्बी बीमारी की संभावना रहती है।

12 शेषनाग कालसर्पयोगः-

द्वादश से षष्ठ भाव के इस योग में जातक के गुप्त शत्रुओं की अधिकता तो होती ही है साथ ही वे जातक को निरन्तर नुकसान भी पहुँचाते रहते हैं। जिन्दगी मे बदनामी अधिक होती है। नेत्र की शल्यक्रिया करवानी पड़ सकती है। कोर्ट-कचहरी के मामलों में पराजय मिलती है।

कालसर्पयोग के लक्षण कालसर्पयोग से जातक प्रभावित होते है। उन्हें प्रायः स्वप्न में सर्प दिखायी देते हैं।

जातक अपने कार्यो में अथक परिश्रम करने के बावजूद आशातीत सफलता प्राप्त नहीं कर पाता। हमेशा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता हैं] जसके कारण सही निर्णय लेने में असमर्थ रहता है।

अकारण लोगों से शत्रुता मिलती है। गुप्त शत्रु सक्रिय रहते हैं] जो कार्यो में अवरोध पैदा करते हैं।

पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण हो जाता है। विवाह मे विलम्ब या वैवाहिक जीवन में तनाव के साथ विच्छेदतक की स्थितियाँ निर्मित हो जाती है।

सर्वाधिक अनिष्टकारी समयः-

जातक के जीवन में सर्वाधिक अनिष्टकारी समय निम्न अवस्था में होता हैः-

1 राहु की महादशा] राहु की प्रत्यन्तर दशा में अथवा शनि] सूर्य तथा मंगल की अन्तर्दशा में।

2 जीवन के मध्यकाल लगभग 40 से 45 वर्ष की आयु में।

3 ग्रह-गोचर में कुण्डली में जजब कालसर्पयोग बनता हो।

उपर्युक्त अवस्थाओं में कालसर्पयोग सर्वाधिक प्रभावीकारी होता है एवं जातक को इस समय शारीरिक] मानसिक] पारिवारिक] आर्थिक] सामाजिक] व्यावसायिक इत्यादि क्षेत्र में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

कालसर्पयोग शान्ति के कुछ स्थान

1 काल हस्ती शिवमंदिर] तिरूपति।

2 त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग] नासिक।

3 त्रिवेणी संगम] इलाहाबाद।

4 त्रियुगी नारायण मंदिर] केदारनाथ।

5 त्रिनागेश्वर मंदिर] जिला तंजौर।

6 सिद्ध शक्तिपीठ] कालीपीठ] कलकत्ता।

7 भूतेश्वर महादेवमंदिर] नीमतल्लाघाट] कलकत्ता।

8 गरूड़ -गोविन्द मंदिर छटीकारा गाँव एवं गरूड़ेश्वर मंदिर बड़ोदरा।

9 नागमंदिर] जैतगाँव] मथुरा।

10 चामुण्डादेवी मंदिर] हिमाचल प्रदेश।

11 मनसादेवी मंदिर] चण्डीगढ़।

12 नागमन्दिर खारीघाट] जबलपुर।

13 महाकालमन्दिर] उज्जैन।

Pandit ~bhubneshwar
Kasturwangar parnkuti guna
9893946810

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