ज्योतिष समाधान

Tuesday, 10 January 2017

कहावते घागभडरि की स्वास्थ कहावते

चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ मेें पंथ आषाढ़ में बेल। 
सावन साग न भादों दही, क्वारें दूध न कातिक मही। मगह न जारा पूष घना, माघेै मिश्री फागुन चना। 
घाघ! कहते हैं
, चैत (मार्च-अप्रेल) में गुड़, 
वैशाख (अप्रैल-मई) में तेल, 
जेठ (मई-जून) में यात्रा,
 आषाढ़ (जून-जौलाई) में बेल, 
सावन (जौलाई-अगस्त) में हरे साग, 
भादों (अगस्त-सितम्बर) में दही, 
क्वार (सितम्बर-अक्तूबर) में दूध, 
कार्तिक (अक्तूबर-नवम्बर) में मट्ठा,
 अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) में जीरा,
 पूस (दिसम्बर-जनवरी) में धनियां,
 माघ (जनवरी-फरवरी) में मिश्री,
 फागुन (फरवरी-मार्च) में चने खाना हानिप्रद होता है।

 जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव। 
वाको यही बताइये घुॅँइया पूरी खाव।।
 घाघ! कहते हैं, यदि किसी से शत्रुता हो तो उसे अरबी की सब्जी व पूडी खाने की सलाह दो। इसके लगातार सेवन से उसे कब्ज की बीमारी हो जायेगी और वह शीघ्र ही मरने योग्य हो जायेगा।

 पहिले जागै पहिले सौवे, जो वह सोचे वही होवै।
 घाघ! कहते हैं, रात्रि मे जल्दी सोने से और प्रातःकाल जल्दी उठने से बुध्दि तीव्र होती है। यानि विचार शक्ति बढ़ जाती हैै। 

 प्रातःकाल खटिया से उठि के पिये तुरन्ते पानी। 
वाके घर मा वैद ना आवे बात घाघ के जानी।। 
भड्डरी! लिखते हैं, प्रातः काल उठते ही, जल पीकर शौच जाने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है, उसे डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

 सावन हरैं भादों चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता। कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रातः नहाय। चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती। जैठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर अषाढ़ में रोवे 


भड्डरी! लिखते हैं, सावन में हरै का सेवन, भाद्रपद में चीता का सेवन, क्वार में गुड़, कार्तिक मास में मूली, अगहन में तेल, पूस में दूध, माघ में खिचड़ी, फाल्गुन में प्रातःकाल स्नान, चैत में नीम, वैशाख में चावल खाने और जेठ के महीने में दोपहर में सोने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है, उसे ज्वर नहीं आता।

 कांटा बुरा करील का, औ बदरी का घाम।
 सौत बुरी है चून को, और साझे का काम।।
 घाघ! कहते हैं, करील का कांटा, बदली की धूप, सौत चून की भी, और साझे का काम बुरा होता है। 


 बिन बेैलन खेेती करै, बिन भैयन के रार। 
बिन महरारू घर करै, चैदह साख गवांँर।। 
भड्डरी! लिखते हैं, जो मनुष्य बिना बैलों के खेती करता है, बिना भाइयों के झगड़ा या कोर्ट कचहरी करता है और बिना स्त्री के गृहस्थी का सुख पाना चाहता है, वह वज्र मूर्ख है।


 ताका भैंसा गादरबैल, नारि कुलच्छनि बालक छैल। इनसे बांचे चातुर लौग, राजहि त्याग करत हं जौग।। घाघ! लिखते हैं, तिरछी दृष्टि से देखने वाला भैंसा, बैठने वाला बैल, कुलक्षणी स्त्री और विलासी पुत्र दुखदाई हैं। चतुर मनुष्य राज्य त्याग कर सन्यास लेना पसन्द करते हैं, परन्तु इनके साथ रहना पसन्द नहीं करते।


 जाकी छाती न एकौ बार, उनसे सब रहियौ हुशियार। घाघ! कहते हैं, जिस मनुष्य की छाती पर एक भी बाल नहीं हो, उससे सावधान रहना चाहिए। क्योंकि वह कठोर ह्दय, क्रोधी व कपटी हो सकता है। ‘‘मुख-सामुद्रिक‘‘ के ग्रन्थ भी घाघ की उपरोक्त बात की पुष्टि करते हैं। 


खेती पाती बीनती, और घोड़े की तंग।
 अपने हाथ संँभारिये, लाख लोग हों संग।। 
घाघ! कहते हैं, खेती, प्रार्थना पत्र, तथा घोड़े के तंग को अपने हाथ से ठीक करना चाहिए किसी दूसरे पर विश्वास नहीं करना चाहिए।


 जबहि तबहि डंडै करै, ताल नहाय, ओस में परै। दैव न मारै आपै मरैं। 
भड्डरी! लिखते हैं, जो पुरूष कभी-कभी व्यायाम करता हैं, ताल में स्नान करता हैं और ओस में सोता है, उसे भगवान नहीं मरता, वह तो स्वयं मरने की तैयारी कर रहा है।


 विप्र टहलुआ अजा धन और कन्या की बाढि़। 
इतने से न धन घटे तो करैं बड़ेन सों रारि।। 
 घाघ! कहते हैं, ब्र्राह्मण को सेवक रखना, बकरियों का धन, अधिक कन्यायें उत्पन्न होने पर भी, यदि धन न घट सकें तो बड़े लोगों से झगड़ा मोल ले, धन अवश्य घट जायेगा। 

औझा कमिया, वैद किसान। 
आडू बैल और खेत मसान। 
भड्डरी! लिखते हैं, नौकरी करने वाला औझा, खेती का काम करने वाला वैद्य, बिना बधिया किया हुआ बैल और मरघट के पास का खेत हानिकारक हैै।




No comments: