Tuesday, 20 September 2016

शरदीय नवरात्रि में पूजन सामग्री सहित पूजा विधि लिंक खोले

====अत: यह नवरात्र घट स्थापना ======
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प्रतिपदा तिथि को 1 अक्टूबर, शनिवार के दिन की जाएगी. इस दिन सूर्योदय से प्रतिपदा तिथि, हस्त नक्षत्र, ब्रह्म योग होगा, सूर्य और चन्द्रमा कन्या राशि में होंगे. आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात ब्राह्मण द्वारा या स्वयं ही मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा "दुर्गा सप्तशती" का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए.।-------

घटस्थपना महुर्त = 06:16 से 07:25 प्रात:

समय अबधि = 1 घण्टा 9 मिनिट

अथवा कन्या लग्न

प्रतिपदा आरम्भ= 05:41  1/Oct/2016

प्रतिपदा समामप्त  = 07:45 on 2/Oct/2016

कलश स्थापना और पूजा का समय भारतीय शास्त्रानुसार नवरात्रि पूजन तथा कलशस्थापना आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के पश्चात १० घड़ी तक

अथवा अभिजीत मुहूर्त में करना चाहिए। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र प्रारम्भ हो जाता है।

यदि प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र हो तथा वैधृति योग हो तो वह दिन दूषित होता है।

इस बार 1 अक्टूबर 2016 को प्रतिपदा के दिन न हीं चित्रा नक्षत्र है तथा न हीं वैधृति योग है

परन्तु शास्त्र यह भी कहता है की यदि प्रतिपदा के दिन ऐसी स्थिति बन रही हो तो उसका परवाह न करते हुए अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना तथा नवरात्र पूजन कर लेना चाहिए।

निर्णयसिन्धु के अनुसार

— सम्पूर्णप्रतिपद्येव चित्रायुक्तायदा भवेत। वैधृत्यावापियुक्तास्यात्तदामध्यदिनेरावौ।।

अभिजितमुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते।

अर्थात अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना करना चाहिए।

भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न में करना श्रेष्ठ होता है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार

मिथुन,
कन्या,
धनु
तथा कुम्भ राशि द्विस्वभाव राशि है।
अतः हमें इसी लग्न में पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए।
1 अक्टूबर 2016 प्रतिपदा के दिन हस्त नक्षत्र और ब्रह्म योग होने के कारण सूर्योदय के बाद तथा अभिजीत मुहूर्त में घट/कलश स्थापना करना चाहिए।

प्रथम(प्रतिपदा) नवरात्र हेतु पंचांग विचार

दिन(वार) – शनिवार
तिथि – प्रतिपदा
नक्षत्र – हस्त
योग – ब्रह्म
करण – किंस्तुघ्न
पक्ष – शुकल
मास – आश्विन
लग्न – धनु (द्विस्वभाव) लग्न समय – 11:33 से 13:37
मुहूर्त – अभिजीत मुहूर्त समय – 11:46 से 12:34 तक
राहु काल – 9:12 से 10:41 तक
विक्रम संवत – 2073 इस वर्ष अभिजीत मुहूर्त (11:46 से12:34) जो ज्योतिष शास्त्र में स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया धनु लग्न में पड़ रहा है

अतः धनु लग्न में ही पूजा तथा कलश स्थापना करना श्रेष्ठकर होगा।

नौ देवियाँ है :-
1】शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।

२】ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।

३】चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।

४】कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।

५】स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।

६】कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।

७】कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।

८】 महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।

९】 सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।

घट स्थापना व दुर्गा पूजन सामग्री-
पंचमेवा
पंच​मिठाई
रूई
कलावा,
रोली,
सिंदूर,
१ नारियल,
अक्षत,
लाल वस्त्र ,
फूल,
5 सुपारी,
लौंग,
पान के पत्ते 5 ,
घी,
कलश,
कलश हेतु आम का पल्लव,
चौकी,
समिधा,
हवन कुण्ड,
हवन सामग्री,
कमल गट्टे,
पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, शर्करा ),
फल,
बताशे,
मिठाईयां,
पूजा में बैठने हेतु आसन,
हल्दी की गांठ ,
अगरबत्ती, कुमकुम,
इत्र,
दीपक, ,
आरती की थाली.
कुशा,
रक्त चंदन,
श्रीखंड चंदन,
जौ, ​
तिल,
सुवर्ण प्र​तिमा 2,
आभूषण व श्रृंगार का सामान,
फूल माला .
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दुर्गा पूजन शुरू करने से पूर्व चौकी को धोकर माता की चौकी सजायें।
आसन बिछाकर गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें
“ॐ
अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”

इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर

आचमन करें – ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गो​विन्दाय नम:,
फिर हाथ धोएं,

पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए. अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-

चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

दुर्गा पूजन हेतु संकल्प –

पंचोपचार करने बाद संकल्प करना चाहिए.

संकल्प में
पुष्प,
फल,
सुपारी,
पान,
चांदी का सिक्का,
नारियल (पानी वाला),
मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2073 तमेऽब्दे  नाम संवत्सरे दक्षिणायने शरद ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे आश्विन मासे शुक्ल पक्षे प्र​तिपदायां तिथौ वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।

गणपति पूजन –

किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है.हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें.

गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

आवाहन: हाथ में अक्षत लेकर आगच्छ देव देवेश, गौरीपुत्र ​विनायक। तवपूजा करोमद्य, अत्रतिष्ठ परमेश्वर॥ ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इहागच्छ इह तिष्ठ कहकर अक्षत गणेश जी पर चढा़ दें।

हाथ में फूल लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आसनं समर्पया​मि,
अर्घा में जल लेकर बोलें ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पया​मि,
आचमनीय-स्नानीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पया​मि
वस्त्र लेकर ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः वस्त्रं समर्पया​मि,
यज्ञोपवीत-ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं समर्पया​मि,
पुनराचमनीयम्, ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः , इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं. इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः, दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं. पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः इदं नानाविधि नैवेद्यानि समर्पयामि, मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र- शर्करा खण्ड खाद्या​नि द​धि क्षीर घृता​नि च, आहारो भक्ष्य भोज्यं गृह्यतां गणनायक। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें. इदं आचमनीयं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः . इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें- ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः ताम्बूलं समर्पया ​मि अब फल लेकर गणपति पर चढ़ाएं ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः फलं समर्पया​मि, ॐ श्री ​सिद्धि ​विनायकाय नमः द्रव्य द​क्षिणां समर्पया​मि, अब ​विषम संख्या में दीपक जलाकर ​निराजन करें और भगवान की आरती गायें। हाथ में फूल लेकर गणेश जी को अ​र्पित करें, ​फिर तीन प्रद​क्षिणा करें।

इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें.

कलश पूजन – घड़े या लोटे पर कलावा बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें, नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें,हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आवाहन करें.

ॐ त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानोहर्विभि:।
अहेडमानोवरुणेह बोध्युरुशं समानऽआयु: प्रमोषी:।
(अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ॐ भूर्भुव: स्व: भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि। इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें.

दुर्गापूजन- सबसे पहले माता दुर्गा का ध्यान करें-

सर्व मंगल मागंल्ये ​शिवे सर्वार्थ सा​धिके । शरण्येत्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

आवाहन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:।

दुर्गादेवीमावाहया​मि॥ आसन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:।

आसानार्थे पुष्पाणि समर्पया​मि॥

अर्घ्य- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। हस्तयो: अर्घ्यं समर्पया​मि॥

आचमन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आचमनं समर्पया​मि॥

स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। स्नानार्थं जलं समर्पया​मि॥

स्नानांग आचमन- स्नानान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पया​मि।

पंचामृत स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पंचामृतस्नानं समर्पया​मि॥

गन्धोदक-स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। गन्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥

शुद्धोदक स्नान- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। शुद्धोदकस्नानं समर्पया​मि॥

आचमन- शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।

वस्त्र- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। वस्त्रं समर्पया​मि ॥ वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पया​मि।

सौभाग्य सू़त्र- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। सौभाग्य सूत्रं समर्पया​मि ॥

चन्दन- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। चन्दनं समर्पया​मि ॥

ह​रिद्राचूर्ण- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ह​रिद्रां समर्पया​मि ॥

कुंकुम- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कुंकुम समर्पया​मि ॥ ​

सिन्दूर- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ​सिन्दूरं समर्पया​मि ॥

कज्जल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। कज्जलं समर्पया​मि ॥

दूर्वाकुंर- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दूर्वाकुंरा​नि समर्पया​मि ॥

आभूषण- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आभूषणा​नि समर्पया​मि ॥

पुष्पमाला- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। पुष्पमाला समर्पया​मि ॥

धूप- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। धूपमाघ्रापया​मि॥

दीप- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। दीपं दर्शया​मि॥

नैवेद्य- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। नैवेद्यं ​निवेदया​मि॥

नैवेद्यान्ते ​त्रिबारं आचमनीय जलं समर्पया​मि।

फल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। फला​नि समर्पया​मि॥

ताम्बूल- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। ताम्बूलं समर्पया​मि॥

द​क्षिणा- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। द​क्षिणां समर्पया​मि॥

आरती- श्रीजगदम्बायै दुर्गादेव्यै नम:। आरा​र्तिकं समर्पया​मि॥

क्षमा प्रार्थना न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः । न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥1॥

पंडित भुबनेश्वर
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी
ऐ बी रोड गुना
09893946810

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