राम के जीवना पर करीब 125 अलग-अलग रामायण लिखी जा चुकी हैं। कई ग्रंथों को विद्वान प्रामाणिक भी मानते हैं। सीता और रावण के संबंध में कई कथाएं भी प्रचलित हैं। ऐसी ही एक रामायण है जिसका नाम है अद्भुत रामायण। यह रामायण 14वीं शताब्दी में लिखी मानी जाती है। यह मूलत: कथानक न होकर दो प्रमुख ऋषियों वाल्मीकि और भारद्वाज ऋषि के बीच का वार्तालाप है।
इस रामायण में यह उल्लेख है कि सीता का जन्म मंदोदरी के गर्भ से हुआ था। इस रामायण में पूरे घटनाक्रम का उल्लेख भी है। जिसमें रावण एक स्थान पर कहता है कि अगर में अनजाने में भी अपनी ही कन्या को स्वीकार करूं तो मेरा नाश हो जाए। अदभुत रामायण में कथा आती है कि एक बार दण्डकारण्य मे गृत्स्मद नामक ब्राह्मण, लक्ष्मी को अपनी पुत्री रूप मे पाने के लिए हर दिन एक कलश में कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूदें डालता था। एक दिन उसकी अनुपस्थिति मे रावण वहां पहुंचा और ऋषियों का रक्त उसी कलश मे एकत्र कर लंका ले गया। कलश को उसने मंदोदरी के संरक्षण मे दे दिया-यह कह कर कि यह तीक्ष्ण विष है,सावधानी से रखे।
इसके बाद रावण विहार करने सह्याद्रि पर्वत पर चला गया। रावण की उपेक्षा से दुखी होकर मन्दोदरी ने आत्महत्या की इच्छा से, जहर समझकर उस घड़े में भरा वह रक्त पी लिया। इससे अनजाने में ही मंदोदरी गर्भवती हो गई। लोकापवाद और अशुभ के डर से उसने राजा जनक के राज्य में स्थित एक स्थान पर उन भ्रूण का निकालकर जमीन में दबा दिया। धरती में गढ़ा हुआ यही भ्रूण परिपक्व होकर सीता के रूप में प्रकट हुआ, जो हल चलाते समय मिथिला के राजा जनक को प्राप्त हुई
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समझिए, भगवान क्या चाहता है
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हम भगवान से हमेशा वो मांगते हैं जो हम चाहते हैं। कभी ये भी सोचिए कि भगवान क्या चाहता है। जब भी कोई घटना आपके खिलाफ घट जाए तो धर्य मत खोइए, उसमें अपने लिए सकारात्मक ढूंढ़िए, संभव है जिसे आप अब तक अनदेखा कर रहे थे, वो ही आपके लिए श्रेष्ठ हो। कभी परमात्मा के किए का विरोध न करें।
कई बार जीवन में जो हम चाहते हैं वह नहीं होता और ईश्वर क्या चाहते हैं यह हम समझ नहीं पाते हैं। जो लोग धार्मिक होते हैं वे ऐसी स्थिति में और परेशान हो जाते हैं। अधार्मिक लोग तो ऐसी स्थितियों में अपने तरीके से उत्तर ढूंढ लेते हैं। परंतु धार्मिक लोग मनचाहा हो इसे अपना हक मानते हैं। कई लोग तो शब्दों की इस गरिमा को भी लांघ जाते हैं कि जब इतना सब भगवान, ईश्वर, परमात्मा को मानते-पूजते हैं तो फिर भी चाहा काम न हो तो क्या मतलब? पूजापाठ, धर्मकर्म का? इसे समझना होगा। जिसने चाह बदल ली वह धार्मिक नहीं होता, धार्मिक वह होता है जिसने चाह समझ ली।
आइए राजा दशरथ के जीवन के एक प्रसंग से समझें। उनकी इच्छा थी राम अवध की राजगादी पर बैठें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिन्हें राम जैसी मूल्यवान संतान प्राप्त हो गई हो, उनके मन की मुराद भी पूरी नहीं हुई। बहुत बारीकी से देखें तो हम कहीं दशरथ में नजर आ जाएंगे। दशरथ की चाह थी राम राजा बनें पर चाहत में कैकयी थीं। दशरथ के धार्मिक होने में कोई संदेह नहीं है लेकिन उनका कैकयी से आचरण विलासी हो गया था। भक्ति और वासना एकसाथ कैसे हो सकते हैं। राम और काम साथ-साथ रखने का परिणाम राम राज्य चौदह वर्ष के लिए दूर हो जाना।
इसलिए धार्मिक लोग अपनी चाह को ईश्वर से जोड़ें और सावधानी, शुद्धता से जोड़ें। होने दें जो हो रहा है। आपकी इच्छा का हो जाना बढ़िया है पर यदि न हो तो वह परमात्मा की मर्जी का हो जाना मानें वह उससे श्रेष्ठ हुआ मानें।
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रावण की मृत्यु का रहस्य ४______________
रावण की मृत्यु युद्धभूमि में हुई थी परंतु यही उसके अंत का सत्य नहीं है। उसकी मृत्यु अनेक प्रकार के शाप तथा विनाश को अंजाम देने वाली घटनाओं से जुड़ी है। कहा जाता है कि रावण की मृत्यु का तात्कालिक प्रमुख कारण विभीषण थे। उन्होंने ही श्रीराम को यह रहस्य बताया था कि रावण की नाभि में अमृत कुंड का वास है। जब तक अमृत सुरक्षित है, रावण का कुछ भी नहीं बिगड़ सकता।
इस रहस्य के उजागर होने के बाद ही रावण की पराजय हुई और उसकी दुष्टता का एक अध्याय समाप्त हुआ। परंतु यह कथा सिर्फ इतनी ही नहीं है। इसका संबंध रावण की पत्नी मंदोदरी से भी है। उसने ही वह रहस्य बताया था जो बाद में रावण की मृत्यु का कारण बना।
यह कथा प्रारंभ होती है एक वरदान से। एक बार रावण, कुंभकर्ण और विभीषण ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या की। तप से ब्रह्मा प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने के लिए कहा। रावण ने वरदान में अमरत्व मांगा। ब्रह्माजी विवश थे। वे बोले, किसी भी प्राणी को अमरता का वरदान नहीं दिया जा सकता। कोई और वरदान मांग लो, परंतु रावण अपने हठ पर अडिग रहा।
तब ब्रह्माजी ने उसे एक विशेष प्रकार का तीर दिया और बोले, तुम सिर्फ इसी तीर के प्रहार से मृत्यु के मुख में जा सकते हो। इसके अलावा किसी शस्त्र से तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी।
रावण प्रसन्न मन से घर आ गया। उसने गुप्त रीति से वह तीर अपने सिंहासन के पीछे एक खंभे में छुपा दिया। जब राम-रावण का युद्ध हुआ तो विभीषण ने यह रहस्य उजागर किया था कि उस खास किस्म के तीर से ही रावण का वध हो सकता है, परंतु वे जानते नहीं थे कि उक्त तीर कहां है।
यह रहस्य जानने की जिम्मेदारी हनुमानजी को सौंपी गई। वे एक ज्योतिषी का वेश धारण कर लंका गए और लोगों को भविष्य बताने लगे। उनकी चर्चा सुनकर मंदोदरी भी अपना भविष्य जानने आई। बातों ही बातों में ज्योतिषी बने हनुमान ने कहा कि ब्रह्मा के दिए उस तीर से रावण को संकट है।
मंदोदरी ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता, वह तीर सिंहासन के खंभे के पीछे सुरक्षित है। तीर का स्थान मालूम करने के बाद हनुमानजी उस जगह गए और तीर लाकर श्रीराम को सौंप दिया। उसी तीर से भगवान ने रावण का वध किया। इस प्रकार ज्योतिषी के रूप में हनुमानजी द्वारा की गई वह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो गई। [23/8, 8:43 am] bhubnesh.sharma22@gmail.c: इन सवालों का है आपके पास जवाब??
हर बार सिर्फ रावण को ही क्यों जलाया जाता है?
रावण के साथ-साथ उसके भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाथ को भी क्यों जलाया जाता है?
कंस और हिरणकश्यप के पुतले क्यों नहीं जलाए जाते?
रावण महाविद्वान था और प्रकांड पंडित भी। उसका एक ही कसूर बस यही था कि उसने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया था। वो भी अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए….। सीता के साथ दुराचार करने की कोई बात कहीं नहीं आई।
जबकि कंस ने बिना कसूर अपनी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव को जेल में डाल दिया था और उनकी 7 नवजात संतानों को अपने हाथों से मार डाला था।
हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को ऐसी घोर यातनाएं दीं कि कोई भी पिता ऐसा नहीं कर सकता।
रावण से ज्यादा कंस और हिरणकश्यप कसूरवार थे। उन्होंने घोर पाप किए थे।
अपने ही भांजों को अपनी ही तलवार से काट डालना या उनकी गर्दन दबोच देना यह अपराध तो रावण के अपराध से बहुत ज्यादा घृणित हैं। तो ऐसे में कंस के मारे जाने वाले दिन को क्यों नहीं मनाया जाता?
कंस को क्यों नहीं जलाया जाता?
अपने ही बेटे प्रहलाद को जिंदा आग में जलाने की साजिश रचने वाले पिता हिरण्कश्यप का भी यह अपराध रावण के किए अपराध के मुकाबले ज्यादा बड़ा मालूम होता है। तो क्यों नहीं हिरण्कश्यप को भी जलाया जाता?
(होलिकादहन पर कंस का नहीं बल्कि उसकी बहन होलिका का दहन किया जाता है। होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं चल सकती। प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी तो वरदान विफल सिद्ध हुआ। प्रहलाद बच गया और होलिका उसी आग में दहन हो गई।)
रावण को जलाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे। मर्यादा पुरुषोत्तम यानी सदैव मर्यादा के अनुसार कार्य करने वाला श्रेष्ठ पुरुष। भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने अ
[23/8, 8:44 am] bhubnesh.sharma22@gmail.c: रावण को जलाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे। मर्यादा पुरुषोत्तम यानी सदैव मर्यादा के अनुसार कार्य करने वाला श्रेष्ठ पुरुष। भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन मर्यादा के अनुरूप ही निर्वाह किया।
आज जो लोग रावण को जलाते हैं क्या उनमें राम जैसी खूबियां हैं, राम जैसे गुण हैं?
क्या रावण को जलाने वाले खुद मर्यादा पुरुषोत्तम हैं?
किस हक से वे रावण को आग लगाते हैं?
रावण का अपराध तो समझ में आता है लेकिन कुंभकरण और मेघनाथ ने ऐसा क्या घोर अपराध किया था कि उन्हें ही रावण के साथ जलाया जाता है।
हर वर्ष रावण को जलाने वाले राम की संख्या लाखों होते हुए भी हर वर्ष लाखों सीता माता जैसी देवियों की इज्जत फिर क्यों लुट रही है?
23- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।
पंडित ,भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
09893946810
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