Monday, 25 July 2016

~पुत्र प्राप्ति के ज्योतिषीय अचूक उपाय ~

=================================एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं  दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः |

ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु  पुत्र सिद्धयै ||

अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है | बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप ,दान ,हवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है
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अगर दंपति की जन्मकुंडली के दोषों से संतान प्राप्त होने में दिक्कत आरही हो तो बाधा दूर करने के लिये संतान गोपाल के सवा लाख जप करने चाहिये. यदि संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें, राहु बाधक हो तो क्न्यादान से, केतु बाधक हो तो गोदान से, शनि या अमंगल बाधक बन रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा सकती हैं-
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                 ||सहवास की कुछ राते-||
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मासिक स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।

चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।

पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।

छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।

सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।

आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।

नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।

दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।

ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।

बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।

तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।

चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।

पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।

सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।

पुरातन काल के लोग उपरोक्त नियम -संयम से संतान-उत्त्पति किया करते थे -

सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एम दम से नहीं उठना चाहिए-
शास्त्र में कुछ ऐसे प्रमुख दोष बताये गए है जिनके कारण संतान की प्राप्ति नहीं होती या वंश वृद्धि रुक जाती है | इस समस्या के पीछे की वास्तविकता-क्या है इसका शास्त्रीय और ज्योतिषीय आधार क्या है ये आप अपनी जन्म कुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है -इसके लिए आप हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप करे-

पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें-

संतान प्राप्ति गोपाल मन्त्र -

" ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।"

इस मंत्र का बार रोज 108 जाप करे और मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें-
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======= पुत्र-प्राप्ति शीतला-षष्ठी ब्रत-========
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माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे 'बासियौरा' नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है-
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=========तीन प्रकार की  वंध्या===========
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: संतान प्राप्ति की कामना मनु महाराज द्वारा वर्णित तीन नैसर्गिक इच्छाओं में से एक है। निःसंतान रहना एक भयंकर अभिशाप है। यह पूर्व जन्म में किए गए कर्मों के फल है या फल का भोग है। संतान हो किंतु दुष्ट और कुल -कीर्तिनाशक हो तो यह स्थिति और अधिक कष्टदायक होती है। जिनके संतान नहीं होती है भारत में उनकी तीन श्रेणियां मानी जाती हैं।

1. जन्मवंध्या
2. काक वंध्या
3. मृतवत्सा।

【१】काक वंध्या वह होती है जिसके केवल एक संतान होती है।

【2. 】मृतवत्सा के संतान तो होती है पर जीवित नहीं रहती।

【3. 】जन्मवंध्या के संतान होती ही नहीं। यहां तीनों श्रेणियों की स्त्रियों की इस अभिशाप से मुक्ति के कुछ टोटके दिए जा रहे हैं जिनका निष्ठापूर्वक प्रयोग करने से लाभ मिल सकता है।

जन्मवंध्या: 

रासना नामक एक जड़ी को रविवार के दिन जड़ डंठल और पत्ते सहित उखाड़ लाएं। इसे 11 वर्ष से कम आयु अर्थात कुमारी कन्या के हाथ से एक रंग की गाय के दूध् में पिसवा कर रख लें। ऋतु काल में मासिक धर्म के दिनों में इसे चार तोले के हिसाब से एक सप्ताह पीने से संतान उत्पन्न होती है। ध्यान रहे यह प्रयोग तीन चार बार दोहराना पड़ सकता है।

एक रुद्राक्ष और एक तोला सुगंध रासना को कुमारी कन्या के हाथ से एक रंग की गाय के दूध में पिसवा कर पीएं। ‘¬ ददन्महागणपते रक्षा-मृत मत्सुत देहि’ इस मंत्र से औषधि को 21 बार अभिमंत्रित कर ले।

काकवंध्या:

काक वंध्या वह कहलाती है जिसके एक ही बार संतान हो। यदि ऐसी स्त्रियां संतान की इच्छा रखती हों तो ये प्रयोग करें।

रवि पुष्य योग में दिन को असगंध की जड़ उखाड़ लाएं और भैंस के दूध के साथ पीस कर दो तोला रोज खाएं।
विष्णुकांता की जड़ रविपुष्य के दिन ला कर पूर्वोक्त प्रकार से भैंस के दूध के साथ पीस पर भैंस के ही दूध के मक्खन के साथ सात दिन तक खाने से संतान प्राप्त होती है। यह प्रयोग ऋतुकाल में ही करें।

: मृतवत्सा:

मृतवत्सा वह होती है जिसके संतान होती तो अवश्य है परंतु जीवित नहीं रहती। इसमें गाय का घी काम में लिया जाना चाहिए। खास कर उसका जिसका बछड़ा जीवित हो।

मजीठ, मुरहठी, कूट, त्रिफला, मिश्री, खरैंटी, महामेदा, ककोली, क्षीर काकोली, असगंध की जड़, अजमोद, हल्दी, दारु हल्दी, हिंगु टुटकी, नीलकमल, कमोद, दाख, सफेद चंदन और लाल चंदन ये सब वस्तुएं चार-चार तोला लेकर कूट-छानकर एक किलो घी में मिलाकर उपलों पर मंदी आंच पर पकानी चाहिए। जब केवल घी की मात्रा के बराबर रह जाए तो छान कर रख लेना चाहिए। इसका प्रयोग पति-पत्नी दोनों करें तो पुत्र उत्पन्न होगा जो स्वस्थ तथा सुंदर होगा। जब तक इन वस्तुओं का सेवन किया जाए तब तक हल्का भोजन करना चाहिए। भगवान के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए दिन में सोने, तामसिक पदार्थों के सेवन, भय, चिंता, क्रोध आदि तथा तेज सर्दी और गर्मी से बचना चाहिए। कुछ और प्रयोग भी हैं जो इस प्रकार हैं।
ऋतु काल में नए नागकेसर के बारीक चूर्ण को गाय के घी के साथ मिला कर खाने से भी संतान प्राप्त होती है।
जटामांसी (एक जड़ी का नाम) को चावल के पानी के साथ पीने से संतान प्राप्त होती है।
मंगलवार को कुम्हार के घर जाएं और कुम्हार से प्रार्थना पूर्वक मिट्टी के बर्तन काटने वाला डोरा ले आएं। उसे किसी गिलास में जल भर कर उसमें डाल दें। कुछ समय पश्चात डोरे को निकाल लें और वह पानी पति-पत्नी दोनों पी लें। यह क्रिया मंगलवार को ही करें। अगर संभव हो तो पति-पत्नी रमण करें। गर्भ की स्थिति बनते ही डोरे को हनुमान जी के चरणों में रख दें। बार-बार गर्भपात होने पर
मुलहठी, आंवला और सतावर को भली भांति पीस कर कपड़ाछान कर लें और इसका सेवन रविवार से प्रारंभ करें। गाय के दूध के साथ लगभग 6 ग्राम प्रतिदिन लें।
मंगलवार को लाल कपड़े में थोड़ा सा नमक बांध लें। इसके बाद हनुमान के मंदिर जाएं और पोटली को हनुमान जी के पैरों से स्पर्श कराएं। वापस आकर पोटली को गर्भिणी के पेट से बांध दें गर्भपात बंद हो जाएगा।
पुत्र प्राप्ति हेतु

विजोरे की जड़ को दूध में पका कर घी में मिला कर पीएं। ऋतुकाल में इस प्रयोग को प्रारंभ कर सम संख्या वाले दिनों में समागम करने से पुत्र प्राप्त होता है।
पुत्राभिलाषियों को अपने घर में स्वर्ण अथवा चांदी से निर्मित सूर्य-यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। यंत्र के पूर्वाभिमुख बैठकर दीपक जलाकर यं त्रऔर सूर्य देव को प्रणाम करते हुए सूर्य मंत्र का 108 बार नित्य श्रद्धा से जप करना चाहिए। दीपक में चारों ओर बातियां (बत्तियां) होनी चाहिए। घृत का चतुर्मुखी दीपक जप-काल में प्रज्वलित रहना चाहिए।
षष्ठी देवी का एक वर्ष तक पूजन अर्चन करने से पुत्र-संतान की प्राप्ति होती है। ऊँ ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करते हुए षष्ठी देवी चालीसा, षष्ठी देवी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। कथा भी पढ़नी सुननी चाहिए।
श्रावण शुक्ल एकादशी का पुत्रदा एकादशी व्रत पुत्र सुख देता है। व्रत संपूर्ण विधि से करें।
स्त्रियां पुत्रदायक मंगल व्रत कर सकती हैं जिसे बैशाख या अगहन मास में प्रारंभ करना चाहिए। व्रत वर्ष भर प्रत्येक मंगल को करें और नित्य मंगल की स्तुति करें।
जिसको पुत्र प्राप्त नहीं हो रहा है वह स्त्री रविवार को प्रातः काल उठकर सिर धोकर खुले बाल फैलाकर उगते सूर्य को अघ्र्य दे और उनसे श्रेष्ठ पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना करे। इस प्रकार 16 रविवार तक करे तो सफलता निश्चित प्राप्त होती है

जिस स्त्री को पुत्र नहीं हो रहा हो वह अपने घर में 21 तोले का प्राण प्रतिष्ठित चैतन्य पारद शिवलिंग स्थापित कराए और प्रत्येक सोमवार को सिर धोकर पीठ पर बाल फैलाकर ‘ऊँ नमः शिवायः’ मंत्र से उस पारद शिवलिंग पर धीरे-धीरे जल चढ़ाए और 7 बार उस जल का चरणामृत ले। इस प्रकार 16 सोमवार करे तो पुत्र प्राप्ति के लिए शंकर से की जाने वाली प्रार्थना अवश्य फलित होती है।
पति को चाहिए कि वह पत्नी को कम से कम 4 ( रत्ती का शुद्ध पुखराज स्वर्ण अंगूठी में गुरु पुष्य नक्षत्र में जड़वाकर तथा गुरु मंत्रों से अभिमंत्रित करवाकर शुभ मुहूर्त में पत्नी को धारण करवाए। इससे पुत्र प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।
प्राण प्रतिठित संतानगोपाल यंत्र प्राप्त कर उसे एक थाली में पीले पुष्प की पंखुड़ियां डालकर स्थापित करें। यंत्र का पूजन पुष्प, कुंकुंम अक्षत से करें, दीपक लगाकर (यंत्र के दोनों ओर घी के दीपक लगाएं) निम्न मंत्र का पुत्र जीवा माला से एक माला जप नित्य करें। निरंतर 21 दिन तक करें तो सफलता प्राप्त होती है। ।।‘‘ऊँ हरिवंशाय पुत्रान् देहि देहि नमः।।’’ 21 दिन पश्चात यंत्र और माला बहते जल में प्रवाहित करे दें।
रक्त गुणा की जड़ को शुभ योग में प्राप्त कर तांबे की ताबीज में रखकर भुजा या कमर में धारण करने वाली स्त्री को पुत्र की प्राप्ति होती है।
एक बेदाग नीबू का पूरा रस निचोड़ लें। इसमें थोड़ा सा नमक स्वाद के अनुसार मिला लें। अब इस द्रव को लड्डू गोपाल के आगे थोड़ी देर के लिए रख दें। रात को सोने से पूर्व स्त्री इस द्रव को पी ले और पति-पत्नी अपने धर्म का पालन करें तो अवश्य पुत्र ही होगा। ध्यान रहे यह क्रिया केवल एक बार ही करनी है, बार-बार नहीं।
यदि संतान न हो रही हो तो मंगलवार को मिट्टी के बर्तन में शुद्ध शहद भर कर ढक्कन लगा कर श्मशान में गाड़ दें।
: उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ ला कर पास रखें, संतान अवश्य होगी।
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में बोरिंग के पानी टैंक या कुएं का उत्तर-पश्चिम कोण में होना भी संतान उत्पत्ति में बाधक माना गया है। उपाय के लिए पांचमुखी हनुमान जी का चित्र ऐसे लगाएं कि वह पानी को देखें।
असगंध का भैंस के दूध के साथ सात दिन तक लें। यह उपाय पुष्य नक्षत्र में रविवार को शुरू करें। इससे पुत्र उत्पन्न होता है।
गोखरू, लाल मखाने, शतावर, कौंच के बीज, नाग बला और खरौंटी समान भाग में पीस कर रख लें। इस चूर्ण को रात्रि में पांच ग्राम दूध के साथ लें।
रविवार पुष्य योग के दिन (पुष्य नक्षत्र) सफेद आक की जड़ गले में बांधने से भी गर्भ की रक्षा होती है। इसके लिए धागा लाल ही प्रयोग करें।
‘‘ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा‘‘- यह जप यंत्र है। वांछित यंत्र स्वर्ण अथवा चांदी के अतिरिक्त स्वर्ण पालिश वाला यंत्र भी समान रूप से लाभकारी होता है। निःसंतान दंपतियों को सूर्य का स्तवन भी करना चाहिए जैसे सूर्याष्टक, सूर्यमंडलाष्टकम् आदि। इन स्तोत्रों का निरंतर श्रद्धा भक्ति पूर्वक पाठ जातक को तु.रंत सुखानुभूति देता है। स्वरुचि के अनुसार सूर्य देवता की अन्य किसी भी स्तुति का पाठ कर सकते हैं। (पति पत्नी दोनों अथवा कोई भी एक)
किसी योग्य ज्योतिष के परामर्शानुसार अथवा कुलगुरु, पुरोहित से सलाह लेकर संतान गोपाल मंत्र का जप स्वयं करें अथवा योग्य, अनुभवी कर्मकांडी ब्राह्मण से विधि विधान के साथ करावें। मंत्रानुष्ठान एक लाख मंत्र जप शास्त्र सम्मत माना गया है। इसमें निश्चित समय, निश्चित स्थान, निश्चित आसन और निश्चित संख्या में प्रतिदिन जप करने का विधान है
संकल्प पूर्वक  शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६  नमक रहित मीठे व्रत रखें | केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें | १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं  ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें |
2. पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत  धारण करें |
3. यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ( २३/३२)  से हवन कराएं |
4. अथर्व वेद के मन्त्र  अयं ते योनि ( ३/२०/१) से जाप व हवन कराएं |

5 संतान गोपाल स्तोत्र

ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः |

उपरोक्त मन्त्र की १०००  संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें | तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवन,१००० से तर्पण ,१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं |

6    संतान गणपति स्तोत्र

श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें |

7. संतान कामेश्वरी प्रयोग

उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा  ॐ  क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा ,मन्त्र का नित्य जाप करें | ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा | |
8.पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ( निर्णयामृत )

शुक्ल  पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करें|प्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें | सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें  जौ का सत्तू ,घी ,शक्कर का भोग लगाएं | आठ दिशाओं में  दीपक रख कर  आठ -आठ बार प्रणाम करें | नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथ

9. पुत्र व्रत (वराह पुराण )

भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें | अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय  स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं  | बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें | वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी

स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने  में गर्भ  को भय रहता है अतः उस  महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार  दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
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||||||||||||गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान|||||||||
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गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता |  गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं ——
=================================प्रथम मास — –

शुक्र  (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को  )

द्वितीय मास —

मंगल ( गुड ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को  )

तृतीय मास —

  गुरु (    पीला वस्त्र ,हल्दी ,स्वर्ण , पपीता ,चने कि दाल , बेसन व दक्षिणा गुरूवार को  )

चतुर्थ मास —

  सूर्य (    गुड ,  गेहूं ,ताम्बा ,सिन्दूर ,लाल वस्त्र , लाल फल व दक्षिणा रविवार को )

पंचम मास —-

  चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )

षष्ट मास —

–-शनि ( काले तिल ,काले उडद ,तेल ,लोहा ,काला वस्त्र व दक्षिणा  शनिवार को )

सप्तम मास —–

बुध ( हरा वस्त्र ,मूंग ,कांसे का पात्र ,हरी सब्जियां  व दक्षिणा बुधवार को )

अष्टम मास —-  

गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह  से सम्बंधित दान उसके वार में |यदि पता न हो तो अन्न ,वस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर  दें |

नवं मास —-   

चन्द्र (चावल ,चीनी ,गेहूं का आटा ,दूध ,दही ,चांदी ,श्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को )

: विशेष

प्रमुख ज्योतिष एवम आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार  रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है |  रजस्वला होने की तिथि से सोलह रात्रि के मध्य प्रथम तीन दिन का त्याग करके ऋतुकाल जानना चाहिए जिसमें पुरुष स्त्री के संयोग से गर्भ ठहरने की प्रबल संभावना रहती है |रजस्वला होने की तिथि से 4,6,8,10,12,14,16 वीं रात्रि अर्थात युग्म रात्रि को सहवास करने पर पुत्र तथा 5,7,9 वीं आदि विषम रात्रियों में सहवास करने पर कन्या संतिति के गर्भ में आने की संभावना रहती है| याज्ञवल्क्य के अनुसार स्त्रियों का ऋतुकाल 16 रात्रियों का होता है जिसके मध्य युग्म रात्रियों में निषेक करने से पुत्र प्राप्ति होती है |

वशिष्ठ के अनुसार उपरोक्त युग्म रात्रियों में पुरुष नक्षत्रों पुष्य ,हस्त,पुनर्वसु ,अभिजित,अनुराधा ,पूर्वा फाल्गुनी , पूर्वाषाढ़,पूर्वाभाद्रपद और अश्वनी में गर्भाधान  पुत्र कारक  होता है |  कन्या के लिए विषम रात्रियों में स्त्री कारक नक्षत्रों में गर्भाधान करना चाहिए | ज्योतिस्तत्व के अनुसार नंदा और भद्रा तिथियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए और पूर्णा  व जया तिथियाँ कन्या प्राप्ति के लिए प्रशस्त होती हैं अतः इस तथ्य को भी ध्यान में रखने पर मनोनुकूल संतान प्राप्ति हो सकती है

मर्त्यः पितृणा मृणपाशबंधनाद्विमुच्यते पुत्र मुखावलोकनात |

श्रद्धादिभिहर्येव मतोऽन्यभावतः प्राधान्यमस्येंत्य यमी रितोऽजंसा  ||

(  प्रश्न मार्ग )

पुत्र का मुख देखने से मनुष्य पितृ बंधन से मुक्त हो जाता है और वही पुत्र समय आने पर उसका श्राद्ध भी करता है| इसी लिए कुंडली में पुत्र भाव की प्रधानता होती है |
दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।

* 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।

* प्राचीन संस्कृत पुस्तक 'सर्वोदय' में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।

* यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।

* चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
योग्य पुत्र प्राप्त करने के इच्छुक दंपति अगर निम्न नियमों का पालन करें तो अवश्य ही उत्तम पुत्र प्राप्त होगा. स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. स्वर की जांच के लिये नथुनों पर अंगुली रखकर ज्ञात किया जा सकता है.
कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं। अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए
शक्तिशाली व गोरे पुत्र प्राप्ति के लिए

गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एककोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा | इसके साथ सुवर्णप्राश की २-२ गोलियां लेने से संतान तेजस्वी होगी |
विच्चें।

संक्षिप्त :-

पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र

विस्तार :-
पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र
नमो स्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धियुताय च ।
सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च ।।
गुरूदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते ।
गोप्याय गोपिताशेषभुवना चिदात्मने ।।
विŸवमूलाय भव्याय विŸवसृष्टिकराय ते ।
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ।।
एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम: ।
प्रपन्नजनपालाय प्रणतार्तिविनाशिने ।।
शरणं भव देवेश संतति सुदृढां कुरू ।
भवष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ।।
ते सर्वे तव पूजार्थे निरता: स्युर्वरो मत: ।
पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धप्रदायकम् ।।

सप्ताह के 7 दिनों की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं :

रवि >> 8 से 9 >> 1.30 से 5
सोम >> 10.30 se 12 >> 1.30 से 4
मंगल >> 7.30 से 9 >> 10.30 से 1.30
बुध >> 7.30 से 10 >> 3 से 4.30
गुरु >> 12 से 1.30 >> 3 से 4
शुक्र >> 9 से 10.30 >> 12 से 3.30
शनि >> 9 से 12

रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 14 व अंतिम 15 मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें
पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में श्य्या पर चढ़े तत्पश्चात शय्या पर निम्नलिखित मंत्र पढ़ना चाहिए :
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति
ब्रह्मा बृहस्पतिर्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ भगोऽथ मित्रावरुणौ वीरं ददतु मे सुतम्
‘हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओ
ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरुण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें
चरक संहिता, शारीरस्थान : 8.8
दोंनो गर्भ विषय में मन लगाकर रहें ऐसा करने से तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज ग्रहण करती है विधिपूर्वक गर्भधारण करने से इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है

पंडित
भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
09893946810

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