Monday, 8 September 2025

स्त्रियां भी पितरों का पिण्डदान कर सकती हैं?

क्या स्त्रियां भी पितरों का पिण्डदान कर सकती हैं?
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क्या सीताजी के अलावा किसी और स्त्री द्वारा पिण्ड दान की चर्चा आती है  ? 
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मझला बेटा  पिता माता का श्राद्ध कर्म,  पिण्डदान, अन्य  धार्मिक कृत्य अधिकारिक तौर पर कर सकता है  या  नहीं?,  

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क्या पितर पक्ष में  श्राद्ध करना चाहते हैं और तिथि आदि पता  नहीं  तो अमावस या पूनम को छोड़कर अन्य किसी दिनभी श्राद्ध किया जा सकता है?------------
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क्या,  ज्ञात होने पर भी  यदि आज के  भागमभाग बाले  जीवन में  बेटे वहू पैसा कमाने में व्यस्त रहते हैं  समय नहीं मिल पाता पर फिर भी  मनरहता है तो क्या पितर पक्ष में सभी पितरों का सम्मिलित एक यादो तीन दिन के अवकाश में सम्पन्न कर सकते हैं  ?
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पटा क्या है..?

क्या इसे किये बिना  श्राद्ध तर्पण नहीं किया जा सकता है?क्या  मृतव्यक्ति के  पटा न होने तक  पानी नहीं देना चाहिए?
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आड़ा पानी होना क्या है?
क्या घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर तर्पण नहीं करना चाहिये,?
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क्या श्राद्ध भोज की प्रशंशा करना चाहिए या सुनना चाहिये?श्राद्ध में व्रत करना चाहिए या नहीं?
------क्याअपने घर में श्राद्ध होने पर किसी  दूसरे के घरभी भोजन किया जा सकता है  ?
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क्या परस्पर परिवार, मित्र जन, समाज में व्यवहारिक तौर पर वदले की नीयत से एक-दूसरे को भोजन कराना श्राद्ध कहा जा  सकता है?
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क्या श्राद्ध में मांगकर लाई  गयी  सामग्री  उपयोग में लायी जा सकती है?
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क्या श्राद्ध के दिन बिना मूल्य के प्राप्त की गई सामग्री से श्राद्ध की सफलता संभव हो सकती है ?
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क्या श्राद्ध में मौसा, मामा, फूफा  ,दामाद, काभोजनश्राद्धनियम से विहित  है?
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क्या कन्या का भोजन श्राद्ध  में श्राद्ध पूर्ति के उद्देश्य से  उचित है?----

 क्या पितर पक्ष में या अन्य किसी  श्राद्ध में  श्राद्ध पूर्ति के उद्देश्य से  स्त्री जाति  विधवा श्राद्ध  में विधवा,   सौभाग्य वती  श्राद्ध में  सौभाग्य वती  अविवाहित बालक  बालिका  श्राद्ध में बालक बालिका  भोजन से ही श्राद्ध पूर्ति कही  जा सकती है?----'
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पंचबलि( अछूते ) में  कितने  भाग  बनाने  चाहिए?
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क्या अतिथि का  भाग  कन्या को  दिया  जाना  चाहिए?
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क्या पति के अलावा  श्राद्ध आदिक कर्म में स्त्री को  भोजन करने का  अधिकार है?
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ऐसे और भी अनेक प्रश्न हैं  जिनके उत्तर जानने की  जिज्ञासा  होती  है  और होना भी चाहिए  .कुछ विषय ऐसे है  जिनमें केवल लौकिक परंपरा या हठधर्मिता कारण है,  कुछ में अपना प्रभाव और वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं शास्त्र अभ्यास बिना  जान बुझक्कढ़ न्याय  से निर्णय  दे दिया  जाता  है  जिस का  नियम धर्म  शास्त्र  मत से  कहीं तक संबंध ही  नहीं  होता  है  .,हम करना चाहें  कर्म का परिणाम न हो तो परिणाम रहित कर्म का  कोई औचित्य  नहीं  अतः करना न करना  बराबर है  ,,कभी कभी  हम नियम नहीं  मानना चाहते और वह नियम होते ही नहीं  केवल समाज में फैला दी गई भ्रांतियां हैं  और हम बाधामानकर कर्म करने से दूर हो जातेहैं  ऐसे में हम अकारण दोष के भागीदार हो जाते हैं ।कुछ कहते हैं कुछ नहीं  होता  सब ब्राह्मणों के खाने के तरीके हैं ढकोसले हैं  कितनी मूर्ख ता की  बात है  पशु पक्षी अन्य मनुष्य ब्राह्मण इतर लोगों को दे रहा है  आपको खुद पता हीं कि आप कहां से आया खारहे हो  कल कहां का खायेंगे पता नहीं पर ब्राह्मण पर आरोप है वह भूंखा है आधीन है  ?क्या आप जो करते हैं सब का परिणाम मिलता है  क्या जो चाहिए वही  मिलता है  तमाम तर्क है  पूरे जीवन भर केवल तर्क ही....?
अंत में निवेदन कि परीक्षा किसी की करना मेरा  अधिकार  नहीं  किसी को छोटा  बड़ा समझना नहीं  विद्वानों के  मत  सुझाव  समाधान आमंत्रित हैं  कुतर्क करने बाले कृपया  अपना मत न रखें।
जय श्रीमन्नारायण जय बद्रीविशाल

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