Friday, 12 September 2025

स्त्री से कथा

#ब्राह्मणेतर_व_स्त्री_से_कथा_श्रवण_व_दीक्षा_का_निषेध

" व्यासानोपवेशाच्य शूद्र चाण्डालतां व्रजेत् ।
  विप्रस्येवाधिकारोऽस्ति व्यासासन समागमे।।
  धर्माणां श्रुतिगीतानामुपदेशे तथा द्विजः।। " 
          यदि शूद्र व्यास पीठस्थ होते हैं तो चाण्डालवत् हो जाते हैं -- विप्राधिकार ही व्यासपीठ में श्रेयस्कर है -- धर्मशास्त्रों के प्रवचन का अधिकार मात्र ब्राह्मण को है ।

व्यासपीठ पर बैठे ब्राह्मण को नाचना - गाना निषेध है तो निकृष्ट योनि को प्राप्त होता है ।।
" तस्माद् ब्राह्मणे नैव गायन्नानृत्येनन्माग्लागृधः स्यात्। ( अथर्ववेद् )

      अब स्वाभाविक है कि ब्राह्मणेतर अगर व्यासपीठस्थ हो तो विप्र भी उसे प्रणाम करेगा और कितने ऐसे भी मूढचित्त हैं जो ब्राह्मणेतर से दीक्षा भी ग्रहण कर लेते हैं -- 

      महाभारत शांतिपर्व में कहा है :--
" अभार्या शयने विभ्रच्छूद्रं वृद्धं च वै द्विजः। 
  अब्राह्मणं मन्य मानस्तृणेष्वासीत पृष्ठतः।। " 
             यदि ब्राह्मण अपनी पत्नि सिवाय दुशरी स्त्री को शय्या पर बिठा ले अथवा बडे - बूढे शूद्र को या ब्राह्मणेतर क्षत्रीय या वैश्य को सम्मान देता हुआ ऊंचे आसन पर बैठाकर स्वयं चटाई पर बैठे अथवा उससे नीचे आसान पर बैठे तो वह ब्राह्मण ब्राह्मणत्व से गिर जाता है ।

शिवपुराण में भी कहा है :--
" अपूज्याः यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते। 
. त्रीणि तत्र प्रवर्तन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयम् ।। "
         जहां अपूज्य की पूजा होती है - जो पूज्य हैं उनको सम्मान नहीं दिया जाता - तीन चीजें वहां अवश्य होती हैं - दुर्भिक्ष- मरण और भय । ( मौजूदा समय में ये तीनों ही चरम पर हैं - बाढ से अकाल की स्थिती - मारकाट और भय - जनता जनता के रक्षकों से ही भयभीत है )।

और ब्राह्मणेतर से मंत्र दीक्षा के लिए ब्रह्मपुराण में स्पष्ट शब्दों में कहा है :---
           " ब्राह्मणेतरान् वर्णान् गुरून् मोहात् करोति यः। 
             सयाति नरकं घोरं विपन्नोऽपि भवेद् ध्रुवम् ।। "
ब्राह्मण से अतिरिक्त अन्य से मंत्र लेने में शास्त्र ने कहा कि वह शिष्य सुनिश्चित् नरकगामी होता है तथा अनेक विपत्तियां आती है ।

स्कन्द पुराण क्या कहता है :---
            " यो नरः नीच वर्णेभ्यो मंत्र ग्रहणमाचरन्। 
              न मंत्रफलमाप्नोति श्वयोनि चाधिगच्छति।। "
जो मनुष्य निम्न वर्ण के मनुष्य से मंत्र ग्रहण करता है - न तो उसे मंत्र का कोई फल प्राप्त होता है उल्टा वह कुत्ते की योनि में जन्म लेता है ।

अब कोई कहे कि कर्म से ही ब्राह्मण होते हैं विश्वामित्र तप से ब्राह्मण हुए  :--- तो वो भी सुन लें ! 

           " कलौ ब्राह्मणवीर्यात् न तपश्चरणादिभिः।  
कलियुग में ब्राह्मण वीर्य से ब्राह्मण स्त्री से ही ब्राह्मण होता है - तपस्या आदि से नहीं ।

नापित जनेऊ धारण करने से ब्राह्मण नहीं बन जाता ।
         " न नापिती ब्राह्मणतां याति सूत्रादि धारणात्। "

वहीं स्त्री से भी मंत्र ग्रहण का निषेध है :---
          " दैवपित्र्यातिथेयानि तत्प्रधानानि यस्य तु ।
            नाश्नन्ति पितृदेवास्तन्न च स्वर्ग स गच्छति।। "
जिस व्यक्ति के घर में देवकार्य - यज्ञ - मंत्रदीक्षा - श्राद्ध --  स्त्री के द्वारा सम्पन्न होते हैं -- वहां से देवता तथा पितृगण सदा के लिए विदा हो जाते हैं ।

           " वर्णोत्कृष्टो हीनवर्ण गुरूमोहाद् यदाचरेत्। 
             प्रायश्चितं तदाकृत्वा गुरूमन्यं समाश्रयेत् ।। "
यदि उच्च वर्ण वालों ने अपने से नीच वर्ण या ब्राह्मण आचार्य के अतिरिक्त किसी से दीक्षा ली है तो वह प्रायश्चित् करे तथा श्रेष्ठ गुरू का वरण करे । ( विश्वामित्र संहिता )

      शूद्र से दीक्षित ब्राह्मण को शूद्र ही समझना चाहिए ( कौशिक संहिता)

और भी :---
        " नाश्रोत्रियतते यज्ञे ग्रामयाजिकृते तथा। 
          स्त्रिया क्लीवेन च हुते भुञ्जीत ब्राह्मणः क्वचित् ।। 
जिस यज्ञ में स्त्री हवन करती है - नपुंसक के द्वारा होम होता है - जो स्त्री से मंत्र लेता है - ऐसे घर या स्थल पर ब्राह्मण को कदापि भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए। 

         " अश्लील मेत्तसाधूनां यत्र जुहत्य मी हविः। 
.           प्रतीप मेतद्देवानां तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ।। 
स्त्री को यज्ञ में पति के साथ मात्र बैठना चाहिए न कि आहुति देनी चाहिए-- व तो मात्र पति सुश्रुषा से ही मुक्ति पाती है ।

                   🚩 हर हर महादेव 🚩 ।। वशिष्ठ ।।

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