#कलियुग_में_कार्पासनिर्मित_(कपास)जनेऊ की प्राधान्यता ->> सत्युग में पद्मनालतन्तु निर्मित , त्रेतायुग में सुवर्णनिर्मित द्वापर में रजतनिर्मित और कलियुग में कार्पासनिर्मित जनेऊ की ही प्रधानता हैं -
कृते पद्ममयं सूत्रं त्रेतायां कनकोद्भवम्।
द्वापरे रजतं प्रोक्तं कलौ कार्पास निर्मितम्।।
मन्वपि - कार्पासमुपवीतं स्याद्विप्रस्योर्ध्वंवृतं त्रिवृत्।।
कार्पास निर्मित के अभाव में - अतसी , वृक्ष की छाल , गाय के बाल , शण आदि यथासम्भव प्राप्त हो उनकी धारण करना उचित हैं --
देवलः -
कार्पासक्षौमगोबालशाणवल्कतृणादिकम्।
यथा संभवतो धार्यमुवीतं द्विजातिभिः।।
युगान्तर विषयक स्वर्णमय जनेऊ का प्राधान्य त्रेतायुग में था , उस समय स्वयं देवशिल्प विश्वकर्मा का भी धरातल आनाजाना रहता था और अन्य रसविद्या के आचार्यो भी विद्यमान थे । आजकल जो स्वर्णमय जनेऊ की तरह अलङ्कार धारण करते हैं वह मात्र जनेऊ की तरह शरीर की शोभामात्र बढाने का अलङ्कार हैं । क्योंकि जिस प्रकार जनेऊ का निर्माण की पद्धति शास्त्र में कही हैं उस प्रकार से स्वर्ण जनेऊ निर्माण करना सम्भव नहीं हैं ।
व्रात्य अनुपनीत आदि से जनेऊ लेना और दक्षिणा के बहाने खरीदना भी निषिद्ध कहा हैं इस प्रकार जनेऊ निर्माण किसने किया उसपर विचार मननीय हैं -->
चतुर्वर्गचिंतामणि प्रा०खण्ड ब्रह्माण्डपुराण
अनध्याये तु यत्सूत्रं
यत्सूत्रं रण्डया कृतम्।
यत्सूत्रं दारुसम्भृतं --------------
#क्रीतं यद्ब्रह्मसूत्रकम् ।
व्रात्यादिभिस्तथा दत्तं
तत्सूत्रं परिवर्जयेत्।
#एतदुर्मार्गवर्त्तिभ्यः_प्रतिगृह्य_द्विजातयः #यद्यत्_कर्म_तदा_कुर्युस्तद्भवति_निष्फलम्।।
अन्यच्च देवलः -
विधवा रचितं सूत्रमनध्यायकृतं च यत्।
विच्छिन्नं #चाप्यधोयातं #भुक्त्वा निर्मितमुत्सृजेत्" इति।।
उक्त प्रमाण से क्रीत जनेऊ या अनुपनीत व्रात्य आदि से ग्रहण किया हुआ किसी भी प्रकार के जनेऊ से जो जो भी कर्म किये जाएगे वह सभी निष्फल होते हैं, बिना उपवास किये निर्मित जनेऊ त्यागने योग्य हैं।
बिना उचित यथा कलिप्रधान कार्पासनिर्मित जनेऊ न पहनने में यज्ञोपवीत त्याग , यज्ञोपवीत रहीते भोजन, पान , मूत्र पुरीष सम्भाषण आदि करना भी दोष हैं, इसलिये स्वर्णसूत्र को नित्य धारण करना हैं तो कार्पास निर्मित जनेऊ का त्याग नहीं करना चाहिये , कार्पास के जनेऊ के साथ ही स्वर्णालङ्कार का जनेऊ धारण कर सकते हैं नहीं तो पुनरुपनयन भी होना अनिवार्य हैं।
कितनेक पुष्टिमार्गीय वैष्णवाचार्यो आज भी कार्पास के जनेऊ को नित्यनिरन्तर धारण करते हुए ही स्वर्णमय-जनेऊ धारण करते हैं।।
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