ज्योतिष समाधान

Thursday, 24 April 2025

वर्धिनी कलश कौन कौन से है

🌷💐गृह प्रवेश:- 🌷💐
वर्धिनी कलश पूजनमंत्र- वर्धिनी त्वं महापूता महातीर्थोदकान्विता । त्वत्तोयेन प्रपूर्येऽहं भव त्वं कुलवर्धिनी ।। वर्धिनी त्वं जगन्माता पवित्रातिमनोहरा, तव तोयेन कलशान् पूरयामि श्रिये मुदा।। 


ॐ भू० वर्धिन्यै० आ०स्था० 
ॐ भू० वरुणाय० आ०स्था० 
ब्रह्मणे० 
रुद्राय० 
विष्णवे०. 
मातृभ्यो० 
मातृः आ०स्था० 
सागरेभ्यो० 
महौ० 
नदीभ्यो० 
तीर्थेभ्यो० 
तीर्थानि आ०स्था०
 गायत्र्यै० 
ऋग्वेदाय० 
यजुर्वेदाय० 
सामवेदाय० 
अथर्ववेदाय० 
अग्नये० 
आदित्येभ्यो० 
एकादशरुद्रेभ्यो० 
मरुद्भ्यो०
 मरुतः आ०स्था० 
गंधर्वेभ्यो० 
ऋषये० 
वरुणाय वायवे० 
धनदाय० 
यमाय० 
धर्माय० 
शिवाय० 
यज्ञाय० 
विश्वेभ्यो देवेभ्यो० 
स्कंदाय०
 गणेशाय० 
यक्षाय० 
अरुंधत्यै० आ०स्था०
 ॐ मनोजूर्ति० ॐ भू० वर्धिनीवरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठिताः वरदा भवत। 
पंचोपचारैः पूजनम् । 
   द्वार पर शुभ लाभ स्वस्तिक आदि करें। पत्नीद्वारा देहली पूजन। पंचामृत तथा जलसे द्वारमार्जन । 
ॐ असुरान्तकचक्राय नमः

संकल्पः- शुभपुण्यतिथौ अस्मिन् पुण्याहे श्रौतस्मार्त कर्म करणार्थं अनेकविध ऐश्वर्यप्राप्ति अर्थ ऐहिक आमुष्मिक अभीष्ट सिद्धिअर्थं नवीनगृह प्रवेशं अहं करिष्ये

* द्वारशाखापूजनम् - ॐ स्थापितेंयं मया शाखा शुभदा, ऋद्धिदाऽस्तु मे। सुस्थिरा च सुदा भूयात् सर्वेषां हितकारिणी।। दक्षिणशाखायाम्- यो धारयति सर्वेशो जगन्ति स्थावराणि च। धाता दक्षिणशाखायां पूजितो वरदोऽस्तु मे ।। ॐ धात्रे नमः ।। वामशाखायाम्- यः समुत्पाद्य विश्वेशो भुवनानि चतुर्दश। विधाता वामशाखायां स्थिरो भवतु पूजितः ।। ॐ विधात्रे नमः ।। ऊर्ध्वम् ॐ गणानान्त्वा० ॐ गणपतये नमः । अधो- देहल्याम्- ॐ इदम्मे ब्रह्म च क्षेत्रञ्चोभे श्रिय॑मश्नुताम्। मय॑ि देवा देघतु श्रियमुत्त॑मां तस्यै ते स्वाहो।। यस्याः प्रसादात् सुखिनो देवाः सेन्द्राः सहोरगाः। सा वै श्रीर्देहलीसंस्था पूजिता ऋद्धिदाऽस्तु मे ।। ॐ देहल्यै नमः ।। दक्षिणे चंडाय० वामे प्रचंडाय० ऊर्ध्वं द्वारश्रियै० अधो देहल्यां वास्तुपुरुषाय० दक्षिणशाखायां गंगायै० शंखनिधये० वामशाखायां यमुनायै० प‌द्मनिधये० द्वारस्य ऊर्ध्वं आग्नेय्यां गणपतये० अधः नैऋत्यां दुगर्गायै० अधः वायव्यां सरस्वत्यै० ऊर्ध्वं ईशान्यां क्षेत्रपालाय० द्वारश्रिया द्यावाहितदेवताभ्यो नमः पंचोपचारैः पूजनम्। वास्तुपुरुषाय बलिदानम्। अपसर्पन्तु० भो ब्रह्मन् प्रविशामि । प्रविशस्व। शांतिसूक्तपाठः। मंगलघोषः।

गृहप्रवेशः - ॐ धर्मार्थकामसिद्ध्यर्थं पुत्रपौत्राभिवृद्धये । मंदिरं प्रविशाम्यद्य सर्वदा मंगलं भवेत् ।। यावत् चन्द्रश्च सूर्यश्च यावत् तिष्ठति मेदिनी। तावत् त्वं मम वंशस्य मंगलाभ्युदयं कुरु ।। ॐ धर्मस्थूणाराजं श्रीस्तूपमहोरात्रे द्वारफलके। इन्द्रस्य गृहा वसुमन्तो वरूथिनस्तानहं प्रपद्ये सह प्रजया पशुभिः सह ।। यन्मे किंचिदस्त्युपहूतः सर्वगण सखाय साधु संवृतः । तान्वा शालेऽरिष्टवीरा गृहान्नः सन्तु सर्वे ।।

         ज्योतिषाचार्य डॉ०आशुतोष मिश्र

Monday, 7 April 2025

कुंडली के किस भाव से क्या जाने

हर कोई जानना चाहता है कि उनके जीवन में क्या कुछ अच्छा बुरा घटने वाले वाला है। अगर आप भी अपनी या अन्य किसी का भविष्य जानना चाहते हैं तो इस तरह जान सकते है।जन्म कुंडली के 12 भावों के प्रत्येक भाव से व्यक्ति के अन्य सगे संबंधियों के साथ भावी संबंध की भविष्य के बार में जाना जा सकता हैं। तो आईए जानते हैं।

1- किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के नवम् भाव से उसके पिता के बारे में जान सकते है 
2- किसी महिला की कुंडली के सप्तम् भाव से उसके पति के बारे में जान सकते है ।
3- मातृ भाव अर्थात चतुर्थ भाव से सप्तम् घर अर्थात कुंडली के दशम भाव से ही पिता के बारे में जान सकते है ।
4- तृतीय भाव से सातवें घर अर्थात कुंडली के नवम घर से छोटे भाई की पत्नी और छोटी बहन के पति के भविष्य के बारे में जाना जा सकता है ।
5- पंचम भाव से सप्तम घर अर्थात ग्यारहवें भाव से घर की पुत्रवधू के व्यक्तिव के बारे में जान सकते है ।
6- मातृ भाव अर्थात तीसरे घर से मामा और मौसी की जानकारी मिलती है
7- मातृ भाव से चतुर्थ अर्थात कुंडली के सप्तम भाव से स्त्री के अलावा माता की माता अर्थात नानी के बारे में और नाना के लिए मातृ भाव से दशम भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव से जान सकते है ।
8- व्यक्ति के चाचा एवं बुआ के बारे में पितृ भाव अर्थात दशम भाव से तीसरे गृह अर्थात कुंडली के द्वादश भाव से जान सकते हैं ।
9- व्यक्ति के दादा के बारे में दशम भाव से दसवें गृह अर्थात कुंडली के सातवें गृह से और दादी के लिए कुंडली के प्रथम भाव से के बारे में जान सकते है ।
10- ताऊ के लिए पितृ भाव से ग्यारहवें गृह अर्थात कुंडली के अष्टम भाव से और ताई के लिए अष्टम भाव से सप्तम भाव अर्थात कुंडली के द्वितीय भाव से के बारे में जान सकते है ।
11- चाचा और बुआ के बारे में बारहवें भाव से किया जाता है इसलिए चाची और फूफा का विचार कुंडली के षष्ठ भाव से करना चाहिए ।
12- मामी और मौसा के बारे में छठे भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के बारहवें भाव से जान सकते है ।
13- व्यक्ति की सास के बारे में जानने के लिए पत्नी के घर से चौथे घर अर्थात दसवें घर से और ससुर के लिए पत्नी भाव से दशम घर अर्थात कुंडली के चौथे भाव से जान सकते है ।
14- छोटे सालों और सालियों के लिए सप्तम भाव से तृतीय गृह अर्थात कुंडली के चतुर्थ भाव से एवं बड़े सालों व सालियों के लिए सप्तम भाव से ग्यारहवां घर अर्थात कुंडली के पांचवें भाव से जान सकते है ।
15- बड़े भाई एवं बहनों के बारे में एकादश भाव से, पुत्र, बड़ी भाभी और बड़े जीजा के बारे में एकादश भाव से सप्तम गृह अर्थात कुंडली के पंचम भाव से जान सकते ।
16- किसी स्त्री के जेठ और जेठानी के बारे में पंचम भाव से जेठ का तथा एकादश भाव से जेठानी के बारे में और तृतीय भाव से देवरानी तथा नवम भाव से देवर के बारे में जान सकते है ।
17- यदि किसी व्यक्ति के अपनी माता से मधुर संबंध हैं तो उसका ससुर से संबंध मधुर ही रहेगा । यदि पति के साथ अच्छे संबंध हैं तो सास के साथ भी संबंध ठीक रहेंगे । 
18- नानी के सफल गृहिणी होने की स्थिति में पत्नी भी सफल गृहिणी होगी । 

19- यदि स्वभाव अपने नाना और अपनी दादी के समान है तो पत्नी का स्वभाव दादा और नानी जैसा तथा पुत्र का स्वभाव बड़े सालों या बड़े जीजा के स्वभाव के समान होगा ।
इस प्रकार व्यक्ति की जन्म कुंडली के प्रत्येक भाव से किसी न किसी सगे संबंधियों के बारे में जान सकते है ।

Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti
9893946810

Thursday, 3 April 2025

यज्ञ कुंड

जाने यज्ञ कुंड 🔥 कितने प्रकार के होते हैं ?

यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी  का प्रयोजन अलग अलग होता हैं ।

1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।

2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं ।

3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।

4. वृत्त कुंड - जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।

5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।

6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु ।

7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।

8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें
चतुर्वर्ग के आकार के इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं । 
ध्यान रखने योग्य बाते :- अब तक आपने शास्त्रीय बाते समझने का प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं । क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभीरता से विचार नही कर सकते । 

सरल विधान का यह मतलब कदापि नही की आप गंभीर बातों को ह्र्द्यगमन ना करें ।

जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं ? कितने लोग और किस प्रकार के लोग की
आप सहायता ले सकते हैं ?
 कितना हवन किया जाना हैं ? हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं ?
 क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े ? किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं ? 
किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं ? किस प्रकार की हवन सामग्री का उपयोग करना हैं ?
 दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं ? 
कुछ ओर आवश्यक सावधानी ? आदि बातों के साथ अब कुछ बेहद सरल बाते को अब हम देखेगे । 

जब शाष्त्रीय गूढता युक्त तथ्य हमने समंझ लिए हैं तो अब सरल बातों और किस तरह से करना हैं पर भी
कुछ विषद चर्चा की आवश्यकता हैं ।

 1. कितना हवन किया जाए ?
शास्त्रीय नियम
तो दसवे हिस्सा का हैं ।
इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे
1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =
125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति । (यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100  गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 *
15 = 187500 second मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग। तो किसी एक व्यक्ति
के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ?
2. तो क्या अन्य
व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका
उतर
हैं हाँ । पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं । जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन
उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।

3. तो क्या कोई और उपाय नही हैं ? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन
किया जा सकता हैं । मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे ।यह एक साधक के लिए
संभव हैं ।

4. पर यह भी हवन भी यदि संभव ना हो तो ? कतिपय साधक किराए के मकान में या फ्लैट में रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही है तब क्या ? गुरुदेव जी ने यह भी विधान सामने रखा की साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और कर देता है संकल्प ले कर की मैं दसवा हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ । इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं । पर इस केस में शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे ।

5. स्रुक स्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं । स्रुक 36 अंगुल लंबा और स्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए । इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।
 
6। हवन किस चीज का किया जाना चाहिये ?
· शांति कर्म मे पीपल के पत्ते, गिलोय, घी का ।
· पुष्टि क्रम में बेलपत्र चमेली के पुष्प घी ।
· स्त्री प्राप्ति के लिए कमल ।
· दरिद्र्यता दूर करने के लिये दही और घी का ।
· आकर्षण कार्यों में पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से ।
· वशीकरण मे चमेली के फूल से ।
· उच्चाटन मे कपास के बीज से ।
· मारण कार्य में धतूरे के बीज से हवन किया जाना चाहिए ।

7. दिशा क्या होना चाहिए ? साधरण रूप से
जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम मे बैठे और उनका मुंह पूर्व
दिशा की ओर होना चाहिये । यह भी विशद व्याख्या चाहता है । यदि षट्कर्म किये
जा रहे हो तो ;
· शांती और पुष्टि कर्म में पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे ।
· आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण में हो ।
· विद्वेषण मे नैऋत्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण में रहे ।
· उच्चाटन मे अग्नि कोण में मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।
· मारण कार्यों में - दक्षिण दिशा में मुंह और दक्षिण दिशा में हवन कुंड हो ।

8. किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे स्वर्ण, रजत या ताबे का हवन कुंड होना चाहिए ।
· अभिचार कार्यों मे लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।
· उच्चाटन मे मिटटी का हवन कुंड ।
· मोहन् कार्यों मे पीतल का हवन कुंड ।
· और ताबे के हवन कुंड में प्रत्येक कार्य में उपयोग किया जा सकता है ।

9. किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे वरदा नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये ।
· पुर्णाहुति मे शतमंगल नाम की ।
· पुष्टि कार्योंमे बलद नाम की अग्नि का ।
· अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का ।
· वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये

: 10. कुछ ध्यान योग बाते :-
· नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें ।
· यदि शमशान मे हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर मे न लाये ।
· दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखे ।
· दीपक मे या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें ।
· घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग में और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए ।
· शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें ।
· यज्ञ कुंड के ईशान कोण मे कलश की स्थापना करें ।
· कलश के चारो ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें ।
· हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए ।

अभी उच्चस्तरीय इस विज्ञानं के
अनेको तथ्यों को आपके सामने आना
बाकी हैं । जैसे की "यज्ञ कल्प सूत्र विधान"क्या हैं । 
जिसके माध्यम से आपकी हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति केवल मात्र यज्ञ के माध्यम से हो जाति हैं । पर यह यज्ञ कल्प विधान हैं क्या ? 

यह और भी अनेको उच्चस्तरीय तथ्य जो आपको विश्वास ही नही होने देंगे की यह भी संभव हैं । इस आहुति विज्ञानं के माध्यम से आपके सामने भविष्य मे आयंगे । अभी तो मेरा उदेश्य यह हैं की इस विज्ञानं की
प्रारंभिक रूप रेखा से आप परिचित हो । तभी तो उच्चस्तर के ज्ञान की
आधार शिला रखी जा सकती हीं ।
क्योंकि कोई भी विज्ञानं क्या मात्र चार
भाव मे सम्पूर्णता से लिया जा सकता हैं ? 
कभी नही । यह 108 विज्ञान मे से एक हैं ।
Gurudev 
Bhubneshwar
9893946810

Wednesday, 2 April 2025

गो मुखी प्रमाण

#गोमुखीलक्षणम्  
       सनातन परम्परा में प्रयुक्त सभी वस्तु आदि
        के शास्त्रीय स्वरूप निर्धारित हैं। 
  सभी सम्प्रदायों में जप का विधान है । जपार्थ माला
को गोमुखी के अन्दर रखना अनिवार्य है। शान्त्यर्थ जप 
 के समय गोमुखी से तर्जनी को बाहर करके मणिबन्ध   
पर्यन्त हाथ को  अन्दर रखने का विधान है । 

प्रकृति में #गोमुखी के शास्त्रीय लक्षण पर विचार किया जाता है । 
  #गोमुखी_माने_गौ_के_मुख_जैसा_वस्त्र ।  

   "#वस्त्रेणाच्छाद्य_च_करं_दक्षिणं_य:#सदा_जपेत् । 
    #तस्य_स्यात्सफलं_जाप्यं_तद्धीनमफलंस्मृतम् ।। 
   #अत_एव_जपार्थं_सा_गोमुखी_ध्रियते_जनै: ।।               (आ.सू.वृद्धमनु) 
      गोमुखी से अतिरिक्त आधुनिक झोली में मणिबन्धपर्यन्त दायें हाथ को ढऀकना सम्भव नहीं है । 

 #गोमुखादौ_ततो_मालां_गोपयेन्मातृजारवत्  ।
 #कौशेयं_रक्तवर्णं_च_पीतवस्त्रं_सुरेश्वरि ।। 
 #अथ_कार्पासवस्त्रेण_यन्त्रतो_गोपयेत्सुधी: । 
 #वाससाऽऽच्छादयेन्मालां_सर्वमन्त्रे_महेश्वरि ।।
  #न_कुर्यात्कृष्णवर्णं_तु_न_कुर्याद्बहुवर्णकम् ।
  #न_कुर्याद्रोमजं_वस्त्रमुक्तवस्त्रेण_गोपयेत्।।                                                             (#कृत्यसारसमुच्चय)
        सूती वस्त्र का गोमुखादि कौशेय, रक्त अथवा पीत वर्ण का हो । काला, हरा, नीला, बहुरङ्गी या रोमज न हो ।
        पुन: इसके विशेष मान भी हैं- 
 #चतुर्विंशाङ्गुलमितं_पट्टवस्त्रादिसम्भवम् । 
  #निर्मायाष्टाङ्गुलिमुखं_ग्रीवायां_षड्दशाङ्गुलम् । 
   #ज्ञेयं_गोमुखयन्त्रञ्च_सर्वतन्त्रेषु_गोपितम् । 
   #तन्मुखे_स्थापयेन्मालां_ग्रीवामध्यगते_करे । 
   #प्रजपेद्विधिना_गुह्यं_वर्णमालाधिकं_प्रिये ।
   #निधाय_गोमुखे_मालां_गोपयेन्मातृजारवत् ।।
                                                                    (#मुण्डमालातन्त्र)
         २४ अङ्गुल परिमित पट्टवस्त्रादि से निर्माण करे, जिसमें ८ अङ्गुल का मुख और १६ अङ्गुल की ग्रीवा हो । गोमुखवस्त्र के मुख से माला को प्रवेश कराये और ग्रीवा के अभ्यन्तर में हाथ को रखकर गोपनीयता से यथाविधि जप करे ।
      इसी प्रकार के अनेक आगमप्रमाण हैं । आधुनिक झोली की शास्त्रीयता उपलब्ध नहीं होती है । प्रचुरमात्रा
 में कुछ गोविरोधियों ने किसी भारतीय पन्थविशेष में प्रवेश कर अतिशय भक्ति का अभिनय दिखाकर पवित्र #गोमुखी  के बदले अवैध *#झोली का दुष्प्रचार कर दिया और दुर्भाग्य से यहाऀ के बड़े-बड़े धर्मोपदेशकों ने भी चित्र-विचित्र उस अशास्त्रीय वस्त्र को स्वीकार कर लिया। 
      
     शास्त्र का नाम लेकर चलनेवाले महाशय यदि गोमुखी के बदले आधुनिक झोली ही रखना चाहते हैं तो वे अवश्य ही इस #झोली की #शास्त्रीयता #प्रदर्शित #करें। किमधिकम्.....?