ज्योतिष समाधान

Saturday, 22 February 2025

शिव अभिषेक सामग्री

धतूरे के फल 

आक के फूल 

आक के फल 


अर्पित करने हेतु शिवजी को बस्त्र

मता जी को अर्पित करने हेतु

 सौ भाग्यवस्त्र

ब्राह्मण बस्त्र
जल कलश तांबे का मिट्टी का)


१】सफेद कपड़ा दो मीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर)

3 पीला कपड़ा 2 मीटर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दीपक
तुलसी दल
केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हो तो
बन्दनवार
पान के पत्ते ---------11 नग
रुई 200     ग्राम

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
              स्नान सामग्री
1)गाय का दूध से स्नान  1 किलो
2)गाय का दही स्नान 500 ग्राम
3)गाय का घी स्नान 100 ग्राम
4)शहद स्नान 50 ग्राम
5)शकर स्नान 200 ग्राम 
6)पंचामृत स्नान 200 ग्राम
7) पांच प्रकार के फलो का रस  100 ग्राम
8)फूलो का रस (इत्र) स्नान  10 ग्राम
9)विजया (भांग) स्नान 10 ग्राम
10अष्टगंध या चन्दन घिसा हुआ  स्नान 10 ग्राम
11)यज्ञ भस्म  स्नान एबम त्रिपुण्ड के लिए 50 ग्राम
12)गंगा जल् स्नान 100 ग्राम

अभिषेक के लिए 

 दूध ,गन्ने का रस ,या  जिस कामना के लिए करना है 

उसकी व्यबस्था करे--------------

8 चीजों से बनी भस्म शिवजी को लगानी चाहिए। 

शास्त्रों के अनुसार  8 चीज़ों को शुद्ध व पावन माना जाता है। 

1- गाय के गोबर कंडे 

2- बिल्व वृक्ष की लड़की 

3- शमी की लड़की 

4- पीपल की लड़की 

5- पलाश की लकड़ी 

6- बड़ (बरगद) की लकड़ी 

7- अमलता की लकड़ी

 8- बेर वृक्ष की लकड़ी।

ऐसे तैयार करें भस्म-
ऊपर बताई गई सभी वृक्षों की सुखी लकड़ियां एकत्रित करके उन्हें जलाकर उनकी भस्म बना लें। ध्यान रखें जब जब भस्म तैयार करें तो तो नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण तब तक करते रहें जब तक भस्म बनकर तैयार न हो जाए। 

बता दें ज्योतिष के अनुसार तैयार भस्म को शिवाग्नि कहा जाता है।

शिव अभिषेक सामग्री

शिव पूजन सामग्री 9893946810

सामग्री कम और ज्यादा कर सकते है )

============================
1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम
२】कलावा(आंटी)-------3 गोले
३】अगरबत्ती------------------- 1पैकिट
४】कपूर------------------------- 50 ग्राम
५】केसर------------------------- 1ग्राम
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
७】यज्ञोपवीत ----------------- 11नग्
८】चावल-------------------- 03 किलो
९】अबीर-------------------------20 ग्राम
१०】गुलाल, -----------------100 ग्राम
११】अभ्रक-------------------20 ग्राम
१२】सिंदूर --------------------20 ग्राम
१३】रोली, -------------------50 ग्राम
१४】सुपारी, ( बड़ी)-------- 200 ग्राम
१५】नारियल ----------------- 05 नग्
१६】सरसो----------------------50 ग्राम
१७】पंच मेवा------------------100 ग्राम
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
१९】शकर--------------------0 1 किलो
२०】घृत (शुद्ध घी)------------ 200 ग्राम
२१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम
२२】लौंग मौली-------------------10ग्राम
२३】इत्र की शीशी    1 नग 

24】रूई  मेडिकल 200 ग्राम

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धतूरे के फल 

आक के फूल 

आक के फल 


अर्पित करने हेतु शिवजी को बस्त्र

मता जी को अर्पित करने हेतु

 सौ भाग्यवस्त्र

ब्राह्मण बस्त्र
जल कलश तांबे का मिट्टी का)


१】सफेद कपड़ा दो मीटर)
२】लाल कपड़ा (2मीटर)

3 पीला कपड़ा 2 मीटर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
दीपक
तुलसी दल
केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हो तो
बन्दनवार
पान के पत्ते ---------11 नग
रुई 200     ग्राम

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
              स्नान सामग्री
1)गाय का दूध से स्नान  1 किलो
2)गाय का दही स्नान 500 ग्राम
3)गाय का घी स्नान 100 ग्राम
4)शहद स्नान 50 ग्राम
5)शकर स्नान 200 ग्राम 
6)पंचामृत स्नान 200 ग्राम
7) पांच प्रकार के फलो का रस  100 ग्राम
8)फूलो का रस (इत्र) स्नान  10 ग्राम
9)विजया (भांग) स्नान 10 ग्राम
10अष्टगंध या चन्दन घिसा हुआ  स्नान 10 ग्राम
11)यज्ञ भस्म  स्नान एबम त्रिपुण्ड के लिए 50 ग्राम
12)गंगा जल् स्नान 100 ग्राम

अभिषेक के लिए 

 दूध ,गन्ने का रस ,या  जिस कामना के लिए करना है 

उसकी व्यबस्था करे--------------

8 चीजों से बनी भस्म शिवजी को लगानी चाहिए। 

शास्त्रों के अनुसार  8 चीज़ों को शुद्ध व पावन माना जाता है। 

1- गाय के गोबर कंडे 

2- बिल्व वृक्ष की लड़की 

3- शमी की लड़की 

4- पीपल की लड़की 

5- पलाश की लकड़ी 

6- बड़ (बरगद) की लकड़ी 

7- अमलता की लकड़ी

 8- बेर वृक्ष की लकड़ी।

ऐसे तैयार करें भस्म-
ऊपर बताई गई सभी वृक्षों की सुखी लकड़ियां एकत्रित करके उन्हें जलाकर उनकी भस्म बना लें। ध्यान रखें जब जब भस्म तैयार करें तो तो नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण तब तक करते रहें जब तक भस्म बनकर तैयार न हो जाए। 

बता दें ज्योतिष के अनुसार तैयार भस्म को शिवाग्नि कहा जाता है।


2- बिल्व वृक्ष की लड़की 

3- शमी की लड़की 

4- पीपल की लड़की 

5- पलाश की लकड़ी 

6- बड़ (बरगद) की लकड़ी 

7- अमलता की लकड़ी

 8- बेर वृक्ष की लकड़ी।

ऐसे तैयार करें भस्म-
ऊपर बताई गई सभी वृक्षों की सुखी लकड़ियां एकत्रित करके उन्हें जलाकर उनकी भस्म बना लें। ध्यान रखें जब जब भस्म तैयार करें तो तो नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण तब तक करते रहें जब तक भस्म बनकर तैयार न हो जाए। 

बता दें ज्योतिष के अनुसार तैयार भस्म को शिवाग्नि कहा जाता है।



Wednesday, 19 February 2025

श्री राम जी के धनुष

श्रीराम जी के धनुष ....

प्रायः जनमानस श्रीराम के एक ही धनुष के बारे में जानते हैं, जिसका नाम 'कोदंड' था। 

वास्तव में श्रीराम ने जीवन में तीन धनुषों का प्रयोग किया। 

1) कोदंड:- इसका सामान्य अर्थ होता है  बाँस। अब यह तो तय है कि राम के जिस असाधारण भारी धनुष, जिसके बारे में उल्लेख मिलता है कि उससे छूटे बाण ने ताड़ के वृक्षों को भेद दिया था, सामान्य एक बाँस का बना तो नहीं होगा। हां, यह निश्चित है कि लचीलापन देने के लिए विशेष प्रकार के बाँस की खपच्चियों का प्रयोग अवश्य किया गया होगा लेकिन बिना धातुओं टुकड़ों के प्रयोग के बिना उसका इतना भारी व कठोर होना संभव नहीं। 
 ऐसा प्रतीत होता है कि इस धनुष का निर्माण श्रीराम ने वनवास की अवधि या अयोध्या में वनगमन से पूर्व किया था।
तीन नम्बर का चित्र कोदंड का प्रतीकात्मक रूप है। 

2)शार्ङ्ग :- इसका सामान्य अर्थ है 'सींग'। प्रागैतिहासिक काल से ही हिरनों के सीधे सींगों का भाले की नोंक के रूप में और मुड़े सींगों का धनुष बनाने के लिए उपयोग होता रहा था। कालांतर में जब आर्यों का प्रिय अस्त्र धनुष बन गया तो सींगों का धनुषों में प्रयोग परिष्कृत रूप में होने लगा, यहाँ तक कि हाथीदांत का प्रयोग भी शक्तिशाली धनुषों के बनाने में हुआ। श्रीराम इस धनुष का प्रयोग संभवतः राजकीय अवसरों पर करते थे। नजदीकी युद्ध में छोटे छोटे 'वैतस्तिक' बाणों के प्रयोग के लिए भी इसमें छोटी धनुरी जुड़ी रहती थी ताकि नजदीक आ गए शत्रु सैनिकों पर फुर्ती से छोटे बाण बरसाए जा सकते थे। 
यद्यपि उल्लेख तो नहीं है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विष्णु का यह धनुष श्रीराम को महर्षि विश्वामित्र द्वारा दिया गया था।

दो नंबर का चित्र इसी धनुष का प्रतीकात्मक रूप है। 

3) वैष्णव:- यह वह धनुष है जिसका प्रयोग श्रीराम ने रावण से अंतिम युद्ध के समय किया। स्पष्टतः यह उस युग का आधुनिकतम धनुष था जिसे महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को प्रदान किया था। 

प्रत्यंचा:- श्रीराम के धनुषों की प्रत्यंचा भी अत्यंत विशिष्ट प्रकार की थी जो धनुषों के एक सिरे पर एक से ज्यादा लिपटी रहती थीं  ताकि प्रत्यंचा के कटने पर  दूसरी तुरंत चढ़ाई जा सके। 

पूरे योद्धा जीवन में उनकी प्रत्यंचा केवल दो बार कटी थी। 

इतनी मजबूती का कारण यह था कि प्रत्यंचा भैंसे की ताजी आंत में मूँज के धागे भर दिये जाते थे और आँत के सूखने पर  न केवल जबरदस्त लचीली होती थी बल्कि  अटूट भी होती थी। 

यह जरूरी भी था क्योंकि श्रीराम की भुजाएं बहुत लंबी थीं और वह छः फीट के धनुष पर प्रत्यंचा को बहुत पीछे तक तानते थे।
बाण के वेग का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं। 

बाण:- 

1)नाराच:- यह अन्य धनुर्धारियों की तरह श्रीराम का प्रिय बाण था। चार नंबर पर है। 

2)अर्धचंद्र:- यह बड़े लक्ष्य और गर्दन को उड़ाने के लिए प्रयुक्त करते थे। 

3)क्षुरप्र:- चपटी धार का बाण। गर्दन के बगल से निकला और श्वासनली का.. आपको पता ही नहीं लगेगा कि आत्मा कब शरीर छोड़ गई।

4)वैतस्तिक:- 'बित्ते' भर के बाण। यह नजदीकी युद्ध में उपयोगी होते थे जो धनुष पर ही लगी छोटी धनुरी या कमान से छोड़े जाते हैं।

महाभारत काल में द्रोण, कृष्ण, प्रद्युम्न और अर्जुन के पास इन बाणों का संग्रह था। 

धृष्टद्युम्न के भयंकर आक्रमण से द्रोण इन्हीं बाणों से बच पाये थे। 

5) बिना फल के बाण :- इनका निर्माण प्रायः अघातक चोट व चेतावनी के लिए किया गया परंतु कुशल धनुर्धर के हाथों में यह भी जानलेवा सिद्ध होते थे। 

भरत के पास भी ऐसे बाणों का जिक्र मिलता है जो उनके अहिंसक व साधु स्वभाव के अनुरूप स्वाभाविक था। 

 महाभारत काल मे अभिमन्यु ने ऐसे ही बाण से एक राजा बसातीय का वध कर दिया था।