☀️👉व्याख्या :-
किसी भी व्रत-पर्वादि का सही निर्णय लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कर्मकाल का सटीक ज्ञान । जब तक कर्मकाल का ज्ञान नहीं होगा तब तक उचित निर्णय लेना असंभव है, क्योंकि शास्त्रों के वचन परस्पर विरोधाभासी प्रतीत होंगे। दीपावली निर्धारण हेतु कर्मकाल क्या है? दीपावली निर्धारण हेतु प्रदोष कर्मकाल है।
🔥भविष्य पुराण:- दिवातत्रनभोक्तव्यमृतेबा लातुराज्जनात् । प्रदोषसमयेलक्ष्मीं पूजयित्वाततः क्रमात्
दीपवृक्षाश्चदातव्याः शक्त्या देवगृहेषु च ॥
🔥पुनः:- दीपान्दत्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथाविधि । स्वलङ्कृतेन भोक्तव्यं सितवस्त्रोपशोभिना ॥
🔥पुनः ब्रह्मपुराण से :- प्रदोषसमयेराजन् कर्तव्यादीपमालिका॥
यहां स्पष्ट रूपसे कर्मकाल का निर्धारण हो रहा है कि लक्ष्मी पूजा व दीपावली का “कर्मकाल प्रदोषकाल है”। कर्मकाल का ज्ञान होने के बाद निर्णय लेना सहज हो जाता है। जिस किसी दिन भी कर्मकाल में ग्राह्य तिथि व्याप्त हो व्रत पर्व उसी दिन होता है। यदि दो दिन कर्मकाल में तिथि व्याप्त हो (तिथिवृद्धि होने पर ऐसा होता है) तो कुछ अपवादों को छोड़कर सर्वत्र दूसरे दिन को ग्रहण करने की विधि होती है। और यदि दोनों में से एक दिन भी कर्मकाल में तिथि न मिले तो भी कुछ अपवादों के अतिरिक्त दूसरा दिन ही ग्राह्य होता है।
व्रत-पर्वादि का निर्णय करने के लिए यही मुख्य नियम है। दीपावली और लक्ष्मीपूजा का कर्मकाल प्रदोषकाल है और उपरोक्त नियमानुसार ही इसका निर्णय लेना चाहिए।
🔥तिथितत्त्वचिन्तामणौ –
कार्तिके कृष्णपक्षे च प्रदोषे भूतदर्शयोः ।
प्रदोषसमये दीपान् दद्यान्मनोरमान् ॥ ब्रह्मविष्णुशिवादीनां भवनेषु मठेषु च ।
उल्काहस्ता नराः कुर्युः पितॄणां मार्गदर्शनम् ॥
🔥पं० राजनाथ मिश्रकृत राजमार्तण्डे –
दण्डैकं रजनीं प्रदोषसमये दर्शे यदा संस्पृशेत् ।
कर्त्तव्या सुखरात्रिकात्र विधिना दर्शाद्यभावे तदा ॥
🔥अन्यत्र से –
अमावस्या यदा रात्रौ दिवाभागे चतुर्द्दशी ।
पूजनीया तदा लक्ष्मीर्विज्ञेया सुखरात्रिका ॥
दीपावली अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की जीत का उत्सव है।
2024 में 31 अक्टूबर गुरुवार को चतुर्दशी 3:23 बजे दिन तक है तत्पश्चात अमावास्या अगले दिन शुक्रवार 1 नवम्बर 2024 को 5:24 बजे संध्या काल तक है। स्पष्टतः दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावास्या प्राप्त होती है, किन्तु
ऐसी स्थिति में दीपावली हेतु दो और विशेष नियम हैं जो मुख्य नियम का बाधक है। यहां पर एक विशेष नियम तिथितत्व में वर्णित है कि यदि दोनों दिन अमावास्या प्रदोष व्यापिनी हो तो भी अगले दिन रात में अर्थात् सूर्यास्त के पश्चात् न्यूनतम 1 दण्ड अमावास्या हो तो ही पहले दिन का त्याग और अगले दिन को ग्रहण करना जाना चाहिए । अर्थात् यदि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात् एक दण्ड से कम अमावास्या रहे तो पहले दिन करना चाहिए।
🔥ज्योतिषार्णवे :-
दंडैक रजनी योगे दर्श: स्याच्च परेहनी।
तदा विहाय पूर्वेद्यु: परेह्णी सुखरात्रिका।।
प्रदोष काल में अमावाश्या का अभाव रहे तो पितृ उल्काग्रहण नहीं करते हैं।
🔥भूताहे ये प्रकुर्वँती उल्काग्रहमचेतना:।
निराशा: पितरो यान्ति शापं दत्वा सुदारूनम।।
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