Thursday, 3 October 2024

दुर्गा पूजा में वेश्या के पैर की मिट्टी

प्रश्नकर्ता - क्या दुर्गा पूजा में वेश्या के घर से मिट्टी लाकर मूर्ति बनाने का विधान है ?

निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु -  दुर्गा पूजा में प्रतिमा निर्माण हेतु वेश्या के घर से मिट्टी लाने का आचार कई परम्पराएं पालन करती आ रही हैं। इसको माध्यम बनाकर परम मूढ़ता और मूर्खता से ग्रस्त कुमार्गगामी नरपिशाच गण श्रीदेवी के सन्दर्भ में अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं। सबसे पहले हम वेश्या की तन्त्रोक्त परिभाषा देखेंगे :-

कुलमार्गे प्रवृत्ता या सा वेश्या मोक्षदायिनी।
एवंविधा भवेद्वेश्या न वेश्या कुलटा प्रिये॥

शिव जी कहते हैं, कि व्यभिचार में रत कुलटा स्त्री को तन्त्र में वेश्या नहीं कहा गया है, अपितु कुलमार्ग में स्थित जो मोक्ष को देने वाली साधिका है, उसे वेश्या कहा गया है। 

अब कुलमार्ग क्या है, यह गुरुपरम्परागम्य गूढ़ शाक्ताचार से सम्बंधित है, इसीलिए अधिक नहीं लिखूंगा, किन्तु कुलार्णव तन्त्र में वर्णित सामान्य परिभाषा बताता हूँ :-

कुलं कुंडलिनी शक्तिरकुलन्तु महेश्वर:।
कुलाकुलस्यतत्वज्ञ: कौल इत्यभिधीयते॥

कुण्डलिनी शक्ति को कुल और परमशिव को अकुल कहा गया है, इन दोनों का रहस्य जानने वाला ब्रह्मवेत्ता ही कौल यानी कुलमार्ग का अनुसरण करने वाला है।

तन्त्र की परिभाषा के अंतर्गत जिस वेश्या का वर्णन है, वह परम साध्वी होती है :-

शिवलिंगगता साध्वी शिवलिंगगता सती।
शिवलिंगगता वेश्या कीर्तिता सा पतिव्रता॥
(निरुत्तर तन्त्र)

शिवलिंग (ब्रह्मभाव की पहचान) में जो स्थित है, वही साध्वी, सती, वेश्या है और उसे ही पतिव्रता कहा गया है।

यहां साध्वी, सती, पतिव्रता तो ठीक है, किन्तु वेश्या शब्द का अर्थ विरोधाभासी होने से इसका कारण निम्न उक्ति से स्पष्ट किया गया है :-
वेश्यावद्भ्रमते यस्मात्तस्माद्वेश्या प्रकीर्तिता।

जैसे (लोक)वेश्या बिना किसी के प्रति आसक्ति रखे केवल धनपरायणा होकर स्वच्छन्द विहार करती है, वैसे ही (बिना किसी के प्रति आसक्ति रखे केवल ब्रह्मपरायणा होकर) स्वच्छन्द विहार करने वाली होने से ऐसी साधिका को वेश्या कहा गया है।

अब यह वेश्या सात प्रकार की होती है :-

गुप्तवेश्या महावेश्या कुलवेश्या महोदया।
राजवेश्या देववेश्या ब्रह्मवेश्या च सप्तधा॥
(निरुत्तर तन्त्र)

गुप्तवेश्या, महावेश्या, कुलवेश्या, महोदयावेश्या, राजवेश्या, देववेश्या एवं ब्रह्मवेश्या, ये सात प्रकार की वेश्याओं का वर्णन तन्त्र में है।

गरुड़ पुराण, नारद पुराण, गर्ग संहिता आदि में निम्न सात तीर्थपुरियों को मोक्षदायिनी बताया गया है :-

अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥
(मायापुरी हरिद्वार को कहते हैं)

इसी प्रकार हमारे पुराणों में वर्णित सात महान् मोक्षमूलक तीर्थों का भी तन्त्र में यही संकेत है :-

गुप्तवेश्या महावेश्या अयोध्या मथुरा प्रिये।
माया च कुलवेश्या स्यात् महोदया च कालिका॥
राजवेश्या देववेश्या द्वारका परिकीर्तिता।
कांची च राजवेश्या स्याद्देववेश्या अवन्तिका॥
द्वारावती ब्रह्मवेश्या सप्तैते मोक्षदायिका॥
(निरुत्तर तन्त्र)

अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांची, अवन्तिका एवं द्वारिका, ये क्रमशः गुप्तवेश्या, महावेश्या, कुलवेश्या, महोदयावेश्या, राजवेश्या, देववेश्या एवं ब्रह्मवेश्या हैं। द्वारिका को मतांतर से राजवेश्या अथवा देववेश्या भी कहा गया है।

इस प्रकार से उपर्युक्त परिभाषा से युक्त साधिका के घर की मिट्टी अथवा उपर्युक्त तीर्थों की मिट्टी लेकर प्रतिमा बनाने का विधान तन्त्रशास्त्र में है। उपर्युक्त तीर्थों का सेवन करने वाला ही तन्त्रोक्त परिभाषा के अनुसार वेश्यागामी है और इसीलिए वेश्यागामी को तत्वज्ञानी एवं मोक्ष का अधिकारी बताया गया। 

कुलपूजां विना देवि तत्वज्ञानं न जायते।
तत्वज्ञानं विना देवि निर्वाणं नैव जायते॥

हमारे शास्त्रों में सर्वाधिक गूढ़ और गोपनीयता की बातें तन्त्रग्रंथ में ही हैं जिन्हें समझना ऊपरी दृष्टि वाले व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं। बहुत से तंत्रों को जानबूझकर कर ऐसी भाषा और शैली में बताया और लिखा गया है कि सामान्य लोग उसे न जान पाएं और सिद्धियों का दुरूपयोग न हो। अतएव अपने धर्म और धर्मग्रंथों में पूर्ण आस्था रखें औए यदि कोई संदेह हो तो साधक एवं रहस्यवादियों के पास जाकर शंका समाधान करें। गूगल बाबा और पाखंडियों के फेर में न रहें। 

(यह लेख मेरी पुस्तक "अमृत वचन" - पृष्ठ ३९३ में प्रकाशित हो चुका है)

साभार - श्री भगवतानंद जी 🙏

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