ब्राह्मण के बाएँ कन्धे पर रखा वस्त्र आपने देखा होगा, जिसे उत्तरीय वस्त्र कहा जाता है, पर आजकल मनमाना आचरण करने के कारण कदाचित् इसे लोग दायें कन्धे पर रखने लग गये हैं, जो अपसव्य पितृकर्म में प्रयोग होता है। उत्तरीय वस्त्र का बहुत महत्त्व है, शास्त्र में उत्तरीय का निर्देश प्राप्त हुआ है, उत्तरीय अर्थात् अपने उत्तर भाग में, अर्थात् बाएँ स्कन्ध पर इसे रखा जाता है।
उत्तरीय महत्त्वः- उत्तरीय व्ययपेतश्च तत्कृतं निष्फलं भवेत्। वृद्ध मनु
होमदेवार्चनाद्यासु क्रियासु पठने तथा।
नैकवस्त्रः प्रवर्तेत द्विजो नाचमने जपे॥ विष्णुपुराणम्
नैकवस्त्रो द्विजः कुर्याद्भोजनं च सुरार्चनम्। व्याघ्रपाद
एकवस्त्रं विनापात्रं सव्ययज्ञोपवीतकम्।
प्रत्यक्षं तु नदी शौचं कुर्वञ्छूद्रत्वमाप्नुयात्॥ ‘’आह्निक कारिकासु’’।
किसी भी पूजा में ऐसा उत्तरीय वस्त्र (पटका) बाएँ कन्धे पर अवश्य लें।
नोट:- इस उत्तरीय को दक्षिण स्कन्ध पर रखने की ये परम्परा सबसे पहले मोरारी बापू ने की थी, जो सर्वथा अशास्त्रीय है।
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