ज्योतिष समाधान

Monday, 24 June 2024

पंचक विचार

पंचक विचार...........

अग्नि-चौरभयं रोगो राजपीडा धनक्षतिः।
संग्रहे तृण-काष्ठानां कृते वस्वादि-पंचके।।'

मुहूर्त-चिंतामणि में दिए गए इस श्लोक के अनुसार, पंचकों के दौरान लकड़ी इकट्ठा करना या खरीदने की मनाही होती है। इसके अलावा मकान में छत डलाना, दाह संस्कार करना, पलंग या चारपाई बनाना और दक्षिण दिशा की यात्रा करना अशुभ माना जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष लगता है।

रामायण कुल कितनी नदिया

1-उतरि ठाढ़ भये सुरसरि रेता।
2- मेकल सुदा गोदावरि धन्या।।
3-पहुंचे जाइ धेनुमति तीरा।
4- रामकथा मंदाकनी.....
5-सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।।
6- उतर नहाए जमुन जल.....
7- संग उतरि गोमती नहाए....
8- सादर मज्जहि सकल त्रिवेनी....
दोस्तों और भी बहुत सी नदियां होगी जो कंठस्थ नहीं हो रहीबालक वृद्ध विहाय गृह,लगे लोग सब साथ।
तमसा तीर निवास किय,प्रथम दिवस रघुनाथ।।

पहुंचे जाय धेनुमति तीरा।
हर्ष नहाने निर्मल नीरा।।

गंग सकल मुद मंगल मूला
सब सुख करही हरहिं सब सूला।।

सिव प्रिय मेकल सैल सुता सी।
 सकल सिद्धि सुख संपति रासी।।
श्री रामचरितमानस में  जंबो दीप से निकलने वाली मां सरयू नदी अयोध्या के निकट से बहती है मां गोदावरी गौतम ऋषि के कमंडल से त्रंबकेश्वर महादेव महाराष्ट्र प्रदेश में बहती है मां नर्मदा अमरकंटक से निकलकर मध्य प्रदेश में विपरीत दिशा में बहती है मां नर्मदा मां गंगा मां गोदावरी मां सरस्वती जो लुप्त है प्राय तमसा नदी कावेरी और जम्मू दीप से निकलने वाली सभी नदियां विशेष कर सात नदिया सात पुरिया का महत्व ज्यादा रहा है फिर भी रामायण सात कोटिया अपनाया नाना भारती राम अवतार जय जय सियाराम जय जय हनुमान संकट मोचन कृपा निधान 💐🕉️🚩☔

संइ उतरि गोमती नहाये 
चोथे दिवस अवधपुर आये 
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या 
मेकलसुता गोदावरि धन्या 
सब सर सिंधु नदी नद नाना 
मंदाकिनी कर करहि बखाना
चले राम मुनि लक्षमण संगा 
 गये जहां जग पावन गंगा 
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि 
 उत्तर दिसि बह सरजू पावनि 
देव दनुज किन्नर नर श्रेणी 
सादर मज्जहि सकल त्रिवेणी 
इतनी ही ज्ञात है मुझे

Sunday, 23 June 2024

गमछा किस कंधे पर होना चाहिए

ब्राह्मण के बाएँ कन्धे पर रखा वस्त्र आपने देखा होगा, जिसे उत्तरीय वस्त्र कहा जाता है, पर आजकल मनमाना आचरण करने के कारण कदाचित् इसे लोग दायें कन्धे पर रखने लग गये हैं, जो अपसव्य पितृकर्म में प्रयोग होता है। उत्तरीय वस्त्र का बहुत महत्त्व है, शास्त्र में उत्तरीय का निर्देश प्राप्त हुआ है, उत्तरीय अर्थात् अपने उत्तर भाग में, अर्थात् बाएँ स्कन्ध पर इसे रखा जाता है। 
उत्तरीय महत्त्वः-  उत्तरीय व्ययपेतश्च तत्कृतं निष्फलं भवेत्। वृद्ध मनु 
होमदेवार्चनाद्यासु क्रियासु पठने तथा। 
नैकवस्त्रः प्रवर्तेत द्विजो नाचमने जपे॥ विष्णुपुराणम् 
नैकवस्त्रो द्विजः कुर्याद्भोजनं च सुरार्चनम्। व्याघ्रपाद
एकवस्त्रं विनापात्रं सव्ययज्ञोपवीतकम्। 
प्रत्यक्षं तु नदी शौचं कुर्वञ्छूद्रत्वमाप्नुयात्॥ ‘’आह्निक कारिकासु’’। 
किसी भी पूजा में ऐसा उत्तरीय वस्त्र  (पटका)  बाएँ कन्धे पर अवश्य लें।
नोट:- इस उत्तरीय को दक्षिण स्कन्ध पर रखने की ये परम्परा सबसे पहले मोरारी बापू ने की थी, जो सर्वथा अशास्त्रीय है।
@highlight

Saturday, 22 June 2024

घाघ भद्दरी

★★★भविष्य‍वाणियों के रूप में गुंथी हुई वर्षा संबंधी कुछ कहावतें प्रस्तुत हैं-
घाघ-भड्डरी की वर्षा संबंधी कहावतें★★★

"आदि न बरसे अद्रा, हस्त न बरसे निदान।
कहै घाघ सुनु घाघिनी, भये किसान-पिसान।।"

√●अर्थात आर्द्रा नक्षत्र के आरंभ और हस्त नक्षत्र के अंत में वर्षा न हुई तो घाघ कवि अपनी स्त्री को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ऐसी दशा में किसान पिस जाता है अर्थात बर्बाद हो जाता है।

"आसाढ़ी पूनो दिना, गाज, बीज बरसन्त।
नासै लक्षण काल का, आनन्द माने सन्त।।"

√●अर्थात आषाढ़ माह की पूर्णमासी को यदि आकाश में बादल गरजे और बिजली चमके तो वर्षा अधिक होगी और अकाल समाप्त हो जाएगा तथा सज्जन आनंदित होंगे।

"उत्तर चमकै बीजली, पूरब बहै जु बाव।
घाघ कहै सुनु घाघिनी, बरधा भीतर लाव।।"

√●अर्थात यदि उत्तर दिशा में बिजली चमकती हो और पुरवा हवा बह रही हो तो घाघ अपनी स्त्री से कहते हैं कि बैलों को घर के अंदर बांध लो, वर्षा शीघ्र होने वाली है।

" उलटे गिरगिट ऊंचे चढ़ै। 
बरखा होई भूइं जल बुड़ै।।"

√●अर्थात यदि गिरगिट उलटा पेड़ पर चढ़े तो वर्षा इतनी अधिक होगी कि धरती पर जल ही जल दिखेगा।

"करिया बादर जीउ डरवावै। 
भूरा बादर नाचत मयूर पानी लावै।।"

√●अर्थात आसमान में यदि घनघोर काले बादल छाए हैं तो तेज वर्षा का भय उत्पन्न होगा, लेकिन पानी बरसने के आसार नहीं होंगे। परंतु यदि बादल भूरे हैं व मोर थिरक उठे तो समझो पानी ‍निश्चित रूप से बरसेगा।
चमके पच्छिम उत्तर कोर। तब जान्यो पानी है जो।।
अर्थात जब पश्चिम और उत्तर के कोने पर बिजली चमके, तब समझ लेना चाहिए कि वर्षा तेज होने वाली है।

"चैत मास दसमी खड़ा, जो कहुं कोरा जाइ।
चौमासे भर बादला, भली भां‍ति बरसाइ।।"

√●अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को यदि आसमान में बादल नहीं है तो यह मान लेना चाहिए कि इस वर्ष चौमासे में बरसात अच्छी होगी।

"जब बरखा चित्रा में होय।
 सगरी खेती जावै खोय।।"

√●अर्थात यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो संपूर्ण खेती नष्ट हो जाती है। इसलिए कहा जाता है कि चित्रा नक्षत्र की वर्षा ठीक नहीं होती।

"माघ में बादर लाल घिरै। 
तब जान्यो सांचो पथरा परै।।"

√●अर्थात यदि माघ के महीने में लाल रंग के बादल दिखाई पड़ें तो ओले अवश्य गिरेंगे। तात्पर्य यह है कि यदि माघ के महीने में आसमान में लाल रंग दिखाई दे तो ओले गिरने के लक्षण हैं।

"रोहनी बरसे मृग तपे, कुछ दिन आर्द्रा जाय।
कहे घाघ सुनु घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय।।"

√●अर्थात घाघ कहते हैं कि हे घाघिन! यदि रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा तपे और आर्द्रा के भी कुछ दिन बीत जाने पर वर्षा हो तो पैदावार इतनी अच्‍छी होगी कि कुत्ते भी भात खाते-खाते ऊब जाएंगे और भात नहीं खाएंगे। 

"सावन केरे प्रथम दिन, उवत न ‍दीखै भान।
चार महीना बरसै पानी, याको है परमान।।"

√●अर्थात यदि सावन के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को आसमान में बादल छाए रहें और प्रात:काल सूर्य के दर्शन न हों तो निश्चय ही ४ महीने तक जोरदार वर्षा होगी।

विष कन्या योग

🐍 विष कन्या योग कितने प्रकार के होते हे।
जानिए ? इस महा दोष का समाधान,🌺 
विषकन्या योग 3 प्रकार के होते हैं।
🐍1=यदि कन्या के जन्म के समय तिथि 2, आश्लेषा नक्षत्र, और शनिवार हो या 7 तिथि, कृतिका नक्षत्र और शनिवार हो या 7,12 तिथि, शतभिषा नक्षत्र और मंगलवार हो या 12 तिथि, विशाखा नक्षत्र और रविवार का योग हो तो विष कन्या योग होता हे।

🐍2=जिस कन्या के जन्म लग्न में एवं रिपु (छटे) भाव में पापग्रह (सूर्य, क्षीण चन्द्र, मंगल, शनि, राहू, केतु) हों एवं दो शुभ ग्रह हों तो बिषकन्या योग होता है। यदि पापग्रहों के साथ दो से अधिक शुभ ग्रह हों तो बिषकन्या योग नहीं होता है।

🐍3=यदि कन्या के लग्न में शनि, पांचवें सूर्य, नवें मंगल हो तो बिषकन्या होती है।

🌞बिषकन्या योग परिहार

ऐसी कन्या को ज्येष्ठ शुक्ल 14 को सावित्री का व्रत करने पर दोष शांत हो जाता है। विषकन्या का सर्वप्रथम पीपल से विवाह करके, जिस वर की कुण्डिली में अधिक आयु का योग हो ऐसे वर से विवाह करने की शास्त्राज्ञा है।
💀अन्यथा वर की मृत्यु हो जाती हे।
🚩श्री परशुराम संस्कृत वेद विद्या गुरुकुल एवं ज्योतिष वास्तु समाधान केंद्र कुंभराज

Friday, 14 June 2024

व्यास पीठ और अधिकार

व्यास पीठ पर बैठने की पात्रता

कथावाचक या उपदेशक के लिए व्यासपीठ वह स्थान है, जिसके माध्यम से वह किसी भी संदेश या उपदेश को समाज तक सहजता से प्रेषित करता है।
दुर्भाग्य से यह माध्यम अनेक प्रकार से प्रदूषित होता जा रहा है। इस प्रदूषण का कारण है इस माध्यम का उपयोग ब्राह्मणेतर और सदाचार - हीन लोगों द्वारा करना ।
व्यास पद पर बैठने का कौन पात्र माना गया है,
इसका स्पष्ट विवेचन शास्त्रों में मिलता है।
वास्तव में व्यासपीठ पर बैठने के अधिकारी सच्चरित्र, वेद-धर्मशास्त्रज्ञ, भगवद्भक्त ब्राह्मण को ही माना गया हैं। 
इस विषय में श्रीमद्भागवत माहात्म्य का श्लोक प्रमाण के रूप में उद्धृत है-

विरक्तो वैष्णवो विप्रो वेदशास्त्र विशुद्धिकृत् ।
दृष्टान्त - कुशलो धीरो वक्ता कार्यो ऽतिनिस्पृहः ॥

1. विरक्तः - अर्थात 'धनाद्यभिलाषशून्य : ' यानी जो सांसारिक प्रपंचों से विरक्त और भगवत्प्रेम में अनुरक्त हो, उसी विद्वान ब्राह्मण को विरक्त कहा गया है। इसी बात का समर्थन करते हुए पद्मपुराण में लिखा है कि-

आचार्यो वेदसम्पन्नो विष्णुभक्तो विमत्सरः ।
ब्राह्मणो वीतरागश्च क्रोधलोभ विवर्जितः ॥

2. वैष्णवः - पद्मपुराण के वृंदावन माहात्म्य में विभिन्न सम्प्रदायों के साथ समस्त ब्राह्मणों को वैष्णव कहा गया है। विष्णुदीक्षाविहीनानांनाधिकारः कथाश्रवे का तात्पर्य है कि वैष्णव को ही कथा सुनने - सुनाने का अधिकार है-

ब्राह्मणावैष्णवामुख्यायतो विष्णुमुखोद्भवाः ।
अंगेषु देवताः सर्वाः मुखे वेदाः व्यवस्थिताः ॥
विप्रैः कृता वैष्णवास्तु त्रयो वर्णा भवन्ति हि ॥

3. विप्रः - यद्यपि विप्र शब्द त्रैवर्णिक में घटित हो सकता है, तथापि यहाँ पुराणवक्ता के रूप में केवल वेद-शास्त्रज्ञ सद्गृहस्थ ब्राह्मण ही ग्राह्य हैं, गृहस्थेतर में श्रोत्रिय या विप्र शब्द का व्यवहार  अमान्य है-

श्रोत्रियो ब्राह्मणो ज्ञेयो न वैश्यो नैव बाहुजः ।
वेदाध्ययन साम्येऽपि पुरुषोत्तम शब्दवत्॥

पद्मपुराण में भी यही बात स्पष्ट रूप से कही है- वक्तारं ब्राह्मणं कुर्यान्नान्यवर्णजमादरात् जन्मना ब्राह्मण को ही वक्ता के रूप में पवित्र व्यासपीठ पर बैठाना चाहिए।हेमाद्रि में उद्धृत नन्दिपुराण का भी वचन देखें- वाचको ब्राह्मणः प्राज्ञः श्रुतशास्त्रो महामनाः वेदज्ञ गृहस्थ ब्राह्मण ही कथावाचक के रूप में व्यासपीठ पर विराजमान हो सकते हैं। कौशिकसंहिता के भागवत माहात्म्य के अनुसार- विप्र से अतिरिक्त वर्णों में शास्त्र का शास्त्रत्व ही विनष्ट हो जाता है-

यावद्विप्रगतं शास्त्रं शास्त्रत्वं तावदेव हि ।
विप्रेतरगतं शास्त्रम् अशास्त्रत्वं विदुर्बुधाः ॥

4. वेदशास्त्रविशुद्धकृत्- वेदादिशास्त्रों में टंकण आदि दोषों को दूर कर अपनी विद्या से शुद्ध कर व्याख्यान देनेवाला वक्ता हो सकता है।

5. अतिनिस्पृहः- यानी धन आदि संग्रह से रहित विरक्त गृहस्थ ब्राह्मण ही कथाव्यास हो सकते हैं।

Gurudev bhubneshwar
Parnkuti guna
९८९३९४६८१०

चोरी हुई बस्तु कहा है

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में

Saturday, 8 June 2024

#ध्वजा _क्यों_ चढ़ाई _जाती है -और क्या -है -उसका _महत्व

मन्दिर में ध्वजा क्यों चढ़ाई जाती है और क्या है उसका महत्व
सनातन हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि बिना ध्वजा (ध्वज, पताका, झण्डा) के मन्दिर में असुर निवास करते है इसलिए मन्दिर में सदैव ध्वजा लगी होनी चाहिए । सनातन धर्म की चार पीठों में से एक द्वारका पीठ भारत का एक मात्र ऐसा मन्दिर है जहां पर 52 गज की ध्वजा दिन में तीन बार चढ़ाई जाती है ।

यह रक्षा ध्वज है जो मन्दिर और नगर की रक्षा करता है । ऐसा माना जाता है कि ध्वजा नवग्रह को धारण किये होती है, जो रक्षा कवच का काम करती है । मंदिर के शिखर पर लगभग 84 फुट लंबी विभिन्न प्रकार के रंग वाली, लहराती धर्मध्वजा को देखकर दूर से ही श्रीकृष्ण-भक्त उसके सामने अपना शीश झुका लेते हैं ।

कब से शुरु हुई मन्दिर में ध्वजा लगाने की परम्परा ?

प्राचीनकाल में देवताओं और असुरों में भीषण युद्ध हुआ । उस युद्ध में देवताओं ने अपने-अपने रथों पर जिन-जिन चिह्नों को लगाया, वे उनके ध्वज कहलाये । तभी से ध्वजा लगाने की परम्परा शुरु हुई । जिस देवता का जो वाहन है, वही उनकी ध्वजा पर भी अंकित होता है ।

किस देवता की ध्वजा पर है कौन-सा चिह्न ?

प्रत्येक देवता के ध्वज पर उनको सूचित करने वाला चिह्न (वाहन) होता है । जैसे—

विष्णु—विष्णुजी की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज पीले रंग का होता है । उस पर गरुड़ का चिह्न अंकित होता है ।

शिव—शिवजी की ध्वजा का दण्ड चांदी का व ध्वज सफेद रंग का होता है । उस पर वृषभ का चिह्न अंकित होता है ।

ब्रह्माजी—ब्रह्माजी की ध्वजा का दण्ड तांबे का व ध्वज पद्मवर्ण का होता है । उस पर कमल (पद्म) का चिह्न अंकित होता है ।

गणपति—गणपति की ध्वजा का दण्ड तांबे या हाथीदांत का व ध्वज सफेद रंग का होता है । उस पर मूषक का चिह्न अंकित होता है ।

सूर्यनारायण—सूर्यनारायण की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज पचरंगी होता है । उस पर व्योम का चिह्न अंकित होता है ।

गौरी—गौरी की ध्वजा का दण्ड तांबे का व ध्वज बीरबहूटी के समान अत्यन्त रक्त वर्ण का होता है । उस पर गोधा का चिह्न होता है ।

भगवती/देवी/दुर्गा—देवी की ध्वजा का दण्ड सर्वधातु का व ध्वज लाल रंग का होता है । उस पर सिंह का चिह्न अंकित होता है ।

चामुण्डा—चामुण्डा की ध्वजा का दण्ड लोहे का व ध्वज नीले रंग का होता है । उस पर मुण्डमाला का चिह्न अंकित होता है ।

कार्तिकेय—कार्तिकेय की ध्वजा का दण्ड त्रिलौह का व ध्वज चित्रवर्ण का होता है । उस पर मयूर का चिह्न अंकित होता है ।

बलदेवजी—बलदेवजी की ध्वजा का दण्ड चांदी का व ध्वज सफेद रंग का होता है । उस पर हल का चिह्न अंकित होता है ।

कामदेव—कामदेव की ध्वजा का दण्ड त्रिलौह का (सोना, चांदी, तांबा मिश्रित)  व ध्वज लाल रंग का होता है । उस पर मकर का चिह्न अंकित होता है ।

यम—यमराज की ध्वजा का दण्ड लोहे का व ध्वज कृष्ण वर्ण का होता है । उस पर महिष (भैंसे) का चिह्न अंकित होता है ।

इन्द्र—इन्द्र की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज अनेक रंग का होता है । उस पर हस्ती (हाथी) का चिह्न अंकित होता है ।

अग्नि—अग्नि की ध्वजा का दण्ड सोने का व ध्वज अनेक रंग का होता है । उस पर मेष का चिह्न अंकित होता है ।

वायु—वायु की ध्वजा का दण्ड लौहे का व ध्वज कृष्ण वर्ण का होता है । उस पर हरिन का चिह्न अंकित होता है ।

कुबेर—कुबेर की ध्वजा का दण्ड मणियों का व ध्वज लाल रंग का होता है । उस पर मनुष्य के पैर का चिह्न अंकित होता है ।

वरुण की ध्वजा पर कच्छप चिह्न होता है।

ऋषियों की ध्वजा पर कुश का चिह्न अंकित होता है।

प्राय: लोग किसी मनोकामना पूर्ति के लिए हनुमानजी या देवी के मन्दिर में ध्वजा लगाने की मन्नत रखते हैं । हनुमानजी व देवी की पूजा बिना ध्वजा-पताका के पूरी नहीं होती है । देवी का तो पौषमास की शुक्ल नवमी को ध्वजा नवमी व्रत होता है जिसमें उनको ध्वजा अर्पण की जाती है।

प्रश्न यह है कि मन्दिर में ध्वजारोपण से कैसे हमारी मनोकामना पूरी हो जाती है ? इसका उत्तर हमें नारद-विष्णु पुराण में मिलता है जिसमें कहा गया है कि—

▪️भगवान विष्णु के मन्दिर में ध्वजा चढ़ाने का महत्व यह है कि जितने क्षणों तक ध्वजा की पताका वायु के वेग से फहराती है, ध्वजा चढ़ाने वाले मनुष्य की उतनी ही पापराशियां नष्ट हो जाती हैं । जब पाप नष्ट हो जाते हैं तो पुण्य का पलड़ा भारी हो जाता है और मनुष्य की मनचाही वस्तु उसे प्राप्त हो जाती है ।

▪️मन्दिर में ध्वजा चढ़ाने से मनुष्य की सम्पत्ति की सदा वृद्धि होती रहती है ।

▪️ध्वजारोपण से मनुष्य इस लोक में सभी प्रकार के सुख भोग कर परम गति को प्राप्त होता है ।

▪️जिस प्रकार मन्दिर की ध्वजा दूर से ही दिखाई पड़ जाती है, उसी प्रकार ध्वज अर्पण करने से मनुष्य हर क्षेत्र में विजयी होता है और उसकी यश-पताका चारों ओर फहराती है ।

ध्वजारोपण के लिए पहले सुन्दर ध्वजा का निर्माण करायें । फिर शुभ मुहुर्त में जिस देवता को ध्वजा चढ़ानी है, उन भगवान का पूजन करें । इसके बाद ध्वजा का पंचोपचार (रोली, चावल, पुष्प, धूप-दीप और नैवेद्य से) पूजन करें । फिर ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करा कर मंगल वाद्य आदि बजाकर उसका मन्दिर में आरोहण करें । हो सके तो उस देवता के मन्त्र से 108 आहुति का हवन करें । ब्राह्मण को वस्त्र दक्षिणा देकर भोजन करायें ।

Tuesday, 4 June 2024

ग्रह प्रवेश एवं वास्तु पूजा सामग्री

 ================================= 1】हल्दीः--------------------------50 ग्राम 
२】कलावा(आंटी)-------------10 गोले 
३】अगरबत्ती------------------- 3पैकिट
 ४】कपूर------------------------- 50 ग्राम
 ५】केसर------------------------- 1डिव्वि 
६】चंदन पेस्ट ------------------ 50 ग्राम
 ७】यज्ञोपवीत ----------------- 11नग्
 ८】चावल------------------------ 07 किलो 
९】अबीर-------------------------50 ग्राम 
१०】गुलाल, -----------------100 ग्राम
 ११कच्चा सूत ----------------200 फिट
१२】सिंदूर --------------------100 ग्राम 
१३】रोली, --------------------100ग्राम 
१४】सुपारी, ( बड़ी)-------- 200 ग्राम
 १५】नारियल ----------------- 11 नग्
 १६】सरसो----------------------50 ग्राम
 १७】पंच मेवा------------------100 ग्राम 
१८】शहद (मधु)--------------- 50 ग्राम
 १९】शकर-----------------------0 1किलो
 २०】घृत (शुद्ध घी)------------ 01किलो
 २१】इलायची (छोटी)-----------10ग्राम 
२२】नागफणी किले --------------05 नग
 २३】इत्र की शीशी----------------1 नग् 
२४】रंग लाल----------------------10ग्राम 
२५】रंग काला --------------------10ग्राम 
२६】रंग हरा -----------------------10ग्राम 
२७】रंग पिला ---------------------10ग्राम 
२८】बास्तु किट --------------------1 नग्
 २९】धुप बत्ती ---------------------2 पैकिट ============================= 
३०】सप्तमृत्तिका 
1】 हाथी के स्थान की मिट्टि-----------50ग्राम
 २】घोड़ा बांदने के स्थान की मिटटी--50ग्राम
 ३】बॉबी की मिटटी---------------------50ग्राम
 ४】दीमक की मिटटी-------------------50ग्राम 
५】नदी संगम की मिटटी---------------50ग्राम 
६】तालाब की मिटटी-------------------50ग्राम
 ७】गौ शाला की मिटटी-----------------50ग्राम राज द्वार की मिटटी-----------------------50ग्राम ============================
 ३१】पंचगव्य
 १】 गाय का गोबर -----------------50 ग्राम
 २】गौ मूत्र-----------------------------50ग्राम
 ३】गौ घृत------------------------------50ग्राम 
4】गाय दूध----------------------------50ग्राम 
५】गाय का दही ---------------------50ग्राम ============================= 
३२】सप्त धान्य-कुलबजन--------100ग्राम
 १】 जौ-----------
 २】गेहूँ- 
३】चावल- 
४】तिल- 
५】काँगनी- 
६】उड़द-
 ७】मूँग ============================= 
३३】कुशा 
३४】दूर्वा 
35】पुष्प कई प्रकार के 
३६】गंगाजल 
३७】ऋतुफल पांच प्रकार के -----1 किलो

 38】पंच पल्लव 
१】बड़, 
२】 गूलर,
 ३】पीपल, 
४】आम 
५】पाकर के पत्ते) ============================= 
३९】बिल्वपत्र 
४०】शमीपत्र 
४१】सर्वऔषधि 
४२】अर्पित करने हेतु पुरुष बस्त्र 
४३】मता जी को अर्पित करने हेतु सौ भाग्यवस्त्र
 44】जल कलश तांबे का मिट्टी का) 
-------------------------------------------------
४५】 बस्त्र 
१】सफेद कपड़ा दोमीटर) 
२】लाल कपड़ा (2मीटर) 
३】काला कपड़ा 2मीटर)
 ४】हरा कपड़ा 2मीटर)  पीला कपड़ा 2 मीटर

४६】पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)
 ४७】दीपक 
४८】तुलसी दल
 ४८】केले के पत्ते (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित) 49】बन्दनवार 50】पान के पत्ते ------------11 नग 51】रुई
 ५२】भस्म 
53】ध्वजालाल-1 
पचरंगा -1 
54】प्रसाद(अनुमानि) ====================================नवग्रह समिधा======= 
१】आक 
२】 छोला
 ३】खैर 
४】आंधी झाड़ा
 ५】पीपल 
६】उमर(गूलर) 
७】शमी 
८】दूर्वा 
९】कुशा


घरेलू समान 
आसान बिछाने के लिए 
चौकी 2/2की पांच या फिर प्लाई एक 3/6 की
दूध ,दही ,फूल ,दूर्वा ,पूजा के लिए  बर्तन ,भगवान की तस्वीरे , आटा चोक पुरने के  लिए,
Gurudev 
Bhubneshwar
Parnkuti ashram guna
9893946810