Thursday, 2 May 2024

चंडी ध्वज स्त्रोत्र

श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम्  ज्ञान दर्पण 

महत्व 👉 देवी के अनेक रुपों में एक रुप चण्डी का भी है. देवी काली के समान ही देवी चण्डी भी प्राय: उग्र रूप में पूजी जाती हैं, अपने भयावह रुप में मां दुर्गा चण्डी अथवा चण्डिका नाम से जानी जाती हैं. नवरात्रों में देवी के इस रुप की भी पूजा होती है देवी ने यह रुप बुराई के संहार हेतु ही लिया था. देवी के श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् का पाठ सभी संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला होता है तथा शत्रुओं पर विजय प्रदान कराता है. 

श्री चण्डी ध्वज स्तोत्रम् विनियोग 

अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः. 

अंगन्यास 

श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः । 

    पाठ 

ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः । 
परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः ।। १ ।। 

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २ ।। 

रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ३ ।। 

नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ४ ।। 

नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ५ ।। 

नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ६ ।। 

नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ७ ।। 

नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ८ ।। 

नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ९ ।। 

नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १० ।। 

नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ११ ।। 

नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १२ ।। 

नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १३ ।। 

नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १४ ।। 

नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १५ ।। 

रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १६ ।। 

नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १७ ।। 

शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १८ ।। 

शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। १९ ।। 

नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २० ।। 

नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २१ ।। 

नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २२ ।। 

स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २३ ।। 

श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २४ ।। 

नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २५ ।। 

दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २६ ।। 

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २७ ।। 

नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २८ ।। 

जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। २९ ।। 

मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि । 
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ।। ३० ।। 

चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् । 
राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ।। ३२ ।।

श्रीचण्डी देवी की जय

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