Sunday, 17 March 2024

रजस्वला धर्म

#संभाल_कर बोलिऐ शास्त्र को पढ़ कर बोलिए जान कर बोलिए वरन् शास्त्र अगर शस्त्र बनगया तो फिर भगवान भी नहीं बचा पायेगा,,,,,,,

#रजोधर्म_व_उसके_बाद

 रजोधर्म स्त्रीयों को त्रेता युग से माना जाता है -- 
 " त्रेताप्रभृति नारीयां मासि मास्यार्तवं द्विजाः। " 
कारण की जब वृत्रासुर  की हत्या के बाद इन्द्र को ब्रह्महत्या लगी तो ब्रह्म जी ने और कल्प भेद से इन्द्र ने उस ब्रह्महत्या को चार भागों में बांट दिया जिसमें से एक भाग जल को - एक भाग भूमी को - एक भाग वृक्षों को - एक भाग स्त्रियों को दिया ---

          जल में काई ब्रह्महत्या का दोष है - पृथ्वी में ऊसर भूमी ब्रह्महत्या का दोष है - वृक्षों में गोंद ब्रह्महत्या का दोष है अतः  पुरूषों को प्रयास कर गोंद के सेवन से बचना चाहिए -- स्त्रीयों को रजोधर्म ब्रह्महत्या का दोष है --
          साथ ही इनको ब्रह्मा जी ने वरदान भी दिये -- जल को कोई कितना भी दूषित कर ले कुछ समय बाद वह निर्मल हो जाता है -- भूमी में किये गढ्ढे कुछ समय पश्चात् स्वतः भर जाते हैं - वृक्षों को काटने के पश्चात् कुछ समय बाद वे पहले से भी अधिक अंकूर वाला हो जाता है -- स्त्री को सदैव कोई रक्षक व पालक मिल जायेगा - संतानवान होगी - व आयु बढने के बाद भी काम की इच्छा बनी रहेगी --- ये इनको वरदान दिये ---

           युग की प्रवृति के अनुसार सत्ययुग में लोग स्त्रियों के साथ एक बार सहवास करते थे और संतान उत्पन्न हो जाती थी - अब की तरह पशुओं  के समान मैथुन नहीं करते थे --
" कृते सकृद्युगवशाज्जायन्ते वै सहैव तु । 
  प्रयान्ति च महाभागा भार्याभिः----    ।। "

तो बात करते हैं स्त्री के रजोधर्म की -----
" प्रथमेऽहनि चाण्डाली यथा वर्ज्या तथाङ्गना। 
  द्वितियेऽहनि विप्रा ही यथा वै ब्रह्मघातिनी ।। 
  तृतीयेऽह्नि तदर्धेन चतुर्थेऽहनि सुव्रताः । 
  स्नात्वार्धमासात्संशुद्धा ततः शुद्धिर्भविष्यति।। " 
            रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डाली की भांति वर्ज्य होती है -- हे विप्रो! दूसरे दिन ब्रह्मघातनी और तीसरे दिन उसके आधे पाप से युक्त रहती है -- हे सुव्रतो! चौथे दिन स्नान करके वह आधे महिने तक देवपूजन आदि के लिए शुद्ध रहती है -- पाँचवें दिन से सोलहवें दिन तक रजोदोष रहने के कारण स्त्रीस्पर्श आदि की शुद्धि मूत्रोत्सर्ग की शुद्धि की तरह कही गई है -- इसके बाद ही उसकी पूर्ण शुद्धि होगी ।

       रजस्वला 

         रजोधर्म के चौथे दिन स्त्री गमन के योग्य नहीं होती -- चौथे दिन के समागम से अल्पायु वाले पुत्र को जन्म देती है - वह विद्या रहित - व्रत से च्युत - पतित - दूसरों की स्त्रियों के साथ दुराचार करने वाले तथा दरिद्रता के समुद्र में डुबे रहने वाले पुत्र को उत्पन्न करती है ।। वशिष्ठ ।।
" चतुर्थ्यां स्त्री न गम्या तु गतोऽल्पायुः प्रसूयते ।
  विद्याहीनं व्रतभ्रष्टं पतितं पारदारिकम् ।।
  दारिद्रयार्णवमग्नं च तनयं सा प्रसूयते ।। "

       पुत्री की कामना वाले को पाँचवें दिन स्त्री के साथ गमन करना चाहिए -- रक्त का आधिक्य होने पर कन्या होती है - शुक्र का आधिक्य होने पर पुत्र होता है -- और दोनों समान होने पर नपुंसक संतान उत्पन्न होती है - पाँचवे दिन या विषम दिन में सहवास से कन्या उत्पन्न होती है - सम दिन में पुत्र ।
" कन्यार्थिनैव गन्तव्या पञ्चम्यां विधिवत्पुनः। 
  रक्ताधिक्याद्भवेन्नारी शुक्राधिक्ये भवेत्पुमान्।।
  समे नपुंसकं चैव पञ्चम्यां कन्यका भवेत् ।।

          छठें दिन यदि स्त्रि सहवास किया जाये तो वह महाभाग्यवती स्त्री उत्तम पुत्र को जन्म देती है वह पुत्र महातेजस्वी होता है - वह 
  '  पुम् ' नामक नरक से से उद्धार करने वाला होता है -- वह स्त्री पुम् ( नरक ) से त्राण ( रक्षा ) करने वाले पुत्र को जन्म देती है ।
" पुमिति नरकस्याख्या दुःख च नरकं विदुः। 
  पुंसस्त्राणान्वितं पुत्रं तथा भूतं प्रसूयते ।। "
       
        कन्या की इच्छा वाले सातवीं रात्री में गमने करे - किन्तु वह कन्या बन्ध्या होती है --
      
        आठवीं रात्री में स्त्री सर्वगुण सम्पन्न पुत्र को जन्म देती है -- कन्या की इच्छा वाले व्यक्ति नौवीं रात में सहवास करना चाहिए -- दसवीं रात में संभोग करने पर विद्वान पुत्र उत्पन्न होता है -- ग्यारहवीं रात में सहवास करने पर वह पुत्री पूर्व की कन्या उत्पन्न करती है ---

       बारहवें दिन स्त्री धर्मतत्त्व के ज्ञाता तथा श्रुति - स्मृति के धर्मों को चलाने वाले पुत्र को उत्पन्न करती है --
" द्वादश्यां धर्मतत्त्वज्ञं श्रौतस्मातृप्रवर्तकम् ।"

        तेरहवीं रात में गमन करने पर मूर्ख तथा वर्णसंकर दोष फैलाने वाली कन्या उत्पन्न होती है - अतः पूरे प्रयत्न से उस तेरहवें दिन को सहवास नहीं करना चाहिए--
" त्रयोदश्यां जडां नारीं सर्वसङ्करकारिणीम्। 
  जनयत्यङ्गना यस्मान्न गच्छेत्सर्वयत्नतः।। "

यदि चौदहवीं रात में गमन किया जाये - तो वह स्त्री पुत्र उत्पन्न करने वाली होती है -- पन्द्रहवीं रात में गमन करने पर वह धर्मनिष्ठ कन्या को तथा सोलहवीं रात में गमन करने पर ज्ञान में पारंगत पुत्र को उत्पन्न करती है ---

       मैथुन के समय यदि स्त्रियों के बायें पार्श्व में वायु प्रवाहित होता हो - तो कन्या होती है और दक्षिण पार्श्व में प्रवाहित हो तो पुत्र प्राप्त होता है ।
" स्त्रीणां मैथुनकाले तु पापग्रहविवर्जिते ।। " 

 

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