Thursday, 28 September 2023

शिव जी की आधी परिक्रमा क्यों की जाती है

 क्यों की जाती है भगवान की परिक्रमा, जानिए

शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है, वह इसलिए कि शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योति माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र। आपने आसमान में अर्ध चंद्र के ऊपर एक शुक्र तारा देखा होगा। यह शिवलिंग उसका ही प्रतीक नहीं है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिर्लिंग के ही समान है।
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अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र 
न लंघयेत इति वाचनान्तरात।'

सोमसूत्र : शिवलिंग की निर्मली को सोमसूत्र भी कहा जाता है। शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है। सोमसूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।

तब लांघ सकते हैं : 
शास्त्रों में अन्य स्थानों पर मिलता है कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढंके हुए सोमसूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है, लेकिन ‘शिवस्यार्ध प्रदक्षिणा’ का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
किस ओर से परिक्रमा : भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जलस्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।

किस देवता की कितनी प्रदक्षिणा करनी चाहिए, इस संदर्भ में ‘कर्म लोचन’ नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि- ‘एका चण्ड्या रवे: सप्त तिस्र: कार्या विनायके। हरेश्चतस्र: कर्तव्या: शिवस्यार्धप्रदक्षिणा।’ अर्थात दुर्गाजी की एक, सूर्य की सात, गणेशजी की तीन, विष्णु भगवान की चार एवं शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
*तिलक लगाने के बाद यज्ञ देवता अग्नि या वेदी की तीन प्रदक्षिणा (परिक्रमा) लगानी चाहिए। ये तीन प्रदक्षिणा जन्म, जरा और मृत्यु के विनाश हेतु तथा मन, वचन और कर्म से भक्ति की प्रतीक रूप, बाएं हाथ से दाएं हाथ की तरफ लगाई जाती है।
*श्री गणेश की तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए जिससे गणेशजी भक्त को रिद्ध-सिद्धि सहित समृद्धि का वर देते हैं।
*पुराण के अनुसार श्रीराम के परम भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। भक्तों को इनकी तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए।
*माता दुर्गा मां की एक परिक्रमा की जाती है। माता अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती है।
*भगवान नारायण अर्थात् विष्णु की चार परिक्रमा करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
*एकमात्र प्रत्यक्ष देवता सूर्य की सात परिक्रमा करने पर सारी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाती हैं।
*प्राय: सोमवती अमावास्या को महिलाएं पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करती हैं। हालांकि सभी देववृक्षों की परिक्रमा करने का विधान है।
* जिन देवताओं की प्रदक्षिणा का विधान नही प्राप्त होता है, उनकी तीन प्रदक्षिणा की जा सकती है। लिखा गया है कि-

 ‘यस्त्रि: प्रदक्षिणं कुर्यात् साष्टांगकप्रणामकम्। 
दशाश्वमेधस्य फलं प्राप्रुन्नात्र संशय:॥'

* काशी ऐसी ही प्रदक्षिणा के लिए पवित्र मार्ग है जिसमें यहां के सभी पुण्यस्थल घिरे हुए हैं और जिस पर यात्री चलकर काशीधाम की प्रदक्षिणा करते हैं। ऐसे ही प्रदक्षिणा मार्ग मथुरा, अयोध्या, प्रयाग, चित्रकूट आदि में ह

मनु स्मृति में विवाह के समक्ष वधू को अग्नि के चारों ओर तीन बार प्रदक्षिणा करने का विधान बतलाया गया है जबकि दोनों मिलकर 7 बार प्रदक्षिणा करते हैं तो विवाह संपन्न माना जाता है।
* पवित्र धर्मस्थानों- अयोध्या, मथुरा आदि पुण्यपुरियों की पंचकोसी (25 कोस की), ब्रज में गोवर्धन पूजा की सप्तकोसी, ब्रह्ममंडल की चौरासी कोस, नर्मदाजी की अमरकंटक से समुद्र तक छ:मासी और समस्त भारत खंड की वर्षों में पूरी होने वाली इस प्रकार की विविध परिक्रमाएं भूमि में पद-पद पर दंडवत लेटकर पूरी की जाती है। यही 108-108 बार प्रति पद पर आवृत्ति करके वर्षों में समाप्त होती है।

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क्यों की जाती है भगवान की परिक्रमा, जानिए


धार्मिक महत्व : भगवान की परिक्रमा का धार्मिक महत्व तो है ही, विद्वानों का मत है भगवान की परिक्रमा से अक्षय पुण्य मिलता है, सुरक्षा प्राप्त होती है और पापों का नाश होता है। पग-पग चलकर प्रदक्षिणा करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। सभी पापों का तत्क्षण नाश हो जाता है। प्रदक्षिणा करने से तन-मन-धन पवित्र हो जाते हैं व मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जहां पर यज्ञ होता है वहां देवताओं साथ गंगा, यमुना व सरस्वती सहित समस्त तीर्थों आदि का वास होता है।
प्रदक्षिणा या परिक्रमा करने का मूल भाव स्वयं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से भगवान के समक्ष समर्पित कर देना भी है।
परिक्रमा करने का व्यावहारिक और वैज्ञानिक पक्ष वास्तु और वातावरण में फैली सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है। दरअसल, भगवान की पूजा-अर्चना, आरती के बाद भगवान के उनके आसपास के वातावरण में चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है इस सकारात्मक ऊर्जा के घेरे के भीतर चारों और परिक्रमा करके व्यक्ति के भीतर भी सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता और नकारात्मकता घटती है। इससे मन में विश्वास का संचार होकर जीवेषणा बढ़ती है।
परिक्रमा करने का नियम जानना जरूरी
परिक्रमा प्रारंभ करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए। परिक्रमा वहीं पूर्ण करें, जहां से प्रारंभ की गई थी। परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नहीं मानी जाती। परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत न करें। जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें। इस प्रकार परिक्रमा करने से अभीष्ट एवं पूर्ण लाभ की प्राप्ति होती है
परिक्रमा पूर्ण करने के पश्चात भगवान को दंडवत प्रणाम करना चाहिए। जो लोग तीन प्रदक्षिणा साष्टांग प्रणाम करते हुए करते हैं, वे दश अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करते हैं। जो लोग सहस्रनाम का पाठ करते हुए प्रदक्षिणा करते हैं, वे सप्त द्वीपवती पृथ्वी की परिक्रमा का पुण्य प्राप्त करते हैं।
बृहन्नारदीय में लिखा गया है कि जो भगवान विष्णु की तीन परिक्रमा करते हैं, वे सभी प्रकार के पापों से विमुक्त हो जाते हैं। इसका मतलब यह समझ में आता है कि कामना के अनुसार भी प्रदक्षिणा की संख्या का विचार किया गया है। विष्णु स्मृति में कहा गया है कि एक हाथ से प्रणाम करना, एक प्रदक्षिणा एवं अकाल में विष्णु का दर्शन पूर्व में किए गए पुण्य की हानि करता

Gurudev
Bhubneshwar
९८९३९४६८१०

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