हे बृषभानु सुता करुणामयि
करि करुणा देखहु मम ओरी।
सब विधि दीन मलीन मती
अति पामर क्रूर अघी बरजोरी।
यंत्र न मंत्र न तंत्र कौ साधन
नहिं जप जोग न ध्यान धरो री।
"विश्वामित्र"भरोसे तुम्हारे हि
कृष्णप्रिया जन जानि ढरौ री।।
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