ज्योतिष समाधान

Saturday, 16 February 2019

यज्ञकुण्ड और मण्डपों के सम्बन्ध में इस प्रकार के उल्लेख ग्रन्थों में मिलते है


             नमो भगवते वासुदेवाय॥ 
॥ यज्ञौवैश्रेष्ठतरं कर्मः स यज्ञः स विष्णुः॥ ॥ यज्ञात्भवति पर्जन्यः पर्जन्याद्अन्नसम्भवः॥ ॥



कुण्ड और मण्डपों के सम्बन्ध में इस प्रकार के उल्लेख ग्रन्थों में मिलते है


जिसकी पूजा यज्ञोमे बतायी गई है ,जिसमे एक एक स्तंभ के एक एक देव भी है।।,,,,,
इस सोलह स्तंभो के नाम इस प्रकार है,

,, शुभद ।। 

विजय ।। 

कृष्ण ।।

 श्रीमान ।। 

मंगल ।। 

गुरू ।। 

जय ।। 

धनद ।। 

कल्याणी ।।

शुभ ।। 

शान्त ।।

 मनोहर ।। 

ऋद्धि ।। 

सिद्धि ।। 

विचित्र ।। 

दिव्य रूप ।। ,

,शुभदं विजयं कृष्णं श्रमंतं मंगलं गुरूम्। 
जयं धनदकल्याणी शुभं शान्तं मनोहरम्।। 
ऋद्धिं सिद्धिं विचित्रं च दिव्यरूपमनुक्रमात्। मंडपस्तंभनामानि षोडशैतान्यसंशयः।।



जानिए यज्ञ के नौ कुंडों की विशेषता

* 1=सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ति के लिए प्रधान चतुरस्त्र कुंड का महत्व होता है।

* 2=पुत्र प्राप्ति के लिए योनि कुंड का पूजन जरूरी है।

* 3=ज्ञान प्राप्ति के लिए आचार्य कुंड यज्ञ का आयोजन जरूरी होता है।

* 4=शत्रु नाश के लिए त्रिकोण कुंड यज्ञ फलदाई होता है।

* 5=व्यापार में वृद्धि के लिए वृत्त कुंड करना लाभदाई होता है।

* =मन की शांति के लिए अर्द्धचंद्र कुंड किया जाता है।

5=लक्ष्मी प्राप्ति के लिए समअष्टास्त्र कुंड, 

 6=विषम अष्टास्त्र कुंड, 

7=विषम षडास्त्र कुंड का विशेष महत्व होत

यज्ञ कुंड मुख्यत:

आठ प्रकार के होते हैं और सभी का प्रयोजन अलग अलग होताहैं ।

1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।

2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं ।

3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।

4. वृत्त कुंड – जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।

5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।

6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु ।

7. चतुष् कोणास्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।

8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।

मण्डपों के निर्माण में

द्वार, 
खम्भे, 
तोरण द्वार, 
ध्वजा,
शिखर, 
छादन, 
रङ्गीन वस्त्र आदि वर्णन हैं ।

इनके वस्तु भेद, 
रङ्ग भेद, 
नाप दिशा आदि के विधान बताए गए हैं ।

 बड़े यज्ञों में ३२ हाथ (४८ फुट) 

अर्थात १६ = २४ फुट का चौकोर मण्डप बनाना चाहिये 

। मध्यम कोटि के यज्ञों में १४ (१८ फुट) हाथ 

अथवा १२ हाथ (१८ फुट) का पर्प्याप्त है । 

छोटे यज्ञों में १० हाथ (१५ फुट ) या ८ (१२ फुट) हाथ की लम्बाई चौडाई का पर्याप्त है । 

मण्डप की चबूतरी जमीन से एक हाथ या   ऊँची रहनी चाहिए ।

 बड़े मण्डपों की मजबूती के लिए १६ खंभे 

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 मंडप के एक हाथ बाहर चारों दिशाओं में ४ तोरण द्वार होते हैं, 

यह ७ हाथ (१० फुट ६ इंच) उँचे और ३.५ चौड़े होने चाहिए ।


तोरण द्वार के लिये 

1=पूर्व मे पीपल की या बरगद की लकडी 

2=दक्षिण मे गूलर की 

3=पश्चिम मे पीपल या पाकर

4=उत्तर मे पाकर या बरगद 

 इन तोरण द्वारों में से

 पूर्व द्वार पर शङ्क, =बरगद या पीपल

दक्षिण वाले पर चक्र, =गूलर 

पच्छिम में गदा =पीपल का पाकर का 

उत्तर मे पद्द्म= पाकर या बरगद 

यदि चारों न मिलें तो इनमें से किसी भी प्रकार की चारों दिशाओं में लगाई जा सकती है ।


 पूर्व के तोरण में लाल वस्त्र, 

दक्षिण के तोरण में काला वस्त्र, 

पच्छिम के तोरण में सफेद वस्त्र, 

उत्तर के तोरण में पीला वस्त्र लगाना चाहिए । 

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ध्वजा  =2हाथ या तीन हाथ चौडी और पांच हाथ लम्बी होना चाहिये ।

पताका =1हाथ चौड़ी 3,5,7,हाथ लम्बी हो 

महाध्वज=का बांस 10,16,21,या 23,का होबे

महाध्वज का नाप  3हाथ चौडा 5या 10हाथ लम्बा हो 

सभी दिशाओं में तिकोनी ध्वजाएँ लगानी चाहिये ।

2=पीली 

2=लाल

2=काली

2=हरी 

1=सफेद

1=नीली

 1=इन्द्र की पूर्व में पीली,  बाहन हाथी 

2=अग्नी की अग्निकोण में लाल, सफेद रंग का मेडा 

3=यम की दक्षिण में काली,बाहन लाल रँग का भेसा

 4= नैऋत्ययी नैऋत्य में नीली,  में सफेद,रंग का सिंह

5=बरुण की पश्चिम मे,बाहन हरे रंग की मछली 

 6=बायु की वायव्य में धूमिल, बाहन काले रंग का हिरन 

7=सोम की उत्तर में हरी,सुबर्ण के जैसा घोडा

 8=ईशान की ईशान में सफेद लगानी चाहिये ।लाल बैल 

 दो ध्वजाएँ ब्रह्मा और अनन्त की विशेष होती है,

 ब्रह्मा की सफेद या लाल ध्वजा ईशानकोण और पुर्व् के मध्य मे  में बाहन सफेद रंग  का हंस 

 और अनन्त की पीली सफेद या काली ध्वजा नैऋत कोण  और पश्चिम के मध्य में लगानी चाहिए । बाहन गरुण 

इन ध्वजाओं में सुविधानुसार वाहन और आयुध भी चित्रित किये जाते हैं । 

ध्वजा की ही तरह पताकाएं भी लगाई जाती है इन पताकाओं की दिशा और रङ्ग भी ध्वजाओं के समान ही हैं ।पताकाएं चौकोर होती है

पताका   

2=पीली

2=लाल

2=काली

1=हरी

2=सफेद

1=नीली

1=पूर्व की पताका मे आयुध बज्र होता है 

2=अग्नी कोण मे आयुध तलवार होता है 

3=दक्षिण मे आयुध दण्ड होता है 

4=नैऋत्यकोण की पताका मे आयुध खंग होता है 

5=पश्चिम दिशा मे आयुध पाश होता है 

6=वायव्यकोण की पताका मे आयुध अंकुश होता है 

7=उत्तर दिशा मे आयुध गदा होती है 

8=ईशान कोण की पताका मे आयुध त्रिशूल होता है

9=पूर्व और ईशान कोण के मध्य मे आयुध कमण्डलू 

10=पश्चिम और नैऋत्य मे आयुध चक्र होता है 

एक सबसे बड़ा महाध्वज सबसे उँचा होता है ।उसका बांस 10,16,21,या 23,हाथ का हो।उस पर घुगरू, चवर, घंटी हो 

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 मण्डप के भीतर चार दिशाओं में चार वेदी बनती हैं । 

ईशान में ग्रह वेदी, 

अग्निकोण में योगिनी वेदी, 

नैऋत्य में वस्तु वेदी 

और वायव्य में क्षेत्रपाल वेदी, 

प्रधान वेदी पूर्व दिशा में होनी चाहिए । 

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एक कुण्डी यज्ञ में मण्डप के बीच में ही कुण्ड होता है ।

 उसमें चौकोर या कमल जैसा पद्म कुण्ड बनाया जाता हैं । 

कामना विशेष से अन्य प्रकार के कुण्ड भी बनते हैं । 

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चार कुण्डीय

पूर्व मे चतुराश्त्र 

दक्षिण मे अर्ध चंद्र

पश्चिम मे ब्रत्त  

उत्तर मे पद्द्म 

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पंच कुण्डी यज्ञ में आचार्य कुण्ड बीच में, 

चतुरस्र पूर्व में, =योनि पूर्व मे 

अर्थचन्द्र दक्षिण में, =योनि दक्षिण मे 

वृत पच्छिम में =योनि पश्चिम मे 

और पद्म उत्तर में होता है । पश्चिम मे 

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नव कुण्डी यज्ञ में आचार्य कुण्ड मध्य में 

चतुररसा्र कुण्ड पूर्व में,  =योनि=दक्षिण मे 

योनि कुण्ड अग्नि कोण में,= इसमे योनि नही होती 

अर्धचन्द्र दक्षिण में,   =योनि =दक्षिण मे 

त्रिकोण नैऋत्य में वृत पच्छिम में,=योनि =पश्चिम मे

पश्चिम मे ब्रत्त कुंड =योनि =पश्चिम मे 

 षडस्र वायव्य में,=योनि पश्चिम मे 

 पद्म उत्तर में, =योनि =पश्चिम मे 

अष्ट कोण ईशान में होता है ।=योनि पश्चिम मे 

1 प्रत्येक कुण्ड में ३ मेखलाएं होती हैं । 

ऊपर की मेखला ४ अंगुल, 

बीच की ३ अंगुल, 

नीचे की २ अँगुल होनी चाहिए । 

ऊपर की मेखला पर सफेद रङ्ग

 मध्य की पर लाल रङ्ग

और नीचे की पर काला रङ्ग करना चाहिए । 

५० से कम आहुतियों का हवन करना हो तो कुण्ड बनाने की आवश्यकता नहीं । 

भूमि पर मेखलाएं उठाकर स्थाण्डिल बना लेना चाहिए ।

 ५० से ९९ तक आहुतियों के लिए २१ अंगुल का कुण्ड होना चाहिए । 

१०० से ९९९ तक के लिए २२.५अँगुल का, 

एक हजार आहुतियों के लिए २ हाथ=(१.५)फुट का, 

तथा एक लाख आहुतियों के लिए ४ हाथ (६ फुट)का कुण्ड बनाने का प्रमाण है । 

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यज्ञ-मण्डप में पच्छिम द्वार से साष्टाङ्ग नमस्कार करने के उपरान्त प्रवेश करना चाहिए ।

 हवन के पदार्थ चरु आदि पूर्व द्वार से ले जाने चाहिए ।

 दान की सामग्री दक्षिण द्वार से 

और पूजा प्रतिष्ठा की सामग्री उत्तर द्वार से ले जानी चाहिए ।

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मंडप के स्थम्भो पर बस्त्र  या कलर 

मण्डप के मध्य के चारो स्थम्भ 

1= ईशान मे लाल 

2=अग्निकोण मे सफेद 

3=नैऋत्य मे  काला 

4=वायव्य कौण मे पीला 

बाहर के स्थम्भो मे 

1=ईशान मे लाला बस्त्र 

2=ईशान पूर्व के स्थम्भ के मध्य मे सफेद 

3=पूर्व और अग्निकोण के स्थम्भ के मध्य मे काला 

4=अग्निकोण के स्थम्भ मे काला 

5=अग्निकोण और दक्षिण के मध्य के स्थम्भ मे सफेद 

6=दक्षिण और नैऋत्यकोण के मध्य के स्थम्भ मे हरा 

7=नैऋत्यकोण मे पीला 

8=नैऋत्यकोण और पश्चिम के मध्य के स्थम्भ मे सफेद 

9=पश्चिम और बायव्य कोण के मध्य के स्थम्भ मे सफेद 

10=वायब्य कोण मे पीला 

11=उत्तर और बायव्य कोण के मध्य मे पीला 

12=उत्तर और ईशान कोण के मध्य मे लाल 


Gurudev bhubneshwar 

पर्णकुटी गुना 

9893946810


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