वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी ०३/सितम्बर/२०१८ को
वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = ०६:०६ (सूर्योदय के बाद)
पारण के दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से पहले समाप्त हो गये
दही हाण्डी - ३rd, सितम्बर को
अष्टमी तिथि प्रारम्भ = २/सितम्बर/२०१८ को २०:४७ बजे
मतलव :शाम को /8:47 मिनिट पर प्रारम्भ
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अष्टमी तिथि समाप्त = ३/सितम्बर/२०१८ को १९:१९ बजे
मतलव:शाम को / 7:19 मिनिट पर समाप्त
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कुछ व्रत-पर्वों का निर्णय सूर्योदय कालीन तिथि के आधार पर और कुछ का रात्रि व्यापिनी तिथि के आधार पर किया जाता है।
यद्यपि उदया तिथि ही प्रधान होती है,
तथापि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का निर्णय रात्रिव्यापिनी अष्टमी के आधार पर किया जाता है।
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सप्तमीयुक्त अष्टमी को त्याग देना चाहिए और अष्टमी युक्त नवमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतोपवास करना चाहिये।
यहां भी और अन्यत्र भी साधारणतः इस व्रत के विषय में दो मत विद्यमान हैं।
स्मात्र्त लोग अर्द्ध रात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी के दिन भी व्रतोपवास करते हैं।
लेकिन वैष्णवों को सप्तमी का किंचित मात्र भी स्पर्श मान्य नहीं।
उनके यहां सप्तमी का स्पर्श होने पर द्वितीय दिवस ही व्रतोत्सव हेतु मान्य है। चाहे उस दिन अष्टमी क्षण मात्र के लिये ही क्यों न हो।
देश, काल और परिस्थिति में विषयान्तर्गत प्रामाणिकता की दृष्टि से सर्वधर्मशास्त्रों में ‘निर्णयसिंधु’ ही श्रेयस्कर है।
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Gurudev -bhubneshwar
Parnkuti guna
जन्माष्टमी पद्मपुराण-
उत्तराखंड श्रीकृष्णावतार की कथा में वर्णन मिलता है कि ‘‘दसवां महीना आने पर भादों मास की कृष्णा अष्टमी को आधी रात के समय श्री हरि का अवतार हुआ।’’
महाभारत -खिलभाग हरिवंश-
विष्णु पर्व - 4/17 के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए, उस समय अभिजित नामक मुहूत्र्त था, रोहिणी नक्षत्र का योग होने से अष्टमी की वह रात जयंती कहलाती थी और विजय नामक विशिष्ट मुहूत्र्त व्यतीत हो रहा था।’’
श्रीमद्भागवत-
10/3/1 के अनुसार भाद्रमास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और अर्द्ध रात्रि के समय भगवान् विष्णु माता देवकी के गर्भ से प्रकट हुए।
गर्ग संहिता गोलोकखंड-
11/22-24 के अनुसार ‘‘भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, रोहिणी नक्षत्र, हर्षण-योग, अष्टमी तिथि, आधी रात के समय, चंद्रोदय काल, वृषभ लग्न में माता देवकी के गर्भ से साक्षात् श्री हरि प्रकट हुए।’’
ब्रह्मवैवर्त पुराण-
श्रीकृष्ण जन्मखंड-7 के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग संपन्न हो गया था।
जब अर्ध चंद्रमा का उदय हुआ तब भगवान श्रीकृष्ण दिव्य रूप धारण करके माता देवकी के हृदय कमल के कोश से प्रकट हो गए।
ब्रह्मवैवर्त पुराण-
श्रीकृष्ण जन्मखंड-8 के अनुसार सप्तमी तिथि के दिन व्रती पुरुष को हविष्यान्न भोजन करके संयम पूर्वक रहना चाहिए।
सप्तमी की रात्रि व्यतीत होने पर अरुणोदय की बेला में उठकर व्रती पुरुष प्रातः कालिक कृत्य पूर्ण करने के अनंतर स्नानपूर्वक संकल्प करें।
Gurudev
Bhubneshwar
Parnkuti guna
9893946810
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