साल 2018 में पाँच ग्रहण घटित होंगे
जिनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण हैं।
इस साल होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण पूर्ण होंगे जिनकी दृश्यता भारत सहित विश्व के अन्य देशों में होगी।
वहीं तीनों सूर्य ग्रहण आंशिक होंगे जो भारत में नहीं दिखाई देंगे,
हालाँकि विश्व के अन्य देशों में इन्हें देखा जा सकेगा।
साल का पहला चंद्र ग्रहण 31 जनवरी 2018 में होगा
जिसका सूतक काल का समय प्रता 8:21मिनिट से प्रारंभ होगा
ग्रहण स्पर्श काल :शाम 5:21मिनिट पर होगा
ग्रहण का मध्य काल शाम 7:03 से 8:45 मिनिट पर मोक्ष
पर्वकाल अवधि :3घंटे 24 मिनिट होगा
पर्वकाल समय :शाम 5 :21मिनिट से रात्रि 8:45मिनिट तक
किन किन राशियों को हानिकारक
मेष
सिंह
कर्क
धनु
किन किन राशियों को अशुभ
बृषभ
कन्या
तुला
कुम्भ
किन किन राशियों को सामान्य
मिठुन
बृश्चिक
मकर
मीन
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जबकि दूसरा चंद्र ग्रहण 27-28 जुलाई 2018 में घटित होगा।
चंद्र ग्रहण 2018 भारत में दिखाई देने के कारण यहाँ पर ग्रहण का सूतक काल मान्य होगा।
वहीं 2018 में पहला सूर्य ग्रहण 16 फरवरी 2018 में होगा
और दूसरा 13 जुलाई 2018 को दिखाई देगा।
जबकि तीसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण 11 अगस्त 2018 में दृश्य होगा।
भारत में सूर्य ग्रहण के नहीं दिखाई देने के कारण यहाँ ग्रहण का सूतक काल शून्य रहेगा।
ग्रहण खगोलीय विज्ञान एवं ज्योतिश शास्त्र के लिए एक महत्वपूर्ण घटना होती है इसलिए ग्रहण पर वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय समाज अपनी दृष्टि जमाए रहता है।
इसका प्रभाव आम लोगों के जीवन पर भी पड़ता है। ग्रहण के दौरान कई कार्यों को वर्जित माना गया है
इसलिए ग्रहण के बारे में हमें विस्तार से जानना आवश्यक है।
2018 में सूर्य ग्रहण वर्ष 2018 में 3 सूर्य ग्रहण घटित होंगे,
हालांकि ये तीनों ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देंगे।
इसलिए भारत में इनका धार्मिक सूतक मान्य नहीं होगा।
:1. ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना,
सोना, केश विन्यास करना, रति क्रीडा करना, मंजन करना, वस्त्र नीचोड़्ना,
ताला खोलना, वर्जित किए गये हैं ।
2. ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है, लघुशंका करने से घर में दरिद्रता आती
है, मल त्यागने से पेट में कृमि रोग पकड़ता है, स्त्री प्रसंग करने से सूअर की
योनि मिलती है और मालिश या उबटन किया तो व्यक्ति कुष्ठ रोगी होता है।
क्या नही करना चाहिए
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला
मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास
करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और
दंतहीन होता है।
4. सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर
पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर = 3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एकप्रहर पूर्व खा सकते हैं ।
5. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए
6. 'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो
का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है ।
7. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
मंत्र सिद्धि करे
चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है।
श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी ले।
ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर लेता है।
देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है।
फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है
फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है।
अतः सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए।
बूढ़े, बालकक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।
ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते।
जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।
ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल(वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए।
स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।
ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।
गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।
भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना
और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगा जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।
ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती
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ग्रहणकाल के समय कई कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है जिसमें से एक है गर्भवती स्त्रियों द्वारा चन्द्र ग्रहण को देखना|
उन्होंने बताया है कि जिस वक्त चन्द्र ग्रहण पड़ रहा हो उस समय गर्भवती स्त्रियों को घर के बाहर नहीं निकलना चाहिए
क्योंकि ग्रहण के समय जो किरणें चन्द्रमा से निकलती है वह गर्भवती स्त्रियों और गर्भ में पल रहे शिशु के लिए बहुत अधिक खतरनाक साबित हो सकती हैं।
यह भी बताते हैं कि चन्द्र ग्रहण के समय वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय रहती है जो कि कमजोर लोगों पर बुरा प्रभाव डालती है।
गर्भावस्था के दौरान स्त्री का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है।
ऐसे में इन बुरे प्रभावों से बचने के लिए स्त्रियों का घर में ही रहना जरूरी है।
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सामान्यत: ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के समय किसी भी गर्भवती महिला को अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।
पुराने समय में इस बात का सख्ती से पालन कराया जाता था और ग्रहण के समय खासतौर पर महिलाओं को घर से बाहर निकलने से मना किया जाता था।
ग्रहण के समय नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं जो कि गर्भवती स्त्री को बहुत ही जल्द अपने प्रभाव में ले लेती हैं।
जिससे गर्भ में पल रहे शिशु पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
यहां नकारात्मक शक्ति से अभिप्राय है कि आसुरी प्रवृत्तियां।
ग्रहण के समय में बुरी शक्तियां अपने पूरे बल में होती हैं।
यह शक्तियां को लड़कियां से बहुत ही जल्द प्रभावित होती हैं।
जिससे वे उन्हें अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करती हैं।
इन शक्तियों के प्रभाव में आने के बाद गर्भवती स्त्री का मानसिक स्तर व्यवस्थित नहीं रह पाता और उनके पागल होने का खतरा बढ़ जाता है।
विज्ञान के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्र न दिखाई देने के कारण हमारे शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है।
हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी है जिसे चंद्रमा सीधे-सीधे प्रभावित करता है।
ज्योतिष में चंद्र को मन का देवता माना गया है। ग्रहण के समय चंद्र दिखाई नहीं ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। गर्भवती स्त्रियां उस समय में बेहद संवेदनशील और कोमल हो जाती हैं।
छोटी-छोटी बातों का भी उन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब चंद्र नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर के पानी में हलचल अधिक बढ़ जाती है।
जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है।
इन्हीं कारणों से ग्रहण काल में गर्भवती स्त्रियों को अकेले बाहर जाने के लिए मना किया जाता था।
चंद्रमा हमारे शरीर के जल को किस प्रकार प्रभावित करता है इस बात का प्रमाण है समुद्र का ज्वारभाटा।
पूर्णिमा और अमावस के दिन ही समुद्र में सबसे अधिक हलचल दिखाई देती है क्योंकि चंद्रमा पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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गर्भवती स्त्री को सूर्य – चन्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्योकि उसके
दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावनाबढ़ जाती है ।
इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा
दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें।
ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना कियाजाता है,
और किसी वस्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है ।
क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल
(जुड़) जाते हैं ।
1. ग्रहण के समय “ ॐ ह्रीं नमः” मंत्र का 10 माला जप करें इससे ये मंत्र्
सिध्द हो जाता है ।
फिर अगर किसी का स्वभाव बिगड़ा हुआ है, बात नहीं मान रहा है, इत्यादि ।
तो उसके लिए हम
संकल्प करके इस मंत्र् का उपयोग कर सकते हैं ।
2. ग्रहण के समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो
नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहण शुद्ध होने पर उस घृत को
पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त
कर लेता है।
1. ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना,
सोना, केश विन्यास करना, रति क्रीडा करना, मंजन करना, वस्त्र नीचोड़्ना,
ताला खोलना, वर्जित किए गये हैं ।
2. ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है, लघुशंका करने से घर में दरिद्रता आती
है, मल त्यागने से पेट में कृमि रोग पकड़ता है, स्त्री प्रसंग करने से सूअर की
योनि मिलती है और मालिश या उबटन किया तो व्यक्ति कुष्ठ रोगी होता है।
3. देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला
मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास
करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और
दंतहीन होता है।
4. सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर
पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर = 3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एक
प्रहर पूर्व खा सकते हैं ।
5. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए
6. 'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो
का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है ।
7. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
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1. ग्रहण लगने से पूर्व स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए ।
2. भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- चन्द्रग्रहण में किया गया
पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना
फलदायी होता है।
यदि गंगा जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस
करोड़ गुना फलदायी होता है।
3. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से
मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
4. ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राम्हण को दान करने का विधान है
5. ग्रहण के बाद पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है, और ताजा
भरकर पीया जाता है।
6. ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब
देखकर भोजन करना चाहिए।
7. ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो
देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।
8. ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरत मंदों को वस्त्र् दान
देने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
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