ज्योतिष समाधान

Monday, 28 August 2017

श्रीरामचरितमानस में प्राकृत (अवधी) में प्रयुक्त छन्द ११. सोरठा (सौराष्ट्र) यह मानस में प्राकृत में पहला छन्द है। यह मात्रिक छन्द है।

श्रीरामचरितमानस में प्राकृत (अवधी) में प्रयुक्त छन्द ११. सोरठा (सौराष्ट्र) यह मानस में प्राकृत में पहला छन्द है। यह मात्रिक छन्द है।

इसमें चार चरणों में ११-१३ ११-१३ मात्राएँ होती हैं। हर चरण के अन्त में यति होती है।

पहले और तीसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तुक में गुरु-लघु का क्रम रहता है।

११ मात्राएँ ६-४-१ और १३ मात्राएँ को ६-४-३ में विभाजित होती हैं, परन्तु इस विभाजन में यति या शब्द सीमा का कोई नियम नहीं है। हर चरण के अन्त पर शब्द सीमा होती है।

उदाहरणतः देखें बालकाण्ड के मङ्गलाचरण का आठवाँ पद्य –

जेहि सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन । करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥

दोहा में १३-११ १३-११ का क्रम रहता है और तुक दूसरे और चौथे चरण में बनता है – बाकी सब सोरठे जैसा ही है।

वैसे यहाँ भी दूसरे और चौथे चरण में तुक है लेकिन यह दोहा नहीं है क्योंकि बदन और सदन में तुक में गुरु-लघु का क्रम नहीं है,

और दूसरे पंक्ति में १३ मात्राओं के बाद यति (शब्द का अंत) नहीं है, “करउ अनुग्रह सोइ” में “बुद्धि” जोड़ने से ११ से सीधे १४ मात्राएँ हो जायेंगी और क्रम १४-१० हो जायेगा।

मानस में ८७ सोरठे हैं

– बालकाण्ड में ३६,
अयोध्याकाण्ड में १३ (हर पच्चीसवे चौपाई समूह के बाद – २.२५, २.५०, २.७५, २.१००, २.१२६, २.१५१,इत्यादि),

अरण्यकाण्ड में ८,

किष्किन्धाकाण्ड में ३,
सुन्दरकाण्ड में १,
युद्धकाण्ड में ९
और उत्तरकाण्ड में १७।

१२. चौपाई इस मात्रिक छन्द के दो चरण होते हैं, प्रत्येक में १६-१६ मात्राएँ होती हैं।

हर चरण में ८ मात्राओं के बाद यति होती है। केवल एक चरण हों तो उसे अर्धाली कहते हैं। यह मानस का प्रमुख छन्द है।

प्रथम और द्वितीय चरण के अन्त में तुक होता है। उदाहरण

(५.४०.६)- जहाँ सुमति तहँ संपति नाना ।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ॥

हनुमान चालीसा में भी यही छंद है,

और वहाँ ४० चौपाइयाँ हैं।

मानस में कुल ९३८८ चौपाइयाँ हैं,

जिनकी उपमा इस अर्धाली (१.३७.४) में गोस्वामी जी ने मानससरोवर के घने कमल के पत्तों से दी है – पुरइनि सघन चारु चौपाई ।

१३. दोहा (द्विपाद) यह भी एक मात्रिक छंद है। इसमें चार चरणों में १३-११ १३-११ मात्राएं होती हैं। हर चरण के अन्त में यति होती है। दूसरे और चौथे चरण के अन्त में तुक होता है, और तुक में गुरु-लघु का क्रम रहता है। १३ मात्राएँ ६-४-३ और ११ मात्राएँ को ६-४-१ में विभाजित होती हैं, परन्तु इस विभाजन में यति या शब्द सीमा का कोई नियम नहीं है। हर चरण के अन्त पर शब्द सीमा होती है।

उदाहरण

(१.१) – जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान । कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान ॥

श्रीरामचरितमानस में ११७२ दोहे हैं

– जिनमें बालकाण्ड में ३५९,
अयोध्याकाण्ड में ३१४,
अरण्यकाण्ड में ५१,
किष्किन्धाकाण्ड में ३१,
सुन्दरकाण्ड में ६२,
युद्धकाण्ड में १४८
और उत्तरकाण्ड में २०७ दोहे सम्मिलित हैं।

१४. हरिगीतिका यदि मानस कि चौपाइयाँ के पत्ते हैं और दोहा सोरठा आदि अन्य छन्द बहुरंगी कमल हैं, तो निश्चित रूप से हरिगीतिका उत्तुङ्ग शिखरों पे दीखने वाला “ब्रह्मकमल” है।

यह छन्द गाने में अत्यन्त मनोहर है, और इसमें गोस्वामीजी के भाव ऐसे निखर के सामने आते हैं कि इस छन्द की शोभा सुनते ही बनती है। इसमें चार चरण होते हैं।

प्रत्येक चरण में २८ मात्राएँ होती हैं, जोकि ७-७-७-७ (२-२-१-२, २-२-१-२, २-२-१-२, २-२-१-२) के क्रम से होती हैं।

प्रत्येक सातवीं मात्रा के बाद यति होती है। पहले और दूसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में भी तुक होता है।
तुक में क्रम लघु-गुरु होता है।

मानस में हरिगीतिका चौपाइयों और दोहा/सोरठा के बीच आता है।

और इसके प्रारम्भ के २-३ शब्द प्रायः इसके पहले की चौपाई के अंत के २-३ शब्द अथवा उन शब्दों के पर्याय होते है।

ध्यान देने योग्य है कि शिव विवाह में ११ स्थानों पर (१ सोरठा

और १० दोहों के पहले) और राम विवाह में १२ स्थानों पर (१२ दोहों के पहले) हरिगीतिका छन्द है

– स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती के अनुसार इसका कारण है कि रुद्र (शिव) ११ हैं और आदित्य (विष्णु) १२ हैं।

उदाहरण

(५.३५.११) – चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल पावक खरभरे ।
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे । कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं । जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं ॥

मानस में केवल पाँच छन्द हैं जो प्रत्येक काण्ड में हैं –

चौपाई,
दोहा,
हरिगीतिका,
सोरठा
और शार्दूलविक्रीडित।
हरिगीतिकाओं की सङ्ख्या १३९ है –

बालकाण्ड में ४७,
अयोध्याकाण्ड में १३,
अरण्यकाण्ड में १४,
किष्किन्धाकाण्ड में ३,
सुन्दरकाण्ड में ६,
युद्धकाण्ड में ३८
और उत्तरकाण्ड में १८।
१५. चौपैया चार चरण, हर चरण में ३० मात्राएँ (१०-८-१२) , १० और १८ मात्राओं के बाद यति, हर चरण के अंत में गुरु। पहले और दूसरे चरणों के अन्त में तुक, तीसरे और चौथे चरणों के अंत में तुक। और साथ ही हर चरण के अन्दर १० और १८ मात्राओं के अन्त पे भी तुक।
ध्यान रहे – त्रिभङ्गी में १०-८-१४ मात्राओं का क्रम है, और यहाँ १०-८-१२। मानसजी में बालकाण्ड में १० चौपैया छन्दों का प्रयोग है – १.१८३.९, १.१८४.९, १.१८६.१ से १.१८६.४, १.१९२.१ से १.१९२.४। इनमें देवताओं द्वारा श्रीरामचन्द्र की स्तुति (१.१८६.१ से १.१८६.४,) और श्रीराम का आविर्भाव (१.१९२.१ से १.१९२.४) तो मानस प्रेमियों को अत्यन्त प्रिय हैं।

उदाहरण –

१) देवताओं की स्तुति

(१.१८६.१) जय जय सुरनायक (१०) + जन सुखदायक (८) + प्रनतपाल भगवंता (१२) = ३० । गो द्विज हितकारी (१०) + जय असुरारी (८) + सिंधुसुता प्रिय कंता (१२) = ३० । पालन सुर धरनी (१०) अद्भुत करनी (८) मरम न जानई कोई (१२) = ३० । जो सहज कृपाला (१०) + दीनदयाला (८) करउ + अनुग्रह सोई (१२) = ३० ॥ २) श्रीराम जी का आविर्भाव (१.१९२.१) भए प्रगट कृपाला (१०) + दीनदयाला (८) + कौसल्या हितकारी (१२) = ३० । हरषित महतारी (१०) + मुनि मन हारी (८) + अद्भुत रूप निहारी (१२) = ३० । लोचन अभिरामा (१०) + तनु घनश्यामा (8) + निज आयुध भुज चारी (१२) = ३० । भूषन बनमाला (१०) + नयन बिशाला (८) शोभासिन्धु खरारी (१२) = ३० ॥ १६. त्रिभङ्गी त्रिभङ्गी के एक चरण में ३२ मात्राएँ होती हैं। इसमें एक चरण के अन्दर भी तुक होता है और चरणों के बीच मैं भी। प्रथम और द्वितीय चरणों में, और तृतीय और चतुर्थ चरणों में तुक होता है – और हर चरण का अन्तिम वर्ण गुरु होता है। ३२ मात्राएँ १०-८-१४ में विभाजित हैं, १० और ८ के बीच यति है, और ८ और १४ के बीच यति है। साथ में १० मात्राओं के अन्तिम वर्ण और ८ मात्राओं के अन्तिम वर्ण में भी तुक बनता है। ऐसे त्रिभंगी को १०-८-८-६ में भी बाँटते हैं, पर मानस में सर्वत्र अन्तिम ८ और ६ के बीच यति न होने के कारण १०-८-१४ का क्रम दिया गया है।

मानस में बालकाण्ड में अहल्योद्धार के प्रकरण में चार (४) त्रिभङ्गी छन्द प्रयुक्त हुए हैं –

१.२११.१ से १.२११.४। गुरुवचन के अनुसार इसका कारण है कि अपने चरण से अहल्या माता को छूकर प्रभु श्रीराम ने अहल्या के पाप, ताप और शाप को भङ्ग (समाप्त) किया, अतः गोस्वामी जी की वाणी में सरस्वतीजी ने त्रिभङ्गी छन्द को प्रकट किया।

उदाहरण

(१.२११.१) – परसत पद पावन (१०) + शोक नसावन (८) + प्रगट भई तपपुंज सही (१४) = ३२ । देखत रघुनायक (१०) + जन सुखदायक (८) + सनमुख होइ कर जोरि रही (१४) = ३२ । अति प्रेम अधीरा (१०) + पुलक शरीरा (८) + मुख नहिं आवइ बचन कही (१४) = ३२ । अतिशय बड़भागी (१०) + चरनन लागी (८) + जुगल नयन जलधार बही (१४) = ३२ ॥ १७. तोमर तोमर एक मात्रिक छन्द है जिसके प्रत्येक चरण में १२ मात्राएँ होती हैं।

पहले और दुसरे चरण के अन्त में तुक होता है, और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में भी तुक होता है। मानस में तीन स्थानों पर आठ-आठ (कुल २४) तोमर छन्दों का प्रयोग है।

ये तीन स्थान हैं – १) अरण्यकाण्ड में खर, दूषण, त्रिशिरा और १४००० राक्षसों की सेना के साथ प्रभु श्रीराम का युद्ध (३.२०.१ से ३.२०.८) तब चले बान कराल । फुंकरत जनु बहु ब्याल । कोपेउ समर श्रीराम । चले बिशिख निशित निकाम ॥

२) युद्धकाण्ड में रावण का मायायुद्ध (६.१०१.१ से ६.१०१.८) जब कीन्ह तेहिं पाषंड । भए प्रगट जंतु प्रचंड । बेताल भूत पिशाच । कर धरें धनु नाराच ॥

३) युद्धकाण्ड में वेदवतीजी के अग्निप्रवेश और सीताजी के अग्नि से पुनरागमन के पश्चात् इन्द्रदेव द्वारा राघवजी की स्तुति (६.११३.१ से ६.११३.८) जय राम शोभा धाम । दायक प्रनत बिश्राम । धृत तूण बर शर चाप । भुजदंड प्रबल प्रताप ॥ १८. तोटक तोटक में चार चरण होते हैं। हर चरण में १२-१२ वर्ण होते हैं और सारे छंद में केवल “सगण” (लघु-लघु-गुरु अथवा ॥ऽ) का क्रम रहता है (“वद तोटकमब्धिसकारयुतम्” )। प्रत्येक चरण में ४ सगण होते हैं। मानस जी में ३१ तोटक छन्द हैं जो कि इन स्थानों पर हैं –

१. युद्धकाण्ड में रावण वध के बाद ब्रह्माजी कृत राघवस्तुति में ग्यारह छन्द (६.१११.१ से ६.१११.११) – जय राम सदा सुखधाम हरे । रघुनायक सायक चाप धरे । भव बारन दारन सिंह प्रभो । गुन सागर नागर नाथ बिभो ॥

२. उत्तरकाण्ड में वेदों द्वारा की गयी स्तुति में दस छन्द (७.१४.१ से ७.१४.१०) जय राम रमा रमणं शमनम् । भवताप भयाकुल पाहि जनम् । अवधेश सुरेश रमेश बिभो । शरणागत माँगत पाहि प्रभो ॥

३. उत्तरकाण्ड में काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्म की कथा में विकराल कलियुग वर्णन के प्रकरण में दस छन्द (७.१०१.१ से ७.१०१.५, और ७.१०२.१ से ७.१०२.५) – बहु दाम सँवारहिं धाम जती । विषया हरी लीन्ह गई बिरती । तपसी धनवंत दरिद्र गृही । कलि कौतुक तात न जात कही ॥

No comments: