Friday, 21 July 2017

गर्भवती स्त्री को ग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्योंकि उसके दुष्घ्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है । गर्भपात की संभावना बढ़ती है ।

चन्द्र ग्रहण अधिकतर पूर्णिमा तिथि को ही होता है। सूर्य व चन्द्रमा के बीच पृथ्वी के आ जाने से पृथ्वी की छाया से चन्द्रमा का पूरा या आंशिक भाग ढक जाता है , और पृथ्वी सूर्य की किरणों के चांद तक पहुंचने में अवरोध लगा देती है। तब चन्द्र ग्रहण होता है। चन्द्र ग्रहण दो प्रकार का नजर आता है। पूरा चन्द्रमा ढक जाने पर सर्वग्रास चन्द्रग्रहण तथा आंशिक रूप से ढक जाने पर खण्डग्रास चन्द्रग्रहण लगता है। ज्योतिषियों के अनुसार चन्द्र ग्रहण का प्रभाव 108 दिनों तक रहता है अत: जिन राशियों पर इसका प्रभाव हो उन्हें विशेष रूप से चन्द्र ग्रहण के समय जप और दान करना चाहिए । ग्रहण समाप्त होने के बाद पानी में गंगा जल डालकर स्नान करना चाहिए । इस बार चन्द्र ग्रहण 16 सितम्बर एवं 17 सितम्बर को दिखाई पड़ेगा। वर्ष 2016 में यह दूसरा चन्द्र ग्रहण होगा। यह ग्रहण एश‍िया, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अफ्रीका में दिखाई देगा। आंश‍िक रूप से यूरोप, दक्ष‍िण अमेरिका, अटलांटिक और अंटार्कटिका में दिखेगा। 16 सितंबर को भारतीय समयानुसार ग्रहण का समय- 22:24 बजे शुरू होगा और रात्रि 00:24 बजे ग्रहण चरम पर होगा तथा रात्रि 02: बजकर 23 मिनट पर चंद्र ग्रहण समाप्त हो जाएगा । वैसे तो ये चंद्रग्रहण भारत में नहीं दिखाई देंगे परन्तु इनका जो प्रभाव होगा वह भारतीय महासागर तक होगा । 16 सितम्बर को होने वाला चंद्र ग्रहण सभी राशियों में काफी उथल-पुथल लाने वाला है । शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के समय किये जाने वाले जाप, दान और स्नान का लाखो गुना फल मिलता है और कुंडली के दोष भी कटते है । हमारे धर्म और ज्योतिष के अनुसार ग्रहण का प्रभाव शुभ नहीं माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पूर्णिमा के दिन समुद्र ज्वार आता ही है। समुद्री हलचल होती ही है जिसके परिणाम स्वरूप प्राकृतिक आपदाएँ आने की प्रबल संभावनाएँ भी होती हैं। बहुत से मनुष्यों में भी बेचैनी, घबराहट , चिड़चिड़ाहट बड़ जाती है लोग जल्दी क्रोधित हो जाते है । काल के दौरान व्यक्तियों को यथा संभव घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए और न ही ग्रहण के दर्शन करने चाहिए। गर्भवती महिलाओं के तो ग्रहण का दर्शन बिलकुल ही त्याज्य है। चन्द्र ग्रहण को ज्योतिष के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्र देव की पूजा करने का विधान है। मत्स्य पुराण में कहा गया है कि ग्रहण काल के दौरान सभी व्यक्तियों को श्वेत पुष्पों और चन्दन आदि से भगवान चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। चंद्रमा के शुभ प्रभाव प्राप्त करने हेतु चंद्रमा के वैदिक मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जप करना चाहिए।. —–”””ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः “””या “””ऊँ सों सोमाय नमः “” ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, तप, पूजा पाठ, मन्त्र, तीर्थ स्नान, ध्यान, हवनादि शुभ कार्यो का करना बहुत लाभकारी रहता है. धर्म सिन्धु के अनुसार, ग्रहण मोक्ष के उपरान्त पूजा पाठ, हवन, स्नान, छाया-दान, स्वर्ण-दान, तुला-दान, गाय-दान, मन्त्र जाप आदि श्रेयस्कर होते हैं। ग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। ग्रहण काल के समय अर्जित किया गया पुण्य अक्षय होता है । धार्मिक लोग इस समय का बहुत ही बेताबी से इंतज़ार करते है और इसका निश्चित ही लाभ उठाते है । इस समय में किया गया दान, जप, ध्यान का फल पूरे वर्ष में किये गए पुण्य से बहुत ही ज्यादा होता है । भगवान वेदव्यास जी ने कहा है कि - सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया जप , तप, ध्यान, दान आदि एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। और यदि यह गंगा नदी के किनारे किया जाय तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है। ग्रहण मोक्ष होने पर सोलह प्रकार के दान, जैसे अन्न, जल, वस्त्र, फल, दूध, मीठा, स्वर्ण, चंद्रमा से संबंधित सफेद वस्तुएं जैसे मोती, चांदी, सफेद कपड़ा, चावल, मिश्री, शंख, कपूर, श्वेत चंदन, सफेद फूल, पलाश की लकड़ी, दही, चावल, घी, चीनी आदि का दान जो भी संभव हो सभी मनुष्यों को अवश्य ही करना चाहिए। लेकिन जिन व्यक्ति का चन्द्रमा उच्च का हो उन्हें सफ़ेद वस्तुओं का दान बिलकुल भी नहीं करना चाहिए । वह अन्न, वस्त्र, फल, पीली लाल मिठाई आदि का दान कर सकते है । हिंदू धर्म के मतानुसार चंद्र ग्रहण का प्रभाव शुभ नहीं माना जाता। ग्रहण के अशुभ प्रभावों से निजात पाने के लिए ग्रहण के दिन गरीबों को अवश्य ही दान दें, भोजन कराएं, गायत्री मंत्र का भी ज्यादा से ज्यादा जाप करें। अपने ईष्‍ट देव की आराधना करें और ग्रहण के समय उपवास रखें। ग्रहण के उपरांत स्‍नान कर ताजे भोजन का ही सेवन करें। सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द बिम्ब को देख कर ही भोजन करना चाहिये । (1 प्रहर = 3 घंटे)। चंद्रग्रहण में 9 घंटे पहले सूतक लग जाता है । सूतक काल में जहाँ देव दर्शन वर्जित माने गये हैं वहीं मन्दिरों के पट भी बन्द कर दिये जाते हैं । इस दिन जलाशयों, नदियों व मन्दिरों में राहू, केतु व सुर्य के मंत्र का जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है और ग्रहों का दुष्प्रभाव भी खत्म हो जाता है । हमारे ऋषि मुनियों ने ग्रहण के समय भोजन करने के लिये मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय वातावरण में घातक किटाणु बहुलता से फैल जाते हैं जो खाद्य वस्तु, जल आदि में एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिये भोजन / जल के पात्रों में क़ुश अथवा तुलसी डालने को कहा है, ताकि सब किटाणु उनमें एकत्रित हो जायें और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। जीव विज्ञान के प्रोफेसर टारिंस्टन ने भी पर्याप्त अनुसन्धान करके सिद्ध किया है कि ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुँचा सकता है । देवी भागवत में कहा गया है कि ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में दुःख भोगता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर काना, दंतहीन और अनेक रोगो से पीड़ित होता है। ग्रहण के बाद नया भोजन बनाने और ताजा पानी भरकर पीना ही श्रेयकर माना जाता है|जबकि पके हुए अन्न को पूरी तरह से त्यागकर गाय, कुत्ते को डाल देना चाहिए । ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिये बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अन्दर ऊष्मा का प्रवाह बढे, भीतर बाहर के जो भी किटाणु हो वह नष्ट हो जायें, बह जायें। ग्रहण की अवधि में सोना, तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र का त्याग करना, बालों में कँघी करना, रति क्रीडा करना, मंजन करना,शरीर पर उबटन लगाना सर्वथा वर्जित माने गये हैं । मान्यता है कि ग्रहण के समय सोने,भोजन करने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, सम्भोग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी हो जाता है। इसीलिए ग्रहण के समय से पहले भी ऐसा कुछ भी नहीं खाना चाहिए जिससे मल मूत्र के त्याग हेतु लैट्रिन, बाथरूम में जाना पड़े । ग्रहण के समय धोखा, ठगी ,क्रोध, हिंसा भी कतई भी नहीं करनी चाहिए| ग्रहण के समय किसी से धोखा, ठगी करने से सर्प की योनि मिलती है और क्रोध करने, हिंसा करने या किसी भी जीव-जन्तु की हत्या करने से चिर काल तक नारकीय योनी में भटकना पड़ता है । ग्रहण वाले दिन किसी भी व्यक्ति को किसी भी दशा में माँस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, बहुत से लोग ग्रहण से पहले या बाद में उक्त का सेवन करते है और यह तर्क देते है कि उन्होंने ग्रहण के समय नहीं लिया है लेकिन यह बिलकुल गलत है । ग्रहण वाले दिन माँस मदिरा का सेवन करने वाला घोर नरक का पापी होता है इसका पाप ना केवल उसे वरन उसके वंश को भी भोगना पड़ता है । ऐसे व्यक्ति के परिवार में असाध्य रोग अपना घर बना लेते है। ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए। ग्रहण के अवसर पर मनुष्यों को पृथ्वी को भी नहीं खोदना चाहिए । इस समय कोइ भी शुभ और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये । ग्रहण में घर में खूब सफाई रखे, चूँकि ग्रहण के दौरान झाड़ू नहीं लगती, अतः पहले से ही पूरे घर में साफ़-सफाई कर लें ग्रहण के समय गायों को हरी घास/ साग , पक्षियों को अन्न, चींटियों को भुना हुआ आटा, जरूरत मंदों को दान देने से अनेकों अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। गर्भवती स्त्री को ग्रहण के समय विशेष ध्यान रखना चाहिए । गर्भवती स्त्री को ग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्योंकि उसके दुष्घ्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है । गर्भपात की संभावना बढ़ती है । इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें । ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने, वस्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है । क्घ्योंकि माना जाता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं। <

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