Saturday, 15 July 2017

काराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।1।।

प्रातःकाल उठतेे ही अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़े तत्पश्चात अपने हाथों का दर्शन करते हुए, निम्न श्लोक को दोहरायें- लक्ष्मी-सरस्वती-भगवान नारायण प्रार्थना मन्त्र- काराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।1।। हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती तथा हाथ के मूल भाग में भगवान नारायण निवास करते हैं। अतः प्रातःकाल अपने हाथों का दर्शन करते हुए अपने दिन को शुभ बनायें। बिस्तर छोड़ने के बाद धरती पर पैर रखने से पहले निम्न श्लोक को दोहराये- मातृभूमि प्रार्थना मन्त्र- समुन्द्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले। विष्णुपत्नि!नमस्तुभ्यंपादस्पर्शं क्षमस्व मे।।2।। हे! मातृभूमि! देवता स्वयं विष्णु (पतिरूप में) आपकी रक्षा करते हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूं। हे सागर रूपी परिधानों (वस्त्रों) और पर्वत रूपी वक्षस्थल से शोभायमान धरती माता, मैं अपने चरणों से आपका स्पर्श कर रहा हूं, इस के लिए मुझे क्षमा कीजिए। नवग्रह शांति प्रार्थना मंत्र- ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवेः कुर्वन्तु सर्वे मम सु प्रभातम्।।3।। ब्रह्मा, मुरारि (विष्णु) और त्रिपुर-नाशक शिव (अर्थात तीनों देवता) तथा सूर्य, चन्द्रमा, भूमिपुत्र (मंगल), बुध, बृहस्पति, शुक्र्र, शनि, राहु और केतु ये नवग्रह, सभी मेरे प्रभात को शुभ एवं मंगलमय करें। सप्त ऋषि-सप्त रसातल-सप्त स्वर प्रार्थना मन्त्र- सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः सनातनोऽप्यासुरिपिङगलौ च। सप्त स्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।4।। (ब्रह्मा के मानसपुत्र बाल ऋषि) सनतकुमार, सनक, सनन्दन और सनातन तथा (सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल मुनि के शिष्य) आसुरि एवं छन्दों का ज्ञान कराने वाले मुनि पिंगल मेरे इस प्रभात को मंगलमय करें। साथ ही (नाद-ब्रह्म के विवर्तरूप षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद) ये सातों स्वर और (हमारी पृथ्वी से नीचे स्थित) सातों रसातल (अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल, और पाताल) मेरे लिए सुप्रभात करें। सप्त समुद्र-सप्त पर्वत-सप्त ऋषि-सप्त द्वीप-सप्त वन-सप्त भूवन प्रार्थना मन्त्र- सप्तार्णवा सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त। भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।5।। सप्त समुद्र (अर्थात भूमण्डल के लवणाब्धि, इक्षुसागर, सुरार्णव, आज्यसागर, दधिसमुद्र, क्षीरसागर और स्वादुजल रूपी सातों सलिल-तत्व) सप्त पर्वत (महेन्द्र, मलय, सह्याद्रि, शुक्तिमान्, ऋक्षवान, विन्ध्य और पारियात्र), सप्त ऋषि (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र), सातों द्वीप (जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौच, शाक, और पुष्कर), सातों वन (दण्डकारण्य, खण्डकारण्य, चम्पकारण्य, वेदारण्य, नैमिषारण्य, ब्रह्मारण्य और धर्मारण्य), भूलोक आदि सातों भूवन (भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, और सत्य) सभी मेरे प्रभात को मंगलमय करें। पंच-तत्व प्रार्थना मन्त्र- पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः स्पर्शी च वायुज्र्वलनं च तेजः। नभः सशब्दं महता सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।6।। अपने गुणरूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस से युक्त जल, स्पर्श से युक्त वायु, ज्वलनशील तेज, तथा शब्द रूपी गुण से युक्त आकाश महत् तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें अर्थात पांचों बुद्धि-तत्व कल्याण हों। प्रातः स्मरणमेतद्यो विदित्वादरतः पठेत्। स सम्यक्धर्मनिष्ठः स्यात् अखण्डं भारतं स्मरेत्।। 7।। इन श्लोको का प्रातः स्मरण भली प्रकार से ज्ञान करके आदरपूर्वक पढ़ना चाहिए। ठीक-ठीक धर्म में निष्ठा रखकर अखण्ड भारत का स्मरण करना चाहिए। (चित्र गूगल-इमेज से साभार!)

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