Saturday, 10 June 2017

ऋतुओं के अनुसार समिधा के लिए इन वृक्षों की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध होती है । वसन्त-शमी ग्रीष्म-पीपल वर्षा-ढाक, बिल्व शरद-पाकर या आम हेमन्त-खैर शिशिर-गूलर, बड़

कुछ अन्य समिधाओं का भी वाशिष्ठी हवन पद्धति में वर्णन है ।

उसमें ग्रहों तथा देवताओं के हिसाब से भी कुछ समिधाएँ बताई गई हैं ।

तथा विभिन्न वृक्षों की समिधाओं के फल भी अलग-अलग कहे गये हैं ।

यथा-

नोः पालाशीनस्तथा खादिरी भूमिपुत्रस्य त्वपामार्गी बुधस्य च॥

गुरौरश्वत्थजा प्रोक्त शक्रस्यौदुम्बरी मता । शमीनां तु शनेः प्रोक्त राहर्दूर्वामयी तथा॥

केतोर्दभमयी प्रोक्ताऽन्येषां पालाशवृक्षजा॥१॥

आर्की नाशयते व्याधिं पालाशी सर्वकामदा । खादिरी त्वर्थलाभायापामार्गी चेष्टादर्शिनी ।

प्रजालाभाय चाश्वत्थी स्वर्गायौदुम्बरी भवेत । शमी शमयते पापं दूर्वा दीर्घायुरेव च ।

कुशाः सर्वार्थकामानां परमं रक्षणं विदुः । यथा बाण हारणां कवचं वारकं भवेत ।

तद्वद्दैवोपघातानां शान्तिर्भवति वारिका॥ यथा समुत्थितं यन्त्रं यन्त्रेण प्रतिहन्यते ।

तथा समुत्थितं घोरं शीघ्रं शान्त्या प्रशाम्यति॥३॥

अब समित (समिधा) का विचार कहते हैं,

सूर्य की समिधा मदार की,
चन्द्रमा की पलाश की,
मङ्गल की खैर की,
बुध की चिड़चिडा की,
बृहस्पति की पीपल की,
शुक्र की गूलर की,
शनि की शमी की,
राहु दूर्वा की,
और केतु की कुशा की समिधा कही गई है ।

इनके अतिरिक्त देवताओं के लिए पलाश वृक्ष की समिधा जाननी चाहिए ।

मदार की समिक्षा रोग को नाश करती है,

पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली,

पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली,

गूलर की स्वर्ग देने वाली,

शमी की पाप नाश करने वाली,

दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और

कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है ।

जिस प्रकार बाण के प्रहारों को रोकने वाला कवच होता है, उसी प्रकार दैवोपघातों को रोकने वाली शान्ति होती है ।

जिस प्रकार उठे हुए अस्त्र को अस्त्र से काटा जाता है, उसी प्रकार (नवग्रह) शान्ति से घोर संकट शान्त हो जाते हैं

ऋतुओं के अनुसार समिधा के लिए इन वृक्षों की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध होती है ।
वसन्त-शमी
ग्रीष्म-पीपल
वर्षा-ढाक, बिल्व
शरद-पाकर या आम
हेमन्त-खैर
शिशिर-गूलर, बड़

यह लकड़ियाँ सड़ी घुनी, गन्दे स्थानों पर पड़ी हुई, कीडे़-मकोड़ों से भरी हुई न हों, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए

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