Monday, 26 June 2017

काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च |अल्पहारी गृह्त्यागी विद्यार्थी पंचलक्षण्म् ।| ( विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं : कौवे जैसी दृष्टि , बकुले जैसा ध्यान , कुत्ते जैसी निद्रा , अल्पहारी और गृहत्यागी । )

स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते ।

राजा अपने देश में पूजा जाता है , विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है

काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च |अल्पहारी गृह्त्यागी विद्यार्थी पंचलक्षण्म् ।|

विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं :

कौवे जैसी दृष्टि ,
बकुले जैसा ध्यान ,
कुत्ते जैसी निद्रा ,
अल्पहारी और गृहत्यागी ।

अनभ्यासेन विषम विद्या ।

बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है

सुखार्थी वा त्यजेत विद्या , विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम ।सुखार्थिनः कुतो विद्या , विद्यार्थिनः कुतो सुखम ॥

स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते ।
राजा अपने देश में पूजा जाता है , विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है

काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च |
अल्पहारी गृह्त्यागी विद्यार्थी पंचलक्षण्म् ।|

विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं :

1कौवे जैसी दृष्टि ,
2बकुले जैसा ध्यान ,
3कुत्ते जैसी निद्रा ,
4अल्पहारी और
5गृहत्यागी ।

अनभ्यासेन विषम विद्या ।

बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है

सुखार्थी वा त्यजेत विद्या , विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम ।सुखार्थिनः कुतो विद्या , विद्यार्थिनः कुतो सुखम ॥

विद्यार्थी’ के गुण –
विद्यार्थी का पहला और सबसे आवश्यक गुण है

1– जिज्ञासा |

जिसे कुछ जानने की इच्छा ही न हो, उसे कुछ भी पढ़ाना व्यर्थ होता है | जिज्ञासा-शून्य छात्र उस औंधे घड़े के समान होता है जो बरसते जल में भी खाली रहता है |

2 लगन और परिश्रम –

विद्यार्थी का दूसरा महत्वपूरण गुण है – परिश्रमी होना | परिश्रम के बल पर मंध्बुधि छात्र भी अच्छे-अच्छे बुद्धिमान छात्रों को पछाड़ देते हैं | इसलिए छात्र को परिश्रमी होना अवश्य होना चाहिए | जो परिश्रम की वजाय सुख-सुविधा, आराम और विलास में रूचि लेता है, वह दुर्भगा कभी सफल नहीं हो सकता |

3 सादा जीवन, उच्च विचार –

विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि वह आधुनिक फैशनपरस्ती, फ़िल्मी दुनिया या अन्य रंगीन आकर्षणों से बचे | विद्यार्थी को इसे मित्रों के साथ संगति करनी चाहिए, जो उसी के समान शिक्षा का उच्च लक्ष्य लेकर चले हों |

4 श्रद्धावान एवं बिनयी –

संस्कृत की एक शुक्ति का अर्थ है – श्रद्धावान को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है | जिस छात्र के चित में अपने ज्ञानी होने का घमंड भरा रहता है, वह कभी गुरुओं की बात नहीं सुनता | जो छात्र अपने अध्यापकों तथा अपने से बुद्धिमान छात्रों का सम्मान नहीं करता, वह कभी फल-फूल नहीं सकता |

5 अनुशासनप्रिय –

छात्र के लिए, अनुशासनप्रिय होना आवश्यक है | अनुशासन के बल पर ही छात्र अपने व्यस्त समय का सही सदुपयोग कर सकता है | मनचाही गति से चलने वाले छात्र अपना समय इधर-उधर व्यर्थ करते हैं, जबकि अनुशासित छात्र समय पर पड़ने के साथ-साथ हँस-खेल भी लेते हैं |

6 स्वस्थ तथा बहुमुखी प्रतिभावान –

आदर्श छात्र पढाई के साथ-साथ खेल-व्ययाम और अन्य गतिविधियों में भी बराबर रूचि लेता है | कहलों से उसका शरीर स्वस्थ बना रहता है | अन्य गतिविधियों-भाषण, नृत्य, संगीत, कविता-पाठ, एन.सी.सी. आदि में भाग लेने से उसका जीवन विकसित होता है |

7 उच्च लक्ष्य –

आदर्श छात्र वाही है जो अपनी विद्या-बुद्धि का उपयोग अपने तथा अपने समाज के विकास के लिए करना चाहता हो | सुभाष चंद्र बोस कहा करते थे—‘’विदेयार्थियों का जीवन-लक्ष्य न केवल परीक्षा में उतीर्ण होना या स्वर्ण-पदक प्राप्त करना है अपितु देश-सेवा की क्षमता एवं योग्यता प्राप्त करना भी है |”

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