Saturday, 10 June 2017

गृहारम्भ में 2,3,5,6,7,10,11,12,13, एवम 15 तिथियां शुभ होती हैं। प्रतिपदा को गृह निर्माण करने से दरिद्रता, चतुर्थी को धनहानि, अष्टमी को उच्चाटन, नवमी को शस्त्र भय, अमावस्या को राजभय और चतुर्दशी को स्त्रीहानि होती है। महर्षि मृगु के मत में चतुर्थी, अष्टमी, अमावस्या तिथियां,सूर्य, चन्द्र और मंगलवारों को त्याग देना चाहिए।

किसी भी इमारत के निर्माण में कई क्रिया-व्यापार जुडे़ रहते हैं। जैसे नींव डालने के लिए खुदाई करना, कुंए की खुदाई, वास्तविक निर्माण कार्य आरंभ करना, रेत डालना, दरवाजे़ लगाना आदि। इन सबके लिए विशेष मुहूर्त होते हैं जिनका पालन करने से शुभ परिणाम प्राप्त केए जा सकतेहैं, साथ ही निर्माण कार्य भी तेजी से और सुरक्षित ढंग से होता है।

भूमिपूजन तथा गृहारम्भ भूखंड पर भवन निर्माण के लिए नींव की खुदाई और शिलान्यास शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए।

शिलान्यास का अर्थ है शिला का न्यास अर्थात् गृह कार्य निर्माण प्रारम्भ करने से पुर्व उचित मुहूर्त में खुदाई कार्य करवाना।

यदि मुहूर्त सही हो तो भवन का निर्माण शीघ्र और बिना रुकावट के पूरा होता है।

शिलान्यास के लिए उपयुक्त स्थान पर नींव के लिए खोदी गई खात (गड्ढे) में पूजन एवम् अनुष्ठान पूर्वक पांच शिलाओं को स्थापित किया जाता है।

(1) शास्त्र के अनुसार शिलान्यास के लिए खात (गड्ढा) सूर्य की राशि को ध्यान में रखकर किया जाता है,

जैसे-

सूर्यखात निर्णय राशि 5,6,7, (सिंह, कन्या, तुला)आर्ग्नेय कोणराशि

2,3,4, (वृष, मिथुन, कर्क)नैऋत्य कोणराशि

11,12,1 (कुंभ, मीन, मेष)वायव्य कोणराशि

8,9,10 (वृश्चिक, धनु, मकर)ईशान कोण

आधुनिक वास्तुशस्त्रियों का मानना है कि किसी भी समय में खुदाई केवल उत्तर-पूर्व दिशा से ही शुरू करनी चाहिए।

(2) जब भूमि सुप्तावस्था में हो तो खुदाई शुरू नहीं करनी चाहिए। सूर्य संक्रांति से 5,6,7,9,11,15,20,22,23 एंव 28 वें दिन भूमि शयन होता है।

मतान्तर से सूर्य के नक्षत्र 5,7,9,12,19 तथा 26 वे नक्षत्र में भूमि शयन होता है।

(3) मार्गशीर्ष, फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रावण और कार्तिक में गृह आदि का निर्माण करने से गृहपति को पुत्र तथा स्वास्थ्य लाभ हता है

(4) महर्षि वशिष्ठ के मत में शुक्लपक्ष में गृहारम्भ करने से सर्वविध सुख और कृष्णपक्ष में चारों का भय होता है।

(5) गृहारम्भ में 2,3,5,6,7,10,11,12,13, एवम 15 तिथियां शुभ होती हैं। प्रतिपदा को गृह निर्माण करने से दरिद्रता, चतुर्थी को धनहानि, अष्टमी को उच्चाटन, नवमी को शस्त्र भय, अमावस्या को राजभय और चतुर्दशी को स्त्रीहानि होती है। महर्षि मृगु के मत में चतुर्थी, अष्टमी, अमावस्या तिथियां,सूर्य, चन्द्र और मंगलवारों को त्याग देना चाहिए।

(6) चित्रा, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, पुष्य, उत्तराषाढा, उत्तराफाल्गुणनी, उत्तराभद्रपदा, रोहिणी, धनिष्ठा औरशतभिषा नक्षत्रों मेंगृहारम्भ शुभ होता है।

(7) शुभ्रग्रह से युक्त और वृष्ट, स्थिर तथा द्विस्वभाव लग्न में वास्तुकर्म शुभ होता है। शुभग्रह बलवान होकर दशमस्थान हो अथवा शुभग्रह पंचम, पवम हो और चंद्रमा, 1,4,7,10 स्थान में हो तथा पापग्रह तहसरे, छठे ग्यारहवें स्थान में हो तो ग्रह शुभ होता है।

(8) रविवार या मंगलवार को गृह आरम्भ करना कष्टदायक होता है। सोमवारी कल्याणकारी, बुधवार धनदायक, गुरूवार बल-बुद्धिदायक, शुक्रवार सुख-सम्पदाकारक तथा शनिवार कष्टविनाशक होता है।

(9) वास्तुप्रदीप कं अनुसार, शनिवार स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न, शुक्लपक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग तथा श्रावण मास, इन सात सकारों के योग में किया गया वास्तुकर्म पुत्र, धन-धान्य और ऐश्वर्य दायक होता है।

(10) पुष्प, उत्तरफाल्गुनी, उत्तराषढ़ा, उत्तराभद्रपद, रोहिणी, मृगश्रि, श्रवण, अश्लेष एवम् पूर्वाषढ़ा नक्षत्र यदि बृहस्पति से युक्त हो और गुरुवार हो तो उसमें बनाया गया गृह पुत्र और रात्यदायक होता है।

(11) विशाखा, अश्विनी, चित्रा, घनिष्ठा, शतभिषा और आर्द्रा ये नक्षत्र शुक्र से युक्त हो और शुक्रवार का ही दिन हो तो ऐसा गृह धन तथा धान्य देता है।

(12) रोहिणी, अश्विनी, उत्तराफाल्गुनी, चित्राहस्त ये नक्षत्र बुध से युक्त हो और उस दिन बुधवार भी हो तो वह गृह सुख और पुत्रदायक होता है।

(13) कर्क लग्न में चंद्रमा, केंद्र में बृहस्पति, शेष ग्रह मित्र तथा उच्च अंश में हों तो ऐसे समय में बनाया हुआ गृह लक्ष्मी से युक्त होता है।

(14) मीन राशि में स्थित शुक्र यदि लग्न में हो या कर्क का बृहस्पति चौथे स्थान में स्थित हो अथ्वा तुला का शनि ग्यारहवें स्थान में हो तो वह घर सदा धन युक्त रहता है।

(15) चंद्रमा, गुरू या शुक्र यदि निर्बल, नीचराशि में या अस्त हो तो गृहारम्भकार्य नहीं करना चाहिए।

(16) अगर घर की कोई महिला सदस्य गर्भावस्था कें आखिरी कुछ माह में हो या घर का कोई सदस्य गंभीर रूप से बीमार हो तो खुदाई का कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।

(17) शनिवार रेवती नक्षत्र,मंगल की हस्त, पुष्प नक्षत्र में स्थिति, गुरू शुक्र अस्त, कृषणपक्ष, निषिद्ध मास, रिक्तादि तिथियां, तारा-अशुद्धि, भू-शयन, मंगलवार, अग्निवान, अग्निपंचक, भद्रा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र तथा वृश्चिक, कुंभ लग्नादि गृहारम्भ में वर्जित है।

कुएं की खुदाई भूमि पूजन के बाद कुंए की खुदाई करनी चाहिए। वास्तु के नियमों के अनुसार कुंए, बोरिंग आदि के उचित स्थान का निर्धारण करना चाहिए। यदि शुभ मुहूर्त और अनुकूल नक्षत्र में कुंए की खुदाई की जाती है तो आसानी से मीठा पानी की प्राप्ति हो सकती है।

बृहतसंहिता के अनुसार हस्त, मघा, अनुराधा, पुष्य, धनिष्ठा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, शतभिष, यह नक्षत्र कुंआं खुदवाने का कार्य आरम्भ करने के लिए शुभ हैं। सोमवारी, बुधवार तथा गुरुवार शुभवार हैं। जलसंज्ञक लग्न उत्तम माने गए हैं। कुंए की खुदाई के लिए क्षय तिथि, वृद्धि तिथि और कृष्णत्रयोदशी अशुभतिथियां हैं। गृहप्रवेश भूरिपुष्पविकरं सतोरण तायपूर्णकलशेपशेभितम्। धूपनन्धबलिपूजितानरं ब्राह्राणध्वनियुतं विशेद गृहम।। SHARE बृहतसंहिता के अनुसार फूलों से सजे हुए, बन्दनवार लगे हुए, तोरणों से सुसज्जित, जलपूर्ण कलशों से सुशोभित, देवताओं के विधिपूर्वक पूजन से शुद्ध, ब्राह्राणों के वेदपाठ से युक्त घर में प्रवेश करें। यहां देवतापूजन में वास्तुपूजन तथा वास्तुशंति का भी समावेश है।


(1) नवीन घर में प्रवेश उत्तरायण में करना चाहिए। माघ, फाल्गुन, ज्येष्ठ और वैशाख में गृहप्रवेश शुभ होता है तथा कार्तिक, मार्गशीर्ष में गृहप्रवेश मध्यम होता है।

(2) निरन्तर वृद्धि के लिए शुक्ल पक्ष में प्रवेश शुभ माना गया है। शुक्लपक्ष की 2,3,5,6,7,8,10,11 और 13 तिथियां शुभ होती हैं। 49,14वीं तिथि और अमावस्याको कदापि नूतन गृह प्रवेश न करें।

(3) चित्रा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवती और शतभिषा नक्षत्रों में प्रवेश करने से धन, आयु, आरोग्य, पुत्र, पौत्र तथा वंश में वृद्धि होती है।

(4) गृहस्वामी की जन्म राशि से गोचरस्थ सूर्य, चंद्र, बृहस्पति और शुक्र का प्रबल होना आवश्यक है।

(5) मंगलवार और रविवार के अलावा अन्य दिन शुभ हैं।

(6) भद्रा, पंचबाण और रिक्ता तिथियां त्याज्य हैं।

(7) स्थिर और द्विस्वभाव लग्न (2,5,8,11,3,6,9,12, राशियां) या गृहस्वामी के चंद्र लग्न या जन्म लग्न से 3,6,10,11, राशियां शुभ हैं। गृहप्रवेश लग्न में 1,7,10,5,9,2,3,11 भवों में शुभ ग्रह तथा 3,6,11 भावों में पापग्रह होने चाहिए। 4,8 भाव खाली होने चाहिए। लग्न राशि, गृहस्वामी के जन्म लग्न या जल्म राशि से आठवी राशि नहीं होनी चाहिए।

(8) नवीन गृह प्रवेश के शुभ अवसर पर उत्तरायण सूर्य, गुरू शुक्रोदय, कलश चक्र शुद्धि, कर्त्ता की नाम राशि से सूर्य-चंद्र बल होना चाहिए। किंतु दग्धा, अमावस्या, रिक्ता, शून्य तिथियां, द्वादशी व शुक्रवार का योग, चर लग्न, नवांश, धनु कुंभ तथा मीन संक्रातियां वर्जित हैं।शंकर तिवारी कॉमेंट लिखें

अपना उद्योग, फैक्ट्री या व्यावसायिक कार्यालय बनाते वक्त अगर आप वास्तुशास्त्र के सामान्य नियमों का भी पालन कर लें, तो वातावरण की पॉजिटिव एनर्जी का भरपूर लाभ उठा सकते हैं। आपको बस कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।

1. उत्तर-पूर्व में फव्वारे, पानी के तालाब आदि बनाएं।

2. यदि भूखंड का ढलान उत्तर-पूर्व की ओर है तथा बारिश का पानी आपके भूखंड के उत्तर-पूर्व की ओर बहता है तो निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता सभी के द्वारा सराही जाएगी।

3. उत्तरी कोना साफ-सुथरा रखें तथा छोटे आकार के गमले लगाकर या उद्यान बनाकर इसे खूबसूरत बनाएं।

4. मुख्य प्रवेश द्वार शुभ पदों में होना चाहिए।

5. तैयार माल के नमूने या स्टॉक उत्तर-पश्चिम दिशा में रखें। इससे उत्पादों की तीव्र गति से आवाजाही और धन के निर्बाध आगम में सहायता मिलेगी।

6. गेट और दरवाजे जीर्ण-शीर्ण अवस्था में या बिना पेंट-पॉलिश के नहीं होने चाहिए।

7. दक्षिण, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम भाग उन्नत होने से कारोबार में स्थिरता और सभी कर्मचारियों का स्वास्थ्य उत्तम होगा।

8. यदि एल (L) या यू (U) शेप में फैक्टरी बनानी हो ता यह ध्यान रखें कि भूखंड का उत्तर और पूर्वी हिस्सा खुला हो।

9. मशीनों की मरम्मत के लिए वर्कशॉप पश्चिम, पूर्व या दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए।

10.असैंबलिंग तथा पैकिंग की इकाईयां उत्तर, पूर्व या वायव्य में हो सकती है।

11. अनुसंधान ओर विकास इकाईयां या नए उत्पाद विकसित करने वाले विभाग पूर्व या उत्तर में हो सकते हैं।

12. धात्विक उत्पादों के संदर्भ में उत्पादन प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर धातु से इतर उत्पादों के संबंध में दक्षिण से उत्तर की ओर होना चाहिए।

13. सुरक्षा स्टाफ का मुख पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए।

14. कूड़ा-करकट या जंक पदार्थ मुख्य द्वार से नज़र नहीं आने चाहिए भूखंड के उत्तर-पूर्वी हिस्से में साफ-सफाई और उत्तम प्रकाश व्यवस्था किसी भी उद्योग की सफलता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

15. सफाई और उत्तम प्रकाश व्यवस्था के नियम सभी कार्य क्षेत्रों/स्टाफ क्षेत्रों पा लागू होते हैं क्योंकि इससे सकारात्मक सोच और कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

16. नियोक्ता और कर्मचारी के बीच संबंध बेहतर बनाए रखने के लिए उचित होगा कि भूखंड के ईशान कोण में या मध्य भाग में मंदिर या योग/ध्यान केंद्र बनाया जाए। स्टाफ के सभी सदस्य, मजदूर और कार्यपालक बिना किसी भेदभाव के यहां ध्यान-अर्चना कर इस स्थान की सकारात्मक ऊर्जा का ग्रहण करें। इससे प्रबंधक वर्ग और कर्मचारियों की आपस की दूरी खत्म हो, परस्पर सहयोग और सद्भावना की भावना जागृत होती है जो कि सफलता का मूलमंत्र है।

17. सभी जंक, कूड़ा कबाड़ा, अनावश्यक और अनुपयोगी चीजें अहाते से हटाते रहें। साल में एक बार के बजाए समय-समय पर रद्दी सामान हटा या बेच देना चाहिए।

18. मशीनों का अत्याधिक शोर फैक्टरियों की आम समस्या है। लंबे समय तक अधिक शोर-शराबे में काम करने से सिरदर्द तथा अन्य तंत्रिका प्रणाली संबंधीरोग हो सकते है। यदि ध्वनि प्रदूषण स्तर को कम करने या इस पर काबू पाने के प्रयास किए जाएं तथा इसके साथ-साथ कामगार और प्रबंधक वर्ग कुछ समय के लिए नियमित रूप से ध्यान या योग साधना करें तो बहुत शुभ परिणाम सामने आएंगे। फैक्टरी के कार्यालय और उच्चाधिकारियों के केबिन ध्वनिरोधी बनाना उपयुक्त रहेगा।

19. फैक्टरी का विन्यास सुव्यवस्थित होना चाहिए। गलियारे काफी चौड़े बनाएं जाएं ताकि ट्रॉली और सामान आसानी लाया लेजाया जा सके। "T" जंकशन पर कोईमशीन न रखी जाए। ना ही वहां कोई कामगार काम करें।

20. बीम के ठीक नीचे ना तो कामगार कार्य करें ओर ना ही मशीनें रखी जाएं।

21. पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश, वातायन ओर सौहार्दपूर्ण माहौल का कार्य की गुणवत्ता और परिमात्रा पर सुखद प्रभाव पडता है।

22. अहाते की दीवारें और गेट हमेशा ठीक स्थिति में होने चाहिए। जहां-जहां से टूटी हुई चारदीवारी और उखड़ा हुआ सीमेंट अशुभ तथा सुरक्षा की दृष्टि से प्रतिकूल है।

23. अंतत: सफलता के लिए आवश्यक है कि उद्यमी यह भी सुनिश्चित करें कि उनके घर का वास्तु उचित है या नहीं, क्योंकि घर वह स्थान है जहां व्यक्तिगत ऊर्जा शक्ति को आवेशित (रिचार्ज) किया जा सकता है। वास्तु पर आधारित घर इष्टतम स्तर तक सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है जिससे हम सर्वोत्तम ढंग से अपनी सामाजिक, व्यावसायिक ओर वैयक्तिक ज़िम्मेदारियों तथा दायित्वों को पूरा कर पाते हैं।

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