किसी भी ग्रह दोषों के निवारण हेतु जो कर्म किया जाता है अथवा देव-प्रतिष्ठा, गृह-प्रवेश, यज्ञोपवीत जैसे सभी कर्मों में ये अनिवार्य होता है, की अग्निवास देखकर ही यज्ञ (हवन) किया जाय अन्यथा कर्म निष्फल हो जाते हैं ।।
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तिथि प्रहर संयुक्ता तारकावार मिश्रिता ।
अग्निभिश्च हरेद्भागम् शेषे सत्वरजस्तमा ।।
सत्वे तात्कालिकी सिद्धी रजसा तु बिलंबकम् ।
तमसा निष्फ़लं कार्यं ज्ञातब्यं प्रश्न कोबिदै ।।
अर्थ:--
तिथि, प्रहर, नक्षत्र एवं वार को जोड़ दें, तथा इसमें तीन का भाग दे दें ।
शेष अगर 1. 2. 3. हो तो, 1 हो तो सत्व अर्थात कार्य तत्काल पूर्ण होगा ।
2 बचे तो रजस सिद्धि अर्थात कार्य तो होगा, लेकिन बिलम्ब से ।
अगर शेष 3 या 0 बचे तो तमसा सिद्धि अर्थात कार्य निष्फल होगा, अर्थात पूर्ण नहीं होगा ।।
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शिव वास देखने का मुहूर्त:-
सैकातिथि से अभिप्राय है, शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक तिथियों की कुल संख्या 30 होती है ।
इस तरह से कोई भी मुहूर्त देखने के लिए 1 से 30 तक की संख्या को ही लेना चाहिए ।।
तिथी च द्विगुणी कृत्वा तामे पञ्च समाजयेत ।।
सप्तभि (मुनिभिः) हरेद्भागं शेषे शिव वाससं ।।
एक शेषे तू कैलाशे, द्वितीये गौरी संनिधौ ।।
तृतीये वृष भारुढौ सभायां च चतुर्थके ।।
पंचमे तू क्रीडायां भोजने च षष्टकं ।।
सप्तमे श्मशाने च शिववास: प्रकीर्तितः ।।
अर्थ:-
तिथि को दुगुना करें, उसमे पांच को जोड़ देना चाहिए, कुल योग में, 7 का भाग देने पर, 1.2.3. शेष बचे तो इच्छा पूर्ति होता है, शिववास अच्छा बनता है ।
बाकि बचे तो हानिकारक होता है, शुभ नहीं है ।।
इसे इस प्रकार समझना चाहिए ...
१.कैलाश अर्थात = सुख,
२. गौरिसंग = सुख एवं संपत्ति,
३.वृषभारूढ = अभिष्ट्सिद्धि,
४.सभा = सन्ताप,
५.भोजन = पीड़ा,
६.क्रीड़ा = कष्ट,
७.श्मशाने = मरण ।।
अग्नि वास:- शैकातिथि वार कृतायुयाप्ता शेषे गुणभ्रे भुवि अग्निवासः ।।
अर्थ:- तिथि और वार को जोड़ कर, उसमे चार का भाग देने पर, तीन व शून्य बचे तो, भूमि पर अग्निवास माना जाता है ।।
pndit
bhubneshwar
Kasturwaangar parnkuti guna
०9893946810
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