Tuesday, 30 May 2017

जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं।

अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें।

ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है।

वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है।

इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं।

जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं।

जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं।

सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है।

सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।

विवाह के अन्य योग निम्नानुसार हैं-

(1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए।

(2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।

(3) लग्न, चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।

(4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेश की संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर।

(5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए।

(6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में।

(7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए।

(8) द्वितीयेश जिस राशि में हो, उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में।

क्या आपकी भी शादी की उम्र ढल रही है और शादी की बात नहीं बन पा रही है…?

शादी की बात नहीं बन पा रही है तो नीचे लिखे इन उपायों को जरुर अपनाएं।

विवाह योग्य युवती जब किसी अन्य युवती के विवाह में जाएं तो उससे अपने हाथों में थोड़ी मेहंदी लगवा ले।

ऐसा करने से उसका विवाह शीघ्र ही हो जाएगा।

जब लड़के वाले विवाह की बात करने घर आए तो युवती खुले बालों से, लाल वस्त्र धारण कर, हंसते हुए उन्हें कोई मीठी वस्तु खिलाकर विदा करें।

विवाह की बात अवश्य ही पक्की होगी।

विवाह की इच्छा रखने वाली युवती एक सफेद खरगोश पाले और उसे अपने हाथ से ही प्रतिदिन भोजन करवाएं।

इन उपायों को करने से शीघ्र ही विवाह की इच्छा रखने वाली युवतियों का विवाह हो जाता है।

केसा होगा जीवनसाथी—-????

कन्याकी शादी में सबसे अधिक चिन्ता उसके होने वाले पति के विषय में होती है किवह कैसा होगा.

सप्तम भाव और सप्तमेश विवाह में महत्वपूर्ण होता है.

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम भाव में शुभ ग्रह यानी चन्द्र,गुरू,शुक्रया बुध हो अथवा ये ग्रह सप्तमेश हों अथवा इनकी शुभ दृष्टि इस भाव पर होनेपर कन्या का होने वाला पति कन्या की आयु से सम यानी आस पास होता है.

यहदिखने में सुन्दर होता है. सूर्य,मंगल,शनि अथवा राहु,केतु सप्तम भावमें हों अथवा इनका प्रभाव इस भाव पर हो तब वर गोरा और सुन्दर होता है

और कन्या से लगभग5वर्ष बड़ा होता है.

कन्या की कुण्डली में सूर्य अगरसप्तमेश है तो यह संकेत है कि पति सरकारी क्षेत्र से सम्बन्धित होगा.

चन्द्रमा सप्तमेश होने पर पति मध्यम कदकाठी का और शांति चित्त होता है.

सप्तमेश मंगल होने पर पति बलवान परंतु स्वभाव से क्रोधी होता है.

मध्यमकदकाठी का ज्ञानवान और पुलिस या अन्य सरकारी क्षेत्र में कार्यरत होता है.

सप्तम भाव में शनि अगर उच्च राशि का होता है तब पति कन्या से काफी बड़ाहोता है और लम्बा एवं पतला होता है.

नीच का शनि होने पर पति सांवला होताहै.

केसी होगी जीवन साथी की आयु/इनकम ???

लड़कीकी जन्मपत्री में द्वितीय भाव को पति की आयु का घर कहते हैं. इस भाव कास्वामी शुभ स्थिति में होता है अथवा अपने स्थान से दूसरे स्थान को देखता हैतो पति दीर्घायु होता है.

जिस कन्या के द्वितीय भाव में शनि स्थित हो या गुरू सप्तम भाव स्थित हो एवं द्वितीय भाव को देख रहा हो वह स्त्री भीसौभाग्यशाली होती है यानी पति की आयु लम्बी होती है.

किस उम्र में होगी शादी..???

कन्या जब बड़ी होने लगती है तब माता पिता इस बात को लेकर चिंतित होने लगते हैंकि कन्या की शादी कब होगी. ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से कन्या की लग्नकुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी बुध हो और वह पाप ग्रहों से पीड़ित नहींहो तो कन्या की शादी किशोरावस्था पार करते करते हो जाती है.

सप्तम भाव मेंसप्तमेश मंगल हो और वह पाप ग्रहों से प्रभावित है तब भी शादी किशोरावस्थापार करते करते हो जाती है.

शुक्र ग्रह युवा का प्रतीक है. सप्तमेश अगरशुक्र हो और वह पाप ग्रहों से दृष्टि हो तब युवावस्था में प्रवेश करने केबाद कन्या की शादी हो जाती है.

चन्द्रमा के सप्तमेश होने से किशोरावस्थापार कर कन्या जब यौवन के दहलीज पर कदम रखती है तब एक से दो वर्ष के अन्दरविवाह होने की संभावना प्रबल होती है.

सप्तम भाव में बृहस्पति अगर सप्तमेशहोकर स्थित हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव नहीं हो तब विवाह समान्यउम्र से कुछ अधिक आयु में संभव है.

क्या विवाह मुहूर्त में जरूरी है त्रिबल शुद्धि ???

विवाह मुहूर्त के लिए मुहूर्त शास्त्रों में शुभ नक्षत्रों और तिथियों का विस्तार से विवेचन किया गया है।

उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद,रोहिणी, मघा, मृगशिरा, मूल, हस्त, अनुराधा, स्वाति और रेवती नक्षत्र में,

2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13, 15 तिथि तथा शुभ वार में तथा मिथुन, मेष, वृष, मकर, कुंभ और वृश्चिक के सूर्य में विवाह शुभ होते हैं।

मिथुन का सूर्य होने पर आषाढ़ के तृतीयांश में, मकर का सूर्य होने पर चंद्र पौष माह में, वृश्चिक का सूर्य होने पर कार्तिक में और मेष का सूर्य होने पर चंद्र चैत्र में भी विवाह शुभ होते हैं।

जन्म लग्न से अथवा जन्म राशि से अष्टम लग्न तथा अष्टम राशि में विवाह शुभ नहीं होते हैं।

विवाह लग्न से द्वितीय स्थान पर वक्री पाप ग्रह तथा द्वादश भाव में मार्गी पाप ग्रह हो तो कर्तरी दोष होता है, जो विवाह के लिए निषिद्ध है।

इन शास्त्रीय निर्देशों का सभी पालन करते हैं, लेकिन विवाह मुहूर्त में वर और वधु की त्रिबल शुद्धि का विचार करके ही दिन एवं लग्न निश्चित किया जाता है।

कहा भी गया है—

स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम्।
तयोश्चन्द्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम्।।

अत: स्त्री को गुरु एवं चंद्रबल तथा पुरुष को सूर्य एवं चंद्रबल का विचार करके ही विवाह संपन्न कराने चाहिए।

सूर्य, चंद्र एवं गुरु के प्राय: जन्मराशि से चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश होने पर विवाह श्रेष्ठ नहीं माना जाता।

सूर्य जन्मराशि में द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं नवम राशि में होने पर पूजा विधान से शुभफल प्रदाता होता है।

गुरु द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम एवं एकादश शुभ होता है तथा जन्म का तृतीय, षष्ठ व दशम पूजा से शुभ हो जाता है।

विवाह के बाद गृहस्थ जीवन के संचालन के लिए तीन बल जरूरी हैं—

देह, धन और बुद्धि बल। देह तथा धन बल का संबंध पुरुष से होता है, लेकिन इन बलों को बुद्धि ही नियंत्रित करती है।

बुद्धि बल का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि इसके संवर्धन में गुरु की भूमिका खास होती है।

यदि गृहलक्ष्मी का बुद्धि बल श्रेष्ठ है तो गृहस्थी सुखद होती है, इसलिए कन्या के गुरु बल पर विचार किया जाता है।

चंद्रमा मन का स्वामी है और पति-पत्नी की मन:स्थिति श्रेष्ठ हो तो सुख मिलता है, इसीलिए दोनों का चंद्र बल देखा जाता है।

सूर्य को नवग्रहों का बल माना गया है। सूर्य एक माह में राशि परिवर्तन करता है, चंद्रमा 2.25 दिन में, लेकिन गुरु एक वर्ष तक एक ही राशि में रहता है।

यदि कन्या में गुरु चतुर्थ, अष्टम या द्वादश हो जाता है तो विवाह में एक वर्ष का व्यवधान आ जाता है।

चंद्र एवं सूर्य तो कुछ दिनों या महीने में राशि परिवर्तन के साथ शुद्ध हो जाते हैं, लेकिन गुरु का काल लंबा होता है।

सूर्य, चंद्र एवं गुरु के लिए ज्योतिषशास्त्र के मुहूर्त ग्रंथों में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिनमें इनकी विशेष स्थिति में यह दोष नहीं लगता।

गुरु-कन्या की जन्मराशि से गुरु चतुर्थ, अष्टम तथा द्वादश स्थान पर हो और यदि अपनी उच्च राशि कर्क में, अपने मित्र के घर मेष तथा वृश्चिक राशि में, किसी भी राशि में होकर धनु या मीन के नवमांश में, वर्गोत्तम नवमांश में, जिस राशि में बैठा हो उसी के नवमांश में अथवा अपने उच्च कर्क राशि के नवमांश में हो तो शुभ फल देता है।

सिंह राशि भी गुरु की मित्र राशि है, लेकिन सिंहस्थ गुरु वर्जित होने से मित्र राशि में गणना नहीं की गई है।

भारत की जलवायु में प्राय: 12 वर्ष से 14 वर्ष के बीच कन्या रजस्वला होती है।

अत: बारह वर्ष के बाद या रजस्वला होने के बाद

गुरु के कारण विवाह मुहूर्त प्रभावित नहीं होता है.

पंडित
Bhubneshwar
Kasturwangar parnkuti guna
०9893946810

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