विवाह के समय खुशियों और उमंगों को दोगुना करने के लिए संगीत, हल्दी, मेंहदी, शादी और रिसेप्शन तक पांच दिनों के आयोजनों में कई खेलों का सहारा लिया जाता है, जिसमें दुल्हा-दुल्हन मनोरंजन कर सके और परिवार के अन्य लोगों के बीच घुल-मिल सके
रीति-रिवाजों के इस प्रांगण में रस्मों की परंपराएं,
वह चाहे बारात की अगवानी के समय दुल्हन द्वारा दूल्हेराजा के चेहरे पर चावल फेंकने की हो
या फिर सासू मां द्वारा अपनी प्यारी बहू की मुंह दिखाई की हो
या कभी मेंहदी की रस्म…,
कभी हाथ पीले करना…,
कभी अंगूठी ढूढ़ना…,
कभी सांस द्वारा दुल्हें की नाक खींचना…,
कभी साले द्वारा जीजा का कान मरोड़ना…
हर रस्म के साथ प्यार का बंधन बंधता चला जाता है।
रस्में विवाह से पहले शुरु हो जाती हैं जो विवाह के बाद तक चलती रहती हैं।
चारों तरफ चहल-पहल, रोशनी ही रोशनी के बीच बना विवाह मंडप।
उसके बीचों-बीच रखा अग्नि कुंड और उसके एक ओर बैठे वर-वधू। उन दोनों के बीच मंत्रोचार कर रहे पंडित जी।
हर किसी के यहां शादी-विवाह में इसी से लगभग मिलती-जुलती रस्में होती रहती हैं।
लेकिन इन्हें जब भी याद करो नई-सी ही लगती हैं।
मतलब साफ है हर परंपरा, हर रस्म का अपना अंदाज होता है, अपना महत्व होता है।
इन परंपराओं के बदले में मिलता है प्यार और लोगों का सत्कार। इसलिए आज भी लोग विवाह समारोह में इन्हें पूर्ण रूप से निभाना पसंद करते हैं।
टीका व गोद भराई विवाह निश्चित हो जाने पर शुभ मुहूर्त देखकर कन्या पक्ष वर का टीका करके उसके मंगल की कामना करते हैं तथा वर पक्ष की महिलाएं कन्या की गोद भराई की रस्म करती हैं।
इस मौके पर उसे कपड़े, आभूषण, मिठाई आदि भेंट की जाती हैं।
कन्या को चुनरी ओढ़ाकर उसका श्रृंगार किया जाता है। साथ ही उसकी गोद में एक गुड्डा भी बैठाया जाता है।
इस तरह वे उसे विवाह के बाद वंशवृद्धि का आर्शीवाद देती हैं।
इस मौके पर वर-कन्या एक दुसरे को अंगूठी भी पहनाते हैं।
चाक पूजा शादी से पूर्व वर व वधू के यहां चाक पूजा होती है। चाक मिट्टी को किसी भी रुप में ढाल सकता है।
चाक पूजकर इस बात का आर्शीवाद मांगा जाता है कि वर-वधू एक सांचे में ढल जाएं और उनका जीवन सुखद रहे।
हलदात यह रस्म भी कन्या व वर के घर में अलग-अलग होती हैं।
इसमें उन्हें पटले पर बैठकार उनके सामने एक ओखली में जौ, नमक व हल्दी की गांठ रखी जाती हैं।
उसमें दो मूसल भी रखी जाती हैं। घर की दो-दो महिलाएं मिलकर उसे सात-सात बार मूसल से कूटती हैं।
यह ध्यान रखा जाता है कि मूसला आपस में टकराएं नहीं।
इसके पीछे यही कामना होती है कि वर व कन्या आपस में मिल-जुलकर रहें। मतभेद होने पर भी लड़ाई-झगड़ा न हो,
बाद में इस सामाग्री का उबटन बनाकर विवाह योग्य अविवाहित लड़कियों को दिया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि जो लड़कियां यह उबटन लगाएंगी, उनका विवाह भी जल्दी हो जायेगा।
मढ़हा विवाह से पूर्व मंत्रोचार के साथ पंडित जी यह रस्म कराते हैं।
सभी के घर में अलग-अलग ढंग से मडहा गाड़ने की प्रक्रिया होती है।
मगर हर कहीं इस रस्म को पूरा करने के लिए ननदोई या दामाद की भूमिका अहम् होती है और इस काम के लिए उन्हें नेग भी दिया जाता है।
ऐसा करके घर में समृद्धि की कामना की जाती है। मेंहदी मेंहदी का रंग जितना गहरा होगा, ससुराल में उतना ही प्यार मिलेगा।
यही वजह है दुल्हन की मेहदीं शादी से पहले रचाई जाती है।
सुहाग की पिटारी फेरों से पहले वर पक्ष वधू के लिए सुहाग पिटारी व बरी देते हैं।
सुहाग पिटारी में सोलह श्रृंगार की सामाग्री व बरी में वधू के लिए वस्त्र और उसके भाई-बहनों के लिए खेल-खिलौने होते हैं।
इसका अर्थ है कि ससुराल में उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होगी।
वर की घुडचढ़ी घोडी सभी जानवरों में सबसे अधिक चंचल और कामूक मानी जाती है।
इसीलिए वर को घोडी की पीठ पर बैठकार बारात निकाली जाती है जिससे वह इन दोनों बातों को स्वयं पर हावी न होने दें बल्कि अपने नियंत्रण में रखें।
घोडी को प्रसंन करने के लिए घर के दामाद उसे चने की भीगी दाल खिलाते हैं और इसके लिए भी दामाद को नेग मिलता है।
द्वाराचार द्वाराचार में वरपक्ष कन्यापक्ष से मिलता है, ताकि वे दोनों एक-दूसरे को समझ सकें।
इस परंपरा का अर्थ है कि पूरे शहर में बारात को घुमाकर लोग यह जान जाएं कि दूल्हा कैसा है, साथ ही जो बारात आई है वह तयशुदा है।
बारात द्वार पर पहुंचने पर दुल्हें की आरती के बाद एक दिलचस्प रिवाज है।
तिलक करते हुए सांसू मां दुल्हें की नाक पकड़ने कोशिश करती हैं।
कहा जाता है कि दामाद की नाक सास ने पकड़ ली तो वह जीवन भर उनकी बिटिया का कहना मानेगा।
वर के भाई व जीजा उन्हें ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न करते हैं।
कई जगह ससुर या उसका शाला दुल्हें को अपनी बांहों में भरकर मंडप या स्टेज तक लेकर जाते हैं।
वर-माला वरमाला के समय पहले लड़की वर के गले में जयमाल पहनाकर विवाह के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान करती है।
उसके बाद वर भी वधू को जयमाल पहनाकर स्वीकृति पर मोहर लगाता है।
सात फेरे विवाह पूरा तभी माना जाता है जब वर-वधू अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं।
सात फेरे लेने का यह अर्थ माना जाता है कि पति-पत्नी का साथ सात जन्मों का होता हैं।
हर फेरे में पति-पत्नी कुछ कसमें भी खाते हैं, जिन्हें उन्हें जीवनभर निभाना होता है।
मांग में सिंदूर भरना विवाह मंडप में पगफेरों के समय दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में लाल रंग का सिंदूर भरता है, ताकि वह सदा सुहागन रहे व समाज में उसकी पत्नी के रूप में जानी जाए।
मांग में भरा सिंदूर इस बात का प्रतीक है कि पति का प्रेम सदा वधू के साथ हैं।
यानी प्रतीकात्मक रूप से दुल्हन द्वारा माथे पर सिंदूर लगाया जाता है कि वह शादीशुदा है और सिंधूर वधू को मर्यादा में रहने का संदेश देता है।
गठजोड़ फेरों के समय बहन द्वारा वर-वधू की गांठ जोड़ी जाती है।
यह इस बात का एहसास कराता है कि शादी से पूर्व वर-वधू अलग-थलग थे।
अब इस बंधन में बंधकर एक हो गए हैं, इसलिए वैवाहिक जीवन में वे सभी एक-दुसरे से मिलकर काम करेंगे।
हाथ पीले करना कन्यादान से पहले कन्या के माता-पिता वर-वधू के हाथ पीले करते हैं क्योंकि कन्या को लक्ष्मी का रुप माना जाता है और लक्ष्मी का प्रतीक है हल्दी।
इसलिए लक्ष्मी समान कन्या विष्णु स्वरुप वर को दी जाती है।
वैसे भी हल्दी का लेप हथेलियों पर लगाने से उसकी सुगंध श्वास और रोमछिद्रो द्वारा शरीर में प्रवेश करती है और इससे शरीर के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।
जूते छुपाना ‘दूल्हे की सालियों ओ हरे दुपट्टे वालियों जूते दे दो पैसे ले लो…‘ जीजा-साली की प्यारभरी नोकझोंक से भरा फिल्म ‘हम आपके हैं कौन‘ का यह गाना आपने जरूर सुना होगा। इसमें सालियां अपने प्यारे जीजाजी को परेशान करने के लिए उनके जूते छुपाती हैं और बदले में पैसों की मांग करती हैं।
लेकिन जीजा व उनके दोस्त अपनी नखरैली सालियों को छेड़ने के चक्कर में उन्हें पैसे नहीं देते और जूतों को ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं।
वैवाहिक समारोहों के ये रस्मो-रिवाज केवल फिल्मों में ही नहीं, अपितु आम जीवन में भी हंसी-ठिठोली के रूप में लोगों द्वारा निभते चले आए हैं।
इस रस्म से दूल्हे का मूल्यांकन भी किया जाता है। विदाई भींगी आंखों से करती सवाल वो कातर स्वर में रोती क्यों कर दिया पराया आंगन? क्यों दिया मुझे देश निकाला? रहती, रचती-बसती मैं भी काश! आज मैं बेटी न होती।
सुन बेटी की अंतर्नाद आंखों ही आंखों में कहती मां उससे, सुन मेरी आंखों की ज्योति जनक न रख पाएं सीता हिम न रोक सके थे बेटी हम क्यों करते तुझे जो जग में रहकर मजबूर न करते।
न ये घर पराया न द्वार बंद हैं हृदय कपाट खुले है सबके आहट तेरी जब पाएंगे हम, सब तुमको साथ मिलेंगे सुख हो दुख हो याद किया तो तेरे संग-संग हम भी चलेंगे साथ तुम्हारे हम भी चलते जो मर्यादा न होती। फूलों की डोली में तुझको एक नई बगिया भेजा है महके जीवन तेरा, तू महकाएं सबका। सबके दिल पर राज करे उस घर का भी श्रृंगार बने तू सुन ले बात मेरी यह बेटी रहे कहीं भी जाकर अपनी जाई कभी पराई नहीं होती।
धन-धान्य फेंकना विदाई के वक्त लड़की दोनों हथेलियों में चावल, बताशे और पैसे भरकर पीछे फेंकती है।
इस रस्म के पीछे धारणा यही होती है कि लक्ष्मी रुपा बेटी की विदाई के बाद भी मायका धन-धान्य से भरा रहे।
वधू द्वारा चावल का कलश गिराना बधू के गृह प्रवेश के समय उसके पैर से चावल से भरा कलश गिराया जाता है।
ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि आज से वह इस घर की अन्नपूर्णा है और भोजन पर ध्यान रखने का दायित्व अब उसका है।
चावल फेंकना दूल्हे के स्वागत के समय दुल्हन स्वागत स्थल पर आकर दूल्हे का मुंह देखकर हल्दी के चावल उसके ऊपर फेंकती है, ताकि वह अपने भावी जीवनसाथी को विवाह पूर्व देख सके कि वह उसके अनुकूल है या नहीं।
वधू के पैरों की छाप विवाह के बाद गृहप्रवेश के सयम वधू को गेरु या कुमकुम के घोल वाली परात में पैर रखकर घर में प्रवेश कराया जाता है क्योंकि वधू को लक्ष्मी का रुप माना जाता है और उसके पैरों की छाप को लक्ष्मी के चरण माना जाता है।
मुंह दिखाई मुंह दिखाई की रस्म में सासू मां व पड़ोस की महिलाएं नववधू का घूंघट खोलकर उसे नेग देती हैं कि कहीं उनकी प्यारी वधू को नजर न लग जाए, इसलिए बलैया लेती हैं।
यह परंपरा बहू के चेहरे को देखने के लिए शुरू की गई। द्वार रोकना शादियों में वर-वधू का द्वार सालियां व बहनें रोकती हैं।
इसके चलते दूल्हे द्वारा उन्हें नेग दिया जाता है। इसका एक पक्ष ससुराल में बहन द्वारा अपनी भाभी से परिचय करना भी है, जिससे दोनों के बीच अपनत्व की भावना पनप सके।
गांठ खोलना इस रोचक रिवाज में दुल्हा-दुल्हन एक-दुसरे की हाथ में बंधे कंगन की गांठों को खोलते हैं।
इसमें दुल्हें को एक हाथ से गांठ खोलना होती है और दुल्हन दोनों हाथों को काम में ले सकती हैं। जो पहले गांठ खोलता है वह जीतता है।
यह माना जाता है कि जीतने वाला जीवन में आने वाली समस्याओं को सुलझाने में अधिक सफल होगा।
ध्रुव-तारा दिखाना विवाह के बाद वर-वधू को रात में ध्रूवतारें के दर्शन कराएं जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वे अपने गृहस्थ जीवन में ध्रुव-तारे की तरह स्थिर रहें।
अंगूठी ढूढ़ना यह रस्म विवाह के बाद दुल्हें के परिवार के बीच खेली जाती है।
एक परात को दूध व पानी से भर दिया जाता है फिर उसमें अंगूठी डाली जाती है और दुल्हा-दुल्हन दोनों उसे ढूढ़ते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जो पहले अंगूठी ढूढ़ता है, वैवाहिक जीवन में उसी की चलती हैं।
शादी का बदलता चलन आजकल अपने देश में शादियों में एक नया चलन देखने को मिल रहा है। वह यह कि वधू पक्ष के लोग शादी से एक दो दिन पहले अपनी बेटी को वर पक्ष के शहर, कस्बे या गांव ले जाते हैं और विवाह की रस्में वहीं निभाते हैं।
यहां तक कि शादी की दावत भी दोनों पक्ष मिलकर एक ही जगह करते हैं।
इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि ऐसा करने से जहां एक ओर वर पक्ष का वधू के शहर, कस्बे या गांव तक बारात लेकर जाने का खर्च बचता है तो वहीं दूसरी ओर वधू पक्ष के लोगों को दावत का खर्चा आधा ही करना पड़ता है।
इस नए चलन का सबसे ज्यादा असर वधू की सहेलियों पर पड़ रहा है, जो कि वर्षों से शादी की रस्में अपनी आंखों से देखने का इंतजार करती रहती हैं।
अब इन सहेलियों को रस्मों के नाम पर सिर्फ एक ही रस्म देखने को मिलती है, वह है महिला संगीत। शादी के लिए दूसरे शहर रवाना होने से एक दो दिन पहले वधू पक्ष के लोग अपने परिचितों को महिला संगीत के लिए आमंत्रित करते हैं, जहां थोड़ा बहुत नाच गाना और हल्का फुल्का जलपान होता है। इस नए चलन ने लड़की की शादी से वे खूबसूरत दृश्य छीन लिए हैं जो पहले आमतौर पर सभी लड़कियों की शादी में देखने को मिलते थे। बारात का आना, लड़की की सहेलियों और पड़ोस की महिलाओं का छतों से बारातियों का नाच देखना, दूल्हे की उम्र का अंदाजा लगाना, दूल्हे के रंग-रूप पर आपस में चर्चा करना, शादी के फेरे होते देखना आदि।
लेकिन सबसे खास होता था विदाई समारोह, जिसे देखने मुहल्ले या गांव की महिलाएं बिन बुलाए पहुंच जाती थीं।
सुहागरात यह एक ऐसी कड़ी है जिसमें लोगों के जहन में सिर्फ एक ही तस्वीर बनती है कि एक प्रेमी जोड़ा रोमांस करते दिखता है। सुहागरात पति और पत्नी के मिलने की पहली रात होती है। इस रात पर दूध देने की परंपरा भी काफी पुरानी है। दरअसल दूध स्वांस्य्जा की दृष्टि से काफी फायदेमंद होता है।
इसे पीने से शारीरिक शक्ति मिलती है। इसीलिए दूल्हा इस दिन एक गिलास दूध जरूर पीता है। दूल्हन-दुल्हन के कमरे को फूलों से सजाने की परंपरा भी सालों से चली आ रही है।
फूलों की महक से नवविवाहित जोड़े के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम उमड़ता है। साथ ही फूलों से वातावरण भी रोमांटिक बनता है।
रस्मों में रिश्ते की महती भूमिका किसी घर में शादी का माहौल हो तो मानों सारी खुशियां उसी घर में आ बसती है।
इसमें बिना रिश्तेदारों के शादी की रस्में अधूरी हैं। इसीलिए इस मौके पर भाई, बुआ, दीदी, जीजा आदि रिश्तों को अधिक महत्व दिया जाता है।
वैसे भी रस्मों की शुरुआत लड़के और लड़की की सगाई से ही होती है।
वधू के भाई द्वारा तिलक लगाकर सगाई की रस्म अदा की जाती है। इसी तरह लड़की की ओली भराई की रस्म लड़के की मां के द्वारा पूरी की जाती है। सास अपने परिवार की वंश परंपरा को आगे बढ़ाने और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियां निभाने का दायित्व अपने हाथों से बहू को सौंपती है।
भाई
लड़की की शादी में भाई की जिम्मेदारी काफी अहम मानी जाती है। सगांई से लेकर विदाई तक भाई हर वक्त साथ रहता है। फेरे के वक्त वधू का भाई नवदंपति के हाथों में खील देता है, जिसे वह विवाह की वेदी में अर्पित करती है। कन्यादान के दौरान भी माता-पिता की तरह भाई की भूमिका बेहद अहम होती है। विवाह के बाद पगफेरे की रस्म के लिए वधू का भाई ही उसकी ससुराल जाता है और वह उसी के साथ पहली बार मायके आती है।
बहन और जीजा
बारात निकलने से पहले दूल्हे के जीजा उसके सिर पर सेहरा बांधते हैं। वधू की बहनों की भागीदारी तो जगजाहिर है कि वे किस तरह जीजाजी के जूते चुराकर उनसे पैसे वसूलती हैं।
इसी तरह जब भाई नववधू को लेकर घर में प्रवेश कर रहा होता है तो बहनें भाई-भाभी का रास्ता रोककर माहौल को खुशनुमा बना देती है।
बुआ
शादी की ज्यादातर रस्में बुआ के द्वारा ही निभाई जाती हैं। इस दौरान बुआ को माता- पिता नेग के रूप में गहने, कपड़े और रुपए देते हैं। शादी के रोज वर-वधू को खिलाने के लिए विशेष भोजन तैयार करने का काम भी बुआ ही करती है।
बंदनवार सजाने की जिम्मेदारी वर या वधू के फूफा
को निभानी होती है।
मामा
शादी में वर-वधू दोनों के ननिहाल पक्ष की, खास तौर से मामा की जरूरी भूमिका होती है। मामा पक्ष की ओर से वर-वधू सहित उनके परिवार के लोगों के लिए कपड़े, गहने, फल, मिठाइयां, मेवे आदि भेजे जाते हैं।
पंजाब में शादी के एक रोज पहले वधू को चूड़ा पहनाने की रस्म भी मामा-मामी द्वारा ही निभाई जाती है।
सभी प्रांतों में बहन के बच्चों के विवाह के अवसर पर भाई द्वारा ‘भात देने’ जैसी रस्मों की रवायत है। सहबल्ला शादी से पहले बारात निकालने की परंपरा लगभग सभी जगह है। हमेशा दूल्हे के साथ किसी खूबसूरत और घर के छोटे-बच्चे को बिठाया जाता है। माना जाता है कि बच्चे के बैठने से बहू पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और भविष्य में वह भी ऐसे ही बच्चे की मां बने इसकी कामना की जाती है।
जन्मकुंडली जब भी संस्कार की बात होती है, तो सोलह संस्कार का जिक्र जरूर होता है। इन्हीं सोलह संस्कारों में से एक हैं विवाह संस्कार। विवाह किसी भी व्यक्ति का दूसरा जन्म भी माना गया है। क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। विवाह जैसे पवित्र संस्कार को देखते हुए वर-वधू की जन्मकुंडली किसी भी विद्वान ज्योतिषी से मिलवाई जाती है। माना जाता है कि ऐसा करने पर उनकी जिंदगी हमेशा, खुशियों से भरी रहती है और विवाह के बाद किसी भी तरह की कोई भी समस्या नहीं आती। कुंडली से ही पता लगाया जाता है कि वर-वधू दोनों भविष्य में एक-दूसरे की सफलता के लिए सहयोगी सिद्ध या नहीं। वर-वधू की कुंडली मिलाने से दोनों के एक साथ भविष्य की संभावित जानकारी प्राप्त हो जाती है इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान किया जाता है।
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