Saturday, 22 April 2017

जनमेजय और व्यास जी की होनहार पर चर्चा

सच्चिदानन्द सेमवाल होनहार होकर ही रहती है , पहले ही पता होने पर भी जनमेजय ने की थी 18 विद्वान् तपस्वी ब्राह्मणों की हत्या ! स्कन्द पुराण के अन्तर्गत केदारखण्ड के 61 वें अध्याय की कथा पढते हुए यथा मति संक्षेप में लिख रहा हूं - यह कथा वशिष्ठ जी अरुन्धती जी को सुना रहे हैं - अपने पिता परीक्षित को तक्षक नाग द्वारा डसने के कारण उनके पुत्र जनमेजय ने सर्पों के नाश के लिए अति भयानक सर्पसत्र यज्ञ किया था । इस यज्ञ के पूर्ण होने पर अपने शिष्यों सहित महर्षि वेद व्यास उनसे मिलने को गये । व्यास जी का आदर सत्कार करने के उपरान्त जनमेजय जी ने उनसे आने का कारण पूछा तो व्यास जी ने कहा - राजन् ! तुम्हारे पिता , युधिष्ठिर व दुर्योधन आदि मेरे प्रपौत्र थे और तुम उनके प्रपौत्र हो । तुमसे स्नेहवश ही मिलने मैं आया हूं । कुरुवंश का नाश हो गया है , बडे हर्ष का विषय है कि तुमने अपने पिता के उद्धार के लिए यज्ञ किया , तुम धन्य हो । होनहार अवश्य होता ही है जिसको मैंने प्रत्यक्ष देखा भी है , यह भी बडे हर्ष का विषय है कि तुम धर्मात्मा कुरुओं की वंश वृद्धि करने वाले हो । जनमेजय जी बोले - भगवन् ! आपके समान सर्वज्ञ कोई भी नहीं है , जब आपको महाभारत युद्ध होने का पहले से पता था तो आपने हमारे पितामहों को यह युद्ध करने से क्यों नहीं रोका ? कृपया मेरा सम्पूर्ण सन्देह दूर कीजिए । व्यास जी बोले - तो सुनो महाराज ! इन्द्र व नहुष राज्य भ्रष्ट हुए राजा नल व श्री राम को भी दु:खों की प्राप्ति हुई । ये सब लोग पहले ही जानते भी थे तो भी अनिष्ट दूर न कर सके । राजन् ! होनहार कभी निष्फल ( अन्यथा ) नहीं होता , सब निमित्त बनते हैं । जनमेजय जी बोले - भगवन् ! हमारे पालित राज्य में जो कुछ होनहार है वो बतलाइये जिससे मैं उसे न करूं । विशिष्ठ जी अरुन्धती से बोले - राजा जनमेजय के ऐसे वचन सुनकर व्यास जी हंसे और भवितव्यता को जानकर राजा से यह वचन कहे - हे राजन् ! यह तो होना ही है तथापि सुनो - आज से सोलहवें दिन सिन्धु देश का अश्वों का बेचने वाला क्षेमकर्ण के एक अतीव वेगशाली अश्व पर तुम आरूढ होवोगे , वो तुम्हें बडे वेग से निर्जन वन में ले जायेगा । हे राजन् ! वहां तुम्हें एक अत्यन्त सुन्दरी स्त्री दृष्टिगत होगी और हे महाराज ! उसे देखते ही तुम काम के वशीभूत होकर उसे ग्रहण करने की अभिलाषा करोगे । तब वो तुमसे कहेगी - हे परम सुन्दर ! यदि तुम मेरा पाणिग्रहण करना चाहते हो तो ये ब्राह्मण मेरे पति हैं इनकी हत्या करो , तब मैं निडरता से तुम्हारी स्त्री हो जाऊंगी । हे राजन् ! उसके इस प्रकार कहने पर तुम मोहित हो जाओगे और उन वेद वेदाङ्ग के पारगामी ब्राह्मणों का वध कर डालोगे । यह सब सब चरित्र हो चुकने के बाद वह स्त्री अन्तर्धान हो जायेगी । हे राजन् ! जो कुछ आगे का होनहार है मैंने बता दिया , अब हम गन्धमादन के श्रृंग पर बदरीनाथ का आश्रम है वहां चलते हैं । इस प्रकार शिष्यों सहित बदरीनाथ गये और वहां साठ लाख श्लोकों युक्त महाभारत की रचना की जो कि अभी तक वहां विद्यमान है ( व्यास पुस्तक /पोथी ) । जो व्यक्ति पांच रात्रि उपवास पूर्वक वहां रहता है उसे व्यास जी के दर्शन हो जाते हैं । यह सुनकर राजा जनमेजय भयभीत और सावधान हो गया । राजा ने यस गुप्त रहस्य किसी से भी नहीं बताया । सोलहवें दिन राजा ने अपने मन्त्रियों व सेवकों से कुछ यों कहा - जो कोई आज मुझसे बोलेगा मैं आज उसका वध कर डालूंगा । ऐसा कहकर राजा अन्त:पुर में प्रविष्ट हुए और सारे कपाट बन्द करवाकर अपनी पलंग पर अकेले सो गये । इसी अवसर पर तीसरे पहर में अश्वों को बेचने वाला क्षेमकर्ण आया । नगर वासियों ने सौवीर और सिन्धु देशों के अश्वों को देखा परन्तु उनके ऊपर चढने को कोई भी समर्थ न हो सका । कौतूहल वश राजा के द्वार पर सब लोग राजा के द्वार पर आये । उन अश्वों में एक काले रंग का घोडा सभी शुभ लक्षणों से युक्त था । अतीव वेगशाली उस अश्व पर कोई चढता और वो गिर जाता देख कर सब लोग बडा कोलाहल मचाते । राजा जनमेजय भी होनहार वश झरोखों से देखने लगा । राजा ने मन में सोचा कि उस अश्व पर आरूढ हुआ जाय और वन को न जायेंगे क्योंकि अश्व तो अपने आधीन होते हैं । इसप्रकार निश्चय कर राजा नीचे उतरे और उस कृष्ण वर्ण अश्व पर चढ गये । अश्व तेजी से दौडने लगा और राजा को लगा कि वो गोलाकार घूम रहा है । उन्होंने उसकी गति और भी तेज कर दी । वो अतिशय वेगवान् अश्व राजा को वन में ले गया जहां मृग आदि व्याप्त थे । इसी समय राजा ने 16 वर्षीया एक सुन्दर स्त्री को देखकर उससे कहा - तुम किसकी कन्या अथवा स्त्री हो ? इस निर्जन वन में क्यों विचर रही हो ? मैं तुम्हारे वशीभूत हूं अत: मुझसे विवाह करो । राजा के वचन सुनकर अबला बोली - हेल महाबाहो ! ये 18 जितेन्द्रिय वृद्ध ब्राह्मण मेरे पति हैं और मैं युवती हूं । ये तपस्वी हैं और मैं खुद आप जैसे पालन कर्ता को ढूंढती हूं । सौभाग्य से आप मुझे मिल गये हैं । राजा ने कहा - हे महाभागे ! किस प्रकार तुम्हें सुख की प्राप्ति हो सकती है और ये तपस्वी ब्राह्मण तुम्हें छोड सकते हैं ? स्त्री बोली - महाराज ! यदि आपको मेरे प्रति दया है तो शीघ्र इन ब्राह्मणों का वध कर मेरा पाणिग्रहण कीजिए । राजा बोले - यह तो बताओ कि कैसे मैं इन वेद पारगामी ब्राह्मणों को मारूं । स्त्री बोली - राजन् ! यह देह ही परमात्मा है । जिस प्रकार से भी इसको सुख मिले वह करना ही मनुष्य को कर्तव्य है । वशिष्ठ जी अरुन्धती से कहते हैं कि राजा भवितव्य से मोहित होकर व्यास जी के वचनों को भूल गये और उन्होंने सभी ब्राह्मणों की एक ही खड्ग से हत्या कर दी । कामदेव रूपी शत्रु सबके हृदय में रहता है उसके आवेश में मनुष्य पति , पत्नी , पुत्र व वेदज्ञ ब्राह्मणों को भी तृण जैसा समझता है ! इसलिए मनुष्य इसका परित्याग करे । राजा ने जब फिर उस सुन्दरी को न देखा तो विस्मित हुए और उन्होंने बहुत सोच विचार कर घर आदि सबका त्याग कर बद्रीनाथ में व्यास पुस्तक के पास जाकर व उन्होंने वहां निराहार रहकर मरण के लिए भी निश्चय कर लिया । तब तो उन्हें व्यास जी के दर्शन हुए । बार बार दण्डवत् होकर उन्होंने व्यास जी से कहा - हे प्रभो ! हमारी रक्षा करो । व्यास जी बोले - हे महीपाल ! तुम भय मत करो , मैंने तुम्हें पहले ही कह दिया था कि होनहार बलवान् होती है । हे नृपश्रेष्ठ ! अब तुम समस्त पापों का नाश करने वाले महाभारत का श्रवण करो । वशिष्ठ जी अरुन्धती से बोले - व्यास जी से महाभारत सुनकर जनमेजय जी निष्पाप हो गये । इस प्रकार जो यह आख्यान पढेगा उसका यश व आयु बढेगी एवं उसपर लगी ब्रह्महत्या का निवारण होगा ।

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