Thursday, 29 December 2016

मूल नक्षत्र और उनके दुष्प्रभाव क्या है

मूल शांति के उपाय- ज्येष्ठा के अन्तिम दो चरण तथा मूल के प्रथम दो चरण अभुक्त मूल कहलाते हैं।
मूल नक्षत्र और उनके प्रभाव मूल संज्ञक नक्षत्र और उनका प्रभाव
ज्येष्ठा
आश्लेषा
और रेवती,
मूल
मघा
और अश्विनी
यह नक्षत्र मूल नक्षत्र कहलाये जाते है,
इन नक्षत्रों के अन्दर पैदा होने वाला जातक किसी न किसी प्रकार से पीडित होता है,ज्येष्ठा के मामले में कहा जाता है,कि अगर इन नक्षत्र को शांत नही करवाया गया तो यह जातक को तुरत सात महिने के अन्दर से दुष्प्रभाव देना चालू कर देता है।

अगर किसी प्रकार से जातक खुद बडा है,तो माता पिता को अलग कर देता है,

और खुद छोटा है,तो अपने से बडे को दूर कर देता है,या अन्त कर देता है।

यही बात अश्लेशा नक्षत्र के बारे मे कही जाती है कि अगर पहले पद मे जन्म हुया है तो माता को त्याग देता है,

दूसरे पाये में पिता को त्याग देता है,

तीसरे पाये में अपने बडे भाई या बहिन को

और चौथे पाये मे अपने को ही सात दिन,सात महिने,सात साल के अन्दर सभी प्रभावों को दिखा देता है।

अभुक्त मूल विचार ज्येष्ठा नक्षत्र की अन्त की दो घडी तथा मूल नक्षत्र की आदि की दो घडी अभुक्त मूल कहलाती है,

लेकिन यह बातें तब मानी जाती थीं,जब जातक के माता पिता पहले से ही धर्म कार्यों के अन्दर खुद को लगा कर रखते थे,मगर आज के जमाने में सभी भौतिक कारणों से और सब कुछ पोंगा पंडित की किताब मानने के कारण दोनो नक्षत्रों की चारों ही घडी अभुक्त मूल कहलाने लगी

हैं,इन दो नक्षत्रों में पैदा होने वाला जातक अपने मामा या पिता परिवार को बरबाद कर देता है,अथवा खुद ही बरबाद हो जाता है।

कर्क लगन मे और कर्क राशि के अन्दर पैदा हुआ जातक अश्लेशा का जातक कहा जाता है,यह पिता के लिये भारी कहा जाता है,

माता को परदेश वास देता है,तथा धन के लिये माता को सभी सुख देता है और पिता को मरण देता है।

मूल शांति के उपाय ज्येष्ठा मूल या अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिये नीचे लिखे मंत्रों का जाप २८००० जाप करवाने चाहिये,और २८वें दिन जब वही नक्षत्र आये तो मूल शान्ति का प्रयोजन करना चाहिये,

जिस मन्त्र का जाप किया जावे उसका दशांश हवन करवाना चाहिये,और २८ ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिये,बिना मूल शांति करवाये मूल नक्षत्रों का प्रभाव दूर नही होता है।

जिस मन्त्र का जाप किया जावे उसका दशांश हवन करवाना चाहिये,और २८ ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिये,बिना मूल शांति करवाये मूल नक्षत्रों का प्रभाव दूर नही होता है।

मंत्र- मूल नक्षत्र का बडा मंत्र यह है।

ऊँ मातवे पुत्र पृथ्वी पुरीत्यमग्नि पूवेतो नावं मासवातां विश्वे र्देवेर ऋतुभिरू सं विद्वान प्रजापति विश्वकर्मा विमन्चतु॥

इसके बाद छोटा मंत्र इस प्रकार से है।
ऊँ एष ते निऋते। भागस्तं जुषुस्व। ज्येष्ठा नक्षत्र का मंत्र इस प्रकार से है। ऊँ सं इषहस्तरू सनिषांगिर्भिर्क्वशीस सृष्टा सयुयऽइन्द्रोगणेन। सं सृष्टजित्सोमया शुद्धर्युध धन्वाप्रतिहिताभिरस्ता।

आश्लेषा मंत्र-

ऊँ नमोऽर्स्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु।
ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यरू सर्पेभ्यो नमरू॥

मूल शांति की सामग्री-

घड़ा एक,
करवा चार,
सरवा एक,
पांच रंग,
नारियल एक,
11 सुपारी,
पान के पत्ते 11,
दूर्वा,
कुशा,
बतासे 500 ग्राम ,
इन्द्र जौ,
भोजपत्र,
धूप,
कपूर,
आटा चावल,
गमछे 2,
दो मी लाल कपड़ा ,
मेवा 250 ग्राम,
पेड़ा 250 ग्राम,
बूरा 250 ग्राम,
माला दो,
27 खेडों की लकडी,
27 वृक्षों के अलग अलग पत्ते,
27 कुंओ का पानी,
गंगाजल,
समुद्र फेन,
आम के पत्ते,
पंच रत्न,
पंच गव्य
वन्दनवार,
बांस की टोकरी,
101 छेद वाला कच्चा घडा,
1घंटी
2 टोकरी
छायादान के लिये,
1 मूल की मूर्ति स्वनिर्मित,
27 किलो सतनजा,
सप्तमृतिका,
3 सुवर्ण प्रतिमा,
गोले 5,
ब्राहमणों हेतु वस्त्र,
पीला कपड़ा सवा मी,
सफेद कपड़ा सवा मी,
फल फूल मिठाई आदि ।

हवन सामग्री-

चावल एक भाग,
घी दो भाग
बूरा दो भाग,
जौ तीन भाग,
तिल चार भाग,
इसके अतिरिक्त मेवा अष्टगंध इन्द्र जौ,भोजपत्र मधु कपूर आदि।
जितने जप किए जाँए उतनी मात्रा में हवन सामग्री बनानी चाहिए।
पूजन जितना अच्छा होगा उसका प्रभाव भी उतना ही अच्छा होगा। पूजा सामग्री यथाशक्ति लानी चाहिए।

Tuesday, 27 December 2016

शमी का पेड़ दिलाएगा आपको धन

पेड़-पौधे लगाना और इसकी हिफाजत करना हमारी गौरवशाली परंपरा का हिस्सा रहा है. कुछ पेड़ धार्मिक नजरिए से भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं.
शमी भी ऐसे ही वृक्षों में शामिल है. ऐसी मान्यता है कि घर में शमी का पेड़ लगाने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्ध‍ि आती है. साथ ही यह वृक्ष शनि के कोप से भी बचाता है.
किस ओर लगाएं शमी का वृक्ष शमी का वृक्ष घर के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है.
इसमें प्राकृतिक तौर पर अग्न‍ि तत्व पाया जाता है. शनि के कोप से बचाता है शमी न्याय के देवता शनि को खुश करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं
, जिनमें से एक है शमी के पेड़ की पूजा. शनिदेव की टेढ़ी नजर से रक्षा करने के लिए शमी के पौधे को घर में लगाकर उसकी पूजा करनी चाहिए.
नवग्रहों में शनि महाराज को न्यायाधीश का स्थान प्राप्त है, इसलिए जब शनि की दशा आती है, तब जातक को अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा फल प्राप्त होता है. यही कारण है कि शनि के कोप से लोग भयभीत रहते हैं.
पीपल के विकल्प के तौर पर शमी पीपल और शमी दो ऐसे वृक्ष हैं, जिन पर शनि का प्रभाव होता है. पीपल का वृक्ष बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसे घर में लगाना संभव नहीं होता. वास्तु शास्त्र के मुताबिक, नियमित रूप से शमी वृक्ष की पूजा की जाए और इसके नीचे सरसों तेल का दीपक जलाया जाए, तो शनि दोष से कुप्रभाव से बचाव होता है
. कई दोषों का होता है निवारण शमी के वृक्ष पर कई देवताओं का वास होता है.
सभी यज्ञों में शमी वृक्ष की समिधाओं का प्रयोग शुभ माना गया है.
शमी के कांटों का प्रयोग तंत्र-मंत्र बाधा और नकारात्मक शक्तियों के नाश के लिए होता है. शमी के पंचांग, यानी फूल, पत्ते, जड़ें, टहनियां और रस का इस्तेमाल कर शनि संबंधी दोषों से जल्द मुक्ति पाई जा सकती है
. आयुर्वेद के नजरिए से भी गुणकारी शमी को वह्निवृक्ष भी कहा जाता है. आयुर्वेद की दृष्टि में तो शमी अत्यंत गुणकारी औषधि मानी गई है. कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं. क्या है पौराणि‍क मान्यता पौराणि‍क मान्यताओं में शमी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है. लंका पर विजयी पाने के बाद श्रीराम ने शमी पूजन किया था. नवरात्र में भी मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का विधान है. गणेश जी और शनिदेव, दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है.

पंडित
Bhubneshwar
Kasturwanagar
Parnkuti guna

घर में कौन सा पेड़ कहा लगाये

तुलसी
- हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को एक तरह से लक्ष्मी का रूप माना गया है। आपके घर में यदि किसी भी तरह की निगेटिव एनर्जी मौजूद है तो यह पौधा उसे नष्ट करने की ताकत रखता है। हां, ध्यान रखें कि तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह आपको फायदे के बदले काफी नुकसान पहुंचा सकता है।

तुलसी को घर में ईशान या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए।

बेल का बृक्ष

- भगवान शिवजी का परम प्रिय बेल का वृक्ष जिस घर में होता है वहां धन संपदा की देवी लक्ष्मी पीढ़ियों तक वास करती हैं। बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते हैं। माना जाता है कि बेल वृक्ष और सफेद आक को जोड़े से लगाने पर उस घर में माँ लक्ष्मी की स्थाई प से कृपा प्राप्त होती है।

पीपल-

पीपल वृक्ष पर शनि, नाग देवता, पीर, लक्ष्मी, भूत-प्रेत तथा पितृश्वर देवताओं का निवास माना जाता है। शनिवार तथा ‘अमावस्या’ को संतान की कामना तथा ‘ग्रहदोष’ एवं ‘अनिष्ट-निवारण’ के लिए पीपल की पूजा की जाती है। पीपल का पेड़ घर में नहीं लगाया जाता है। पुराणों में पीपल को विष्णु का रुप कहा गया है-

मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कंधे कोव एव च। नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान् हरिः। फलेऽच्युतो न सन्देहः सर्वदेवैः समन्वितः।
स एव विष्णुद्र्रुमः। -(स्कंद पुराण)

वट

- वट-वृक्ष भी पीपल के समान ही नारायण विष्णु का स्वरुप माना गया है। इसी वृक्ष के नीचे ‘सावित्री’ ने मृत्यु को जीतकर ‘सत्यवान’ का पुनर्जीवन प्राप्त किया था। पुराणों में शिव का आसन वट-वृक्ष के नीचे उल्लिखित है। वट, पीपल तथा गूलर विष्णु के स्वरुप हैं।

रुद्राक्ष-

एकमुखी ‘रुद्राक्ष’ को गौरी शंकर कहते हैं। रुद्राक्ष के दाने पर शिव की पूजा होती है। पुराणों में रुद्राक्ष की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। रुद्राक्ष धारण करने से सौभाग्य प्राप्त होता है।

दूब-

दूब को देवी का रुप माना गया है तथा इसकी पूजा से सुख-सम्पत्ति-संतान की प्राप्ति होती है। दूब गणेश को प्रिय है तथा गणेशजी की पूजा में दूब का होना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।

शमी का पौधा-

शमी का पौधा घर में होना भी बहुत शुभ माना जाता है। ज्योतिष में इसका संबंध शनि से माना जाता है और शनि की कृपा पाने के लिए इस पौधे को लगाकर इसकी पूजा-उपासना की जाती है। इसका पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं ओर लगाना शुभ है।

शमी वृक्ष के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा। शमी का पौधा घर में बाहर की तरफ ऐसे स्थान पर लगाएं जिससे यह घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़े।

आंवले-

घर में आंवले का पेड़ लगायें और वह भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में हो तो यह अत्यंत लाभदायक है। आंवले के पौधे की पूजा करने से सभी मनौतियाँ पूरी होती हैं। इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी समस्त पापों का शमन हो जाता है।

अशोक -

हिन्दू धर्म में अशोक के वृक्ष को बहुत ही शुभ और लाभकारी माना गया है। अशोक अपने नाम के अनुसार ही शोक को दूर करने वाला और प्रसन्नता देने वाला वृक्ष है। इससे घर में रहने वालों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है। घर में अशोक के वृक्ष होने से घर में सुख, शांति एवं धन समृद्धि का वास होता है एवं उस घर में किसी की भी अकाल मृत्यु नहीं होती।

श्वेतार्क गणपति-

श्वेतार्क गणपति का पौधा दूधवाला होता है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार दूध से युक्त पौधों का घर की सीमा में होना अशुभ होता है। किंतु श्वेतार्क या आर्क इसका अपवाद है। ऐसी भी मान्यता है कि जिसके घर के समीप श्वेतार्क का पौधा फलता-फूलता है वहां सदैव बरकत बनी रहती है।

गुड़हल-

गुड़हल का पौधा ज्योतिष में सूर्य और मंगल से संबंध रखता है, गुड़हल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं। गुड़हल का फूल जल में डालकर सूर्य को अघ्र्य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है। मंगल ग्रह की समस्या, संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो हनुमान जी को नित्य प्रातः गुड़हल का फूल अर्पित करना चाहिए।

माँ दुर्गा को नित्य गुड़हल अर्पण करने वाले के जीवन से सारे संकट दूर रहते हैं।

नारियल - नारियल का पेड़ भी शुभ माना गया है । कहते हैं, जिनके घर में नारियल के पेड़ लगे हों, उनके मान-सम्मान में खूब वृद्धि होती है।

नीम

- घर के वायव्य कोण में नीम के वृक्ष का होना अति शुभ होता है।

शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नीम के सात पेड़ लगाता है उसे मृत्योपरांत शिवलोक की प्राप्ति होती है।जो व्यक्ति नीम के तीन पेड़ लगाता है वह सैकड़ों वर्षों तक सूर्य लोक में सुखों का भोग करता है।

केले का पौधा-

यह पौधा धार्मिक कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। गुरुवार को इसकी पूजा की जाती है और अक्सर पूजा-पाठ के समय केले के पत्ते का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसे भवन के ईशान कोण में लगाना चाहिए, क्योंकि यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि वृक्ष है। इसे ईशान कोण में लगाने से घर में धन बढ़ता है।

बांस का पौधा-

बांस का पौधा घर में लगाना अच्छा माना जाता है। यह समृद्धि और आपकी सफलता को ऊपर ले जाने की क्षमता रखता है। अगर आपकी तमाम कोशिशों के बाद भी आपको अपने कार्यक्षेत्र में मनचाही सफलता नहीं मिल रही है तो आपको अपने भवन/कार्यालय में बांस का पौधा लगाना चाहिए। बांस संसार का अकेला ऐसा पौधा है जो हर वातावरण में हर मुश्किलों के बाद भी तेजी से बढ़ता है। इसीलिए इसे उन्नति, दीर्घ आयु और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। भारतीय वास्तु शास्त्र में भी बांस को बहुत शुभ माना गया है। भगवान श्री कृष्ण भी हमेशा अपने पास बांस की बनी हुई बांसुरी रखते थे। सभी शुभ अवसरों जैसे मुण्डन, जनेऊ और शादी आदि में बांस का अवश्य ही उपयोग किया जाता है।

मनीप्लांट-

ऐसी मान्यता है कि घर में मनीप्लांट लगाने पर सुख-समृद्धि का वास होता है। घर में मनीप्लांट के पौधे को लगाने के लिए आग्नेय दिशा सबसे उचित दिशा है। आग्नेय दिशा में यह पौधा लगाने से सर्वाधिक लाभ मिलता है क्योंकि इस दिशा के देवता गणेशजी और प्रतिनिधि शुक्र हैं। भगवान गणेशजी विघ्न दूर करते हैं जबकि शुक्र देव धन, सुख-समृद्धि के प्रतीक हैं। लेकिन मनीप्लांट को कभी भी उत्तर-पूर्व दिशा अर्थात ईशान कोण में नहीं लगाना चाहिए।

अनार

- धन, सुख-समृद्धि और घर में वंश वृद्धि की कामना रखने वाले घर के आग्नेय कोण (पूरब दक्षिण) में अनार का पेड़ जरूर लगाएं। यह अति शुभ परिणाम देता है। वैसे अनार का पौधा घर के सामने लगाना सर्वोत्तम माना गया है। घर के बीचोंबीच पौधा न लगाएं। अनार के फूल को शहद में डुबाकर नित्यप्रति या फिर हर सोमवार भगवान शिव को अगर अर्पित किया जाए, तो भारी से भारी कष्ट भी दूर हो जाते हैं और व्यक्ति तमाम समस्याओं से मुक्त हो जाता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में कैक्टस का पेड़ न लगायें वास्तु शास्त्र के अनुसार घर, दुकान, फैक्ट्री या व्यावसायिक परिसरों में कैक्टस का पेड़ लगाने से मना किया जाता है। कैक्टस में कांटे होते हैं और कांटे वाले कोई भी पौधे घर के आस-पास नहीं होना चाहिए। जिस घर में कांटे होंगे वहाँ पर रहने वाले लोग एक-दूसरे को चूभने वाली बात कहते रहेंगे। कैक्टस मूलतः रेगिस्तान में होता है। इसका अर्थ है कैक्टस ऐसे स्थान पर होता है जहाँ पर कुछ भी नहीं होता। इसलिए कैक्टस के पौधे को घर में लगाने से घर उजाड़ हो जायेगा, घर को रेगिस्तान में बदलते देर नहीं लगेगी। कैक्टस के पौधे से दूध जैसा सफेद द्रव्य निकलता है और वास्तु शास्त्र में दूध वाले पौधे को लगाने से दोष होता है।

दिशा अनुसार पौधों का चयन-

उतर दिशा -
पलाश, पीले फूल, छोटे पौधे, अमरुद, पाकड़ तथा कमल के फूल।

पूर्व दिशा -
वट, कटहल ,आम।

पश्चिम दिशा -

पीपल, अशोक, नीलगिरी।

दक्षिण दिशा

- नीम, नारियल, अशोक, गुलाब।

ईशान दिशा (उत्तर-पूर्व )-

केले का पौधा. यह सर्वविदित है कि वृक्ष-वनस्पति हमारे जीवन के विशेष अंग हैं। कुछ वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। इन वृक्षों के दर्शन-पूजन से विशेष सुख की प्राप्ति होती है। यह मान्यता है कि केला के मूल में विष्णु का निवास है।

यदि शमी वृक्ष पर पीपल उग आए तो वह नर-नारायण का रुप है।

नीम पर भैरव का निवास है।

आक पर कामदेव का निवास है।

गूलर, बाँस, बेरिया, पीपल प्रेत के निवास-स्थान माने जाते हैं। तुलसी, पीपल, वट, दूब, अशोक, गूलर, छोंकर, आँवला, अंडी, आक, केला, नीम, कदंब, बेल, कमल को देव समान पूजा जाता है।

Pandit
Bhubneshwar
Kasturwanagar
Parnkuti guna

ग्रहो की अनुकूलता के लिए क्या पेड़ो की जडे रत्नो की तरह काम करती है

रत्न नहीं तो पेड़ों की जड़ करें धारण ::— ज्योतिष विद्या को भी एक विज्ञान ही माना जाता हैं। इस विद्या से भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी मिल सकती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति का भाग्योदय नहीं हो पाता है। अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते हैं। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।

चंद्र गृह के लिए:

चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।

मंगल गृह के लिए:

मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।

बुध गृह के लिए

: बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

सूर्य गृह के लिए:

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।

गुरु गृह के लिए:

गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।

शुक्र गृह के लिए:

गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

शनि गृह के लिए:

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।

राहु गृह के लिए:

कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।

केतु गृह के लिए:

केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

पंडित
Bhubneshwar
KasturwanagR
Parnkuti guna

भवन निर्माण कब करे

मुहूर्त अर्थात शुभ तिथि, वार, माह व नक्षत्रों में कोई भी भवन बनाना प्रारंभ करने से जातक को शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक और मानसिक लाभ प्राप्त होता हैं ।
मुहूर्त ऐसा शुभ ऐसा उपर्युक्त होना चाहिए ताकि भवन निर्माण में कोई भी रूकावट ना आ सके। यहाँ पर हम भवन निर्माण के बारे में कुछ अचूक बातो के बारे में बता रहे है जिससे आप सभी को अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा ।
भवन सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माह का चयन करना अति महत्वपूर्ण होता है ।

भारतीय कैलेण्डर के अनुसार फाल्गुन, वैसाख एवं सावन के महीने भूमिपूजन, शिलान्यास एवं गृह निर्माण हेतु के लिए सर्वश्रेष्ठ महीने माने गए हैं। इन महीनो में गृह सम्बन्धी किसी भी कार्य की शुरुआत करने से मान सम्मान, धन संपत्ति और निरोगिता की प्राप्ति होती है , घर के सदस्यों के मध्य प्रेम बना रहता है, जबकि माघ, ज्येष्ठ, भाद्रपद एवं मार्गशीर्ष महीने को मध्यम श्रेणी में रखा गया हैं। लेकिन चैत्र, आषाढ़, आश्विन तथा कार्तिक मास उपरोक्त शुभ कार्य की शुरुआत के लिए वर्जित कहे गए है। इन महीनों में गृह निर्माण प्रारंभ करने से धन यश की हानि होती है एवं घर परिवार के सदस्यों की आयु भी कम होती है।
भवन बनाना शुरू करने से पहले हमें शुभ वार का अवश्य ही चयन करना चाहिए ।
भवन निर्माण के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार , शुक्रवार तथा शनिवार सबसे शुभ दिन माने गए हैं।
लेकिन मंगलवार और रविवार को भवन सम्बन्धी कोई भी कार्य जैसे भूमिपूजन, गृह निर्माण का प्रारम्भ , गृह का शिलान्यास या गृह प्रवेश को बिलकुल भी नहीं करना चाहिए।
भवन सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ तिथि का चयन करना भी अति आवश्यक होता है ।
गृह निर्माण हेतु सर्वाधिक शुभ तिथियाँ द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी तिथियाँ मानी गयी है । इन तिथियाँ में गृह निर्माण करने से किसी भी प्रकार की अड़चने नहीं आती है जबकि अष्टमी तिथि को मध्यम माना गया है। लेकिन शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की तीनों रिक्त तिथियाँ अशुभ होती हैं। ये रिक्ता तिथियाँ हैं- चतुर्थी, नवमी एवं चतुर्दशी। इन तीनों तिथियों में गृह निर्माण सम्बन्धी कोई भी कदापि कार्य शुरू नहीं करने चाहिए इसके अतिरिक्त प्रतिपदा, अष्टमी और अमावस्या को भी गृह निर्माण सम्बन्धी कोई भी कार्य शुरू नहीं करना चाहिए अन्यथा इसके अशुभ परिणाम भोगने पड़ सकते है ।
भवन सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत के लिए यदि शुभ नक्षत्र का चयन किया जाय तो यह बहुत ही उत्तम साबित होता है । किसी भी शुभ माह के रोहिणी, पुष्य, अश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, स्वाति, हस्तचित्रा, रेवती, शतभिषा, धनिष्ठा सर्वाधिक पवित्र और सभी प्रकार से लाभप्रद नक्षत्र माने जाते हैं। गृह निर्माण अथवा किसी भी तरह के शुभ कार्य की शुरुआत इन नक्षत्रों में करना बहुत हितकर होता है। बाकी अन्य सभी नक्षत्र मध्यम श्रेणी में माने जाते हैं।
हमारे शास्त्रानुसार (स) अथवा (श) वर्ण से शुरू होने वाले सात अति शुभ लक्षणों में गृह सम्बन्धी कार्यों की शुरुआत करने से ना केवल धन-संपत्ति, ऐश्वर्य, निरोगिता और सद्बुद्धि की ही प्राप्ति होती है वरन घर के सदस्यों में प्रेम एवं आपसी भाईचारा भी हमेशा बना रहता है । सात शुभ लक्षणों का योग है, सावन माह, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शनिवार का दिन, शुभ योग, सिंह लग्न में स्वाति नक्षत्र । इस योग में गृह निर्माण सर्वोत्तम माना गया है। इसमें या भी संभव है कि सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि में शनिवार ना हो या उस दिन उपरोक्त नक्षत्र ना हो फिर भी इसमें जितने भी योग मिल जाये वह बहुत ही लाभकारी है ।
किसी भी निर्माण में शिलान्यास सर्वप्रथम अग्नेय दिशा में करना चाहिए फिर उसके बाद प्रदिक्षणा करने के क्रम से निर्माण करना चाहिए अर्थात अग्नेय दिशा के बाद दक्षिण, नैत्रत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर , ईशान और अंत में पूर्व की तरफ निर्माण को समाप्त करना चाहिए । यह अवश्य ही ध्यान रहे कि कभी भी निर्माण की समाप्ति दक्षिण दिशा में नहीं होनी चाहिए अन्यथा भवन स्वामी की स्त्री , पुत्र को गंभीर रोग / अकाल मृत्यु के साथ साथ धन की हानि भी हो सकती है । अतः इससे स्पष्ट है कि गृह निर्माण सम्बन्धी किसी भी कार्य के शुभारंभ में शुभ मुहूर्त पर विचार करके हम अपने घर को निश्चय ही सपनो का घर बना सकते है ।

पंडित
Bhubneshwar
Kasturwanagar
Parnkuti guna