Thursday, 29 December 2016

मूल नक्षत्र और उनके दुष्प्रभाव क्या है

मूल शांति के उपाय- ज्येष्ठा के अन्तिम दो चरण तथा मूल के प्रथम दो चरण अभुक्त मूल कहलाते हैं।
मूल नक्षत्र और उनके प्रभाव मूल संज्ञक नक्षत्र और उनका प्रभाव
ज्येष्ठा
आश्लेषा
और रेवती,
मूल
मघा
और अश्विनी
यह नक्षत्र मूल नक्षत्र कहलाये जाते है,
इन नक्षत्रों के अन्दर पैदा होने वाला जातक किसी न किसी प्रकार से पीडित होता है,ज्येष्ठा के मामले में कहा जाता है,कि अगर इन नक्षत्र को शांत नही करवाया गया तो यह जातक को तुरत सात महिने के अन्दर से दुष्प्रभाव देना चालू कर देता है।

अगर किसी प्रकार से जातक खुद बडा है,तो माता पिता को अलग कर देता है,

और खुद छोटा है,तो अपने से बडे को दूर कर देता है,या अन्त कर देता है।

यही बात अश्लेशा नक्षत्र के बारे मे कही जाती है कि अगर पहले पद मे जन्म हुया है तो माता को त्याग देता है,

दूसरे पाये में पिता को त्याग देता है,

तीसरे पाये में अपने बडे भाई या बहिन को

और चौथे पाये मे अपने को ही सात दिन,सात महिने,सात साल के अन्दर सभी प्रभावों को दिखा देता है।

अभुक्त मूल विचार ज्येष्ठा नक्षत्र की अन्त की दो घडी तथा मूल नक्षत्र की आदि की दो घडी अभुक्त मूल कहलाती है,

लेकिन यह बातें तब मानी जाती थीं,जब जातक के माता पिता पहले से ही धर्म कार्यों के अन्दर खुद को लगा कर रखते थे,मगर आज के जमाने में सभी भौतिक कारणों से और सब कुछ पोंगा पंडित की किताब मानने के कारण दोनो नक्षत्रों की चारों ही घडी अभुक्त मूल कहलाने लगी

हैं,इन दो नक्षत्रों में पैदा होने वाला जातक अपने मामा या पिता परिवार को बरबाद कर देता है,अथवा खुद ही बरबाद हो जाता है।

कर्क लगन मे और कर्क राशि के अन्दर पैदा हुआ जातक अश्लेशा का जातक कहा जाता है,यह पिता के लिये भारी कहा जाता है,

माता को परदेश वास देता है,तथा धन के लिये माता को सभी सुख देता है और पिता को मरण देता है।

मूल शांति के उपाय ज्येष्ठा मूल या अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक के लिये नीचे लिखे मंत्रों का जाप २८००० जाप करवाने चाहिये,और २८वें दिन जब वही नक्षत्र आये तो मूल शान्ति का प्रयोजन करना चाहिये,

जिस मन्त्र का जाप किया जावे उसका दशांश हवन करवाना चाहिये,और २८ ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिये,बिना मूल शांति करवाये मूल नक्षत्रों का प्रभाव दूर नही होता है।

जिस मन्त्र का जाप किया जावे उसका दशांश हवन करवाना चाहिये,और २८ ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिये,बिना मूल शांति करवाये मूल नक्षत्रों का प्रभाव दूर नही होता है।

मंत्र- मूल नक्षत्र का बडा मंत्र यह है।

ऊँ मातवे पुत्र पृथ्वी पुरीत्यमग्नि पूवेतो नावं मासवातां विश्वे र्देवेर ऋतुभिरू सं विद्वान प्रजापति विश्वकर्मा विमन्चतु॥

इसके बाद छोटा मंत्र इस प्रकार से है।
ऊँ एष ते निऋते। भागस्तं जुषुस्व। ज्येष्ठा नक्षत्र का मंत्र इस प्रकार से है। ऊँ सं इषहस्तरू सनिषांगिर्भिर्क्वशीस सृष्टा सयुयऽइन्द्रोगणेन। सं सृष्टजित्सोमया शुद्धर्युध धन्वाप्रतिहिताभिरस्ता।

आश्लेषा मंत्र-

ऊँ नमोऽर्स्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु।
ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यरू सर्पेभ्यो नमरू॥

मूल शांति की सामग्री-

घड़ा एक,
करवा चार,
सरवा एक,
पांच रंग,
नारियल एक,
11 सुपारी,
पान के पत्ते 11,
दूर्वा,
कुशा,
बतासे 500 ग्राम ,
इन्द्र जौ,
भोजपत्र,
धूप,
कपूर,
आटा चावल,
गमछे 2,
दो मी लाल कपड़ा ,
मेवा 250 ग्राम,
पेड़ा 250 ग्राम,
बूरा 250 ग्राम,
माला दो,
27 खेडों की लकडी,
27 वृक्षों के अलग अलग पत्ते,
27 कुंओ का पानी,
गंगाजल,
समुद्र फेन,
आम के पत्ते,
पंच रत्न,
पंच गव्य
वन्दनवार,
बांस की टोकरी,
101 छेद वाला कच्चा घडा,
1घंटी
2 टोकरी
छायादान के लिये,
1 मूल की मूर्ति स्वनिर्मित,
27 किलो सतनजा,
सप्तमृतिका,
3 सुवर्ण प्रतिमा,
गोले 5,
ब्राहमणों हेतु वस्त्र,
पीला कपड़ा सवा मी,
सफेद कपड़ा सवा मी,
फल फूल मिठाई आदि ।

हवन सामग्री-

चावल एक भाग,
घी दो भाग
बूरा दो भाग,
जौ तीन भाग,
तिल चार भाग,
इसके अतिरिक्त मेवा अष्टगंध इन्द्र जौ,भोजपत्र मधु कपूर आदि।
जितने जप किए जाँए उतनी मात्रा में हवन सामग्री बनानी चाहिए।
पूजन जितना अच्छा होगा उसका प्रभाव भी उतना ही अच्छा होगा। पूजा सामग्री यथाशक्ति लानी चाहिए।

No comments:

Post a Comment