देवउठनी (देवुत्थान )एकादशी
= ११/११/२०१६
पारण के दिन द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी
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एकादशी तिथि प्रारम्भ = १०/नवम्बर/२०१६ को ११:२१ बजे एकादशी
तिथि समाप्त = ११/नवम्बर/२०१६ को ०९:१२ बजे
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(१)एकादशी प्रबोधिनी एकादशी को देव उठनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
(२)एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं।
(३)एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है।
(४)एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।
(५)यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है।
(६)द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
(७)एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।
(८)जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है।
(९)व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है।
(१०)व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।
(११)कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
(१२)कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है।
(१२)जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए।
(१३)दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं।
(१४)सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए।
(१५)जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।.
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----------( एकादशी निर्णय कैसे करे)---------
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धर्मसिंधु के अनुसार एकादशी दो प्रकार की होती हैं, पहली विद्धा और दूसरी शुद्धा. यदि एकादशी तिथि दशमी तिथि से युक्त हो तो वह विद्धा एकादशी कही जाती है. यदि सूर्योदय के समय एकादशी तिथि द्वादशी तिथि से युक्त होती है तब वह शुद्धा एकादशी कही जाती है. सामान्य जन साधारण को शुद्धा एकादशी का व्रत रखना ही पुण्यदायक माना गया है.
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एकादशी को हरिवासर कहा गया है।
भविष्यपुराण का वचन है—
शुक्ले वा यदि वा कृष्णे विष्णुपूजनतत्परः।
एकादश्यां न भुञ्जीत पक्षयोरुभयोरपि ॥
अर्थात्, विष्णुपूजा परायण होकर दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) की ही एकादशी में उपवास करना चाहिये। लिङ्गपुराण में तो और भी स्पष्ट कहा है—
गृहस्थो ब्रह्मचारी च आहिताग्निस्तथैव च। एकादश्यां न भुञ्जीत पक्षयोरुभयोरपि॥
अर्थात्, गृहस्थ, ब्रह्मचारी, सात्त्विकी किसी को भी एकादशी [दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण)] के दिन भोजन नहीं करना चाहिये। अब प्रश्न उठता है कि एकादशी व्रत का निर्धारण कैसे हो?
((((वशिष्ठस्मृति के अनुसार दशमी विद्धा एकादशी संताननाशक होता है और विष्णुलोकगमन में बाधक हो जाता है।)))
यथा— "
दशम्येकादशी यत्र तत्र नोपवसद्बुध:।
अपत्यानि विनश्यन्ति विष्णुलोकं न गच्छति॥
अतः यह परमावश्यक है कि एकादशी दशमीविद्धा (पूर्वविद्धा) न हो। हाँ द्वादशीविद्धा (परविद्धा) तो हो ही सकती है
क्योंकि
‘पूर्वविद्धातिथिस्त्यागो वैष्णवस्य हि लक्षणम्’
(नारदपाञ्चरात्र)।
लेकिन वेध-निर्णय का सिद्धान्त भी सर्वसम्मत नहीं है। निम्बार्क सम्प्रदाय में स्पर्शवेध प्रमुख है।उनके अनुसार यदि सूर्योदय में एकादशी हो परन्तु पूर्वरात्रि में दशमी यदि आधी रात को अतिक्रमण करे अर्थात् दशमी यदि सूर्योदयोपरान्त ४५ घटी से १ पल भी अधिक हो तो एकादशी त्याग कर महाद्वादशी का व्रत अवश्य करे।
सभी लोगोंको दशमीरहित एकादशी तिथि व्रतमें ग्रहण करनी चाहिये ।
(((दशमीयुक्त एकादशी तीन जन्मोंके कमाये हुए पुण्यका नाश कर देती है । ))))
यदि एकादशी द्वादशीमें एक कला भी प्रतीत हो और सम्पूर्ण दिन द्वादशी हो और द्वादशी भी त्रयोदशीमें मिली हुई हो तो दूसरे दिनकी तिथि ( द्वादशी ) हो उत्तम मानी गयी है ।
हिन्दू धर्म मे कार्तिक महीने की शुक्लपक्ष की एकादशी का बड़ा ही महत्व है।
कहते है इस एकादशी के दिन व्रत पूजा करने वाले के कई जन्मों के पाप कट जाते है और व्यक्ति उत्तम लोक मे जाने का अधिकारी बन जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का इस दिन किया गया पूजन शुभ, सिद्धिदायक और सौभाग्य मे वृद्धि करने वाला होता है। इसलिए परलोक मे उत्तम गति की इच्छा रखने वाले इस दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत रखते है। इस एकादशी को लेकर ऐसी मान्यता भी है कि इसदिन देवतागण भी भगवान विष्णु के पास पहुंचकर उनके दर्शन का लाभ पाते है और व्रत पूजन करते है। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महिनों की नींद से जागते है। इसे देवोत्थापनी या देवउठनी एकादशी भी कहते है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। (((धार्मिक मान्यता है कि असुर मधुकेटव भगवान ब्रह्मा जी से युद्ध लड़ने चल देता है। बृह्मा जी सहित सभी देवता परेशान हो जाते है और वे क्षीर सागर मे सो रहे भगवान विष्णु की स्तुति करते है। भगवान विष्णु कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को जागते है और जिसके बाद वे असुर का अंत करते है।))))
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : ‘
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥’ ‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’ ‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’
इस बार देवप्रबोधिनी एकादशी का पर्व 11 नवंबर,2016 (शुक्रवार) को है।
हिंदू शास्त्रो के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल और अध्र्य आदि अर्पित करे। भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रो के साथ निम्न मंत्रो का जाप करे-
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।। उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।
इसके बाद भगवान की आरती करे
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अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के बीच की अवधि को चातुर्मास कहा गया है।
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निर्णय सिन्धू की मानें तो एकादशी के अगले दिन यानि द्वादशी के दिन तुलसी विवाह करना चाहिए और इस द्वादशी को सुधा द्वादशी कहा जाता है।
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बर्ष भर में आने वाली एकादशीयो के नाम
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१】कामदा एकादशी चैत्र शुक्ल पक्ष
२】वरूथिनी एकादशी वैशाख कृष्ण पक्ष
३】मोहिनी एकादशी वैशाख शुक्ल पक्ष
४】अपरा एकादशी ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष
५】निर्जला एकादशी ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष
६】योगिनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण पक्ष
७】देवशयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल पक्ष
८】कामिका एकादशी श्रावण कृष्ण पक्ष
९】पुत्रदा एकादशी श्रावण शुक्ल पक्ष
१०】अजा एकादशी। भाद्रपद कृष्ण पक्ष
११】परिवर्तिनी एकादशी भाद्रपद शुक्ल पक्ष
१२】इंदिरा एकादशी आश्विन कृष्ण पक्ष
१३】पापांकुशा एकादशी आश्विन शुक्ल पक्ष
१४】रमा एकादशी कार्तिक कृष्ण पक्ष
१५】देव प्रबोधिनी एकादशी कार्तिक शुक्ल
१६】उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष
१७】मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष
१८】सफला एकादशी। पौष कृष्ण पक्ष
१९】पुत्रदा एकादशी पौष शुक्ल पक्ष
२०】षटतिला एकादशी। माघ कृष्ण पक्ष
२१】जया एकादशी माघ शुक्ल पक्ष
२२】विजया एकादशी। फाल्गुन कृष्ण पक्ष
२३】आमलकी एकादशी फाल्गुन शुक्ल पक्ष
२४】पापमोचिनी एकादशी चैत्र कृष्ण पक्ष
२५】पद्मिनी एकादशी अधिकमास शुक्ल
२६】परमा एकादशी अधिकमास कृष्ण
पंडित
भुबनेश्वर
कस्तूरवनगर पर्णकुटी
९८९३९४६८१०
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