ज्योतिष समाधान

Sunday, 30 October 2016

महालक्ष्मी पूजा के चार मुहूर्त

दिवाली की पूजा के लिए चार मुहूर्त होते है –

वृश्चिक लग्न – यह दिवाली के दिन की सुबह का समय होता है. वृश्चिक लग्न में मंदिर, हॉस्पिटल, होटल्स, स्कूल, कॉलेज में पूजा होती है. राजनैतिक, टीवी फ़िल्मी कलाकार वृश्चिक लग्न में ही लक्ष्मी पूजा करते है.

कुम्भ लग्न – यह दिवाली के दिन दोपहर का समय होता है. कुम्भ लग्न में वे लोग पूजा करते है, जो बीमार होते है, जिन पर शनि की दशा ख़राब चल रही होती है, जिनको व्यापार में बड़ी हानि होती है.

वृषभ लग्न – यह दिवाली के दिन शाम का समय होता है. यह लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय होता है.

सिम्हा लग्न – यह दिवाली की मध्य रात्रि का समय होता है. संत, तांत्रिक लोग इस दौरान लक्ष्मी पूजा करते है.

महानिशिता काल में तांत्रिक और पंडित लोग पूजा करते है, ये वे लोग होते है, जिन्हें लक्ष्मी पूजा के बारे में अच्छे से जानकारी होती है.

लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र : ॐ हिम् महालक्ष्मै च विदमहै, विष्णु पत्नये च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात
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      ( = : श्री महालक्ष्मी पूजन महुर्त :=)
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कार्तिक बदी =३०अमावस्या रवि वार शुद्ध
अमावस्या तिथि

अमावस्या आरम्भ
= २९ अक्टुम्बर २०१६ को  रात्रि =०८:४०से आरम्भ
आमवश्या समाप्त् 
=३०अक्टुम्बर २०१६ को रात्रि =११:४०तक
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दिनांक ३०=अक्टुम्बर २०१६

व्यापारी बर्ग की गद्दि स्थापना महुर्त
स्याही भरना
कलम दवात सवरना

चौघड़िया मुहूर्त

१】प्रात:०८:१२ से ०९:३५ तक चंचल बेला
२】प्रात:०९:३५ से १२:२१तक लाभ बेला
३】दोपहर ११:५७से १२:४५ तकअभिजित् महुर्त
४】दोपहर ०१:४४से ०३:०७
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              श्री महालक्ष्मी पूजन

१】सायंकाल गौधूली प्रदोषकालिक बेला

सायंकाल =०५:५३से ०८:१७तक

२】स्थिर लग्न मुहूर्त=

बृषभ लग्न बेला सायंकाल

रात्रि=६:५३से०८:४९तक

३】अर्द्ध रात्रि सिंह लग्न  बेला =

मध्य रात्रि  =१:२१मिनिट से  ३:३८ तक

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                  रोकड़ मिलान मुहूर्त

श्री नावाँ कार्य शुभारम्भ हेतु

कार्तिक सुदी =१ सोमवार
१】प्रात:=०६:५०से ०८:१३तक
२】प्रातः=०९:३६से१०:५८तक
३】सायंकाल दिवा ०३:०७से ५:५३तक

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           भाई दूज टीका मुहूर्त

=           ०१:१० से ०३:२३

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               गोबर्धन पूजा मुहूर्त
प्रात:०६:३०से  ८ :४४ तक
दोपहर ३:२४से ५:३७ तक

महा लक्ष्मीपूजन सामग्री लिस्ट
सामग्री आव्यशकतानुसार   कम ज्यादा ला सकते है
 
पाना लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मूर्ति

१】धूप बत्ती (अगरबत्ती)
२】चंदन
३】 कपूर
४】केसर
५】यज्ञोपवीत 5
६】कुंकु
७】चावल
८】अबीर
९】गुलाल,
१०】अभ्रक
११】हल्दी
१२】सौभाग्य द्रव्य-
१३】मेहँदी
१४】चूड़ी,
१५】काजल,
१६】बिछुड़ी आदि आभूषण
१७】आंटी (कलावा)
१८】रुई
१९】रोली,
२०】 सिंदूर
२१】सुपारी,
२२】पान के पत्ते
२३】पुष्पमाला,
२४】कमलगट्टे
२५】धनिया खड़ा
२६】 कुशा व दूर्वा
२७ पंच मेवा
२८】गंगाजल
२९】शहद (मधु)
३०】शकर
३१】 घृत (शुद्ध घी)
३२】दही
३३】दूध
३४】ऋतुफल(गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)
३५】नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि) ३६】इलायची (छोटी)
३७】लौंग
३८】मौली
३९】इत्र की शीशी
४०】तुलसी दल
४१】सिंहासन (चौकी, आसन)
४२】पंच पल्लव(बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)  सम्भब हो तो

४३】 लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति)
४४】गणेशजी की मूर्ति सरस्वती का चित्र
४५】चाँदी का सिक्का  श्रद्धानुसार
४६】लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र  श्र्द्धा अनुसार
४७】गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र श्रद्धाअनुसार
४८】अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र श्रद्धानुसार
४९】जल कलश (ताँबे या मिट्टी का)
५०】सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
५१】लाल कपड़ा (आधा मीटर)
५२】दीपक बड़े दीपक के लिए तेल
५३】 ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा)
५४】श्रीफल (नारियल)
५५】धान्य (चावल, गेहूँ)

५६】लेखनी (कलम)
५७】बही-खाता,
५८】स्याही की दवात
५९】तुला (तराजू)  अगर संभव हो तो
६०】 पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल)
६१】एक नई थैली में हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि खील-बताशे अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र

संपर्क
पंडित =भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
मोबाइल =०९८९३९४६८१०

Saturday, 29 October 2016

महा लक्ष्मीपूजन सामग्री लिस्ट लिंक ओपन करे

सामग्री आव्यशकतानुसार   कम ज्यादा ला सकते है
 
पाना लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मूर्ति

१】धूप बत्ती (अगरबत्ती)
२】चंदन
३】 कपूर
४】केसर
५】यज्ञोपवीत 5
६】कुंकु
७】चावल
८】अबीर
९】गुलाल,
१०】अभ्रक
११】हल्दी
१२】सौभाग्य द्रव्य-
१३】मेहँदी
१४】चूड़ी,
१५】काजल,
१६】बिछुड़ी आदि आभूषण
१७】आंटी (कलावा)
१८】रुई
१९】रोली,
२०】 सिंदूर
२१】सुपारी,
२२】पान के पत्ते
२३】पुष्पमाला,
२४】कमलगट्टे
२५】धनिया खड़ा
२६】 कुशा व दूर्वा
२७ पंच मेवा
२८】गंगाजल
२९】शहद (मधु)
३०】शकर
३१】 घृत (शुद्ध घी)
३२】दही
३३】दूध
३४】ऋतुफल(गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)
३५】नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि) ३६】इलायची (छोटी)
३७】लौंग
३८】मौली
३९】इत्र की शीशी
४०】तुलसी दल
४१】सिंहासन (चौकी, आसन)
४२】पंच पल्लव(बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)  सम्भब हो तो

४३】 लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति)
४४】गणेशजी की मूर्ति सरस्वती का चित्र
४५】चाँदी का सिक्का  श्रद्धानुसार
४६】लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र  श्र्द्धा अनुसार
४७】गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र श्रद्धाअनुसार
४८】अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र श्रद्धानुसार
४९】जल कलश (ताँबे या मिट्टी का)
५०】सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
५१】लाल कपड़ा (आधा मीटर)
५२】दीपक बड़े दीपक के लिए तेल
५३】 ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा)
५४】श्रीफल (नारियल)
५५】धान्य (चावल, गेहूँ)

५६】लेखनी (कलम)
५७】बही-खाता,
५८】स्याही की दवात
५९】तुला (तराजू)  अगर संभव हो तो
६०】 पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल)
६१】एक नई थैली में हल्दी की गाँठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि खील-बताशे अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र

संपर्क
पंडित =भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
मोबाइल =०९८९३९४६८१०

महालक्ष्मी पूजन महुर्त गोबर्धन पूजा मुहूर्त भाई दोज तिलक मुहूर्त लिंक ओपन करे

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      ( = : श्री महालक्ष्मी पूजन महुर्त :=)
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कार्तिक बदी =३०अमावस्या रवि वार शुद्ध
अमावस्या तिथि

अमावस्या आरम्भ
= २९ अक्टुम्बर २०१६ को  रात्रि =०८:४०से आरम्भ
आमवश्या समाप्त् 
=३०अक्टुम्बर २०१६ को रात्रि =११:४०तक
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दिनांक ३०=अक्टुम्बर २०१६

व्यापारी बर्ग की गद्दि स्थापना महुर्त
स्याही भरना
कलम दवात सवरना

चौघड़िया मुहूर्त

१】प्रात:०८:१२ से ०९:३५ तक चंचल बेला
२】प्रात:०९:३५ से १२:२१तक लाभ बेला
३】दोपहर ११:५७से १२:४५ तकअभिजित् महुर्त
४】दोपहर ०१:४४से ०३:०७
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              श्री महालक्ष्मी पूजन

१】सायंकाल गौधूली प्रदोषकालिक बेला

सायंकाल =०५:५३से ०८:१७तक

२】स्थिर लग्न मुहूर्त=

बृषभ लग्न बेला सायंकाल

रात्रि=६:५३से०८:४९तक

३】अर्द्ध रात्रि सिंह लग्न  बेला =

मध्य रात्रि  =१:२१मिनिट से  ३:३८ तक

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                  रोकड़ मिलान मुहूर्त

श्री नावाँ कार्य शुभारम्भ हेतु

कार्तिक सुदी =१ सोमवार
१】प्रात:=०६:५०से ०८:१३तक
२】प्रातः=०९:३६से१०:५८तक
३】सायंकाल दिवा ०३:०७से ५:५३तक

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           भाई दूज टीका मुहूर्त

=           ०१:१० से ०३:२३

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               गोबर्धन पूजा मुहूर्त

प्रात:०६:३०से  ८ :४४ तक
दोपहर ३:२४से ५:३७ तक
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भाई दूज टीका मुहूर्त

   = ब्रश्चिक लग्न=      प्रात:    ०७.  बजे  से  ०९. बजे तक

=  कुम्भ लग्न   दोपहर    ०१:१० बजे  से ०३:२३बजे तक

चोघड़िया मुहूर्त =

Friday, 28 October 2016

धनतेरस दीपावली भाई दूज मुहूर्त शुभभकामनाओ सहित लिंक ओपन करे

आदरणीय
आपको एबं आपके परिवार को  आपके कुटुम्बियों को आपके मित्रो को आपके समस्त आदरणीयों को आपके बालबृन्द जनो को   दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाये  एबं बहूत बहूत बधाईंया
*मान* मिले *सम्मान* मिले,
             *खुशियों* का *वरदान* मिले.
*क़दम-क़दम* पर मिले *सफलता*,
              *डगर-डगर* *उत्थान* मिले.
*सूरज* रोज *संवारे* दिन को,
            *चाँद* मधुर *सपने* ले आये,

हर पल समय *दुलारे* आपको
         *सदियों* तक पहचान मिले
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
रिद्धि दे सिद्धि दे,
अष्ट नव निद्धि दे,
वंश में वृद्धि दे
ह्रदय में ज्ञान दे,
चित में ध्यान दे,
अभय वरदान दे
दुःख को दूर कर,
सुख भरपुर कर,
आश संपूर्ण कर
सज्जन सो हित दे,
कुटुंब में प्रीत दे,
जग में जीत दे
आपका
पंडित =भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
09893946810

श्री बर्धन श्री यंत्र  """"""""""""""
व्यापार बृद्धि यंत्र """"""""""""""
एबं लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र """"""""""
रुके हुए व्यापार हेतु  दीपावली की रात्रि में सिद्ध किये हुए   श्री बर्धन  यंत्र द्वारा  लाभ प्राप्त करने वाले  यजमान  अपना रजिस्टेशन करवा कर  शीघ्र लाभ प्राप्त करे
  """"""""""
संपर्क सूत्र = 
पंडित =भुबनेश्वर  
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
०९८९३९४६८१०

=============================                   धनत्रयोदशी श्री कुबेर पूजा

कार्तिक बदी १३शूक्रवार प्रदोष कालिक बेला

सायंकाल  =०५:५५से ०८:१९तक यमदीपदान
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लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग २ घण्टे २४ मिनट तक रहता है। कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा को करने के लिए महानिशिता काल भी बताते हैं। हमारे विचार में महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए यह समय ज्यादा उपयुक्त होता है। सामान्य लोगों के लिए हम प्रदोष काल मुहूर्त उपयुक्त बताते हैं। लक्ष्मी पूजा को करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की सलाह नहीं देते हैं क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है। लक्ष्मी पूजा के लिए हम यथार्थ समय उपलब्ध कराते हैं। हमारे दर्शाये गए मुहूर्त के समय में अमावस्या, प्रदोष काल और स्थिर लग्न सम्मिलित होते हैं। हम स्थान के अनुसार मुहूर्त उपलब्ध कराते हैं इसीलिए आपको लक्ष्मी पूजा का शुभ समय देखने से पहले अपने शहर का चयन कर लेना चाहिए। अनेक समुदाय विशेष रूप से गुजराती व्यापारी लोग दीवाली पूजा के दौरान चोपड़ा पूजन करते हैं। चोपड़ा पूजा के दौरान देवी लक्ष्मीजी की उपस्थिति में नई खाता पुस्तकों का शुभारम्भ किया जाता है और अगले वित्तीय वर्ष के लिए उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है। दीवाली पूजा को दीपावली पूजा और लक्ष्मी गणेश पूजन के नाम से भी जाना जा

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      ( = : श्री महालक्ष्मी पूजन महुर्त :=)
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कार्तिक बदी =३०अमावस्या रवि वार शुद्ध
अमावस्या तिथि

अमावस्या आरम्भ
= २९ अक्टुम्बर २०१६ को  रात्रि =०८:४०से आरम्भ
आमवश्या समाप्त् 
=३०अक्टुम्बर २०१६ को रात्रि =११:४०तक
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दिनांक ३०=अक्टुम्बर २०१६

व्यापारी बर्ग की गद्दि स्थापना महुर्त
स्याही भरना
कलम दवात सवरना

चौघड़िया मुहूर्त

१】प्रात:०८:१२ से ०९:३५ तक चंचल बेला
२】प्रात:०९:३५ से १२:२१तक लाभ बेला
३】दोपहर ११:५७से १२:४५ तकअभिजित् महुर्त
४】दोपहर ०१:४४से ०३:०७
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              श्री महालक्ष्मी पूजन

१】सायंकाल गौधूली प्रदोषकालिक बेला 

सायंकाल =०५:५३से ०८:१७

२】स्थिर लग्न मुहूर्त=

बृषभ लग्न बेला सायंकाल

रात्रि=६:५३से०८:४९तक

३】अर्द्ध रात्रि सिंह लग्न  बेला =

मध्य रात्रि  =१:२१मिनिट से  ३:३८ तक

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                  रोकड़ मिलान मुहूर्त

श्री नावाँ कार्य शुभारम्भ हेतु

कार्तिक सुदी =१ सोमवार
१】प्रात:=०६:५०से ०८:१३तक
२】प्रातः=०९:३६से१०:५८तक
३】सायंकाल दिवा ०३:०७से ५:५३तक

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           भाई दूज टीका मुहूर्त

   = ब्रश्चिक लग्न=      प्रात:    ०७.  बजे  से  ०९. बजे तक 

 =  कुम्भ लग्न   दोपहर    ०१:१० बजे  से ०३:२३बजे तक 

चोघड़िया मुहूर्त =

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               गोबर्धन पूजा मुहूर्त
प्रात:०६:३०से  ८ :४४ तक
दोपहर ३:२४से ५:३७ तक

अधिकतर गोवर्धन पूजा का दिन दीवाली पूजा के अगले दिन पड़ता है और इस दिन को भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र देवता को पराजित किये जाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कभी-कभी दीवाली और गोवर्धन पूजा के बीच एक दिन का अन्तराल हो सकता है। धार्मिक ग्रन्थों में कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि के दौरान गोवर्धन पूजा उत्सव को मनाने का बताया गया है। हिन्दु कैलेण्डर में गोवर्धन पूजा का दिन अमावस्या तिथि के एक दिन पहले भी पड़ सकता है और यह प्रतिपदा तिथि के प्रारम्भ होने के समय पर निर्भर करता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गेहूँ, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है। महाराष्ट्र में यह दिन बालि प्रतिपदा या बालि पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वामन जो कि भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बालि पर विजय और बाद में बालि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है। यह माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बालि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आता है।

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Tuesday, 18 October 2016

करवा चौथ ब्रत महुर्त एबं सोलह श्रंगार कौन कौन से है

आईये जानते हैं कि करवाचौथ पर इस बार भारत में कहां-कहां कितने बजे दिखेगा चांद?

दिल्ली: करवा चौथ पूजा मुहूर्तरात 8:29 बजे
चंडीगढ़: रात 8:46 बजे
जयपुर: रात 8:58 बजे
जोधपुर: रात 9:10 बजे
मुंबई:रात 9:22 बजे
बंगलुरु: रात 9:12 बजे
हैदराबाद: रात 9:22 बजे
देहरादून: रात 8:44
पटियाला: रात 8:50 बजे
लुधियाना: रात 8:50 बजे
पटना: रात 8:46 बजे
लखनऊ: रात 8:37
वाराणसी: रात 8:37
कोलकाता: रात 8:13 बजे

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गुना ग्वालियर भोपाल इंदौर उज्जैन आदि क्षेत्रो मेंपूजा का शुभ मुहूर्त
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करवा चौथ पूजा मुहूर्त = 05:46 से 07:02

करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय = 08:57 अर्घ्य देने का समय

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = 18/अक्टूबर/2016 को रात्रि 10:47बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त = 19/अक्टूबर/2016को 07:32बजे करवा चौथ के दिन

कार्तिक कृष्ण पक्ष में करक चतुर्थी अर्थात करवा चौथ का लोकप्रिय व्रत सुहागिन और अविवाहित स्त्रियां पति की मंगल कामना एवं दीर्घायु के लिए निर्जल रखती हैं।

इस दिन न केवल चंद्र देवता की पूजा होती है अपितु शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।

इस दिन विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए गौरी पूजन का भी विशेष महात्म्य है।

इस वर्ष, यह व्रत विशेष रूप से फलदायी होगा क्योंकि 100 साल बाद करवाचौथ का

महासंयोग बना है।

१】रोहिणी नक्षत्र, चंद्रमा का प्रिय नक्षत्र

२】बुधवार, गणेश जी का प्रिय दिन

३】सर्वार्थ सिद्धि योग एवं गणेश चतुर्थी का संयोग इसी दिन है जो ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत अच्छा माना जाता है।

गणेश जी की पूजा का भी विशेष महत्व रहेगा।

४】चंद्रमा स्वयं, शुक्र की राशि वृष में उच्च के होंगे।

५】बुध स्वराशि कन्या में

६】और शुक्र व शनि एक ही राशि में विराजमान होंगे।

७】यही नहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी शुक्र प्रेम का परिचायक है। इस दिन शुक्र ग्रह, मंगल की राशि वृश्चिक में है जिससे संबंधों में उष्णता रहेगी।

मंगलवार की रात्रि 11 बजे तक तृतीया तिथि रहेगी और इसके बाद से चतुर्थी तिथि आरंभ होकर बुधवार की सायं 07.33 बजे तक रहेगी ।

पंडित भुबनेश्वर पर्णकुटी गुना का मानना है की 2016 में करवाचौथ का व्रत रखने से 100 व्रतों का वरदान प्राप्त होगा।

अक्सर कहा जाता है कि करवा चौथ में सुहागिनों को 16 श्रृंगार करके पूजा करनी चाहिए, लेकिन क्या आपको पता है कि 16 श्रृंगार सही में होते क्या हैं। करवाचौथ: हाथों में पूजा की थाली... आई रात सुहागों वाली... आईये जानते हैं 16 श्रृंगार के बारे में... मांग टीका: यह पति द्वारा प्रदान किये गये सिंदूर का रक्षक होता है। बिंदिया: इसे इस तरह से लगाया जाता है कि मांगटीका का एक छोर इसे स्पर्श करे। काजल: काजल अशुभ नजरों से बचाव करता है वहीं ये आपकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है। नथुनी: नाक में पहना जाने वाला यह आभूषण अपनी अपनी परंपरा व रस्मों रिवाज में छोटा-बड़ा होता है। सिंदूर: इस श्रृंगार के माध्यम से प्रथम बार कोई पुरूष किसी स्त्री को अपनी संगिनी बनाता है। मंगलसूत्र: ये भी सुहाग सूचक है, जिसके बिना हर शादी अधूरी है। कर्णफूल: श्रृंगार नंबर 7 को कर्णफूल या ईयर रिंग कहते हैं। मेंहदी: श्रृंगार में नंबर 8 का स्थान 'मेंहदी' का है। कंगन या चूड़ी: इसके बिना हर श्रृंगार अधूरा है। करवाचौथ में क्यों होती है चंद्रमा की पूजा? गजरा बालों को संवार कर उसमें गजरा सजानेे के पीछे कारण ये है कि जब तक बालों में सुगंध नहीं होगी तब तक आपका घर नहीं महकेगा। दुल्हन वो ही अच्छी मानी जाती है जिसके बाल पूरी तरह से व्यवस्थित होते हैं। बाजूबंद कुछ इतिहासकारों ने बाजूबंद मुगलकाल की देन माना है लेकिन पौराणिक कथाओं में इसकी खूब चर्चा है। यह बड़ी उम्र में पेशियों में खिंचाव और हड्डियों में दर्द को नियंत्रित करता है। 'अंगुठी' हम आपको बताते हैं श्रृंगार नंबर 12 यानी 'अंगुठी' के बारें में। वैसे 11 वां श्रृंगार 'आरसी' के रूप में जाना जाता है। आरसी आइने को कहते हैं लेकिन यहां ये भाव नहीं है। आरसी एक सीसा लगी हुई अंगुठी होती है जो कि दायें हाथ की अनामिका में पहनीं जाती हैं। कमरबंद कमरबंद को तगड़ी भी कहते हैं। काम में उत्साह और शरीर में स्फूर्ति का संचार बना रहे। उत्तम स्वास्थ्य के लिए कमरबंद स्वास्थ्य कारकों से भी आवश्यक और उत्तम माना जाता है। पायल या पाजेब श्रृंगार में 14 वां नंबर है पायल या पाजेब का। दुल्हन अपने घर की गृहलक्ष्मी होती है। उसका संचारण और सुभागमन बहुत शुभ माना जाता है। बिछिया पैरों में अंतिम आभूषण के रूप में बिछिया पहनी जाती है। दोनों पांवों की बीच की तीन उंगलियो में बिछिया पहनने का रिवाज है। परिधान यानी कपड़ा अंतिम और 16वां सबसे महत्वपूर्ण श्रृंगार होता है परिधान। शारीरिक आकार प्रकार के अनुसार परिधान में रंगो का चयन स्त्री के तंत्रिका तंत्र को मजबूत और व्यवस्थित करता है।

Monday, 10 October 2016

विजया दशमी महुर्त और शमी पूजा कैसे करे

  पंडित भुबनेश्वर
कस्तूरवानगर पर्णकुटी गुना
संपर्क 09893946810

विजयदशमी पूजा का समय विजय मुहूर्त

दशहरा मुहूर्त 11 अक्टूबर 2016
विजय मुहूर्त – 11.59 से 12.23 तक है।
शुभ कार्य हैतू यह समय उत्तम है।
कुल समय 24 मीनिट का है।
इसमें विजय हैतू प्रसथान करना शुभ होगा।
यह समय भी अस्त्र शस्त्र पुजन हैतू उत्तम है। पूजा का समय – 12.11 से 13.34 लाभ का चैघड़िया है
इसके बाद अमृत 13.34 से 14.57 तक है।

दशहरे के उपाय ,
दशहरे के टोटके दशहरा हिन्दू धर्म का बहुत प्रमुख पर्व माना जाता है | शास्त्रों के अनुसार दशहरे के दिन किया गया उपाय अत्यंत श्रेष्ट एवं शीर्घ फल देने वाले होते है | इस दिन किए गए उपायों से समस्त सुखों की प्राप्ति होते है एवं सभी चेत्रो में सफलता मिलती है | दशहरे के दिन दोपहर के समय ईशान दिशा में शुद्ध भूमि पर चंदन, कुमकुम, पुष्प से अष्टदल कमल का निमार्ण करके अपराजित देवी एवं जया और विजया देवी का स्मरण कर उनका पूजन करें। इसके बाद शमी वृक्ष का पूजन करें। शमी वृक्ष के पास जाकर विधिपूर्वक सभी पूजा सामग्री को चढ़ाकर शमी वृक्ष की जड़ों में मिट्टी को अर्पित करें। फिर थोड़ी सी मिट्टी वृक्ष के पास से लेकर उसे किसी पवित्र स्थान पर रख दें। इस दिन शमी के कटे हुए पत्ते और डालियों की पूजा नहीं करनी चाहिए। रात्रि में देवी मां के मंदिर में जाकर दीपक जलाएं साथ ही पूरे घर में रोशनी रखें। नवरात्र में विजयादशमी के दिन शमी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि का स्थाई वास होता है। शमी का पौधा जीवन से टोने-टोटके के दुष्प्रभाव और नकारात्मक प्रभाव को दूर करता है। इस दिन संध्या के समय शमी के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने से युद्ध और मुक़दमो में विजय मिलती है शत्रुओं का भय समाप्त होता है । आरोग्य व धन की प्राप्ति होती है। शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अगि्न तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अगि्न प्रकट करने हेतु शमी की लकडी के उपकरण बनाए जाते हैं। कहते हैं कि लंका पर विजय पाने के बाद राम ने भी शमी पूजन किया था। नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा भी शमी वृक्ष के पत्तों से करने का शास्त्र में विधान है। दशहरे पर शमी के वृक्ष की पूजन परंपरा हमारे यहां प्राचीन समय से चली आ रही है। ऎसी मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने के पूर्व शमी वृक्ष के सामने शीश नवाकर अपनी विजय हेतु प्रार्थना की थी। महाभारत के समय में पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। संभवत: इन्हीं दो कारणों से शमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई होगी। घर में ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में स्थित शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है। आश्विन माह की विजयदशमी के दिन अपराह्न को शमी वृक्ष के पूजन की परंपरा विशेष कर क्षत्रिय व राजाओं में रही है वह लोग इसके साथ ही अपने अस्त्र शास्त्रों की भी पूजा करते थे । आज भी राजपूत, क्षत्रिय लोग यह परंपरा निभाते है। कहते हैं कि ऎसा करने से व्यक्ति की सभी जगह पर विजय होती है उसका अन्ताकरण पवित्र हो जाता है। इस दिन हमें अपने कार्यक्षेत्र के अस्त्र शास्त्र अर्थात अपने लैपटाप, कम्प्यूटर, अपनी तराजू या जो भी वस्तु हमारे कार्य क्षेत्र में सहायता प्रदान करती है उसकी भी पूजा करनी चाहिए । इससे कार्य क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सफलता मिलती है । राम नवमी के दिन किसी पूजा की दुकान से 11 काली गूंजा ले आएं फिर दशहरा के दिन सुबह स्नान के पश्चात इन्हे गंगाजल और गाय के कच्चे दूध से धोकर पूजा घर में रखें । पूजा ख़त्म करने के बाद इनको अपने पास रख लें पूजा घर में ही या अपनी तिजोरी में रखे । काली गूंजा के पास होने से जीवन में कोई भी परेशानी नहीं आती है और यदि कोई संकट आया तो इसका रंग बदल जाता है उस समय इसको हटा कर बहते हुए पानी में विसर्जित कर देना चाहिए और फिर किसी शुभ मुहूर्त में पुन: स्थापित कर लेना चाहिए । दशहरा के दिन शाम को संध्या के समय ( अर्थात जब सूर्यास्त होने का और आकाश में तारे उदय होने का समय हो ) वो समय सर्व सिद्धिदायी विजय काल कहलाता है । जीवन में शत्रुओं पर , राजद्वार से, मुकदमो में विजय के लिए विजयादशमी के दिन संध्या के समय इसी सर्व सिद्धिदायी विजयकाल में विजय के लिए के नीचे दिए गए मंत्रो का जाप करे " ॐ अपराजितायै नमः ॥ ” की कम से कम 5 माला का जप करें । उसके पश्चात हनुमान जी का सिद्ध मन्त्र "ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्" ॥ की भी कम से कम दो माला का जप करें । इससे जीवन में दृढ़ता और शक्ति प्राप्त होती है। मनोबल ऊँचा रहता है शत्रु शांत हो जाते है, उसको हर जगह विजय की प्राप्ति होती है। दशहरा के दिन छोटी छोटी पर्चियों पर 'राम' नाम लिख कर उसे अलग अलग आटे की लोई में रखकर मछलियों को खिलाएं , इससे भगवान राजा राम की कृपा से जातक को जीवन में सभी सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है । राम नवमी और विजय दशमी दोनों ही दिन जीवन में शुभता, सफलता और सभी क्षेत्रो में विजय के लिए अपने घर और किसी मंदिर में लाल पताका अवश्य ही लगानी चाहिए । दशहरा के दिन से शुरू करते हुए लगातार 43 दिन तक बेसन के लड्डू कुत्ते को खिलाने चाहिए इससे धन लाभ के योग बनते है और धन में बरकत होने लगती है अर्थात घर कारोबार में धन रुकना भी शुरू हो जाता है । दशहरे से शरदपूर्णिमा तक चन्द्रमा की किरणों में अमृत होता है जो शरद पूर्णिमा के दिन अपने चरम पर होता है। अत: दशहरे से शरदपूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चंद्रमा के आगे त्राटक (बिना पलकें झपकाये एकटक देखना) करें । इससे नेत्रों के विकार दूर होते है नेत्रों की ज्योति तेज होती है । नागकेसर एक बहुत ही पवित्र और प्रभावशाली वनस्पति है।यह कालीमिर्च के सामान गोल होती है, गेरू रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है और इसके दाने में डण्डी भी लगी होती है । यह फूल गुच्छो में फूलता है, पकने पर गेरू रंग का हो जाता है। नागकेसर भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है और तन्त्र शास्त्र में भी इसका बहुत ही ज्यादा महत्व है । रामनवमी या दशहरा के दिन नागकेसर का पौधा लाएं और अपने घर में उसे दशहरा के दिन लगा कर नियमपूर्वक उसकी देखभाल करें । मान्यता है कि जैसे जैसे यह पौधा बढ़ता जायेगा आपकी भी उन्नति होती जाएगी । शास्त्रों के अनुसार दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन इनके दर्शन करने से समस्त सुखो की प्राप्ति होती है |