Sunday, 25 September 2016

भैरव साधना कैसे करे

बटुक भैरव साधना जीवन में सुख और दुःख आते ही रहते हैं। जहां आदमी सुख प्राप्त होने पर प्रसन्न होता है, वहीं दुःख आने पर वह घोर चिन्ता और परेशानियों से घिर जाता है, परन्तु धैर्यवान व्यक्ति ऐसे क्षणों में भी शांत चित्त होकर उस समस्या का निराकरण कर लेते हैं। कलियुग में पग-पग पर मनुष्य को बाधाओं, परेशानियों और शत्रुओं से सामना करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में उसके लिए मंत्र साधना ही एक ऐसा मार्ग रह जाता है, जिसके द्वारा वह शत्रुओं और समस्याओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार की साधनाओं में ‘आपत्ति उद्धारक बटुक भैरव साधना’ अत्यन्त ही सरल, उपयोगी और अचूक फलप्रद मानी गई है, कहा जाता है कि भैरव साधना का फल हाथों-हाथ प्राप्त होता है।

भैरव को भगवान शंकर का ही अवतार माना गया है,
शिव महापुराण में बताया गया है –

भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः।
मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।

देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भांति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने से आप ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत रहती है, अतः आप काल भैरव हैं, दुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं। आपदा-उद्धारक बटुक भैरव ‘शक्ति संगम तंत्र’ के ‘काली खण्ड’ में भैरव की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि ‘आपद’ नामक राक्षस कठोर तपस्या कर अजेय बन गया था, जिसके कारण सभी देवता त्रस्त हो गये, और वे सभी एकत्र होकर इस आपत्ति से बचने के बारे में उपाय सोचने लगे, अकस्मात् उन सभी के देह से एक-एक तेजोधारा निकली और उसका युग्म रूप पंचवर्षीय बटुक का प्रादुर्भाव हुआ, इस बटुक ने – ‘आपद’ नामक राक्षस को मारकर देवताओं को संकट मुक्त किया, इसी कारण इन्हें ‘आपदुद्धारक बटुक भैरव’ कहा गया है। ‘तंत्रालोक’ में भैरव शब्द की उत्पत्ति भैभीमादिभिः अवतीति भैरेव अर्थात् भीमादि भीषण साधनों से रक्षा करने वाला भैरव है, ‘रुद्रयामल तंत्र’ में दस महाविद्याओं के साथ भैरव के दस रूपों का वर्णन है और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तब तक सिद्ध नहीं होती जब तक उनसे सम्बन्धित भैरव की सिद्धि न कर ली जाय। ‘

रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं –

1. कालिका – महाकाल भैरव
2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्‍वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव
4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्‍वरी – महादेव भैरव
6. धूमावती – काल भैरव
7. कमला – नारायण भैरव
8. भैरवी – बटुक भैरव
9. मातंगी – मतंग भैरव
10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव भैरव से सम्बन्धित कई साधनाएं प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित हैं, जैन ग्रंथों में भी भैरव के विशिष्ट प्रयोग दिये हैं। प्राचीनकाल से अब तक लगभग सभी ग्रंथों में एक स्वर से यह स्वीकार किया गया है कि जब तक साधक भैरव साधना सम्पन्न नहीं कर लेता, तब तक उसे अन्य साधनाओं में प्रवेश करने का अधिकार ही नहीं प्राप्त होता। ‘शिव पुराण’ में भैरव को शिव का ही अवतार माना है तो ‘विष्णु पुराण’ में बताया गया है कि विष्णु के अंश ही भैरव के रूप में विश्‍व विख्यात हैं, दुर्गा सप्तशती के पाठ के प्रारम्भ और अंत में भी भैरव की उपासना आवश्यक और महत्वपूर्ण मानी जाती है। भैरव साधना के बारे में लोगों के मानस में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार की साधना को कोई भी साधक कर सकता है। भैरव साधना के बारे में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिये –
1. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।
2. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।
3. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। 

4. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदिका नैवेद्य लगाते हैं। साधना के लिए आवश्यक ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।

1. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य प्रसाद को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।
2. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जाती है।
3. इस महत्वपूर्ण साधना हेतु मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘बटुक भैरव यंत्र’ तथा ‘चित्र’ आवश्यक है, इस ताम्र यंत्र तथा चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए। 4. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीक माला’ का ही प्रयोग किया जाता है। साधना विधान इस साधना को बटुक भैरव सिद्धि दिवस अथवा किसी भी रविवार को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं। साधकों को नियमानुसार वर्ष में एक-दो बार तो भैरव साधनाएं अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए। साधना वाले दिन साधक रात्रि में स्नान कर, स्वच्छ गहरे रंग के वस्त्र धारण कर लें। अपना पूजा स्थल साधना के पूर्व ही धौ-पौछ कर साफ कर लें। भैरव साधना दक्षिणाभिमुख होकर सम्पन्न करने से साधना में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है। अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर सर्वप्रथम गुरु चित्र, गुरु विग्रह अथवा गुुरु चरण पादुका स्थापित करें। गुरु चित्र के निकट ही भैरव का चित्र अथवा विग्रह स्थापित कर दें। सर्वप्रथम गुरु चित्र का पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। उसके पश्‍चात् भैरव चित्र के सामने एक ताम्र प्लेट में कुंकुम से त्रिभुज बनाकर उस पर ‘बटुक भैरव यंत्र’ स्थापित कर दें।
भैरव साधना में तेल का ही दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए। यंत्र स्थापन के पश्‍चात् बाजोट पर ही तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर उसका पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से करें।

इसके पश्‍चात् दोनों हाथ जोड़कर सर्वप्रथम बटुक भैरव का ध्यान करें-

बटुक भैरव ध्यान वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्। दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥ दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्। हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥

अर्थात् भगवान् श्री बटुक भैरव बालक रूप ही हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुंघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव-मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्ज्वल रूपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं। भगवान श्री बटुक भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है। भगवान भैरव के ध्यान के बाल स्वरूप, आपदा उद्धारक स्वरूप के ध्यान के पश्‍चात्

गंध, पुष्प, धूप, दीप, इत्यादि से निम्न मंत्रों के साथ ‘बटुक भैरव यंत्र’ का पूजन सम्पन्न करें –

ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः। 

ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः। 

ॐ यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे घ्रापयामि नमः। 

ॐ रं अग्नि तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे निवेदयामि नमः। 

ॐ सं सर्व तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः। 

बटुक भैरव यंत्र पूजन के पश्‍चात् ‘काली हकीक माला’ से निम्न बटुक भैरव मंत्र की 7 माला मंत्र जप करें।

बटुक भैरव मंत्र ॥

ॐ ह्रीं बटुकायआपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा॥

यह इक्कीस अक्षरों का मंत्र अत्यन्त ही महत्वपूर्ण माना गया है, एक दिवसीय इस साधना की समाप्ति के पश्‍चात् नित्य बटुक भैरव यंत्र अपने सामने स्थापित कर उसका संक्षिप्त पूजन कर एक माह तक नित्य उपरोक्त बटुक भैरव मंत्र की एक माला जप करने से साधक की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। एक माह अर्थात् 30 दिन मंत्र जप के पश्‍चात् यंत्र एवं माला को जल में विसर्जित कर दें।
—————————————————————————————— भैरव से सम्बन्धित विशेष प्रयोग शत्रु बाधा निवारण भैरव प्रयोग तीव्र भैरव वशीकरण-सम्मोहन प्रयोग शत्रु-बाधा-निवारण-प्रयोग भगवान भैरव की साधना वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। भैरव साधना से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुण्डली में छठा भाव शत्रु का भाव होता है। लग्न में षट भाव भी शत्रु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु सम्बन्धी कष्ट उत्पन्न होते हैं। षष्ठस्थ-षष्ठेश सम्बन्धियों को शत्रु बनाता है। यह शत्रुता कई कारणें से हो सकती है। आपकी प्रगति कभी-कभी दूसरों को अच्छी नहीं लगती और आपकी प्रगति को प्रभावित करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेकर आपको प्रभावित करते हैं। तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती। दिया हुआ रुपया नहीं लौटता, रोग या विघ्न से आप पीड़ित रहते हैं अथवा बेकार के मुकद्मेबाजी में धन और समय की बर्बादी हो सकती है। इस प्रकार के शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी मानी गई। साधना विधान भैरव शत्रु बाधा निवारण यह प्रयोग किसी भी रविवार, मंगलवार अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव साधना मुख्यतः रात्रि काल में ही सम्पन्न की जाती है परन्तु इस प्रयोग को आप अपनी सुविधानुसार दिन में भी सम्पन्न कर सकते हैं। साधना काल में साधक स्नान कर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण कर, दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जाए। अपने सामने एक बाजोट पर सर्वप्रथम गीली मिट्टी की ढेरी बनाकर उस पर ‘काल भैरव गुटिका’ स्थापित करें। उसके चारों ओर तिल की पांच ढेरियां बना लें तथा प्रत्येक पर एक-एक आक्रान्त चक्र स्थापित करें। बाजोट पर तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा गुग्गल धूप तथा अगरबत्ती जला दें। 

सर्वप्रथम निम्न मंत्र बोलकर भैरव का आह्वान करें – 

आह्वान मंत्र 

आयाहि भगवन् रुद्रो भैरवः भैरवीपते।

 प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि॥ 

भैरव आह्वान के पश्‍चात् साधक भैरव का ध्यान करते हुए अपनी शत्रु बाधा शांति हेतु भैरव से प्रार्थना करें तथा हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प करें –

 संकल्प मैं अपनी अमुक शत्रु-बाधा के निवारण हेतु काल भैरव प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं। बाधा निवारण संकल्प के पश्‍चात् ‘काल भैरव गुटिका’ का सिन्दूर लगाकर पूजन करें। उस सिन्दूर से स्वयं के मस्तक पर भी तिलक लगाये। इसके पश्‍चात् पांचों आक्रान्त चक्र का सिन्दूर, कुंकुम, काजल, सफेद पुष्प से पूजन करें। अब एक पात्र में काली सरसों, काले तिल मिलाएं, उसमें थोड़ा तेल डालें, थोड़ा सिन्दूर डालकर उसे मिला दें, इस मिश्रण को निम्न भैरव मंत्र का जप करते हुए ‘काल भैरव गुटिका’ के समक्ष थोड़ा-थोड़ा कर 21 बार अर्पित करते रहें –

 विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय कारकं, महाभैरव नमः। सर्व दुष्ट विनाशनं सेवकं सर्वसिद्धि कुरु। 

ॐ काल भैरव, बटुक भैरव, भूत-भैरव, महा-भैरव महा-भय विनाशनं देवता सर्व सिद्धिर्भवेत्। 

उपरोक्त मंत्र जप के पश्‍चात् भैरव के निम्न मंत्र का 15 मिनट तक जप करें 

– मंत्र ॥ॐ हृीं भैरव भैरव भयकरहर मां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा॥

 इस प्रकार जप पूर्ण कर भैरव को दूध से बना नैवेद्य अर्पित करें। आप स्वयं भी इस नैवेद्य को ग्रहण करें। इस प्रकार यह प्रयोग सम्पन्न होता है। प्रयोग समाप्ति के पश्‍चात् समस्त सामग्री को किसी काले वस्त्र में बांध कर अगले दिन जल में विसर्जित कर दें। शत्रु बाधा निवारण का यह बहुत ही तीव्र प्रयोग है, साधकों ने इस प्रयोग को सम्पन्न कर अपनी बाधाओं को जड़ मूल से समाप्त किया है।  इस विशिष्ट प्रयोग को किसी को हानि पहुंचाने या उसको नुकसान कराने के लिये नहीं करना चाहिए।
================ भैरव तीव्र वशीकरण सम्मोहन प्रयोग नौकरी, व्यापार, जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि आप चाह कर भी किसी को अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाते। ऐसे कई लोग हैं जिनको इस बात का दुःख होता है कि जीवन में उन्हें ‘चांस’ नहीं मिला। अक्सर लोग इस बात को कहते हैं कि – उसे अपनी बात कहने का अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ, इसलिये काम नहीं हुआ। जीवन में आने वाले अवसरों अर्थात् ‘चांस’ को सुअवसर में बदलने के लिये सम्पन्न करें भगवान भैरव का यह अति विशिष्ट वशीकरण प्रयोग। जिसको सम्पन्न करने के पश्‍चात् आप जिस किसी को भी अपने वश में करना चाहते हैं अथवा अपनी बात को उसके सामने स्पष्ट करना चाहते हैं कर सकते हैं। यह प्रयोग बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुष किसी पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। भगवान भैरव का तंत्र वशीकरण प्रयोग कोई टोटका नहीं बल्कि शुद्ध तंत्र प्रयोग है जिसका प्रभाव तत्काल रूप से देखा जा सकता है। साधना विधान तंत्र वशीकरण प्रयोग किसी भी रविवार अथवा मंगलवार को सम्पन्न किया जा सकता है। यह रात्रिकालीन प्रयोग है जिसे रात्रि में 10 बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। इस प्रयोग हेतु मंत्रसिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त ‘भैरव वशीकरण गुटिका’ तथा ‘काली हकीक माला’ की आवश्यकता होती है। रात्रि में साधक स्नान, ध्यान कर किसी शांत स्थान पर बैठकर यह साधना सम्पन्न करें। साधना स्थल को पहले से ही साफ-स्वच्छ कर लें। भैरव का यह प्रयोग उत्तर दिशा की ओर मुख करके सम्पन्न करना चाहिए। अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर एक पीपल का पत्ता रखें। पत्ते पर कुंकुम से उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर लिख दें जिसे आप वशीभूत करना चाहते हैं। इसके पश्‍चात् इस पत्ते पर ‘भैरव वशीकरण गुटिका’ स्थापित कर दें। गुटिका का संक्षिप्त पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से करें तथा धूप, दीप प्रज्जवलित कर लें। इसके पश्‍चात् काली हकीक माला से निम्न मंत्र की 3 माला मंत्र जप करें। ॐ नमो रुद्राय कपिलाय भैरवाय त्रिलोक-नाथाय ह्रीं फट् स्वाहा। मंत्र जप समाप्ति के पश्‍चात् गुटिका पर 21 लौंग अर्पित करते हुए उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करें। इस प्रकार भैरव वशीकरण प्रयोग सम्पन्न होता है। प्रयोग समाप्ति के पश्‍चात् समस्त सामग्री को उसी लाल वस्त्र में बांधकर प्रातः किसी चौराहे पर रख दें।  ============================== ये दोनों प्रयोग सिद्ध सरल प्रयोग हैं, जीवन में जब भी स्थिति प्रतिकूल हो अर्थात् शत्रु बाधा बढ़ती ही जा रही हो, अनावश्यक वाद-विवाद बढ़ता ही जा रहा हो तो यह प्रयोग अवश्य करना चाहिये, निरन्तर कार्य सिद्धि के लिये अपने आपको स्थापित करने के लिये व्यक्ति विशेष को पूर्ण अनुकूल बनाने के लिये यह साधना प्रयोग अवश्य सम्पन्न करें।

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