Friday, 26 August 2016

आप के पितृ आप से नाराज है तो उन्हें खुस करने का उपाय

अमावस्या को घर में एक छोटा सा हवन
तथापितरों के निमित्त श्राद्ध अवश्य करें
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हर अमावस्या को घर में एक छोटा सा आहुति प्रयोग करें।
सामग्री :
१. काले तिल,
२. जौं,
३. चावल,
४. गाय का घी,
५. चंदन पाउडर,
६. गुगल,
७. गुड़,
८. देशी कपूर, गौ चंदन या कण्डा।
विधि:
गौ चंदन या कण्डे को किसी बर्तन में डालकर हवनकुंड बना लें,
फिर उपरोक्त ८ वस्तुओं के मिश्रण से तैयार सामग्री से, घर के सभी सदस्य एकत्रित होकर नीचे दिये गये देवताओं की १-१ आहुति दें।
आहुति मन्त्र:
१. ॐ कुल देवताभ्यो नमः
२. ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः
३. ॐ ग्रह देवताभ्यो नमः
४. ॐ लक्ष्मीपति देवताभ्यो नमः ५. ॐ विघ्नविनाशक देवताभ्यो नमः

हर अमावस्या को पितरों के निमित्त श्राद्ध अवश्य करें हर अमावस्या को अपने पितरों का श्राद्ध भी अवश्य करना चाहियें अगर कोई श्राद्ध करने में असमर्थ है तो उसको कम से तिल मिश्रित जल तो अपने पितरों के निमित्त अर्पण करना ही चाहिये।

वराह पुराण के १३ अध्याय (पितरों का परिचय, श्राद्ध के समय का निरूपण तथा पितृगीत) में आता है कि श्राद्धकर्ता जिस समय श्राद्धयोग्य पदार्थ या किसी विशिष्ट ब्राह्मण को घर में आया जाने अथवा उत्तरायण या दक्षिणायन का आरम्भ, व्यतीपात योग हो, उस समय श्राद्ध का अनुष्ठान करे।

विषुव योग में, सूर्य और चन्द्र ग्रहण के समय,
सूर्य के राश्यन्तर-प्रवेश में नक्षत्र अथवा ग्रहों द्वारा पीडित होने पर,
बुरे स्वप्न दिखने पर तथा घर में नवीन अन्न आने पर काम्य-श्राद्ध करना चाहिये।

जो अमावस्या अनुराधा, विशाखा एवं स्वाती नक्षत्र से युक्त हो, उसमें श्राद्ध करने से पितृगण आठ वर्षों तक तृप्त रहते हैं।

इसी प्रकार जो अमावस्या पुष्य, पुनर्वसु या आर्द्रा नक्षत्र से युक्त हो, उसमें पूजित होने से पितृगण बारह वर्षों तक तृप्त रहते हैं।

जो पुरुष देवताओं एवं पितृगण को तृप्त करना चाह्ते हैं उनके लिये धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद अथवा शतभिषा नक्षत्र से युक्त अमावस्या अत्यन्त दुर्लभ हैं। ब्राह्मण श्रेष्ठ! जब अमावस्या इन नौ नक्षत्रों से युक्त होती है, उस समय किया हुआ श्राद्पितृगण को अक्षय तृप्तिकारक होता हैं।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी, माघमास की अमावस्या, चन्द्र या सूर्य ग्रहण के समय तथा चारों अष्टकाओं (प्रत्येक मास की सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी तिथियों के समूह की तथा पौष, माघ एवं फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथीयों को "अष्टका" की संज्ञा हैं) में अथवा उत्तरायण य दक्षिणायन के समय जो मनुष्य एकाग्रचित से पितरों को तिलमिश्रित जल भी दान कर देता है तो वह मानों सहस्त्र वर्षों के लिये श्राद्ध कर देता हैं।

यह परम रहस्य स्वयं पितृगणों का बताया हुआ हैं। कदाचित्त माघ मास की अमावस्या का यदि शतभिषा नक्षत्र से योग हो जाय तो पितृगण की तृप्ति के लिये यह परम उत्कृष्ट काल होता हैं।

द्विजवर! अल्प पुण्यवान पुरुषों को ऐसा समय नही मिलता और यदि माघ मास की अमावस्या का धनिष्ठा नक्षत्र से योग हो जाये तो उस समय अपने कुल में उत्पन्न पुरुष द्वारा दिये हुए अन्न एवं जल से पितृगण दस हजार वर्ष के लिये तृप्त हो जाते है तथा यदि माघी अमावस्या के साथ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का योग हो और उस समय पितरों के लिये श्राद्ध किया जाय तो इस कर्म से पितृगण अत्यन्त तृप्त होकर पूरे युग तक सुख पूर्वक शयन करते है। गंगा, शतद्रु, विपाशा, सरस्वती और नैमिषारण्य में स्थित गोमती नही में स्नानकर पितरों का आदरपूर्वक तर्पण करने से मनुष्य अपने समस्त पापों को नष्ट कर देता है।

पितृगण सर्वदा य गान करते हैं कि वर्षाकाल में (भाद्रपद शुक्ल त्रियोदशी के) मघा नक्षत्र में तृप्त होकर फिर माघ की अमावस्या को अपने पुत्र-पौत्रादि द्वारा दी गयी पुण्य तीर्थों की जलांजली से हम कब तृप्त होंगें।
विशुद्ध चित्त, शुद्ध धन, प्रशस्त काल, उपर्युक्त विधि, योग्य पात्र और परम भक्ति - ये सब मनुष्य को मनोवान्छित फल प्रदान करते हैं।
पंडित =भुबनेश्वर
कस्तुरवानगर पर्णकुटी
ऐ बी रोड गुना
09893946810

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