Sunday, 21 August 2016

श्री क्रष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये एबं शुभ महूर्त


आदरणीय 🐾🐾🐾🐾☔🌙🏃🏃🏃🏃
          आपको एबम आपके पुरे परिवार के लिए हमारी और से श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाये । आपके सारी मनोकामनाये आज से ही पूरी होंगी आपके जीवन में कुछ नया हो । आपके रुके हुए कार्य आज से ही पुरे हो। आपके यहां हमेशा lxmi जी  का वास हो ।आप जो चाहे बो होने  लगे  ....👪....👣...👪👣.....👪
××××××××××जय श्री कृष्ण ××××××××××
     ||👣कृष्ण जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त👣 ||
××👣भगवान कृष्ण जन्मोत्सव👣 ××
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👣👣👣निशिता पूजा का समय👣 👣👣
भगवान श्रीकृष्ण का ५२४३वाँ जन्मोत्सव निशिता पूजा का समय = २४:००+ से २४:४५+ अवधि = ० घण्टे ४४ मिनट्स मध्यरात्रि का क्षण = २४:२३+ २६th को, पारण का समय = १०:५२ के बाद पारण के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र का समाप्ति समय = १०:५२ दही हाण्डी - २६th, अगस्त को अष्टमी तिथि प्रारम्भ = २४/अगस्त/२०१६ को २२:१७ बजे अष्टमी तिथि समाप्त = २५/अगस्त/२०१६ को २०:०७ बजे
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=रेलबेघडी के हिसाब से समय गड़ना देखे =
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  जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व केवल एक ही समय भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के पश्चात, भक्त लोग पूरे दिन उपवास रखकर, अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के समाप्त होने के पश्चात व्रत कर पारण का संकल्प लेते हैं। कुछ कृष्ण-भक्त मात्र रोहिणी नक्षत्र अथवा मात्र अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण कर लेते हैं। संकल्प प्रातःकाल के समय लिया जाता है और संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत प्रारम्भ हो जाता है। जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशीथ समय पर की जाती है। वैदिक समय गणना के अनुसार निशीथ मध्यरात्रि का समय होता है। निशीथ समय पर भक्त लोग श्री बालकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। विस्तृत विधि-विधान पूजा में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह (१६) चरण सम्मिलित होते हैं।
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====👣कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत के नियम👣 ====
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एकादशी उपवास के दौरान पालन किये जाने वाले सभी नियम जन्माष्टमी उपवास के दौरान भी पालन किये जाने चाहिये। अतः जन्माष्टमी के व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के अन्न का ग्रहण नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है। जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिये। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होते तो पारण किसी एक के समाप्त होने के पश्चात किया जा सकता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। ऐसी स्थिति में व्रती को किसी एक के समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिये। अतः अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अन्त समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो सम्पूर्ण दिनों तक प्रचलित हो सकता है। हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु के अनुसार, जो श्रद्धालु-जन लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है, वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के पश्चात व्रत को तोड़ सकते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी,
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【१】लड्डू गोपाल को खीर का भोग लगायें खीर का भोग लगाने से आपको मकान और धन की प्राप्ति हो सकती है।
【२】 दही-मक्खन का भोग दही मक्खन का भोग लगाने से आप हमेशा निरोगी और स्वस्थ रहेंगे।
【३】 देशी घी का भोग देशी घी से पूजा करने से सुख, शांति, समृद्दि प्राप्त होगी।
【४】लड्डू झूले वाले कान्हा जी को मक्खन और लड्डू खिलाने से संतान सुख मिलता है। मिश्री का भोग मिश्री का भोग लगाने से अच्छी नौकरी मिलेगी।
【५】बर्फी का भोग लगायें बर्फी का भोग लगाने से सारे कर्जे माफ हो जायेंगे।
【६】इलायची वाले दूध का भोग इलायची वाले दूध का भोग लगाने से समृद्धि हासिल होती है। राधा-कृष्ण की पूजा राधा-कृष्ण की पूजा करने से शादी जल्दी और मनचाही होती है।
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नन्दजी को नन्दित किये खेलें बार-बार ,
अम्ब जसुदा को कन्हैया मोद देते थे।

कुंजन में कूंजते खगों के बीच प्यार भरे ,
हिय में दुलार ले उन्हें विनोद देते थे।

देते थे हुलास ब्रज वीथिन में घूम घूम,
मोहन अधर चूमि चूमि प्रमोद देते थे।

नाचते कभी ग्वालग्वालिनों के संग में,
कभी भोली राधिका को गोद उठा लेते थे।। 1।।

.2.नौमिषारण्य का दृश्य –J

धेनुए सुहाती हरी भूमि पर जुगाली किये,
मोहन बनाली बीच चिड़ियों का शोर है।

अम्बर घनाली घूमै जल को संजोये हुए,
पूुछ को उठाये धरा नाच रहा मोर है।

सुरभि लुटाती घूमराजि है सुहाती यहां,
वेणु भी बजाती बंसवारी पोर पोर है।

गूंजता प्रणव छंद छंद क्षिति छोरन लौ,
स्नेह को लुटाता यहां नितसांझ भोर है।। 2।।

प्रकृति यहां अति पावनी सुहावनी है,
पावन में पूतता का मोहन का विलास है।

मन में है ज्ञान यहां तन में है ज्ञान यहां,
धरती गगन बीच ज्ञान का प्रकाश है।

अंग अंग रंगी है रमेश की अनूठी छवि,
रसना पै राम राम रस का निवास है।

शान्ति हैै सुहाती यहां हिय में हुलास लिये,
प्रभु के निवास हेतु सुकवि मवास है।।3।।
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गाते रहो गुण ईश्वर के,
जगदीश को शीश झुकाते रहो।

छवि ‘मोहन’ की लखि नैनन में,
नित प्रेम की अश्रु बहाते रहो।

नारायण का धौेर धरो मन में,
मन से मन को समझाते रहो।

करूणा करि के करूणानिधि को,
करूणा भरे गीत सुनाते रहो।। 4 ।।

जग में जनमें जब बाल भये,
तब एक रही सुधि भोजन की।

तन में तरूणाई तभी प्रकटी,
तब प्रीति रही तरूणी तन की।

तन बृद्ध भयो मन की तृष्णा,
सब लोग कहें सनकी सनकी।

सुख! ‘मोहन’ नाहिं मिल्यो कबहूं,
रही अंत समय मनमें मनकी।। 5 ।।
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कैसे करें प्रेम निर्मल, मन में न कोई स्वार्थ हो
मनसा वाचा कर्मणा, हर सोच केवल धर्मार्थ हो
कैसे निभाएं मित्रता, सीखें सुदामा प्रेम में
छोड़ी प्रतिज्ञा स्वयं की, अर्जुन सखा के प्रेम में

कैसे करें रक्षा बहिन की, जैसे की द्रौपदी हे प्रभो
दुष्ट-‍दण्डि‍त कैसे करें, शिक्षा आपने दी है प्रभो
त्यागी दुर्योधन की मेवा, स्वीकारा साग विदुर का
छोड़ें हम साथ पापियों का, गुप्त संदेश आपका

दी और भी शिक्षा प्रभु, नहीं शब्द मेरे पास हैं
हाथ मेरा थामिए प्रभु, केवल मेरी यह आस है
इस जन्माष्टमी पर प्रभु, बोध मुझको दीजिए
अनुकरण कुछ कर सकूं, बुद्धि मुझको दीजिए

आपका
पंडित =भुबनेश्वर शास्त्री
कस्तूरवा नगर पर्णकुटी
ऐ बी रोड गुना m.p.☔👣
Mo÷÷09893946810

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